"एपेक्स डाईग्नोस्टिक" बस्ती, "हनु डाईग्नोस्टिक सेंटर" आगरा और "नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेन्टर" बस्ती के संयुक्त तत्वावधान में "द्विवेदी निवास" ग्राम मरवटिया पाण्डेय ,विकास क्षेत्र और थाना कप्तान गंज, जिला बस्ती में 13 अप्रैल 2024 की शाम के समय भक्ति संध्या का आयोजन किया गया जिसमें भक्तों और श्रद्धालुओं का सैलाब उमड़ पड़ा था। इस आयोजन में सबदेइया कला बस्ती निवासी देवी भगवती के अनन्य भक्त श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव ने अपनी रामायण और आर्केष्ट्रा पार्टी द्वारा जगराता का भव्य और दिव्य कार्यक्रम विभिन्न झांकियों और देवी देवताओं के स्वरूपों से शुरू किया था।
जगराता कार्यक्रम क्षेत्र के मुख्य पुरोहित आचार्य पंडित राजेश कुमार उपाध्याय ने वैदिक मंत्रोच्चारण से मुख्य यजमान आचार्य राधेश्याम द्विवेदी और उनकी धर्म पत्नी श्रीमती कमला द्विवेदी द्वारा शुभारंभ कराया । कार्यक्रम में गणेश जी,मां अंबिका , हनुमान जी और राम सीता आदि की सुन्दर झांकी और विग्रह बनाकर पूजन और भजन कीर्तन सम्पन्न किया गया।
इतना ही नहीं जागरण पंडाल में विराजमान विशाल जन समूह भी इस कार्यक्रम के हिस्से बनने को मजबूर हो गए और मुख्य गायक कलाकारों के साथ स्वर में स्वर मिलाते देखे गए। मातृ शक्ति गायिकाओं में सुश्री वैष्णवी पाण्डेय के गायन का अंदाज भी बिल्कुल अलग ही था। कभी ताली बजवाकर, कभी दोनो हाथ उठवाकर और कभी जयकारा लगवाकर , वह बहुत सुन्दर प्रस्तुति दे रही थी। कुछ भजन और गाने को यू ट्यूब से लोड करते हुए फिल्मों की तरह केवल होंठ हिलाते हुए पूरी ऊर्जा से नृत्य भाव भंगिमा के साथ प्रस्तुत किया गया।
रिटायर मेजर डा. अभिषेक द्विवेदी रेडियोलॉजिस्ट हनु डाईग्नोस्टिक सेंटर आगरा, डा. दीपिका चौबे द्विवेदी इनेस्थिसियास्टिक एस. एन. मेडिकल कॉलेज आगरा, डा
सौरभ द्विवेदी आर्थोपीडिशन सर्जन नोवा हॉस्पिटल एण्ड ट्रामा सेन्टर बस्ती और बस्ती मण्डल की प्रमुख महिला रेडियोलॉजिस्ट डा.तनु मिश्र द्विवेदी एपेक्स डाईग्नोस्टिक बस्ती के द्वारा कार्यक्रम में क्षण क्षण पर शीतल पेय ,चाय, काफी, फलाहार और अन्य तरह तरह के अल्पाहार से उपस्थित जन समूह आविर्भूत हो रहा था । वे चैत माह के व्यस्तता के बावजूद भक्ति के इस माहौल से अलग नही हो पा रहे थे। पिंटू टेंट हाउस मरवटिया पांडेय के श्री पिंटू पाण्डेय द्वारा निर्मित भव्य मंच और पांडाल की महिमा देखते बनती थी । जागरण पार्टी अपने साथ ही लाए लोहरौली बस्ती का साउंड सिस्टम अपनी मधुर ध्वनि से अवनि और अम्बर को गुंजायमान कर रहा था । श्री ददन पाण्डेय मरवतिया पाण्डेय का लाइटिग सिस्टम कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए थे ।
कार्यक्रम के निदेशक और मुख्य कलाकार अवधेश कुमार श्रीवास्तव तरह तरह से लोगों को इस आयोजन से जोड़ रखे थे। पुरानी बस्ती से पधारे गायक कलाकार श्री अमर गुप्ता कभी मंच पर तो कभी श्रोताओं के मध्य से अपने स्वर मधुरिमा बिखेर रहे थे। कार्यक्रम में अयोध्या से पधारे सन्त ज्ञान प्रकाश उपाध्याय के भजन , आचार्य पंडित सुशील कुमार उपाध्याय द्वारा प्रस्तुत राधेश्याम रामायण के तर्ज पर हनुमान द्वारा लंका विध्वंश की गाथा और ही समा बिखेर रही थी।
तारारानी की कथा :-
कार्य क्रम के अंतिम चरण में तारारानी की कथा श्री अवधेश कुमार श्रीवास्तव ने बड़े मार्मिक ढंग से इस प्रकार प्रस्तुत किया है -
मां भगवती को मानने वालों में से एक राजा स्पर्श भी थे। वो दिन-रात उनकी पूजा-अर्चना में लीन रहते थे। राजा को किसी चीज की कमी नहीं थी। बस उन्हें बच्चे की ख्वाहिश थी। सालों से बच्चा न होने के कारण राजा कुछ निराश रहा करते थे। एक दिन राजा की भक्ति से खुश होकर मां भगवती ने सपने में आकर उसे दो बेटी होने का वरदान दिया।
आशीर्वाद मिलने के कुछ समय बाद राजा के घर एक बेटी पैदा हुई। बेटी पैदा होने की खुशी में राजा ने सबको दावत दी और बेटी की कुंडली बनवाने के लिए पंडितों को बुलवाया। सबने राजा से एक ही बात कही कि यह साक्षत देवी का रूप है। जहां भी इसके कदम पड़ेंगे वहां खुशियां ही खुशियां होंगीं। यह भगवती देवी की भक्तन होगी। इतना सब कहकर पंडितों ने लड़की का नाम तारा रख दिया।
कुछ समय के बाद मंगलवार के दिन राजा के घर एक और बेटी पैदा हुई। ज्योतिषों ने उसकी भी कुंडली बनाई और उदास हो गए। राजा ने जब उनसे उदासी का कारण पूछा, तो ज्योतिषों ने बताया कि ये लड़की आपके जीवन में खूब सारा दुख लेकर आएगी। राजा ने ज्योतिषों से पूछा कि आखिर मैंने ऐसे कौन-से खराब कर्म किए थे कि इसने मेरे घर जन्म लिया है।
ज्योतिषों ने बताया कि आपकी दोनों बेटियां राजा इंद्र की अप्सराएं हुआ करती थीं। इनमें से बड़ी बहन का नाम तारा और छोटी का रुक्मन था। एक दिन ये दोनों मिलकर धरती की सैर करने के लिए गईं। दोनों ने ही वहां पहुंचकर एकादशी के दिन का व्रत रखा। तारा ने अपनी छोटी बहन से कहा कि आज एकादशी का व्रत है, इसलिए बाजार जाकर कुछ ताजे फल ले आओ, लेकिन वहां कुछ खाना मत।
रुक्मन बाजार फल लेने के लिए चली गई। वहां उसे मछली के पकौड़े दिखे। उसने झट से उन्हें खा लिया और अपनी दीदी के लिए कुछ फल ले लिए। रुक्मन से तारा ने पूछा कि तुम अपने लिए फल क्यों नहीं लाई? उसने जवाब दिया कि वो मछली के पकौड़े खाकर आई है। तारा ने गुस्से में कहा कि तुम पापीन हो। एकदशी के दिन तुमने मछली खा ली। ऐसे खराब कर्म के लिए मैं तुम्हें छिपकली बनने का श्राप देती हूं।
अब उसी जंगल में तारा की बहन छिपकली बनकर रहने लगी। वहां एक जाने-माने ऋषि गुरु गोरख भी अपने कुछ शिष्यों के साथ रहते थे। उनके शिष्यों में से एक बहुत ही घमंडी था। अपने घमंड के चलते वो शिष्य कमंडल में पानी भरकर एकान्त में बैठकर तपस्या करने लगा। तभी एक प्यासी गाय वहां आ गई। उसने सीधे अपना मुंह उस कमंडल में डाला और पानी पी लिया। पानी पीने के बाद जैसे ही गाय अपना मुंह बाहर को निकालने लगी, तो कमंडल नीचे गिर गया और ऋषि का ध्यान भंग हो गया।
ऋषि ने देखा कि गाय पानी पी गई है। अब गुस्से में ऋषि ने गाय को एक चिमटे से बुरी तरह घायल कर दिया। इस बात की जानकारी जब गुरु गोरख को पड़ी, तो वो तुरंत गाय को देखने के लिए गए। जैसे ही उन्होंने गाय की हालत देखी वैसे ही अपने उस घमंडी शिष्य को आश्रम से बाहर निकाल दिया। कुछ दिनों के बाद गौ-माता पर किए गए उस अत्याचार से होने वाले पाप को कम करने के लिए उन्होंने एक यज्ञ करवाया।
इस यज्ञ के बारे में गाय को चिमटे से मारने वाले घमंडी शिष्य को भी पता चला। वो सीधे पक्षी का रूप धारण करके यज्ञ स्थल पर गया और भोजन में अपनी चोंच से मरा हुआ सांप डाल दिया। किसी को इस बात की खबर नहीं हुई। ये सब होते हुए तारा से श्राप मिलने वाली छिपकली रुक्मन देख रही थी। उसके मन में हुआ कि इसे खाकर सारे लोग मर जाएंगे। सबकी जान बचाने के लिए छिपकली बनी रुक्मन सभी लोगों के सामने भोजन पर गिर गई।
लोगों ने छिपकली को खूब कोसा और बर्तन को खाली करने लगे। उसी वक्त भंडारा करने वालों को खाने में मारा हुआ सांप भी दिखा। तब कहीं जाकर सबको समझ आया कि छिपकली सबकी जान बचाने के लिए जानबूझकर भोजन में गिरी थी।
एक छिपकली होने के बावजूद भी इतने अच्छे विचार होने की वजह से यज्ञ में मौजूद सारे महत्वपूर्ण लोगों ने कहा कि हमें इस छिपकली की मुक्ति के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। पंडित ने आगे बताया कि सबकी प्रार्थना से ही वो छिपकली तीसरे जन्म में आप जैसे प्रतापी राजा के घर बेटी के रूप में पैदा हुई है। वहीं, तारा ने दूसरे जन्म ‘तारामती“ के रूप में लिया और अयोध्या के राजा हरिश्चन्द्र से शादी की।
इतनी सब बातें कहने के बाद पंडितों ने राजा स्पर्श को रुक्मन को मारने की सलाह दी। इस बात पर राजा बोले, “मैं किसी बेटी को कैसे मार सकता हूं। ऐसा करना पाप होगा। फिर ज्योतिषों ने कहा कि एक संदूक में सोना-चांदी लगवाकर उसके अंदर लड़की को रख देना और संदूक को पानी में बहा देना। उसमें लगा हुआ सोना-चांदी देखकर लोग नदी से संदूक जरूर निकालेंगे और लड़की की जान बच जाएगी।
राजा ने ज्योतिषों ने जैसा बताया ठीक वैसा ही किया। नदी में सोना-चांदी जड़ा हुआ संदूक देखकर काशी के पास ही एक भंगी ने उसे बाहर निकाल लिया। उसके कोई बच्चे नहीं थे, इसलिए उसने संदूक के अंदर की लड़की को पालने का फैसला लिया। उसे भंगी व उसकी पत्नी ने खूब प्यार से पाला और रुक्को नाम रख दिया। बड़ी होते ही दोनों ने रुक्को की शादी करवा दी। रुक्को की सासु मां तारामती और राजा हरिशचंद्र के महल में साफ-सफाई करने का काम किया करती थी।
कुछ दिनों के बाद रुक्को की सासु मां बीमार हो गई। उनकी जगह रुक्को वहां काम करने लगी। तारामती ने उसे देखा और पुराने जन्म के पुण्य के कारण पहचान लिया और उसे कहा कि तुम मेरे साथ बैठ जाओ। रुक्को ने बोला कि मैं तो भंगिन हूं, इसलिए आपके पास नहीं बैठ सकती।
तब तारामती ने उसे बताया कि तुम पूर्व जन्म में मेरी ही बहन थी। तुमने एकादशी के व्रत के दिन मछली खा ली थी और मैंने तुम्हें दंड देते हुए छिपकली बना दिया। अब तुम्हें दोबारा मनुष्य जन्म मिला है, तो इस जन्म में मां वैष्णों की पूजा करके पुण्य कमा लो। मां की पूजा से तुम्हारी सारी इच्छाएं भी पूरी होंगीं।
तारामती की इस बात को सुनने के बाद रुक्को मां वैष्णों से एक बेटे के लिए प्राथना करती है और कहती है कि अगर उसकी मनोकामना पूरी हुई, तो वो अपने घर में मां वैष्णों देवी पूजन और जागरण कराएगी। मां वैष्णों देवी उसकी प्रार्थना सुन लेती है और उसे बेटा होता है। पुत्र की प्राप्ति के बाद रुक्को उसकी देखभाल और लाड-दुलार में मां वैष्णों देवी की पूजा करना भूल जाती है।
ऐसा होते-होते पांच साल बीत गए और फिर एक दिन उस बच्चे को चेचक यानी माता निकल आती है। बच्चे की ऐसी स्थिति देखकर परेशान रुक्को अपने पिछले जन्म की बहन तारामती के घर जाकर उन्हें इस समस्या के बारे में बताती है।
तब तारामती ने पूछा कि तुमने मां वैष्णों देवी की पूजा अर्चना में कोई गलती तो नहीं की? फिर रुक्को को याद आता है कि उसने मां वैष्णों देवी का जागरण कराने का प्रण लिया था। ये बात याद आते ही रुक्को को काफी पछतावा हुआ और मन में मां से कहा कि बच्चे के ठीक होते ही वो अपने घर में जागरण कराएगी। अगले ही दिन उसका बेटा पूरी तरह ठीक हो जाता है। तभी रुक्को ने माता रानी के मंदिर जाकर पुजारियों को कहा कि मंगलवार के दिन घर में जागरण करवा दीजिए।
रुक्को की बात सुनकर पंडित कहते हैं कि तुम यहीं 5 रूपये दे दो तुम्हारे लिए हम मंदिर में ही जागरण करा देते हैं। रुक्को कहती है, “मुझे पता है कि मैं चमारिन हूं, लेकिन आप मेरे घर आकर ही जागरण करवा दीजिए। मां किसी तरह का भेदभाव नहीं करती हैं, तो आपको भी नहीं करना चाहिए।”
इस पर पंडितों ने विचार-विमर्श करके कहा कि अगर रानी आपके जागरण में आती है, तो हम तुम्हारे घर आकर जागरण करने के लिए तैयार हैं।
पंडितों की बातें सुनकर रुक्को अपनी बहन रानी तारामति के पास जाती है और तारामति को सारी बात बताती है। रुक्को की बातें सुनकर तारामति जागरण में जाने के लिए तैयार हो जाती है। इस बात को बताने के लिए रुक्को जब पंडित जी के पास जाती है, तब उनके बीच की बातों को सेन नामक नाई सुन लेता है। फिर वह राजा हरिश्चन्द्र को जाकर सारी बातें बता देता है।
राजा के मन में हुआ कि रानी को नीची जाति वालों के घर जागरण में नहीं जाना चाहिए। इसी वजह से वो अपनी उंगली काट लेते हैं, जिससे उन्हें नींद न आए और रानी जागरण में न जा सके। जब जागरण का समय होता है, तब भी राजा को जागते हुए देखकर रानी मन ही मन मां वैष्णों देवी से प्रार्थना करती है कि महाराज को नींद आ जाए, ताकि मैं जागरण में जा सकूं।
रानी की प्रार्थना के कुछ ही देर बाद राजा को नींद आ जाती है। फिर रानी तारामती रोशनदान में रस्सी बांधकर महल से नीचे आकर रुक्को के घर चली जाती है। इसी जल्दबाजी में रास्ते में ही रानी का रेशमी रुमाल और एक पांव का कंगन गिर जाता है।
इधर, कुछ वक्त बाद राजा हरिश्चन्द्र की नींद टूट जाती है। नींद खुलने पर रानी को अपने पास न देखकर राजा उसकी तलाश में निकल जाते हैं। रानी को ढूंढते ढूंढते उन्हें रानी का रुमाल और कंगन मिलता है। रानी की चीजों को अपने साथ लेकर राजा जागरण स्थल पहुंचते हैं और एक जगह चुपचाप बैठकर जागरण सुनने लगते हैं।
मां वैष्णों देवी के जयकारे के साथ जागरण खत्म होता है और सभी को प्रसाद दिया जाता है। तब रानी अपने हिस्से के प्रसाद को झोली में डाल लेती है। रानी के ऐसा करने पर लोग उनसे पूछते है कि वो प्रसाद क्यों नहीं खा रही हैं। अगर आप प्रसाद का सेवन नहीं करती हैं, तो जागरण में आए लोग भी प्रसाद नहीं खाएंगे। तब रानी बोलती है कि वह प्रसाद राजा के लिए था, अब आप मुझे प्रसाद दीजिए। फिर अपने लिए प्रसाद लेकर रानी सबके सामने उसे खा लेती है।
रानी के प्रसाद खाते ही जागरण में मौजूद सभी भक्तों ने भी प्रसाद खाया। उसके बाद रानी महल के लिए निकल जाती है। तभी रास्ते में ही राजा उन्हें रोककर पूछते हैं कि तुमने नीच जाति के घर प्रसाद खाकर खुद को अपवित्र कर लिया है। तुमने मेरे लिए भी प्रसाद रखा है। अब तुम उससे मुझे भी अपवित्र करना चाहती हो? अब मैं तुम्हें अपने महल नहीं लेकर जा सकता। यह बोलते हुए जब राजा रानी की झोली को देखता हैं, तब उन्हें प्रसाद की जगह गुलाब, चंपा जैसे अनेक फूल और कच्चा चावल व सुपारियां नजर दिखती हैं।
इस चमत्कार को देखकर राजा हैरान हो जाते हैं। फिर राजा चुपचाप रानी को अपने साथ लेकर महल पहुंते हैं। वहां रानी बिना माचिस के ही माता रानी के सामने दीप जलाकर राजा हरिश्चंद्र को और हैरान कर देती है। फिर रानी बोलती है कि माता के दर्शन करने के लिए बहुत बड़ा त्याग करना पड़ता है। इसके लिए आपको अपने बेटे रोहिताश्व की बलि देनी होगी, तभी मां दुर्गा आपको साक्षात दर्शन देगी।
यह सुनकर राजा के मन में मां के दर्शन की इच्छा होने लगी, जिसके लिए राजा अपने पुत्र की बलि दे देते हैं। बलि देने के बाद मां दुर्गा शेर पर सवार होकर प्रकट हो जाती है। उन्हें देखकर राजा हरिश्चन्द्र काफी खुश हो गए और मां दुर्गा ने तुरंत राजा के बेटे को दोबारा जिंदा कर दिया। इस चमत्कार को देखकर राजा हरिश्चन्द्र खुश हो गए। तभी राजा ने मां की पूरी विधि से पूजा करके उनसे गलतियों की माफी मांगी। मां दुर्गा ने भी राजा को खुश रहने का आशीर्वाद दिया और अन्तर्ध्यान हो गईं।
तब राजा ने तारा रानी से कहा कि मैं बहुत खुश हूं कि मुझे पत्नी के रूप में आप मिली हैं। फिर राजा हरिश्चन्द्र, तारा रानी और रुक्मन तीनों अपनी मनुष्य योनी से छुटकारा पाकर देवलोक में चले जाते हैं।
भजन संध्या में आगंतुक :-
श्रोताओं में ग्राम क्षेत्र वासियों के अलावा बस्ती जिले के वर्तमान सांसद श्री हरीश जी द्विवेदी, कप्तानगंज मण्डल के अध्यक्ष श्री गौरव त्रिपाठी, हाइवे दूत श्री प्रमोद ओझा, वरिष्ठ भाजपा नेता श्री राजेश त्रिपाठी,श्री अरविन्द पाण्डेय, गोरखपुर के पधारे एम डी फिजिशियन डा. मनोज जायसवाल, बस्ती के ग्लैक्सी हॉस्पिटल से पधारे आई सर्जन डा. पवन मिश्रा, हर्रैया सी एच सी के डा.उमेश कुमार उपाध्याय, सरस हॉस्पिटल नगर बाजार बस्ती के डा. सत्य प्रकाश उपाध्याय, मरवटिया पाण्डेय के स्थानीय चिकित्सक डा. लवकुश पांडेय, मेढौवा गांव पंचायत के प्रधान श्री खब्बू तिवारी जी, भाजपा कार्यकर्ता श्री दिलीप पाण्डेय, श्री प्रत्यूष पाण्डेय, श्री कपिल देव पाण्डेय ,श्री राजेंद्र पाण्डेय एडवोकेट , श्री कृपा शंकर पाण्डेय, श्री दुर्गा प्रसाद पाण्डेय तथा अन्यान्य राजनीति चिकित्सा और समाज सेवा से जुड़े प्रमुख जनों की उपस्थिति सराहनीय रही है।
यज्ञ और भंडारा :-
अगले दिन 14 अप्रैल 2024 को आचार्य पंडित सुशील कुमार उपाध्याय द्वारा श्री हनुमान बाहुक,बजरंग बाण,
संकट मोचन हनुमानाष्टक तथा दस विद्या देवी की आराधना के शास्त्रीय पद्धति से यज्ञ की आहुतियां दी गई।
साथ ही दोपहर से देर रात्रि तक मां भगवती के भंडारे का प्रसाद भक्तों बा श्रद्धालुओं ने ग्रहण किया।
कुल मिलाकर मां भगवती का जगराता का यह कार्यक्रम पूर्ण सफल रहा। मरवटिया पाण्डेय जैसे सुदूर ग्राम्य अंचल में मां भगवती का जगराता पहली बार सुनने और देखने को मिला। लोगों के अंतर्दृष्टि में कलाकारों की ये प्रस्तुति बहुत दिनों तक चिरस्थाई बनी रहेगी।
(समाचार संकलन आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी)
No comments:
Post a Comment