जी हां , हमारे भारतीय गणतंत्र के सर्वोच्च न्यायालय में यह दलील है देश के जाने माने कांग्रेसी नेता और अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने रखा है, जिहोने सुप्रीम कोर्ट में कांग्रेस के हरफन मौला और मनमानी भाषण देने वाले नेता श्री राहुल गांधी जी के मानहानि की सजा को स्थगित करने की याचिका लगाई है।राहुल गांधी की सजा पर कोई अंतरिम निलंबन नहीं मिला है। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को 4 अगस्त के लिए सूचीबद्ध किया है। इस स्तर पर, दूसरे पक्ष को सुने बिना, हम कैसे कर सकते हैं," सुप्रीम कोर्ट ने श्री गांधी की सजा के 'अंतरिम निलंबन' की याचिका के जवाब में जस्टिस गवई ने पूछा।
मोदी सरनेम केस में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाने पर अब 4 अगस्त 2023 को सुनवाई सर्वोच्च न्यायालय में होनी है। न्यायमूर्ति बीआर गवई की अगुवाई वाली पीठ ने मामले को 4 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।जस्टिस गवई ने कहा कि पहले प्रतिद्वंद्वी पक्ष को सुने बिना ऐसा नहीं किया जा सकता.
राहुल गांधी
सुनवाई शुरू होते ही जस्टिस गवई ने वकीलों को कांग्रेस पार्टी के साथ अपने परिवार के राजनीतिक जुड़ाव के इतिहास के बारे में बताया। जस्टिस गवई के पिता, आरएस गवई, एक कार्यकर्ता, सांसद, राज्यपाल और रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) के संस्थापक थे। उनके भाई, राजेंद्र गवई, एक राजनीतिज्ञ हैं। दोनों पक्षों ने जस्टिस गवई से कहा कि वह मामले से पीछे न हटें.श्री सिंघवी ने कहा कि यह समय का संकेत है कि "इस प्रकार की चीजें सामने आनी चाहिए"।
“मैं केवल अपना कर्तव्य निभा रहा हूं। मुझे इसका खुलासा करना होगा ताकि बाद में कोई समस्या न हो। मैं 20 साल से बेंच पर हूं। इन चीजों ने कभी भी मेरे फैसले को प्रभावित नहीं किया,'' न्यायमूर्ति गवई ने कहा।
वास्तव में, हल्के-फुल्के अंदाज में, न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि उनके पिता साथी सांसद थे और श्री सिंघवी और श्री जेठमलानी दोनों के पिता के अच्छे दोस्त थे।
इसके लिए गुजरात सरकार और याचिकाकर्ता पूर्णेश मोदी को नोटिस भेजा है। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली कांग्रेस नेता राहुल गांधी की याचिका पर गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया है। कोर्ट ने 10 दिनों में जवाब देने के लिए भी कहा है। चार अगस्त को अगली सुनवाई होनी है । सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पूर्णेश मोदी को भी नोटिस जारी किया है।
हाईकोर्ट ने आपराधिक मानहानि मामले में उनकी सजा पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। जैसा कि सारा देश जानता है कि राहुल गांधी को सूरत की अदालत ने 'मोदी सरनेम' पर विवादित टिप्पणी के लिए उन्हें दो साल जेल की सजा सुनाई थी। इसे लेकर राहुल जी ने ना केवल कांग्रेसी अपितु सारे विपक्षियों को अपनी तथा कथित देश जोड़ो यात्रा से जोड़ा था। बार बार दलील दी गई थी की गांधी कभी झुकता नही है। यह भी विचारणीय है कि वह असली गांधी हैं या नकली।( उनके दादा जी फिरोज घानधी ghandhy था इसलिए वे असली गांधी नही हैं।) महात्मा गांधी के पर पोते ने भी गांधी उपाधि छोड़ने की अपील जारी कर चुके हैं।
गुजरात हाईकोर्ट के सात जुलाई के उस फैसले को चुनौती दी है जिसमें कि कोर्ट ने दोषसिद्धि (दो साल की सजा) पर रोक लगाए जाने का अनुरोध करने वाली उनकी याचिका खारिज कर दी थी। अपनी याचिका में, श्री गांधी ने तर्क दिया कि निचली अदालतों ने लोकतांत्रिक राजनीतिक गतिविधि के दौरान आर्थिक अपराधियों और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की आलोचना करने वाले उनके राजनीतिक भाषण को "नैतिक अधमता" का कार्य करार दिया था। राहुल गांधी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील अभिषेक सिंघवी ने सुप्रीम कोर्ट से याचिका को 21 जुलाई या 24 जुलाई को सूचीबद्ध किए जाने का अनुरोध किया था।
राहुल गांधी ने अपनी याचिका में कहा कि यदि हाईकोर्ट के फैसले पर रोक नहीं लगाई गई तो यह लोकतांत्रिक संस्थानों को व्यवस्थित तरीके से, बार-बार कमजोर करेगा और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का दम घुट जाएगा, जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा।उन्होंने तर्क दिया कि दोषसिद्धि और दो साल की सजा, जो मानहानि कानून में अधिकतम सजा है, के परिणामस्वरूप "याचिकाकर्ता को आठ साल की लंबी अवधि के लिए सभी राजनीतिक निर्वाचित कार्यालयों से कठोर बहिष्कार" होगा।
यह दलील तो हो सकती है पर विश्वसनीय कभी भी नहीं हो सकती है। हो सकता है कांग्रेस के जमाने के कोलोजिनियम वाले जज साहबान इस दलील को सही मानकर इस भारत के मनमानी नेता को और ज्यादा उपहास पात्र बनने में अप्रत्यक्ष तौर पर मदद भी कर सकते हैं। हमारा न्यायालय आपात स्थिति में चौबीस घंटे कभी भी सुनवाई कर सकता है तथा सेलेक्टेड विषयों पर स्वतः संज्ञान भी ले लेता है।
उनकी याचिका में अत्यंत सम्मानपूर्वक यह दलील दी जाती है कि यदि विवादित फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो इससे स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र बयान का दम घुट जाएगा। 7 जुलाई के गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देते हुए, जिसने उनकी सजा को बरकरार रखा, श्री गांधी ने पूछा कि एक "अपरिभाषित अनाकार समूह" को पहली बार में कैसे बदनाम किया जा सकता है।
न्यायमूर्ति गवई
भारत में यदि राहुल जी जैसे नेता को संरक्षण ना मिला तो भारतीय जनतंत्र और न्यायालय की जग हंसाई हो सकती है। इस प्रकार की दलील तो कोई भी दे सकता है और इस पर यकीन निश्चय ही भारत के भविष्य पर प्रश्न चिन्ह छोड़ सकता है। हो सकता है याचिका कर्ता और उच्च न्यायालय राहुल जी के तत्कालीन भाषणों की सूची ऑडियो और वीडियो भी अपने पक्ष में रखे।पर सर्वोच्च न्यायालय उसे कितना तवज्जो देगा? यह आने वाला समय ही बताएगा।
(लेखक पूर्व में जिला न्यायालय बस्ती में अधिवक्ता के रूप में कार्य करने के बाद में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद पर कार्य कर चुका है । वर्तमान में साहित्य, इतिहास, पुरातत्व और अध्यात्म विषयों पर अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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