आज डाक्टर्स दिवस के अवसर पर मैं सभी
डाक्टरों को सादर नमन करते हुए उन्हें बधाई देना चाहता हूं। साथही उनको बहुत ही
निकट तथा उनसे अभिन्नता में रहने व जीने के कारण उनके दायित्वों व सुख सुविधा पर
भी दृष्टिपात करने की प्रयास कर रहा हूं। भारत में एक जुलाई को चिकित्सक दिवस
मनाया जाता है। एक जुलाई को देश के प्रख्यात चिकित्सक डॉ विधान चंद्र रॉय का
जन्मदिन और पुण्यतिथि दोनों ही हैं। बिधान चन्द्र राय की स्मृति में ही राष्ट्रीय
चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। भारत रत्न से सम्मानित बिधान चन्द्र राय देश के
प्रमुख स्वतंत्रता सेनानी होने के साथ-साथ एक चिकित्सक भी थे। आजादी के बाद
उन्होंने अपना सारा जीवन पीड़ित मानवता की चिकित्सा सेवा को समर्पित कर दिया।
डॉक्टर्स डे हम ऐसे माहौल में मना
रहे है जब धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर और धरती के निवासियों के मध्य
अविश्वास की रेखा गहरी होती जा रही है जिसके फलस्वरूप दोनों में मारपीट की घटनाएं
नित्य प्रति बढ़ती जा रही है। हाल ही कोलकत्ता व राजस्थान में घटी दुर्भाग्यपूर्ण
घटना से पूरे देश के डॉक्टर आंदोलित हो गए और अपना कामकाज छोड़कर सड़कों पर उत्तर
आये।
भारत में डॉक्टर्स डे जुलाई महीने की
हर पहली तारीख को मनाया जाता है। आज हमें निष्पक्ष भाव से डॉक्टर और मरीज के बीच
पनपे अविश्वास की चुनौतियों पर विचार करना होगा। दरअसल इन दिनों डॉक्टरों के लिए
सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कई बार मरीज बेहतरीन इलाज मिलने के बावजूद भड़क
जाते हैं और डॉक्टर या हॉस्पिटल को नुकसान भी पहुंचा देते हैं। ऐसा हाल के वर्षों
में कई जगह देखने को मिला है। एक डॉक्टर का कार्य मरीजों के हित में सर्वश्रेष्ठ
कार्य करना होता है, लेकिन कई बार लाख
कोशिश के बावजूद वे मरीज को सन्तुष्ट नहीं कर पाते। कई बार मरीज के परिजन अस्पताल
के खर्चे को देखकर भड़क जाते है वह भी तब जब मरीज बजाय ठीक होने के अधिक बीमार होता
चला जाता है। उस समय परिजन समझते है अस्पताल अपने खर्चे निकलने में जुटा है और उसे
मरीज के स्वास्थ्य की चिंता कम है। मरीज और डॉक्टर के बीच विश्वास की भावना का
अभाव है जिसके कारण अस्पतालों में आये दिन मारपीट की घटनाएं होती है। इस समस्या से
निजात पाने के लिए जरूरी है कि मरीज डॉक्टर पर विश्वास करें वहीँ डॉक्टर का भी यह
कर्तव्य है कि वह मरीज और उसके परिजनों को विश्वास में लेकर ही अपने कार्य को
अंजाम दें ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति को टाला जा सके
।
भारत में स्वास्थ्य सेवाओं के हालात
ज्यादा बेहतर नहीं है। बड़ी आबादी के लिहाज से न व्यापक अस्पतालों की सुविधा है और
न ही डॉक्टर्स की। सरकारी अस्पतालों में जितने डॉक्टर्स हैं,
वो भारी दवाब में काम कर रहे हैं। उन्हें 6
घंटे नीद नहीं मिल पाती है वे अपने परिवार व समाज सबसे कटआफ हो जाते है। शिक्षा के
लिए भारी धनराशि व समय देने के बावजूद समाज तथा सरकारी तंत्र उन पर एक तरफा
जिम्मेदारी तो डालते जाते हैं। उनके सुख व स्वास्थ्य व नींद की जरा सी भी परवाह
नहीं करते हैं। यदि लगभग 10 से 12 साल
तक कठिन मंेहनत व असीम धन खर्च करके वे इस काविल बन सके हैं कि सामान्यतः 80 से 90 प्रतिशत मामलों को वे अपने व समाज के आम जनता
के मनोनुकूल रुप में अच्छे कर पाने में सफल हो जाते हैं तो सोसल मीडिया पर कुछ
फालतू समय काटने वाले लोग डाक्टरों की भारी कमाई को देखकर उन्हें व सरकार को कोसते
हैं तथा डाक्टरों को शोषक के रुप में प्रचारित करते हैं। कुछ प्रशासनिक अधिकारी तो
अनावश्यक अपने पद का रोब दिखाते हुए डाक्टर को जन सेवा को भी बाधित करते हैं और
तरह तरह से उन पर मानसिक दबाव डालकर उन पर शासन करने की अपनी हेकड़ी दिखाते हैं।
डॉक्टरों का कहना है कई बार हम चाहते हुए भी मरीज के लिए कुछ नहीं कर पाते है
क्योंकि सब चीजें हमारे नियंत्रण में नहीं होतीं। कई बार किस्मत साथ नहीं देती।
ऐसे में मरीजों को धैर्य से काम लेते हुए हम पर भरोसा करना चाहिए। इस भरोसे के बल
हमें अपना बेस्ट देने में मदद मिलती है।
मेडिकल साइंस की उन्नति के साथ
जैसे-जैसे मरीजों की उम्मीदें बढ़ रहीं हैं, वैसे-वैसे
डॉक्टरों की चुनौतियां बढ़ी रहीं हैं। ऐसे में संसाधनों की कमी डॉक्टरों की राह की
सबसे बड़ी बाधा बन रही है। दिन भर में 70 से सौ मरीजों के
इलाज का दबाव झेलने वाले डॉक्टर भी अब बीमारियों की चपेट में आने लगे हैं। वे
मधुमेह, उच्च रक्तचाप आदि के शिकार हो रहे हैं।
मरीज, समाज
व डॉक्टरों के बीच समन्वय घट रहा है। सिमित संसाधन में शत प्रतिशत बेहतर इलाज के
साथ मरीज को स्वस्थ करने की परिजनों की आकांक्षा डॉक्टरों पर भारी पड़ती है। मेडिकल
विज्ञान काफी आगे बढ़ा है। जांच सुविधाएं महंगी हुईं हैं। मरीजों की संख्या बढ़ रही
है। उस हिसाब से डॉक्टर व विशेषज्ञों की कमी है। इससे डॉक्टरों पर दबाव है।
विभिन्न जांच इलाज का जरूरी हिस्सा हो गया है। इससे परिजन ठिठकते हैं। कई परिजन तो
मर चुके मरीज को भी जिंदा कर देने का दबाव डालते हैं। यह प्रवृति घातक है। इस
स्थिति में डॉक्टरों से दुर्व्यवहार किया जाता है। इलाज के लिए विभिन्न तरह जांच
की आधुनिक मशीनें आयीं हैं। कई बीमारियां है जिसमें महंगी जांच आवश्यक है। इसकी
सुविधा सरकारी स्तर पर नहीं होने से लोगों को लगता है कि डॉक्टर उनसे अनावश्यक
खर्च करा रहे हैं। लोगों की स्वास्थ्य शिक्षा भी ठीक नहीं, इससे
डॉक्टरों को परेशानी झेलनी पड़ती है।
भारत में बिगड़ी हुई स्वास्थ्य
व्यवस्था भी एक बड़ी चुनौती है, यहां 1,050 मरीजों के लिए सिर्फ एक ही बेड उपलब्ध है. इसी तरह 1,000 मरीजों के लिए 0.7 डॉक्टर मौजूद है। आज भी सबसे
अधिक मरीज सरकारी अस्पतालों में आते हैं। एक डॉक्टर ओपीडी में सौ से डेढ़ सौ मरीज
देख रहा है। कई बीमारियों का इलाज निजी व्यवस्था पर निर्भर है। लोगों के पास उतने
पैसे होते नहीं हैं कि वे निजी व्यवस्था में इलाज करा सके। हो यह रहा है कि
स्थानीय डॉक्टरों को ही जिम्मेवार माना जा रहा।
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