Tuesday, June 14, 2022

‘ बाबूजी’ श्री शोभा राम दूबे एक कुशल और सख्त अधिकारी

       

                        स्मृतिशेष श्री शोभा राम दुबे 
    (जन्म: 15 जून 1929: स्वर्गारोहण 17 जनवरी 2011)

मेरे बाबूजी का नाम शोभाराम दूबे था, जिन्हें हम बचपन से बाबू ही कहकर पुकारा करते थे। इनका जन्म 15 जून 1929 . को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खण्ड के दुबौली दूबे नामक गांव मे एक कुलीन परिवार में हुआ था। उन्होने 1945 में लखनऊ के क्वींस ऐग्लो संस्कृत हाई स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा उस समयप्रथम श्रेणीसे अंग्रेजी, गणित, इतिहास एवं प्रारम्भिक नागरिकशास्त्र आदि अनिवार्य विषयों तथा हिन्दी और संस्कृत एच्छिक विषयों से उत्तीर्ण की है। इन्टरमीडिएट परीक्षा 1947 में कामर्स से द्वितीय श्रेणी में अंग्रेजी, बुक कीपिंग एण्ड एकाउन्टेंसी, विजनेस मेथेड करेस पाण्डेंस, इलेमेन्टरी एकोनामिक्स एण्ड कामर्सियल ज्याग्रफी तथा स्टेनो- टाइपिंग विषयों से उत्तीर्ण किया था।

बाबू से अफसर तक का सफर

बाबूजी सहकारिता विभाग में सरकारी सेवा में लिपिक पद पर नियुक्ति पाये थे। बाद में बाबूजी ने विभागीय परीक्षा देकर लिपिक पद से आडीटर के पद पर अपनी नियुक्ति करा लिये थे। बाबूजी अपने सिद्धान्त के बहुत ही पक्के थें उन्होने अनेक विभागीय अनियमितताओं को उजागर किया था इसका कोपभाजन भी उन्हें बनना पड़ा था।

यूपी से उत्तराखंड तक दो दो जिले का प्रभार

उस समय उत्तराखण्ड उत्तरप्रदेश का ही भाग था। बाबूजी को टेहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल भी जाना पड़ा था। बाबूजी का आडीटर के बाद सीनियर आडीटर के पद पर प्रोन्नति पा गये थे। सीनियर आडीटर के जिम्मे जिले की पूरी जिम्मेदारी होती थी। बाद में यह पद जिला लेखा परीक्षाधिकारी के रुप में राजपत्रित हो गया। कभी- कभी बाबूजी को दो- दो जिलों का प्रभार भी देखना पड़ता था। जब कोई अधिकारी अवकाश पर जाता था तो पास पड़ोस के अधिकारी के पास उस जिले का अतिरिक्त प्रभार भी संभालना पड़ता था। 1975  में बाबूजी ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से बी. . की उपधि प्राप्त की थी।बाबूजी अपने सिद्धान्त के बहुत ही पक्के थें उन्होने अनेक विभागीय अनियमितताओं को उजागर किया था । इसका कोप भाजन भी उन्हें बनना पड़ा था। प्रताड़ना स्वरूप उनकी उल्टी -सीधी पोस्टिंग दी जाती रही। टेहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल जो उस समय यूपी में था, की चढ़ाई करना पड़ा था। 

 'स्टेटऑफ़ यूपी बनाम विश्वनाथ कपूर'

फैजाबाद में सहकारिता विभाग का एक बहुत बड़ा घोटाला जिसमें कांग्रेसी नेता विश्वनाथ कपूर संलिप्त थे,बाबूजी के द्वारा ही उजागर हुआ था। अयोध्या का क्षेत्र फैजाबाद सदर विधानसभा क्षेत्र के तहत तब आता था।1967 के चुनाव में अयोध्या अलग विधान सभा सीट बना था। जहां 1969 में कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर जीतने में कामयाब रहे।1969 में आईएनसी के विश्वनाथ कपूर 19569 तथा उनके प्रतिद्वंदी बीकेडी के राम नारायण त्रिपाठी को 15652 मत मिले थे।उनके द्वारा हुए घोटाले का स्थानीय और फिर उच्च न्यायालय में विचारण हुवा था। जिला सहकारी बैंक फैजाबाद, जिसमें श्री विश्वनाथ कपूर, अधिवक्ता प्रबंध निदेशक थे और श्री जोखान सिंह कैशियर थे और एलन खान कार्यवाहक प्रबंधक थे और महराज बक्स सिंह सामग्री समय पर सहायक लेखाकार थे, राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित एक निगम है और , इसलिए उक्त आरोपी व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 21 खंड 12वीं के अर्थ में लोक सेवक थे।भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन हाई कोर्ट में  ''स्टेट ऑफ़ यूपी बनाम विश्वनाथ कपूर'' और अन्य केस चला था। इसका निस्तारण 14 जनवरी 1980 को न्यायमूर्ति टी मिश्रा द्वारा हुवा था। इस संदर्भित प्रश्न का न्यायमूर्ति का उत्तर इस प्रकार रहा है- यूपी सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत एक सहकारी समिति एक केंद्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित निगम नहीं है ।इस उत्तर के साथ कागजात माननीय एकल न्यायाधीश के समक्ष रखे जाने का आदेश पारित किया गया था।उक्त आरोपी व्यक्ति भारतीय दंड संहिता की धारा 21 खंड 12वीं के अर्थ में लोक सेवक थे।वे इस घोटाले के जिम्मेदार बनाए गए।

इस प्रकार विभागीय घोटालों को प्रकाश में लाने पर मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी श्री अवधेश चंद्र दुबे ने बाबू जी को लखनऊ में बुलाकर सिस्टम को सुधारने को छोड़ अपना कार्यकाल सामान्य रूप में बिताने की नसीहत दी थी।

         बाबूजी का आडीटर के बाद सीनियर आडीटर के पद पर प्रोन्नति पा गये थे। सीनियर आडीटर के जिम्मे जिले की पूरी जिम्मेदारी होती थी। बाद में यह पद जिला लेखा परीक्षाधिकारी के रुप में राजपत्रित हो गया। कभी- कभी बाबूजी को दो- दो जिलों का प्रभार भी देखना पड़ता था। जब कोई अधिकारी अवकाश पर जाता था तो पास के अधिकारी के पास उस जिले का अतिरिक्त प्रभार भी संभालना पड़ता था। बहराइच में सेवा के दौरान 1975 में बाबूजी ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से बी. ए. की उपधि प्राप्त की थी।  17 जनवरी 2011 को वह महान आत्मा हमेशा हमेशा के लिए हमसे दूर होकर परम तत्व में बिलीन हो गया। उनकी प्रेरणा व स्मृतियां आज भी मेरे व मेरे परिवार को सम्बल प्रदान करती है। बाबूजी के 94वी साल गिरह जो 15 जून को मैं उन्हें सादर नमन करता हूं और स्मृतियों में उन्हे अपने साथ पाते हुए उनके बताये हुए रास्ते पर चलने का प्रयत्न करता हू।उनके पुण्य प्रताप से आज मेरा खुशहाल भरा पूरा परिवार उन्हें श्रद्धावनत हो रहा है। परम धाम से उनकी सदैव कृपा दृष्टि बनी रहे। बाबू जी को परमधाम गए ग्यारह वर्ष व्यतीत हो गए।उनकी जन्म तिथि पर श्रद्धा के प्रसून अर्पित करते हुए उनके शांतिमय पारलौकिक जीवन की परमपिता से प्रार्थना करता हूं।

 

 

 

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