Tuesday, August 28, 2018

तहसील से कस्बे तक आकर पुनः नगर पंचायत के लिए प्रस्तावित पूर्वांचल का एक बदनसीब क्षेत्र कप्तानगंज (बस्ती) - डा. राधेश्याम द्विवेदी


भारत में कप्तानगंज नाम के कई कस्वे ,नगर व क्षेत्र हैं।  प्रतीत होता है कि कप्तानगंज व्रिटिस शासन में बना तथा फूला फला था ।आजमगढ में एक कस्बा और  थाना , कुशीनगर में एक नगर पंचायत तहसील रेलवे स्टेशन एवं गन्ने की मिल भी  इसी नाम के नगर में बसे हुए हैं। बस्ती में विधान सभा  थाना तथा ब्लाक मुख्यालय इसी नाम से है कांग्रेस के राम लखन सिंह ,अम्बिका सिंह ,कृष्ण किंकर सिंह, बहुजन समाज पार्टी के राम प्रसाद चैधरी , जनता पार्टी के राम मिलन सिंह आदि इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस क्षेत्र के विधायक को मंत्रि मण्डल में भी स्थान मिला परन्तु क्षेत्र का समुचित विकास नहीं हो सका । वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी के चन्द्र प्रकाश उर्फ़ सीए चन्द्र प्रकाश शुक्ल उत्तर प्रदेश की कप्तानगंज विधान सभा से विधायक हैं।  बस्ती में हर्रैया,बभनान,रुधौली और बनकटी नगर पंचायत है। बाजार और कस्बों को सुव्यवस्थित ढंग से विकसित करने के लिए लंबे समय से मुंडेरवा,भानपुर और नगर बाजार को नगर पंचायत बनाने की मांग की जा रही है। इस बारे में प्रस्ताव भी शासन को पहले भेजा जा चुका है लेकिन अब तक कोई फैसला नहीं हो पाया है। इधर कप्तानगंज  और गायघाट बाजार को भी नगर पंचायत बनाने की मांग जोर पकड़ने लगी। विधायक सीएम चंद्र प्रकाश शुक्ल और भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष प्रेम सागर त्रिपाठी के अनुरोध पर नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना ने जांच कर इस बारे मे प्रस्ताव उपलब्ध कराने का निर्देश दिया। इस क्रम में उपजिलाधिकारी सदर श्री प्रकाश शुक्ल और उपजिलाधिकारी हर्रैया शिव प्रताप शुक्ल से प्राप्त आख्या के आधार पर डीएम ने संस्तुति सहित कप्तानगंज और गायघाट बाजार को नगर पंचायत बनाने का प्रस्ताव 12 जुलाई 2018 को विशेष सचिव नगर विकास उत्तर प्रदेश शासन को भेज दिया है। कप्तानगंज और गायघाट बाजार को नगर पंचायत बनाने की तैयारी तेज हो गई है। 12 जुलाई 2018  को शासन के निर्देश पर जिलाधिकारी डा.राजशेखर ने यह प्रस्ताव शासन को भेज दिया है। शासन से मंजूरी मिलते ही बस्ती में नगर पंचायतों की संख्या बढ़कर आधा दर्जन हो जाएगी।
नगर पंचायत का मानक और प्रस्तावित नगर पंचायत कप्तानगंज : एक नजर में : - प्रस्तावित क्षेत्र की कुल जनसंख्या मैदानी क्षेत्र के लिए 20,000 और पर्वतीय क्षेत्र में 10,000 या उससे अधिक होनी चाहिए। इसके अलावा आय के स्त्रोत विकसित किए जाने के साथ ही सड़क,स्कूल,स्वास्थ्य केंद्र हो तथा विकास की अपार संभावनाएं हो। प्रस्तावित क्षेत्र की कुल आबादी – 20,000 , कुल शामिल 14 गांव , उनके नाम इस प्रकार हैं- कप्तानगंज, नकटीदेई खुर्द, नकटीदेई बुजुर्ग, गौरा, जसईपुर, पिकौरा सानी, मनिकरपुर, नरायनपुर पांडेय, राजाजोत कला, ककुआ राउत, नरायनपुर तिवारी, महुआ मिश्र, खजुहा, धन¨सह उर्फ महराजगंज।  पिछले कई वर्षों से बस्ती जनपद के प्रमुख कस्बे कप्तानगंज को नगर पंचायत बनाने की मांग साकार होने की तरफ अग्रसर है। कप्तानगंज को नगर पंचायत बनाने की मांग सपा सरकार के कार्यकाल के दौरान पहली बार उठी थी। तत्कालीन दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री सिद्धार्थ ¨सह ने इसको लेकर पहल की और शासन स्तर तक काफी प्रयास किया। विधानसभा चुनाव में इस मांग को अपने मुद्दे में शामिल करते हुए विधायक चंद्र प्रकाश शुक्ला ने जनता की दुखती रग पर हाथ रखा। सरकार बनने के बाद लोगों की मांग पर विधायक ने अपने स्तर से प्रयास शुरू किया। नगर विकास मंत्री सुरेश खन्ना की सहमति के बाद तो उम्मीदों के पंख लग गए।
कप्तानगंज का गुम हुआ इतिहास :- सन् 1801 के पूर्व यह अवध प्रान्त के अन्र्तगत मुगलों के अप्रत्यक्ष नियंत्रण में आता था ।1801 में अंगेजों के अधीन बस्ती एक तहसील की इकाई के रूप में आया है। 1801 ई. में रोटलेग गोरखपुर का जिला कलेक्टर बना था। राजस्व की वसूली के लिए कैप्टन मैलकाम मैकलाज के अधीन एक सेना राजस्व वसूली में मदद करने लगी थी। बाद में बुटवल एवं गोरखाओं से अंग्रजों की कई झड़पे भी हुई थीं । लूटपाट का बोलवाला हो गया था। 1815 व 1816 ई. में जिले के उत्तरी क्षेत्र बांसी  तथा मगहर में सियारमार एक खानाबदोस जाति के लोगों ने लूटपाट करना शुरू कर दिया था। इन्हें स्थानीय जमीदारों का समर्थन भी मिला हुआ था वे पुलिस वालों को मारते थे तथा सरकारी खजाना लूट लेते थे। बांसी में सात पुलिसवालों को मारकर 6 को घायल कर उन्हाने कानून व्यवस्था को चुनौती दे रखी थी। मई 1816 ई. में इस दल ने कैप्टनगंज से उस समय का 6,000 रूपया लूट लिया था। एसा लुका छिपी का खेल 1857 ई तक पूरे जिले में चलता रहा। प्रतीत होता है कि 1801 ई. से ही कैप्टनगंज बस्ती जिले का महत्व पूर्ण स्थान बना लिया था और यह अंग्रेजों का एक सुरक्षित तथा सुविधापूर्ण स्थल का रूप ग्रहण कर लिया था। परिणामस्वरूप आगे चलकर 1885 ई. में यह तहसील तथा मंसफी कार्यालय का गौरव हासिल कर सका था।
स्वतंत्रता आन्दोलन के 1857 के विद्रोह के समय पूरे देश में अंगे्रजों पर संकट के बादल मड़राने लगे थे। सभी अंग्रेज जान बचाकर भाग रहे थे । उन्हें व उनके परिवार पर संकट बरकरार था। बस्ती कल्कट्री पर पहले अफीम तथा ट्रेजरी की कोठी हुआ करती थी। यहां 17वीं नेटिव इनफेन्ट्री की एक टुकड़ी सुरक्षा के लिए लगाई गई थी। इस यूनिट का मुख्यालय आजमगढ बनाया गया था। जहां 5 जून 1857 को विद्रोह भड़क उठा था। 6 अंगे्रज भगोड़ों का एक दल नांव द्वारा अमोढ़ा होते हुए कप्तानगंज स्थित अंग्रेज कैप्टन के शरण में आया था। तहसीलदार ने उन्हें चेतावनी दिया था कि शीघ्र बस्ती छोड़ दंे। वे मनोरमा नदी को बहादुरपुर विकासखण्ड के महुआडाबर नामक गांव के पास पार कर रहे थे। वहां के गांव वालों ने घेरकर 4 अधिकारियों एवं दो सिपाहियों की हत्या कर डाली थी । लेफ्टिनेंट थामस , लिची , कैटिली तथा सार्जेन्ट एडवरस तथा दो सैनिक मार डाले गये थे। तोपचालक बुशर को कलवारी के बाबू बल्ली सिंह ने अपने पास छिपाकर बचाया था तथा उन्हें कैद कर रखा था। वर्डपुर के अंगे्रज जमीदार पेप्पी को इस क्षेत्र का डिप्टी कलेक्टर 15 जून 1857 को नियुक्त किया गया था। उसने बुशर को छुड़वा लिया। उसने 20 जून 1857 को पूरे जिले में मार्शल ला लागू कर रखा था तथा महुआ डाबर नामक गांव को आग लगवा करके जलवा दिया था। जलियावाला बाग की तरह एक बहुत बड़ा जनसंहार यहां हुआ था। इन्हीं दौरान दिल्ली व अवध के नबाब के प्रतिनिधि राजा सैयद हुसेन अली उर्फ मोहम्मद हसन (जो मूलतः  दीवानखाना ,काजी मोहल्ला ,सहसवान ,जिला बदायूं के मूल निवासी थे ) ने कर्नल  लेनाक्स ,उनकी पत्नी तथा बेटी को अपनी संरक्षा में ले रखा था। पेप्पी ने इन्हें भी मुक्त कराया था। 12 अगस्त 1857 को मोहम्मद हसन के नेतृत्व में बागियों ने कैप्टनगंज को अपने अधीन कर रखा था। अमोढ़ा के देशी सैनिकों से 17 अप्रैल तथा 25 अप्रैल 1858 को अंग्रेजों को बुरी तरह मात खाना पड़ा था। छः अंग्रेज अधिकारियों को छावनी में अपने जान गवाने पड़े थे । राफक्राफ्ट कैप्टनगंज आ गया तथा जून 1858 के आरम्भ तक यहां कैम्प किया था। गोपाल सिंह नामक सूर्यवंशी एक जमीदार को कैप्टनगंज का तहसील देकर कृतकृत्य किया गया था। उसे अनुदान में जमीन भी दिया गया था। कैप्टनगंज जो रतास नामक एक छोटा सा गांव था , कैप्टन स्तर के एक सैन्य अधिकारी द्वारा स्थापित सैनिक कार्यालय तथा बाजार 1861-62 तक स्थापित हो चुका था । 1865 में यहां तहसील तथा मुंसफी न्यायालय स्थापित हो चुके थे। रतास अंग्रेजो द्वारा राजा बांसी को दिया गया भेंट था क्योंकि उन्होने अंग्रेजों की काफी मदद की थी। प्रतीत होता है कि बांसी के राजा रतन सेन के नाम को स्थायी प्रदान करने के कारण रतास का नाम पड़ा होगा। यही रतास आगे चलकर कैप्टनगंज ब्रिटिस टाउन मुंसफी व तहसील की शक्ल लिया था। कप्तानगंज का  वर्तमान थाना इसी तहसील भवन में स्थापित किया गया है।  पास ही में प्राचीन समय का पोस्टआफिस भवन भी इसी कारण बना हुआ है। आजादी के बाद इसका नाम कप्तानगंज कर दिया गया।
बस्ती तहसील मुख्यालय को 1865 में जिला मुख्यालय घोषित कर दिया गया। बस्ती , कैप्टनगंज ,खलीलाबाद, डुमरियागंज तथा बांसी नाम से 5 तहसीलें भी घोषित की गई। विशाल भूभाग तथा अमोढ़ा की सक्रियता के कारण यह क्षेत्र अंग्रेजों से संभल नहीं पा रहा था। फलतः 1876 में कैप्टनगंज को तहसील व मंसफी समाप्त करके हर्रैया में तहसील व मुंसफी बनाई गई । इस प्रकार लगभग 15 सालों तक कैप्टनगंज ब्रिटिश प्रशासन का एक महत्वपूर्ण  प्रशासनिक इकाई के रूप में बना रहा। 109 ग्राम सभाओं/ पंचायतों तथा 11 न्याय पंचायतों को समलित करते हुए 2 अक्टूबर 1956 को  पुराना कैप्टनगंज अब नया कप्तानगंज विकास खण्ड का मुख्यालय घोषित किया गया। 1971 ई. में इस विकास खण्ड की जनसंख्या 84,501 रही। यह स्थान एक तो राष्ट्रीय राजमार्ग 28 पर स्थित है तथा यह रामजानकी मार्ग के दुबौलिया तथा लखनऊ गोरखपुर रेलवे लाइन के टिनिच व गौर नामक स्टेशनों से जुड़ा भी है। विकास की दृष्टि से जब से यहां से तहसील हर्रैया गई यह क्षेत्र पिछड़ता ही रह गया था। यह कस्बे से ज्यादा कुछ नहीं हो सका। यहां विकास की असीम सम्भावनाएं है। इस अंचल को मण्डल तथा प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से जोड़ना बहुत जरूरी हो गया है। इसे राजमार्गा से भी जोड़ना है तथा आवागमन के साधन भी चलाया जाना है। बस्ती दुबौला परशुरामपुर, महराजगंज, नगर बाजार ,गनेशपुर, गोटवा, चिलमा बाजार , टिनिच, कप्तानगंज व दुबौलिया आदि जैसे कई अन्य मार्गों को और विकसित किया जाना है। मनवर , मछोई , रवई तथा मजोरवा आदि अन्य छोटी-बड़ी नदियों पर जगह जगह पुल बनाये जाने है।

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