भगवान शिव के भक्तों का सावन महीना बहुत महत्व पूर्ण होता है. इसे देवों के देव महादेव का प्रिय माह माना गया है. सनातन परम्परा में हिन्दू संवत में इसका पाचवां क्रम है.संयोग से हमे इस भौतिक शरीर को इस धरा पर आने का अवसर भी इसी माह में मिला है। इसलिए मेरे लिए और भी भावनात्मक लगाव इस माह से हो रहा है.
शिव जी की आराधना के लिए सावन का महीना उत्तम माना गया है. जो भक्त सावन में नियमित रूप से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं और सावन में पड़ने वाले हर सोमवार का व्रत करते हैं, शिव जी की भक्ति के साथ पोज पाठ और तदनुरूप उद्यापन करते हैं,उनकी हर मनोकामना पूरी होती है.
सावन का महीना खास होता है :-
इस साल 2023 ई में सावन का महीना कई मायनों से बेहद खास होने वाला है. इस बार आपके पास शिव जी को प्रसन्न करने के लिए पूरे दो माह का समय होगा. अधिक ( मलमास) पुरुषोत्तम मास की वजह से इस बार सावन महीने की शुरुआत 04 जुलाई को हो चुकी है और समापन 31 अगस्त 2023 को होगा. प्रत्येक तीसरे साल में 33 दिनों का अलग अतिरिक्त महीना बन जाता है जिसे अधिकमास कहा जाता है और इसकी वजह से ही वर्ष 2023 में सावन दो महीनों का हो रहा है.
भगवान शिव को कई और नामों से पुकारा जाता है जैसे- महादेव, भोलेनाथ, शंकर, महेश, रुद्र, नीलकंठ इत्यादि. तंत्र साधना में भगवान शिव को भैरव के नाम से भी जाना जाता है. भगवान शिव को वेद में रुद्र के नाम से भी जाना जाता है.
शिव इंसान की चेतना के अन्तर्यामी हैं यानी इंसान के मन की बात पढ़़ने वाले हैं. इनकी अर्धांग्नि यानि देवी शक्ति को माता पार्वती के नाम से जाना जाता है. भगवान शिव के दो पुत्र कार्तिकेय और गणेश हैं और एक पुत्री अशोक सुंदरी भी हैं. शिव जी ज्यादातर योगी या ध्याान की मुद्रा में ही देखे जाते हैं. उनकी पूजा शिवलिंग और मूर्ति दोनों रूपों में की जाती है. शिव जी के गले में हमेशा नाग देवता विराजमान रहते हैं और इनके हाथों में डमरू और त्रिशूल दिखाई देता हैं. भगवान सदाशिव परम ब्रह्म है. अर्वाचीन और प्राचीन विद्वान इन्हीं को ईश्वर कहते हैं.
अकेले रहकर अपनी इच्छा से सभी ओर विचरण करने वाले सदाशिव ने अपने शरीर से देवी शक्ति की सृष्टि की, जो उनके अपने अंग से कभी अलग होने वाली नहीं थी.देवी शक्ति को पार्वती के रूप में जाना गया और भगवान शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में भी.वहीं देवी शक्ति को प्रकृति, गुणवती माया, बुद्धि तत्व की जननी तथा विकार रहित माना गया.
देवी महापुराण के मुताबिक, एक बार जब नारदजी ने अपने पिता ब्रह्माजी से सवाल किया कि इस सृष्टि का निर्माण किसने किया? आपने, भगवान विष्णु ने या फिर भगवान शिव ने? आप तीनों को किसने जन्म दिया है यानी आपके तीनों के माता-पिता कौन हैं?तब ब्रह्मा जी ने नारदजी से त्रिदेवों के जन्म की गाथा का वर्णन करते हुए कहा कि देवी दुर्गा और शिव स्वरुप ब्रह्मा के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई है। यानि प्रकृति स्वरुप दुर्गा ही माता हैं और ब्रह्म यानि काल-सदाशिव पिता हैं.
एक बार श्री ब्रह्मा जी और श्री विष्णु जी का इस बात पर झगड़ा हो गया कि ब्रह्मा जी ने कहा मैं तेरा पिता हूँ क्योंकि यह सृष्टि मुझसे उत्पन्न हुई है, मैं प्रजापिता हूँ. इस पर विष्णु जी ने कहा कि मैं तेरा पिता हूँ, तू मेरी नाभि कमल से उत्पन्न हुआ है. सदाशिव ने विष्णु जी और ब्रह्मा जी के बीच आकर कहा, हे पुत्रों! मैंने तुमको जगत की उत्पत्ति और स्थिति रूपी दो कार्य दिए हैं, इसी प्रकार मैंने शंकर और रूद्र को दो कार्य संहार और तिरो गति दिए हैं, मुझे वेदों में ब्रह्म कहा है. मेरे पाँच मुख हैं, एक मुख से अकार (अ), दूसरे मुख से उकार (उ), तीसरे मुख से मकार (म) , चौथे मुख से बिन्दु (.) तथा पाँचवे मुख से नाद (शब्द) प्रकट हुए हैं, उन्हीं पाँच अववयों से एकीभूत होकर एक अक्षर ओम् (ऊँ) बना है, यह मेरा मूल मन्त्र है. उपरोक्त शिव महापुराण के प्रकरण से सिद्ध हुआ कि श्री शकंर जी की माता श्री दुर्गा देवी (अष्टंगी देवी) है तथा पिता सदाशिव अर्थात् “काल ब्रह्म” है.
शिव को सबसे ज्यादा क्या पसंद है:-
बहुत से लोग जानते हैं कि शिव का पसंदीदा पौधा बेल है, और उन्हें भांग, धतूरा, दूध, चंदन और भस्म भी पसंद है. वे बड़े आसानी से बहुत ही साधारण पूजा सामग्री से संतुष्ट हो जाते हैं. हमे उनके इस लोक कल्याण रूप और सुलभता का अधिक से पूजा भक्ति और अर्चना में सलग्न रहना चाहिए.
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