Sunday, February 18, 2018

मानव की उन्नति के सोपान-रामायण के सातो काण्ड आचार्य डा.राधेश्याम द्विवेदी


                           Image result for tulsi ramayan
गोस्वामी तुलसीदास (1511 – 1623) एक महान कवि थे। अपने जीवनकाल में उन्होंने 12 ग्रन्थ लिखे। उन्हें संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। उनको मूल आदि काव्य रामायण (Tulsidas Ramayan) के रचयिता महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है। श्रीरामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारान्तर से ऐसा अवधी भाषान्तर है जिसमें अन्य भी कई कृतियों से महत्वपूर्ण सामग्री समाहित की गयी थी। रामचरितमानस को समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। त्रेता युग के ऐतिहासिक राम-रावण युद्ध पर आधारित उनके प्रबन्ध काव्य रामचरितमानस को विश्व के 100 सर्वश्रेष्ठ लोकप्रिय काव्यों में 46 वाँ स्थान दिया गया।रामचरित मानस जैसे वृहद् ग्रन्थ को कण्ठस्थ करके सामान्य पढ़े लिखे लोग भी अपनी शुचिता एवं ज्ञान के लिए प्रसिद्ध होने लगे थे। रामचरितमानस तुलसीदास जी का सर्वाधिक लोकप्रिय ग्रन्थ रहा है। तुलसीदास (Tulsidas Ramayan) ने मनुष्य के जीवन को बेहतर बनाने के बारे में अपने कुछ दोहों के माध्यम से कुछ कहा है, क्या है वह आइये जानते हैं:-
धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी।
आपद काल परखिए चारी।।
 (धीरज, धर्म, मित्र और पत्नी की परीक्षा अति विपत्ति के समय ही की जा सकती है। इंसान के अच्छे समय में तो उसका हर कोई साथ देता है, जो बुरे समय में आपके साथ रहे वही आपका सच्चा साथी है। उसी के ऊपर आपको सबसे अधिक भरोसा करना चाहिए।)
जननी सम जानहिं पर नारी ।
तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे ।।
 (जो पुरुष अपनी पत्नी के अलावा किसी और स्त्री को अपनी माँ सामान समझता है, उसी के ह्रदय में भगवान का निवास स्थान होता है। जो पुरुष दूसरी औरतों के साथ सम्बन्ध बनाते हैं वह पापी होते हैं, उनसे ईश्वर हमेशा दूर रहता है।)
मूढ़ तोहि अतिसय अभिमाना ।
नारी सिखावन करसि काना ।।
(भगवान राम सुग्रीव के बड़े भाई बाली के सामने स्त्री के सम्मान का आदर करते हुए कहते हैं, दुष्ट बाली तुम तो अज्ञान पुरुष हो ही लेकिन तुमने अपने घमंड में आकर अपनी विद्वान् पत्नी की बात नहीं मानी और तुम हार गए। मतलब अगर कोई आपको अच्छी बात कह रहा है तो अपने अभिमान को त्याग कर उसे सुनना चाहिए, क्या पता उससे आपका फायदा ही हो जाए।)
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस ।
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ।।
(मंत्री, वैद्य और गुरु ये तीन लोग अगर दर से या अपने फायदे के लिए किसी से प्रिय बोलते हैं तो राज्य, शरीर और धर्म इन तीनों का जल्दी ही विनाश हो जाता है। उनका जो कर्म है उसे पूरी इमानदारी से करना चाहिए ना कि अपने फायदे के लिए।)
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर न सुन्दर ।
केकिही पेखु बचन सुधा सम असन अहि ।।
(तुलसीदास जी कहते हैं सुन्दर लोगों को देखकर मुर्ख लोग ही नहीं बल्कि चालाक मनुष्य भी धोखा खा जाता है। सुन्दर मोर को ही देख लीजिये उसकी बोली तो बहुत मीठी है लेकिन वह सांप का सेवन करती है। इसका मतलब सुन्दरता के पीछे नहीं भागना चाहिए।)
लोकमानस में रमे कवि गोस्वामी तुलसीदास :- रामकथा श्रीराम की कहानी है जो आज से हजारों साल पहले त्रेता युग में भगवान विष्णु के अवतार के रूप में  प्रकट हुआ है। संस्कृत भाषा में आदि कवि बाल्मीकि ने इसे मूल रूप से लिखा है। यह कथा ना केवल भारतीय भाषा में अपितु विश्व के हर प्रमुख भाषाओं में लिखा गया है। विश्व साहित्य में रामकथा एक महाकाव्य तथा इतिहास के रूप में अपना विशिष्ट स्थान रखता हैं। तमाम सीमाओं और अंतर्विरोधों के बावजूद तुलसी लोकमानस में रमे हुए कवि हैं। वे गृहस्थ-जीवन और आत्म निवेदन दोनों अनुभव क्षेत्रों के बड़े कवि हैं। तुलसी भक्ति के आवरण में समाज के बारे में सोचते हैं। इनकी साधना केवल धार्मिक उपदेश नहीं है वह लोक से जुड़ी हुई साधना है। रामायण के सातो काण्ड मानव उन्नति के सात सोपान हैं, जिनपर चलकर मानव अपने जीवन के परम लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है। उसका इहलोक तथा परलोक दोनों ना केवल सुधरता ही है अपितु वह परम पिता में अपना तादात्म्य स्थापित करके अन्त में उन्हीं में विलीन हो जाता है। कुछ सूत्रों के माध्यम से हम इस पर एक झलक प्रस्तुत कर रहे है।
1 बालकाण्ड: बालक जैसा निर्दोष- निर्विकारी दृष्टि :- बालक प्रभु को प्रिय है क्योकि उसमेँ छल ,कपट , नही होता विद्या , धन एवं प्रतिष्ठा बढने पर भी जो अपना हृदय निर्दोष निर्विकारी बनाये रखता है , उसी को भगवान प्राप्त होते है। बालक जैसा निर्दोष निर्विकारी दृष्टि रखने पर ही राम के स्वरुप को पहचान सकते है। जीवन मेँ सरलता का आगमन संयम एवं ब्रह्मचर्य से होता है। बालक की भाँति अपने मान अपमान को भूलने से जीवन मेँ सरलता आती है।बालक के समान निर्मोही एवं निर्विकारी बनने पर शरीर अयोध्या बनेगा जहाँ युद्ध, वैर ,ईर्ष्या नहीँ है , वही अयोध्या है।

2. अयोध्याकाण्ड : मनुष्य को निर्विकार बनाना:- यह काण्ड मनुष्य को निर्विकार बनाता है l जब जीव भक्ति रुपी सरयू नदी के तट पर हमेशा निवास करता है, तभी मनुष्य निर्विकारी बनता है। भक्ति अर्थात् प्रेम , अयोध्याकाण्ड प्रेम प्रदान करता है राम का भरत प्रेम , राम का सौतेली माता से प्रेम आदि ,सब इसी काण्ड मेँ है ।राम की निर्विकारिता इसी मेँ दिखाई देती है अयोध्याकाण्ड का पाठ करने से परिवार मेँ प्रेम बढता है उसके घर मेँ लडाई झगडे नहीँ होते उसका घर अयोध्या बनता है कलह का मूल कारण धन एवं प्रतिष्ठा है अयोध्याकाण्ड का फल निर्वैरता है ।सबसे पहले अपने घर की ही सभी प्राणियोँ मेँ भगवद् भाव रखना चाहिए।

3. अरण्यकाण्ड : निर्वासन प्रदायक:-यह निर्वासन प्रदान करता है ।इसका मनन करने से वासना नष्ट होगी बिना अरण्यवास (जंगल) के जीवन मेँ दिव्यता नहीँ आतीl रामचन्द्र राजा होकर भी सीता के साथ वनवास किया वनवास मनुष्य हृदय को कोमल बनाता है। तप द्वारा ही कामरुपी रावण का बध होगा। इसमेँ सूपर्णखा (मोह ) एवं शबरी (भक्ति) दोनो ही है। भगवान राम सन्देश देते हैँ कि मोह को त्यागकर भक्ति को अपनाओ

4. किष्किन्धाकाण्ड: निर्विकार प्रदायक:- जब मनुष्य निर्विकार एवं निर्वैर होगा तभी जीव की ईश्वर से मैत्री होगी इसमे सुग्रीव और राम अर्थात् जीव और ईश्वर की मैत्री का वर्णन है। जब जीव सुग्रीव की भाँति हनुमान अर्थात् ब्रह्मचर्य का आश्रय लेगा तभी उसे राम मिलेँगे जिसका कण्ठ सुन्दर है वही सुग्रीव है। कण्ठ की शोभा आभूषण से नही बल्कि राम नाम का जप करने से है। जिसका कण्ठ सुन्दर है , उसी की मित्रता राम से होती है किन्तु उसे हनुमान यानी ब्रह्मचर्य की सहायता लेनी पडेगी

5. सुन्दरकाण्ड: पराभक्ति की पराकाष्टा:- जब जीव की मैत्री राम से हो जाती है तो वह सुन्दर हो जाता है इस काण्ड मेँ हनुमान को सीता के दर्शन होते है। सीताजी पराभक्ति है , जिसका जीवन सुन्दर होता है उसे ही पराभक्ति के दर्शन होते है ।संसार समुद्र पार करने वाले को पराभक्ति सीता के दर्शन होते हैl ब्रह्मचर्य एवं रामनाम का आश्रय लेने वाला संसार सागर को पार करता है संसार सागर को पार करते समय मार्ग मेँ सुरसा बाधा डालने जाती है , अच्छे रस ही सुरसा है , नये नये रस की वासना रखने वाली जीभ ही सुरसा है। संसार सागर पार करने की कामना रखने वाले को जीभ को वश मे रखना होगा जहाँ पराभक्ति सीता है वहाँ शोक नही रहता ,जहाँ सीता है वहाँ अशोकवन है।

6. लंकाकाण्ड: काम क्रोधादि राक्षसो का संहार :- जीवन भक्तिपूर्ण होने पर राक्षसो का संहार होता है काम क्रोधादि ही राक्षस हैँ जो इन्हेँ मार सकता है , वही काल को भी मार सकता है जिसे काम मारता है उसे काल भी मारता है , लंका शब्द के अक्षरो को इधर उधर करने पर होगा कालं काल सभी को मारता है l किन्तु हनुमान जी काल को भी मार देते हैँ क्योँकि वे ब्रह्मचर्य का पालन करते हैँ पराभक्ति का दर्शन करते है

7. उत्तरकाण्ड : भक्ति की कथा:- इस काण्ड मेँ काकभुसुण्डि एवं गरुड संवाद को बार बार पढना चाहिए इसमेँ सब कुछ है जब तक राक्षस , काल का विनाश नहीँ होगा तब तक उत्तरकाण्ड मे प्रवेश नही मिलेगा इसमेँ भक्ति की कथा है भक्त कौन है ? जो भगवान से एक क्षण भी अलग नही हो सकता वही भक्त है पूर्वार्ध मे जो काम रुपी रावण को मारता है उसी का उत्तरकाण्ड सुन्दर बनता है , वृद्धावस्था मे राज्य करता है जब जीवन के पूर्वार्ध मे युवावस्था मे काम को मारने का प्रयत्न होगा तभी उत्तरार्ध - उत्तरकाण्ड सुधर पायेगा अतः जीवन को सुधारने का प्रयत्न युवावस्था से ही करना चाहिए।
इस कलिकाल में गोस्वामी तुलसी दास ने इसे आम लोकभाषा में सभी लोगों को अपने लेखनी के माध्यम से वितरित किया था। यद्यपि कलियुग में अनेक दोषारोपणों को रामायण में वर्णित किया गया है और कुछ लोगों के आलोचना का वह भाग भी बन जाता है। परन्तु तुलसीदास जी ने तो समाज के तत्कालीन स्थिति को जैसा देखा और अनुभव किया उसी भाव से वर्णित किया है किसी के मान सम्मान पर आधात पहुचाना उनका कत्तई लक्ष्य नहीं था। जीवन का परम लक्ष्य मोक्ष और मुक्ति को एक व्यक्ति भक्ति तथा सच्चे समर्पण से प्राप्त कर सकता है। यद्यपि एसा कर पाना कोई आसान सा काम नहीं होता है ,परन्तु रामकथा में रूचि , साधना तथा भक्ति से इस लक्ष्य को आम आदमी आसानी से प्राप्त कर सकता है। इस प्रकार रामकथा हिन्दू संस्कृति का पर्याय बन गया है। हम बड़े अधिकार के साथ कह सकते हैं कि जहां-जहां हिन्दू हैं वहां रामकथा अवश्यम्भावी रूप से मिलता ही है।

No comments:

Post a Comment