खाने को रोटी नहीं ,आंखों से टपके पानी ।
शरीर से हारे हैं ये, मन के अभी जवान हैं।
घर में बुजुर्ग जरूरी, क्योंकि ये भी भगवान है।।
किस्मत वाले होते जग में
सिर पर बुजुर्गों का हाथ हो ।
वह घर घर नहीं रह जाता
जहां ना बुजुर्ग का साथ हो।।
हमारे बड़े बुजुर्गों का सम्मान, उनकी हुजूरी की खनक, जिसमें हमारा घर परिवार, गांव, शहर खुशहाली से हरा भरा रहता है, गमों की कोई सिलवट नहीं होती क्योंकि हमारे बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद, उनकी खुशी, दुआ हमारे लिए वह अक्षुण्य ख़ज़ाना है जिसके सामने सांसारिक मायावी खजाना कुछ नहीं है क्योंकि हमारी हजारों वर्षों पूर्व की संस्कृति नें ही हमें सिखाया है, बड़े बुजुर्गों की सेवा उनका सम्मान के तुल्य इस सृष्टि में कोई पुण्य और आध्यात्मिक सुख नहीं।
बदलते परिवेश में और पाश्चात्य संस्कृति के बढ़ते प्रकोप से इस आधुनिक डिजिटल युग में माता-पिता बड़े बुजुर्गों का आंकलन कम होते जा रहा है और दिखावों के स्तर पर बाहरी माहौल में आर्थिक शारीरिक मानसिक सेवाएं प्रदान कर अपने आप को महादानी करार दिए जाने की प्रथा चल पड़ी है जबकि घर के बड़े बुजुर्गों को हाशिए पर रखकर उनके विचारों को पुराना ज़माना बताकर अपमानित किया जाता है घर से निकाल दिया जाता है, वृद्धआश्रम में शिफ्ट किया जाता है।
हर साल 15 जून को विश्व स्तर पर मनाया जाता है. यह दिन बुजुर्ग लोगों के साथ दुर्व्यवहार और पीड़ा के विरोध में आवाज उठाने के लिए मनाया जाता है. इस दिन का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर के समुदायों को बुजुर्गों के दुर्व्यवहार और उपेक्षा को प्रभावित करने वाली सांस्कृतिक, सामाजिक, आर्थिक और जनसांख्यिकीय प्रक्रियाओं के बारे में जागरूकता पैदा करके दुर्व्यवहार और उपेक्षा की बेहतर समझ को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करना है. इंटरनेशनल नेटवर्क फॉर द प्रिवेंशन ऑफ एल्डर एब्यूज (INPEA) के अनुरोध के बाद संयुक्त राष्ट्र के संकल्प 66/127 को दरकिनार करते हुए दिसंबर 2011 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आधिकारिक तौर पर इस दिन को मान्यता दी गई थी.विश्व बुजुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस 15 जून 2022 पर विशेष है। बुजुर्गों को के साथ दुर्व्यवहार की गंभीरता को रेखांकित करना वर्तमान समय की मांग है। बड़े बुजुर्गों की सेवा और सम्मान के तुल्य इस सृष्टि में कोई पुण्य और आध्यात्मिक सुख नहीं।
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