Saturday, April 6, 2024

क्या राजनीति में नैतिकता बिलकुल नहीं होती या यह नेताओं का ब्रह्मास्त्र होता है? केजरीवाल की जिद ने पैदा कर दिया है देश में संवैधानिक संकट

     
 दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की शराब घोटाले के आरोप में गिरफ्तारी के बाद आम आदमी पार्टी कह रही है कि वह जेल से ही सरकार चलाएंगे। केजरीवाल भी ऐसा कह रहे हैं। इसने एक नई बहस को जन्म दे दिया है कि क्या भारत का संविधान इसकी अनुमति देता है? क्या जेल से सरकार चलाना उचित है?
         ईडी द्वारा पूछताछ के लिए समन पर समन के बाद भी हाजिर न होकर अरविंद केजरीवाल लोकसभा चुनाव की घोषणा का इंतजार तो नहीं कर रहे थे, ताकि लोगों की सहानुभूति प्राप्त की जा सके? सवाल कई हैं, पर सबसे बड़ा सवाल है -  
     राजनीति में नैतिकता क्या वास्तव में नहीं होती ?
       आओ ! जरा देश के साठ - सत्तर साल का इतिहास देखे। इलाहाबाद उच्च न्यायालय से अयोग्य घोषित कर दिए जाने पर पूर्व प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने इस्तीफा न देकर देश पर आपातकाल थोप दिया था। एक प्रकार से उन्होंने लोकतंत्र के साथ राजनीतिक नैतिकता का भी अपहरण किया था। इसका दुष्परिणाम भी उन्होंने भुगता था । 1977 में इंदिरा गांधी लोकसभा चुनाव हार कर सत्ता से बेदखल हो गईं थी और देशमे पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार का गठन हुआ था। तब से देश एक पार्टी के कुशासन से धीरे धीरे मुक्त होता जा रहा है और इतनी बड़ी पार्टी होते हुए भी यह अब इतिहास बनती हुई समाप्त होती जा रही है। इस छोटी सी भूल से देश में मोरार जी भाई देसाई , एच डी देवगौड़ा, अटल बिहारी वाजपेई और नरेंद्र जी भाई मोदी जैसे कुशल नेताओं के सेवा का अवसर मिल पाया है।
       भ्रष्टाचार के खिलाफ जन लोकपाल की मांग को लेकर छिड़े अन्ना हजारे के जन आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल की मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा न देने की जिद ने देश को एक ऐसे चौराहे पर ला खड़ा कर दिया है, और सारी नैतिकता को तिलांजलि देते हुए खुद को शहीद किए जाने का अवसर तलाश रहे हैं। केंद्र सरकार भी उन्हें शहीद की उपाधि देने से डर रही है। इतना बड़ा बहुमत होते हुए वह दोयम दर्जे के राज्य में हस्तक्षेप से डर रही है। जिसने अनुच्छेद 370 को हटाने और राम मंदिर के सदियों पुराने विवाद कैसे दुष्कर कार्य को भी आसानी से हल कर लिया था। एक भ्रष्टाचार के आरोप में घिरे अदना सा मुख्य मंत्री की चतुरता और कुटिलता के आगे सारे संवैधानिक संस्थाओं गांधी जी के तीन बंदर जैसे स्थिति में आकर किं कर्तव्य विमूढ़ जैसी स्थिति में आ गए हैं। जहां से आगे का रास्ता दिखाई नहीं पड़ता है। भारतीय संविधान निर्माताओं ने ऐसे संवैधानिक संकट की कल्पना भी नहीं की थी। चूंकि उन्होंने ऐसी कोई कल्पना नहीं की थी, इसलिए उन्होंने इस बारे में कुछ तय भी नहीं किया कि यदि किसी प्रधान मंत्री या मुख्य मंत्री को जेल जाना पड़ा तो उसकी सरकार कैसे चलेगी? कायदे से नेताओं को लोक लाज, मर्यादा और परम्परा का ध्यान रखना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करते तो अब जन आंदोलनों पर से लोगों का भरोसा उठ जाएगा और लोकतंत्र अधोगत को पहुंच जाएगा। अब राजनीति केवल और केवल सत्ता पर जमने का हथकंडा मात्र रह जायेगा। ना तो न्यायपालिका और ना ही महामहिम राष्ट्रपति जी इस स्थिति से निपटने का साहस कर पा रहे हैं। इतना ही नहीं अंतर्राष्ट्रीय कम्युनटी विदेशों के राजनयिक तक भी अपना हाथ सेंकने में पीछे नहीं हट रहे हैं।
      दिल्ली उच्च न्यायालय में केजरीवाल को हटाने के लिए एक याचिका दायर की गई। उसने इस पर सुनवाई से इन्कार कर दिया। माननीय न्यायालय आतंकवादियों और अपराधियों से संबंधित मामले पर स्वयं स्वत संज्ञान भी लिया है और प्रभावशाली वकीलों के प्रभाव में आने से मुक्त नहीं हो सका है। दिल्ली उच्च न्यायालय ने केजरीवाल के मामले को हस्तक्षेप ना करके राष्ट्रपति का अधिकार क्षेत्र बताया है। वैसे महामहिम राष्ट्रपति जी ने केंद्र सरकार ने की सलाह पर कितनी बार पूर्ण बहुमत की सरकार को अपदस्थ किया है यह सर्व विदित है। बाबरी विध्वंस पर बिना दोष के यूपी के साथ एमपी, राजस्थान और हिमाचल प्रदेश की सरकार मनमानी तरीके से एक ही झटके में गिरा दी गई तब देश के बुधजीवियों को साप सूंघ गया था।
      मुख्यमंत्री एक संवैधानिक पद है। केजरीवाल को मुख्यमंत्री पद से हटाने के लिए हाल में दिल्ली उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई। हालांकि उसने इस पर सुनवाई से इन्कार कर दिया, लेकिन इतना जरूर कहा कि ‘इस मुद्दे पर निर्णय लेना दिल्ली के उपराज्यपाल या भारत के राष्ट्रपति पर निर्भर है। कभी-कभी व्यक्तिगत हित को राष्ट्रीय हित के अधीन करना पड़ता है, लेकिन यह अरविंद केजरीवाल का निजी फैसला होगा कि उन्हें मुख्यमंत्री बने रहना है या इसमें भी राजनेतिक लाभ खोजना है। ’ 
      अरविंद केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल इन दिनों मुख्यमंत्री के कक्ष की कुर्सी पर बैठकर अमर शहीदों के फोटो के बीच इस चतुर शराब घोटाले के आरोपी का फोटो चस्पा कर जनता के नाम केजरीवाल की भावनात्मक अपील जारी कर रही हैं। इससे चर्चा का बाजार गर्म है कि क्या अरविंद केजरीवाल की पत्नी उनकी उत्तराधिकारी बनने जा रही हैं? इधर संजय सिंह का बाहर आना सुनीता की मनोकामना पूर्ण होने में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
     1977 की इंदिरा गांधी जी के सत्ता से हटने की घटना के बाद नेताओं में एक भय पैदा हो गया उनकी जमीर पर नैतिकता का आवरण घना हो गया। चारा घोटाले में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव जब जेल जाने लगे तो उन्होंने पद से इस्तीफा देकर पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया। चूंकि बिहार में विधानसभा के अलावा विधान परिषद भी है, अतः राबड़ी देवी को विधान परिषद का सदस्य बनाकर जेल में रहते हुए भी सत्ता संचालन का काम एक तरह से लालू यादव ही करते थे। एक बार मुख्यमंत्री जयललिता के सामने जब जेल जाने की नौबत आई तो उन्होंने इस्तीफा देकर अपने भरोसे के नेता को मुख्यमंत्री बना दिया था। उमा भारती ने पहले मुख्य मंत्री पद से इस्तीफा दिया था फिर अपनी गिरफ्तारी दी थी। आडवाणी जी पर आरोप ही लगे थे और उन्होंने इस्थीपा देकर दुबारा जनादेश प्राप्त किया था।
 पिछले दिनों झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी भ्रष्टाचार के आरोप में जेल गए, पर उन्हें भी इस्तीफा देकर चम्पाई सोरेन को मुख्यमंत्री बनाना पड़ा। उनकी मंशा तो यही थी कि पत्नी कल्पना सोरेन को मुख्यमंत्री बनाकर जेल में रहते हुए सत्ता का संचालन करें। इसके लिए जल्दबाजी में एक सीट भी खाली कराई गई, पर एक डर यह था कि अगर छह माह के भीतर चुनाव नहीं हुए तो कल्पना सोरेन को कुर्सी छोड़नी पड़ेगी। हेमंत सोरेन अभी जेल में हैं, पर भविष्य की रणनीति पर काम चल रहा है। उनकी पत्नी राजनीति में आ गई हैं और जल्द चुनाव लड़कर विधायक बनने की तैयारी भी कर रही हैं।
       हेमंत सोरेन की तरह ही जेल गए अरविंद केजरीवाल की पत्नी को उनका उत्तराधिकारी बनाने की मांग उठ रही है। मौजूदा कानूनी प्रविधानों के अनुसार दो या दो वर्ष से अधिक की सजा होने पर जनप्रतिनिधियों को पद छोड़ना पड़ता है, लेकिन नेताओं ने इसका तोड़ पत्नी को सत्ता में भागीदारी देने के रूप में निकाल लिया है। स्थानीय निकाय के चुनावों में महिलाओं के लिए आरक्षण के प्रविधान के बाद ‘मुखिया पति-सरपंच पति आदि’ शब्द प्रचलन में हैं। इसका अर्थ है कि पति चुनाव नहीं लड़ सकता, अतः पत्नी को चुनाव लड़वाता है। चुनाव भले उसकी पत्नी जीते, पर अघोषित रूप से मुखिया-सरपंच का काम वही करता है।
भारतीय लोकतंत्र में मुखिया पति, विधायक पति, सांसद पति से आगे चलते हुए मुख्यमंत्री पति तक का सफर पूरा कर चुका है। आगे दिल्ली राज्य में ऊंट किस करवट बैठेगा यह वक्त ही बता पाएगा।
                       डा. राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 




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