क्षेत्रपाल एक प्रकार के आम जन मानस के देवता होते हैं जो खेत अथवा भूमिखंड के रक्षक माने जाते हैं। गृह प्रवेश या शान्ति कर्मों के समय बलि ,पूजा , साधना और अर्घ्य देकर क्षेत्रपाल को प्रसन्न करने का विधान है। इसके लिये सिन्दूर, टिकुली,दीपक, दही, भात आदि सजाकर चौराहे पर रखने की भी प्रथा है। खेत-जोतने बोने से पहले क्षेत्रपाल की पूजा करने का भी विशेष रूप से विधान है । फसल कटने और घर में आने पर पूरी हलवा (लपसी) द्वारा उनका आभार भी व्यक्त किया जाता है। किसी ना किसी रूप में आज भी यह प्रथा देश के प्रायः हर अंचल में प्रचलित है। बहुत कम लोग जानते हैं कि क्षेत्रपाल कौन होते हैं। जब वास्तु पूजा की जाती है तो उसके अंतर्गत क्षेत्रपाल की पूजा भी होती है। भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी क्षेत्रपाल के मंदिर मिल जाएंगे।खासकर राजस्थान और उत्तराखंड में क्षेत्रपाल के कई मंदिर मिलेंगे।
क्षेत्रपाल क्षेत्र विशेष के एक देवता हैं जिनके अधीन उक्त क्षेत्र की सुप्त और जागृत आत्माएं रहती हैं। भारत के अधिकतर गांवों में भैरवनाथ, खेड़ापति (हनुमान), सती माई, काली माई, सीतला माई, समय माई, डीह वाले बाबा,जोगीबीर बाबा, दानोबीर बाबा और बीर दिव्य पुरुष महिला क्षेत्रपाल आदि के मंदिर बने हुए होते हैं। यह सभी ग्राम देवता होते हैं और सभी के अलग-अलग कार्य माने गए हैं।
क्षेत्रपाल भी भगवान भैरवनाथ की तरह दिखाई देते हैं। संभवत: इसीलिए बहुत से लोग क्षेत्रपाल को काल भैरव का एक रूप मानते हैं। लोक जीवन में भगवान काल भैरव को क्षेत्रपाल बाबा, खेतल, खंडोवा, भैरू महाराज, भैरू बाबा आदि नामों से जाना जाता है। अनेक समाजों के ये कुल के देवताभी माने जाते हैं।क्षेत्रपाल को 'खेतपाल' भी कहा जाता है,खेतपाल ही खेत का स्वामी या रक्षक होते है। दक्षिण भारत में एक देवता है जो मूल रूप से लोगों के खेत की रक्षा करता है। यह खेतों का तथा ग्राम सरहदों का छोटा देवता है। मान्यता के अनुसार यह बहुत ही दयालु देवता है। जब अनाज बोया जाता है या नवान्न उत्पन्न होता है, तो उससे इसकी पूजा होती है, ताकि यह बोते समय ओले या जंगली जन्तुओं से उनका बचाव करे और भंडार में जब अन्न रखा जाए तो कीड़े और चूहों से उसकी रक्षा करें।
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