ना जाने क्यों बार बार मन में आता है।
वैभव के दिन गुजर गये दुर्दिन आता है।
लोगों में जो था लगाव अब नजर नहीं है।
एकाकी जीवन करके शून्य ठहर गई है।।1।।
सारे अनुकूल सभी अवयव अब प्रतीकूल हैं।
एक एक करके बढ़ती जाती धूल है।
पैसा आने से पहले जाने का रस्ता बनाये।
एक मांग ना पूरी हुई दूसरा आ जाये।।
2।।
दुविधा भी कह जाये ना कोई यकीन नहीं।
शायद कोई शक्ति छिपी पर दिखती नहीं
।
सूत्र ना कोई दीखता सब अस्त-व्यस्त
है।
अपने और पराये का सा ही भाव व्यक्त
है।। 3।।
क्या जीवन अभिशापों का भी बंधन है।
दम घुटने तक होता रहता क्रन्दन है।
एकपन का बनवास अभी पूरा ना हुआ।
पूरा हुआ पर परणित अभी अधूरा रहा।।
4।।
टूट गये रिश्ते नाते जो वहां के थे।
पुराने नहीं जुड़े नये बन ना सके।
जाने में गल्ती हुई नही ना दिखती है।
अभिशाप पूर्वजों का सा यह लगती है।।
5।।
हे ईश्वर ! कितनी भी परीक्षा लेलो तुम।
शक्ति सहन की जीवन में बनी रहे।
अनजाने अपराधी के अपराध हरो।
अभिशापों को दूर करो कल्यान करो।।
6।।
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