बाइसवें क्रम में श्री रामानन्द जी का नाम आता है। स्वामी रामानंद को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के प्रत्येक वर्ग तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - द्रविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद। यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय स्वामी रामानंद को जाता है। स्वामी जी ने बैरागी सम्प्रदाय की स्थापना की, जिसेे रामानन्दी सम्प्रदाय के नाम से भी जाना जाता है। रामानंद अर्थात रामानंदाचार्य ने हिंदू धर्म को संगठित और व्यवस्थित करने के अथक प्रयास किए। उन्होंने वैष्णव सम्प्रदाय को पुनर्गठित किया तथा वैष्णव साधुओं को उनका आत्मसम्मान दिलाया। रामानंद वैष्णव भक्तिधारा के महान संत हैं। सोचें जिनके शिष्य संत कबीर और रविदास जैसे संत रहे हों तो वे कितने महान रहे होंगे।
बादशाह गयासुद्दीन तुगलक ने हिंदू जनता और साधुओं पर हर तरह की पाबंदी लगा रखी थी। इन सबसे छुटकारा दिलाने के लिए रामानंद ने बादशाह को योगबल के माध्यम से मजबूर कर दिया। अंतत: बादशाह ने हिंदुओं पर अत्याचार करना बंद कर उन्हें अपने धार्मिक उत्सवों को मनाने तथा हिंदू तरीके से रहने की छूट दे दी।
रामानंदजी का जन्म माघ माह की सप्तमी संवत 1356 अर्थात ईस्वी सन 1299 को कान्यकुब्ज ब्राह्मण के कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम पुण्य शर्मा तथा माता का नाम सुशीलादेवी था। आठ वर्ष की उम्र में उपनयन संस्कार होने के पश्चात उन्होंने वाराणसी पंच गंगाघाट के स्वामी राघवानंदाचार्यजी से दीक्षा प्राप्त की। तपस्या तथा ज्ञानार्जन के बाद बड़े-बड़े साधु तथा विद्वानों पर उनके ज्ञान का प्रभाव दिखने लगा। इस कारण मुमुक्षु लोग अपनी तृष्णा शांत करने हेतु उनके पास आने लगे।संवत् 1532 अर्थात सन् 1476 (एक अन्य उल्लेख में 1411 ई)में आद्य जगद्गुरु रामानंदाचार्यजी ने अपनी देह छोड़ दी। उनके देह त्याग के बाद से वैष्ण्व पंथियों में जगद्गुरु रामानंदाचार्य पद पर 'रामानंदाचार्य' की पदवी को आसीन किया जाने लगा। काशी में स्थित पंचगंगा घाट पर रामानंदी सम्प्रदाय का प्राचीन मठ बताया जाता है।
प्रमुख शिष्य : स्वामी रामानंदाचार्यजी के कुल 12 प्रमुख शिष्य थे: 1. संत अनंतानंद, 2. संत सुखानंद, 3. सुरासुरानंद , 4. नरहरीयानंद, 5. योगानंद, 6. पिपानंद, 7. संत कबीरदास, 8. संत सेजा न्हावी, 9. संत धन्ना, 10. संत रविदास, 11. पद्मावती और 12. संत सुरसरी।
रामानंदाचार्य पूर्ण पुरुषोत्तम राम जी के अवतार-
रामानान्दः स्वयम रामः प्रादुर्भूतो महीतले
अर्थात रामानंदाचार्य स्वयं श्री पूर्ण पुरुषोत्तम राम जी के अवतार थे ! ब्रह्माण्ड के द्वादश आचार्य रामानंद के शिष्य के रूपा में अवतरित हुए तथा इस संप्रदाय का चतुर्दिक विकास किया
राम तारक मंत्र रां रामाय नमः है! इस महामंत्र को मंत्रराज तथा महामंत्र उपधितन प्राप्त हैं ! इस मंत्र का जाप करने से व्यक्ति साकेत लोक प्राप्त करता है ! यह मंत्र श्री राम से प्रारंभ होने वाली गुरु परंपरा से चलता आ रहा है ! श्री राम इसके अद्धिष्ठाता देव हैं ! यह श्री वैष्णव संप्रदाय का मंत्र है जिसके परम आचार्य श्री जगद्गुरु रामनान्दचार्य रहें है !
वैष्णव संप्रदाय की चतु:संप्रदाय में रामानंद संप्रदाय भी प्रमुख है। रामानंद संप्रदाय का प्रधान केंद्र काशी को माना गया है। रामानंद संप्रदाय की स्थापना 13वीं शताब्दी में श्रीरामानंदाचार्य महाराज ने देशभर में अपने शिष्यों द्वारा भक्ति का प्रचार-प्रसार तथा संप्रदाय को सुंदर रूप देने के लिए किया था। रामानंदाचार्य संप्रदाय में गुरु परंपरा में नाम आनंदपरक रहे हैं। जैसे श्रीरामानंदाचार्य महाराज के गुरु राघवानंद और उनके गुरु हर्यानंद, श्रियानंद, अनंतानंद जैसे महापुरुषों का वर्णन है। पहले आनंदपरक नाम चलता था बाद में दीनता युक्त भक्तों ने अपने नाम को दास पदवी से विभूषित किया। जैसे तुलसीदास, अग्रदास जैसे महापुरुष भी हुए।
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