तैयारी और वातावरण :-
सबसे पहले नहा धोकर शुद्ध वस्त्र पहन ले । इन वस्तुओं को सिर्फ पूजा के समय ही पहनने है। शुद्ध आसन पर बैठकर पूर्वाविमुख या उत्तरविमुख होकर बैठना चाहिए। किसी भी मकान का ईशान कोण पूर्व और उत्तर कोण पूरी तरह से साफ-सुथरा हवादार होना चाहिए। जहां पर जूते चप्पल नहीं हो, झूठा खाना पीना आदि जहां पर ना हो , किसी भी प्रकार की टीवी की हल्ला गुल्ला की कोई आवाज ना आती हो। हल्की सुगंध धूप अगरबत्ती हो और पीले रंग के ऊनी कपड़े का आसन हो, जिस पर बैठकर बैठकर मंत्र जाप करें।
पूजा पाठ धर्म-कर्म जब आदि शुभ कार्य करते समय हमारे शरीर से ऊर्जा शक्ति उत्पन्न होने लग जाती है। यदि शरीर का कोई भी भाग हमारा पृथ्वी को छु रहा है तो हमारी सारी ऊर्जा की शक्ति पृथ्वी मे चली जायेगी। पूजा का जप का सारा लाभ पृथ्वी को मिलेगा । इसका हमें कोई फल नहीं मिलेगा। पूजा करते समय ध्यान रहे हमारे शरीर का कोई भी हिस्सा धरती को ना छुने पाये तभी मंत्र जाप का सही फल मिलता है।
जाप स्थान आप पसंद करें उस बैठने के स्थान को आसन को बदलना नहीं चाहिए। माला को हर रोज जाप करते समय आँखो से जरूर छुये और उस स्थान का वातावरण शुद्ध और शांत बनाया जाता है, तथा उस स्थान पर अध्यात्मिक तरंगे ,दिव्य, स्पनदंन उत्पन्न होने लग जाते हैं। उसी तरह उसी जगह जप करने से जाप का फल बढ़ता जाएगा। जाप समाप्ति के बाद भी उस जगह 5,6 मिनट चुपचाप बैठे रहना चाहिए। इस प्रकार वह शक्ति हमारे शरीर में समा जाती है।
अपने इष्ट देव और अपने पितरों की फोटो सुंदर तरीके से सजाकर सामने रखें फोटो प्रतिमा सफेद या लाल पीले वस्त्र बिछाकर उस पर रखे। धूप ,दीप, चंदन तिलक हररोज लगाएं और शुद्ध जल का पात्र भरकर रखें। गाय के घी का दीपक जलाकर रखें। मीठी सुगंध धुप जब तक जाप चालू है तब तक जरूर रखें। जिस नाम का मंत्र जप करें उसको पूर्ण भावना ,भक्ति और शान्त से करे। जाप करते समय इधर-उधर बातचीत ना किया जाए। जो व्यक्ति प्रत्येक नाम या मंत्र का पूर्ण अर्थ समझते हुए जाप करता है । सबसे उत्तम मानसिक जाप वही होता है। जाप करने से मानसिक शांति प्राप्त होती है। अंगूठे और अनामिका से जाप करने से सिद्धि मे सफलता प्राप्त होती है। जाप हमेशा अंगूठे एवं उगली के अग्रभाग से करना चाहिए।
प्रथम गुरुदेव श्री श्री 1008
पण्डित राम बल्लभ शरण जी महराज वेदांती जी
पण्डित राम पदारथ दास महराज वेदांती जी
मंत्र जाप किसी भी समय किया जा सकता है यदि मन अनियंत्रित है तो मंत्र जप उच्च स्वर में करना चाहिए। यह उपाय मन को शांत को नियंत्रित करने का एक चमत्कारी साधन है ।
तृतीय गुरुदेव श्री हरिनामदास महाराज वेदांती
यदि मन शांत है तो मंत्र जाप मंद स्वर में करना चाहिए। मंत्र जाप हमेशा मानसिक रूप से करना सर्वश्रेष्ठ माना गया है ।मंत्र जाप करते समय समर्पण की भावना के साथ गहन भक्तिभाव का भी होना आवश्यक है तभी ईश्वर की कृपा प्राप्त होती है।
परम पूज्य चतुर्थ (वर्तमान)गुरुदेव श्री शंकरदास जी महाराज वेदांती जी, श्री राम बल्लभा कुंज श्री अयोध्या जी
श्रीराम का षडक्षर मंत्र चिन्तामणि है:-
प्रभू राम का नाम स्वयं में एक महामंत्र है। राम नाम की महिमा अपरंपार और नैया को पार लगाने वाली है । राम नाम का मंत्र सर्व रूप मे ग्रहण किया जाता है । इसके जाप और केवल धयान से ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति सहज हो जाती है। अन्य नामो कि अपेक्षा राम नाम हजार नामों के समान है । राम मंत्र को तारक मंत्र भी कहा जाता है। इस मंत्र का जाप करने से सभी दुःखों का अंत होता है। प्रतिदिन भगवान श्रीराम के मंत्र का जाप करने से मनचाही कामना पूरी होती है। श्रीराम का षडक्षर मंत्र अति लाभकारी है। षडक्षर राम मंत्र 'राम रामाय नम:' है जिसे चिन्तामणि भी कहा जा सकता है, किसी भी कामना को पूर्ण करने के लिए इस राम मंत्र का साधक को, उपासक को अनुष्ठान करना चाहिए।
श्री महामंत्रराज जप विधि
पंडित श्री रामबल्लभाशरण जी महाराज द्वारा संपादित
तथा
पंडित श्री राम शंकर दास जी वेदांती द्वारा अनुमोदित
तथा
द्विवेदि आचार्य डॉ. राधेश्याम द्वारा प्रस्तुति
श्री सीतारामाभ्याम नमः।
श्रीमते रामानंदाय नमः।
ॐ रामाय नमः।
ॐ राम भद्राय नमः।
ॐ रामचन्द्राय नम:।
ऊपर के मन्त्रों से तीन बार आचमन करके दाएं हाथ से जल लेकर बाएं हाथ से ढक कर आगे के मंत्र से अभिमंत्रित करें।
मंत्र का अभिमंत्रण :-
ॐ नमो भगवते रघुनंदाय रक्षोघ्नविशदाय मधुर प्रसन्न वदनाय अमित तेजसे बलाय रामाय विश्नवे नमः। ॐ क्लीं तेजसे राम तारक ब्रह्म स्वाहा।
(( विनियोग : प्रत्येक देवी-देवता की साधना में मंत्र जप, कवच एवं स्तोत्र पाठ तथा न्यासादि करने से पहले विनियोग पढ़ा जाता है। इसमें देवी या देवता का नाम, उसका मंत्र, उसकी रचना करने वाले ऋषि, उस स्तोत्र के छंद का नाम, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम लेकर अपने अभीष्ट मनोरथ सिद्धि के लिए जप का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद न्यास किए जाते हैं। उपरोक्त विनियोग में जिन देवता, ऋषि, छंद, बीजाक्षर शक्ति और कीलक आदि का नाम होता है, उन्हीं को अपने शरीर में प्रतिष्ठित करते हैं।))
पुनः अभिमंत्रित जल को बाएं हाथ में रख कर षड अक्षर राम मंत्र को पढ़कर आठ बार सिर पर छिड़कें। फिर दाएं हाथ से जल लेकर आगे के मंत्र को विनियोगः तक पढ़कर जल गिरा दें।
विनियोग:-
ॐ अस्य श्रीराम षडअक्षरमन्त्रराजस्य ब्रह्मा ऋषि, गायत्री छंद: श्री रामो देवता, रां बीजम, नमः शक्तिः, रामाय कीलकम श्री राम प्रीतयर्थे जपे विनियोग:।
आगे के मंत्र को पढ़ पढ़ कर मंत्रोक्त नामानुसार प्रत्येक अंग का स्पर्श करते हुए ऋष्यादिन्यास करने चाहिए।
((न्यास विधि:-
न्यास कई प्रकार के होते हैं, किंतु ऋष्यादिन्यास, हृदयादिन्यास, अंगन्यास, करन्यास और दिगन्यास ही मुख्य हैं।
ऋष्यादिन्यास:-
जब ‘नमः शिरसि’ बोला जाता है तो दाएं हाथ की पांचों उंगलियों को मस्तक से स्पर्श किया जाता है। ‘नमः मुखे’ कहकर होंठों के बीच में ग्रास मुद्रा बनाकर या वैसे ही उंगलियों से मुख का स्पर्श किया जाता है। इसी प्रकार ‘नमः हृदये’ कहकर हृदय का स्पर्श, ‘नमः गुह्ये’ कहकर जननेंद्रिय वाले स्थान का स्पर्श, ‘नमः पादयोः’ कहकर दोनों घुटनों या पंजों का स्पर्श और ‘नमः नाभौ’ कहकर नाभि-स्थल का स्पर्श किया जाता है, जबकि ‘नमः सर्वांगे’ कहकर दोनों हाथों से दोनों भुजाओं एवं समस्त शरीर का स्पर्श करने का विधान है।))
ऋष्यादिन्यास:-
श्री ब्रह्मने ऋषये नमः शिरसि।
ॐ गायत्री छन्दसे नमः मुखे।
ॐ श्री राम देवतायै नमः हृदि।
ॐ राम बीजाय नमः गुह्ये।
ॐ नमः शक्तये नमः पादयो:।
ॐ रामाय कीलकाय नमः सर्वांगे।।
(( करन्यास : यह न्यास पद्मासन की मुद्रा में घुटनों पर हाथ रखते हुए किया जाता है। ‘अंगुष्ठाभ्यां नमः’ कहकर तर्जनी को मोड़कर, अंगूठे की जड़ से जहां मंगल का क्षेत्र है, वहां लगाते हैं। फिर ‘तर्जनीभ्यां नमः’ कहकर अंगूठे की नोक से तर्जनी के छोर का स्पर्श करते हैं। फिर ‘मध्यमाभ्यां नमः’ कहकर मध्यमा का अंतिम भाग, ‘अनामिकाभ्यां नमः’ कहकर अनामिका के अंतिम भाग और ‘कनिष्ठिकाभ्यां नमः’ कहकर कनिष्ठिका उंगली के अंतिम भाग से अंगूठे की नोक का स्पर्श करते हैं। फिर ‘करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः’ कहकर दोनों हाथों की हथेलियों को एक-दूसरे के ऊपर-नीचे दो बार करके एक-दूसरे के ऊपर-नीचे घुमाते हैं।))
करन्यास: -
ॐ राम अंगुष्ठाभ्यां नमः।
ॐ रीन तर्जनीभ्यां नमः।
ॐ रुन मध्यमाभ्यां नमः।
ॐ रैन अनामिकाभ्यां नमः।
ॐ रौन कनिष्ठिकाभ्यां नमः। स
ॐ र: करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः।
(( हृदयादिन्यास :-
हृदयादिन्यास के अंतर्गत मंत्राक्षरों को शरीर के मुख्य स्थानों- मस्तक, हृदय, शिखा-स्थान (जहां आत्मा का वास है), नेत्र तथा सर्वांग की रक्षा हेतु प्रतिष्ठित किया जाता है ताकि समस्त शरीर मंत्रमय हो जाए और शरीर में देवी या देवता का आविर्भाव हो जाए।))
अंगन्यास: -
ॐ रान हृदयाय नमः।
ॐ रीन शिरसे स्वाहा।
ॐ रुन शिखायै वषट्।
ॐ रैन कवचाय हुम्।
ॐ रौन नेत्रत्रयाय वौषट्।
ॐ र: अस्त्राय फट्।
ॐ राम नमः मुर्घनि।
ॐ रामाय नमः नाभौ।
ॐ नमो नमः पादयो:।
ॐ राम बीजाय नमः दक्षिणस्तने।
ॐ नमः शक्त्ये नमः वामस्तने।
ॐ रामाय कीलकाय नमः हृदि।।
(( प्राणायाम-
मन मे प्राणायाम करके सूर्यनारायण को मन ही मन नमस्कार करें । अंगूठे से नाक के दाहिने छिद्र को दाएं हाथ के अंगूठे से दबाकर बाएं छिद्र से श्वसनों को धीरे-धीरे खींचते हुए राम इस बीज मंत्र को 16 बार पढ़ कर पूरक करें। फिर दूसरे प्रकार से जब सांस खींचना रुक जाए तब अनामिका और कनिष्ठिका अंगुली से नाक के बाएं छिद्र को भी दबा 64 बार बीज मंत्र को पढ़कर स्वास रोककर कुंभक करें। फिर अंगूठे को हटाकर दाहिने छिद्र से श्वास को धीरे-धीरे छोड़ते हुए 32 बार बीज मंत्र पढ़ कर रेचक करें। विशेष जानकारी अपने सदगुरु या किसी जानकर आचार्य से प्राप्त ध्यान करें। अब आंखें बंद करके स्वयं निर्धारण संख्या को करें ऐसी संख्या का प्रत्येक दिन नियम से करें कम या ज्यादा ना करें । जप करते समय शुद्ध मन में अपने इष्ट देव के मनोहर रूप के दिव्य दर्शन आप को बंद आंखों से ही होने लग जाएंगे।आपको धिरे धिरे एक दिव्य परमानंद परम शांति सुख का अद्भुत आनंद प्राप्त होगा। इस दिव्यानंद को आप किसी दूसरे को बता नहीं पाएंगे आप के सभी प्रकार के कष्ट ,रोग, दोष आपके सभी प्रकार के गृह कलेश का नाश हो जाएगा। ))
ध्यान:-
वामे भूमिसुता पुरश्च हनुमान्पश्चात्सुमित्रा सुतः
शत्रुघ्नो भरतश्च पार्श्व दळयो राछ्वीय्यादि कोनेषुच।
सुग्रीवाश्चा, विभीषनश्चा युवराट तारासुतो जांबवान
मध्ये नील सरोज कोमल रुचिं रामं भजे श्यामलं ।।
पुनः
12 बार राम गायत्री मंत्र जपें
राम गायत्री मंत्र
ॐ दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
6 मन्त्रों को एक में मिलाकर 5 बार जपें।
ॐ लम लक्षमनाय नमः।
ॐ भम भरताय नमः।
ॐ शम शत्रुघ्नाय नमः।
ॐ श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
पुनः युगल मंत्र 108 बार जपें।
श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
फिर
रां रामाय नमः।
राम तारक मंत्र 6000 या यथा शक्ति जपे।
पुनः युगल मंत्र 108 बार जपें।
श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
इसके बाद 6 मन्त्रों को एक में मिलाकर 5 बार जपें।
ॐ लम लक्षमनाय नमः।
ॐ भम भरताय नमः।
ॐ शम शत्रुघ्नाय नमः।
ॐ श्रीं सीतायै स्वाहा। रां रामाय नमः।
पुनः 12 बार राम गायत्री मंत्र जपें।
राम गायत्री मंत्र :-
ॐ दाशरथये विद्महे जानकी वल्लभाय धीमहि तन्नो रामः प्रचोदयात् ॥
पुनः पूर्ववत प्राणायाम करना चाहिए।
ॐ श्री राम: शरणं मम।
श्रीमद् राम चन्द्र चरणौ शरणं प्रपदये।
श्रीमते रामचन्द्राय नम:।
सकृदेव प्रपन्नाय तवास्मीति च याचते ।
अभयं सर्वभूतेभ्यो ददाम्येतद्व्रतं मम ॥
(रामायण 12/ 20॥)
श्रीरामचन्द्र रघुनाथ जगच्छरण्य
राजीव लोचन रघुत्तम रावणारे।
सीतापते रघुपते रघुवीरराम
त्रायस्व राघव हरे शरणागत माम।।
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(( राम जी के कुछ अन्य ध्यान मंत्र:-
इसे यथा संभव समय निकाल कर बार बार पढ़ना और दुहराना चाहिए।
ॐ आपदामप हर्तारम दातारं सर्व सम्पदाम,
लोकाभिरामं श्री रामं भूयो भूयो नामाम्यहम ।।
श्री रामाय रामभद्राय रामचन्द्राय वेधसे
रघुनाथाय नाथाय सीताया पतये नमः ।।
लोकाभिरामं रणरंगधीरं राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम्। कारुण्यरूपं करुणाकरं तं श्रीरामचन्द्रं शरणं प्रपद्ये॥
आपदामपहर्तारं दातारं सर्वसम्पदाम्।
लोकाभिरामं श्रीरामं भूयो-भूयो नामाम्यहम्॥
राम रामेति रामेति रामे मनोरमे ।
सहस्त्र नाम तत्तुन्यं राम नाम वरानने || ))
इति शुभम्।
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