लाल किले का महत्व:-दिल्ली
में मौजूद लाल किले को मुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं शताब्दी में बनवाया था. अंग्रेजों
के भारत छोड़ने के बाद स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से ही हर साल
15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहरा कर आजादी का जश्न मनाते हैं. हर साल
इसे देखने देशभर से और विदेशों से लाखों की संख्या में सैलानी आते हैं.
'एडॉप्ट ए हेरिटेज' स्कीम:- 'एडॉप्ट ए हेरिटेज' योजना पिछले साल सितंबर में शुरू की गई थी. पर्यटन दिवस के मौके पर राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद ने इसकी शुरुआत की थी. इसके तहत ऐतिहासिक इमारतों के रखरखाव के लिए 'मोनुमेंट्स मित्र' चुने जाते हैं. अभी इस योजना में देश के 100 के करीब ऐतिहासिक इमारतों को शामिल किया गया है. जिसमें ताजमहल, चित्तौड़गढ़ का किला, महरौली पुरातत्व पार्क जैसी धरोहर शामिल हैं. लाल किला सहित भारत के 22 स्मारकों में सुविधाएं बेहतर करने के लिए नौ एजेंसियां आगे आई हैं। लाल किला के लिए डालमिया भारत ने पर्यटन मंत्रालय के साथ करार किया है, जिसके तहत वह पर्यटकों के लिए बेहतर सुविधाएं विकसित करने के लिए पांच करोड़ रुपये खर्च करेगा। ताजमहल की देखरेख का जिम्मा जीएमआर व आइटीसी ग्रुप को दिया गया है। स्मारकों पर सुविधाएं बेहतर करने के लिए आगे आई 31 एजेंसियों में से नौ को मंगलवार को पत्र सौंपे गए। पर्यटन मंत्री केजे अल्फोंस ने एजेंसियों से कहा कि वे भारत की विरासत को संरक्षित करें।पर्यटन मंत्रालय ने 'अपनी धरोहर अपनी पहचान' योजना 27 सितंबर 2017 को लांच की थी। यह योजना भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) के प्रमुख स्मारकों में शुरू की गई है, जिसके तहत 95 स्मारकों को शामिल किया जा चुका है।
डालमिया भारत लिमिटेड और सरकार के बीच समझौता :- डालमिया भारत लिमिटेड ने लाल किला और कडपा जिले के गंडीकोटा (आंध्र प्रदेश) को लेकर समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं। वह प्रति वर्ष पांच करोड़ रुपये अगले पांच साल तक इन विरासत स्थलों के संचालन और रखरखाव के लिए खर्च करेगा।
डालमिया भारत लिमिटेड ने लाल किला
और कडपा जिले के गंडीकोटा (आंध्र
प्रदेश) को लेकर समझौता
ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए
हैं।डालमिया भारत समूह के प्रबंध निदेशक पुनीत डालमिया ने कहा भारत के शीर्ष विरासत स्थलों में से एक को अपनाने का मौका मिलने पर खुश हूं। हमने लाल किला को गोद लिया है, जहां बुनियादी और उन्नत सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी। सार्वजनिक सुविधाएं, स्वच्छ पेयजल, स्मारक की सफाई, सभी के लिए पहुंच सुगम बनाना, साइनेज, क्लॉकरूम सुविधाएं, रोशनी व निगरानी प्रणाली बेहतर की जाएगी और व्याख्या केंद्र भी स्थापित किया जाएगा। डालमिया भारत एप आधारित बहुभाषा ऑडियो-गाइड, डिजिटल इंटरैक्टिव कियोस्क, डिजिटल (एलईडी) स्क्रीनिंग, मुफ्त वाई-फाई और कैफेटेरिया जैसी सुविधाओं में योगदान देगा। डालमिया ग्रुप के साथ सरकार ने 25 करोड़ का अनुबंध अगले पांच साल के लिए किया है. ऐतिहासिक स्मारक गोद लेने वाला भारत का यह पहला कॉर्पोरेट हाउस बन गया है.
सोशल मीडिया व राजनीतिक गलियारों में बवाल :-लाल किला की देखरेख के ठेके पर शनिवार को सोशल मीडिया से लेकर राजनीति के गलियारों तक में पूरे दिन बवाल चला. सरकार ने राष्ट्रीय धरोहरों को गोद लेने की मुहिम के तहत लाल किला का ठेका डालमिया समूह को दे दिया है. लाल किला को ठेके पर दिए जाने की ख़बर आने के बाद सवाल उठने शुरू हो गए. असल में सरकार ने पिछले साल 'एडॉप्ट ए हेरिटेज' नाम की योजना शुरू की है जिसमें 90 से अधिक राष्ट्रीय धरोहरों को चिन्हित किया गया है. माना जा रहा है कि इसके तहत जल्द ही ताजमहल को गोद लेने की प्रक्रिया भी पूरी हो जाएगी. विपक्षी राजनीतिक पार्टियां इस कदम पर सवाल उठा रही हैं. कांग्रेस ने लाल किला के रखरखाव की जिम्मेदारी एक निजी समूह को दिए जाने पर सवाल उठाया. कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने कहा ‘‘वे ऐतिहासिक धरोहर को एक निजी उद्योग समूह को सौंप रहे हैं. भारत और उसके इतिहास को लेकर आपकी क्या परिकल्पना है और प्रतिबद्धता है? हमें पता है कि आपकी कोई प्रतिबद्धता नहीं है लेकिन फिर भी हम आपसे पूछना चाहते हैं.’’ उन्होंने सवाल किया ‘‘क्या आपके पास धनराशि की कमी है. एएसआई (भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण) के लिए निर्धारित राशि क्यों खर्च नहीं हो पाती. यदि उनके पास धनराशि की कमी है तो राशि खर्च क्यों नहीं हो पाती है?’’
इस परियोजना के लिए इंडिगो एयरलाइंस और जीएमआर समूह दौड़ में थे. मंत्रालय के अनुसार डालमिया समूह ने 17 वीं शताब्दी की इस धरोहर पर छह महीने के भीतर मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने पर सहमति जताई है. इसमें पेयजल कियोस्क, सड़कों पर बैठने की बेंच लगाना और आगंतुकों को जानकारी देने वाले संकेतक बोर्ड लगाना शामिल है. समूह ने इसके साथ ही स्पर्शनीय नक्शे लगाना, शौचालयों का उन्नयन, जीर्णोद्धार कार्य करने पर सहमति जताई है. इसके साथ ही वह वहां 1000 वर्ग फुट क्षेत्र में आगंतुक सुविधा केंद्र का निर्माण करेगा. वह किले के भीतर और बाहर 3-डी प्रोजेक्शन मानचित्रण, बैट्री चालित वाहन और चार्ज करने वाले स्टेशन और थीम आधारित एक कैफेटेरिया भी मुहैया कराएगा.
पवन खेड़ा की टिप्पणी पर पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस ने कहा कि गत वर्ष शुरू की गई योजना के तहत मंत्रालय धरोहर स्मारकों को विकसित करने के लिए जन भागीदारी पर गौर कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘इस परियोजना में शामिल कम्पनियां केवल पैसा खर्च करेंगी, पैसा कमाएंगी नहीं. वे आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए उनके लिए शौचालय और पेयजल जैसी सुविधाएं मुहैया कराएंगी. वे यह बताने के लिए बाहर में बोर्ड लगा सकती हैं कि उन्होंने मूलभूत सुविधाएं विकसित की हैं. यदि वे राशि खर्च कर रही हैं तो उसका श्रेय लेने में कुछ गलत नहीं है.’’अल्फोंस ने कहा ‘‘मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूं उन्होंने पिछले 70 वर्ष में क्या किया. सभी धरोहर स्मारक और उसके आसपास स्थित सुविधाओं की स्थिति अत्यंत खराब है. कुछ स्थानों पर कोई सुविधा ही नहीं है.’’ इस वर्ष 31 मार्च तक की स्थिति के अनुसार संभावित स्मारक मित्रों का चयन किया गया है. इनका चयन निरीक्षण एवं दृष्टि समिति द्वारा किया गया है ताकि 95 धरोहर स्मारकों पर पर्यटकों के अनुकूल सुविधाओं का विकास किया जा सके. इन 95 स्मारकों में लाल किला, कुतुब मीनार, हम्पी (कर्नाटक), सूर्य मंदिर (ओडिशा), अजंता गुफा (महाराष्ट्र), चार मीनार (तेलंगाना) और काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम) शामिल हैं. सरकार ने इसके लिए फैसला कुछ अरसे पहले लिया था.
इस परियोजना के लिए इंडिगो एयरलाइंस और जीएमआर समूह दौड़ में थे. मंत्रालय के अनुसार डालमिया समूह ने 17 वीं शताब्दी की इस धरोहर पर छह महीने के भीतर मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने पर सहमति जताई है. इसमें पेयजल कियोस्क, सड़कों पर बैठने की बेंच लगाना और आगंतुकों को जानकारी देने वाले संकेतक बोर्ड लगाना शामिल है. समूह ने इसके साथ ही स्पर्शनीय नक्शे लगाना, शौचालयों का उन्नयन, जीर्णोद्धार कार्य करने पर सहमति जताई है. इसके साथ ही वह वहां 1000 वर्ग फुट क्षेत्र में आगंतुक सुविधा केंद्र का निर्माण करेगा. वह किले के भीतर और बाहर 3-डी प्रोजेक्शन मानचित्रण, बैट्री चालित वाहन और चार्ज करने वाले स्टेशन और थीम आधारित एक कैफेटेरिया भी मुहैया कराएगा.
पवन खेड़ा की टिप्पणी पर पर्यटन राज्यमंत्री केजे अल्फोंस ने कहा कि गत वर्ष शुरू की गई योजना के तहत मंत्रालय धरोहर स्मारकों को विकसित करने के लिए जन भागीदारी पर गौर कर रहा है. उन्होंने कहा, ‘‘इस परियोजना में शामिल कम्पनियां केवल पैसा खर्च करेंगी, पैसा कमाएंगी नहीं. वे आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़ाने के लिए उनके लिए शौचालय और पेयजल जैसी सुविधाएं मुहैया कराएंगी. वे यह बताने के लिए बाहर में बोर्ड लगा सकती हैं कि उन्होंने मूलभूत सुविधाएं विकसित की हैं. यदि वे राशि खर्च कर रही हैं तो उसका श्रेय लेने में कुछ गलत नहीं है.’’अल्फोंस ने कहा ‘‘मैं कांग्रेस से पूछना चाहता हूं उन्होंने पिछले 70 वर्ष में क्या किया. सभी धरोहर स्मारक और उसके आसपास स्थित सुविधाओं की स्थिति अत्यंत खराब है. कुछ स्थानों पर कोई सुविधा ही नहीं है.’’ इस वर्ष 31 मार्च तक की स्थिति के अनुसार संभावित स्मारक मित्रों का चयन किया गया है. इनका चयन निरीक्षण एवं दृष्टि समिति द्वारा किया गया है ताकि 95 धरोहर स्मारकों पर पर्यटकों के अनुकूल सुविधाओं का विकास किया जा सके. इन 95 स्मारकों में लाल किला, कुतुब मीनार, हम्पी (कर्नाटक), सूर्य मंदिर (ओडिशा), अजंता गुफा (महाराष्ट्र), चार मीनार (तेलंगाना) और काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान (असम) शामिल हैं. सरकार ने इसके लिए फैसला कुछ अरसे पहले लिया था.
ताज महल को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है - लाल किला को गोद लेने की कतार में इंडिगो एयरलाइंस और जीएमआर ग्रुप जैसी कई दिग्गज कंपनियां भी शामिल थीं। माना जा रहा है कि लाल किला के बाद अब ताज महल को गोद लेने की प्रक्रिया शुरू हो सकती है। मुगल बादशाह शाहजहां ने 17वीं शताब्दी में लाल किला का निर्माण करवाया था। स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले से हर साल 15 अगस्त को देश के प्रधानमंत्री तिरंगा फहरा कर आजादी का जश्न मनाते हैं। इसके अलावा बड़ी संख्या में पर्यटक यहां पहुंचते हैं।
इमाम ने कहा- सरकार के लिए शर्म की बात :- इस फैसले पर मीडिया से बात करते हुए इमाम साजिद रशीदी ने कहा, "यह वास्तव में हमारी सरकार के लिए शर्म की बात है. वे एक मुस्लिम ऐतिहासिक स्मारक का ख्याल रखने में सक्षम नहीं हैं. वे एक मुस्लिम स्मारक का ख्याल रखने में नाकाम रहे हैं जो हमारी इस्लामी संस्कृति का हिस्सा है. उन्होंने इस संपत्ति को अगले 5 वर्षों तक डालमिया समूह को सौंप दिया है. वे इस इमारत के रखरखाव (लाल किले) में बुरी तरह विफल रहे हैं. सरकार सिर्फ एक किरायेदार है और डालमिया समूह मकान मालिक है. लाल किला भारतीय गौरव का प्रतीक है. यह वास्तव में शर्मनाक है और उन्हें अपना निर्णय वापस लेना चाहिए."
राष्ट्रपति ने यह स्कीम लॉन्च की थी :- एडॉप्ट ए हेरिटेज स्कीम पिछले साल सितंबर में वर्ल्ड टूरिज्म डे के मौके पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने लॉन्च की थी. पांच करोड़ प्रति वर्ष के हिसाब से डालमिया ग्रुप ने 'मॉन्यूमेंट मित्राज़' पांच साल के लिए ज्वाइन किया था. जिसके बाद साइट के संचालन, देखभाल और रख-रखाव के लिए सीमेंट कंपनी अन्य निजी क्षेत्र की कंपनियों की लीग में शामिल हो गई थी. बता दें कि डालमिया ग्रुप ने ये कॉन्ट्रैक्ट इंडिगो एयरलाइंस और जीएमआर ग्रुप को हराकर जीता है. ये कॉन्ट्रैक्ट भी सरकार की ऐतिहासिक स्मारकों को गोद देने की स्कीम 'एडॉप्ट ए हेरिटेज' का हिस्सा है.
लालकिले के अंदर डालमिया ग्रुप अपनी ब्रांडिंग करेगा :- बताया गया है कि लाल किला के कॉन्ट्रैक्ट को लेकर डालमिया भारत ग्रुप, टूरिज्म मिनिस्ट्री, आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) के बीच बीते 9 अप्रैल को डील हुई थी. कॉन्ट्रैक्ट के मुताबिक ग्रुप को 6 महीने के भीतर लाल किले में बेसिक सुविधाएं देनी होंगी. एक साल के भीतर इसे टेक्सटाइल मैप, टॉयलेट अपग्रेडेशन, रास्तों पर लाइटिंग, बैटरी से चलने वाले व्हीकल, चार्जिंग स्टेशन और एक कैफेटेरिया बनाना होगा. इसके लिए डालमिया ग्रुप टूरिस्ट से पैसे चार्ज कर सकेगा. इसमें पीने के पानी की सुविधा, स्ट्रीट फर्नीचर जैसी सुविधा भी शामिल हैं. ग्रुप को जितना पैसा मिलेगा उसे वो पैसा फिर से लाल किला के विकास पर ही लगाना होगा. इसके अलावा ग्रुप लाल किले के भीतर अपनी ब्रांडिंग का उपयोग कर सकेगा.
कंपनी मुनाफा नहीं कमाएगी:- पर्यटन राज्य मंत्री केजे अल्फोंस ने कहा कि इन परियोजनाओं के लिए काम करने वाली कंपनियां मुनाफा नहीं कमाएंगी। वह स्मारकों में मूलभूत सुविधाएं देने और पर्यटकों का आना बढ़ाने के लिए अपना धन लगाएंगी। इसके बदले में वह स्मारक के बाहर यह बोर्ड लगा सकती हैं कि उन्होंने इसे विकसित किया है। केजे अल्फोंस (पर्यटन राज्य मंत्री) का कहना है कि पिछले 70 सालों में कांग्रेस ने इन स्मारकों का कितना विकास किया। कुछ भी नहीं। बल्कि बहुत से स्मारक बदहाली की कगार पर हैं।
क्या लाल किला को सरकार बेच सकती है:- 17वीं शताब्दी के ऐतिहासिक धरोहर दिल्ली स्थित
लाल किले को डालमिया ग्रुप को सौंपे जाने की खबर सोशल मीडिया के साथ-साथ राजनीतिक पटल
पर भी अचानक तेजी से छा गई. लोगों ने सोशल मीडिया पर कहा कि मोदी सरकार ने लाल किले
को बेच दिया और अब अगली बारी ताजमहल की है. वहीं कांग्रेस, आरजेडी, आम आदमी पार्टी,
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी समेत तमाम विपक्षी दलों और नेताओं ने मोदी सरकार
को निशाने पर लिया और कहा कि सरकार ऐतिहासिक इमारतों को उद्योगपत्तियों को बेच रही
है. इस मामले ने एक नई बहस छेड़ दी. यहां यह जानना जरूरी हो जाता है कि ऐतिहासिक धरोहरों
को लेकर देश में कानून क्या है, इनकी देखरेख कौन करता है और क्या कोई सरकार चाहे तो
ऐतिहासिक धरोहरों को किसी को बेच सकती है? हम यहां इन सारे सवालों के जवाब देने की
कोशिश कर रहे हैं.
क्या हुआ है फैसला:- पर्यटन
मंत्रालय, आर्कियोलॉजी सर्वे ऑफ इंडिया और डालमिया भारत समूह के बीच एक एमओयू पर हस्ताक्षर
किये गये. जिसके तहत कंपनी को पांच साल के लिए लाल किला और इसके आस पास के पर्यटक क्षेत्र
के रख-रखाव और विकास की जिम्मेदारी मिल गई. संस्कृति मंत्री महेश शर्मा कहते हैं- ऐतिहासिक
धरोहरों के रखरखाव में जनता की भागीदारी बढ़े इसके लिए पिछले साल पर्यटन मंत्रालय और
संस्कृति मंत्रालय ने पुरातत्व विभाग के साथ मिल कर एक योजना शुरू की थी जिसका नाम
है- एडॉप्ट ए हेरिटेज योजना. इसके तहत कोई भी भारतीय किसी धरोहर को गोद ले सकता है.
कई कंपनियों ने इसके लिए आवेदन दिया था और उन्हीं के आधार पर ये फैसला हुआ."
कंपनी क्या करेगी:- इस योजना के तहत डालमिया ग्रुप लाल किला को पर्यटकों के बीच
और अधिक लोकप्रिय बनाने के लिए काम करेगा. साथ ही उसके सौंदर्यीकरण, रखरखाव की जिम्मेदारी
उसकी होगी. समझौते के तहत ग्रुप को छह महीने के भीतर लाल किले में जरूरी सुविधाएं मुहैया
करानी होगी. इसमें एप बेस्ड गाइड, डिजिटल स्क्रिनिंग, फ्री वाईफाई, डिजिटल इंटरैक्टिव
कियोस्क, पानी की सुविधा, टेक्टाइल मैप, टॉयलेट अपग्रेडेशन, रास्तों पर लाइटिंग, बैटरी
से चलने वाले व्हीकल, चार्जिंग स्टेशन, सर्विलांस सिस्टम, कैफेटेरिया आदि शामिल है.
25 करोड़ की बात कितनी सच:- ये बातें भी चर्चा में आईं कि पांच साल के लिए डालमिया ग्रुप
से 25 करोड़ की डील हुई है. संस्कृति मंत्री महेश शर्मा इसे गलत बताते हैं और कहते
हैं- "मुझे नहीं पता ये आंकड़ा कहां से आया क्योंकि पूरे समझौते में पैसों की
कोई बात है ही नहीं. 25 करोड़ तो दूर की बात है, 25 रुपये क्या इसमें 5 रुपये तक की
भी बात नहीं है. ना कंपनी सरकार को पैसे देगी ना ही सरकार कंपनी को कुछ दे रही है."
भारत में धरोहरों की देखरेख:- देश की आजादी के समय 2826 ऐतिहासिक धरोहरों को
संरक्षित की श्रेणी में रखा गया था. 2014 में ये संख्या 3650 तक पहुंच गई थी. भारत
में ऐतिहासिक धरोहरों की देखरेख पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग यानी एएसआइ के हाथों में
है. संविधान की अनुच्छेद 42 और 51A(f) राष्ट्रीय और ऐतिहासिक धरोहरों के संरक्षण को
राष्ट्रीय कर्तव्य घोषित करता है. Ancient Monuments and Archaeological Sites and
Remains Act 1958 के तहत ये काम संचालित होता है. राष्ट्रीय महत्व के सभी धरोहरों का
संरक्षण एएसआइ की जिम्मेदारी है. इस अधिनियम की धारा- 4(1) केंद्र सरकार को ये अधिकार
देता है कि वह किसी भी ऐतिहासिक इमारत या अन्य धरोहर को राष्ट्रीय महत्व का घोषित कर
दे.
देश का संविधान क्या कहता है :- संसद द्वारा बनाए गए
कानून के तहत ये राज्य की जिम्मेदारी होगी कि वह राष्ट्रीय महत्व की ऐतिहासिक धरोहरों,
इमारतों, आलेखों का संरक्षण करे. उनकी सुरक्षा करे. किसी भी रूप में उसे नुकसान पहुंचाने
की कोशिशों को रोके, तोड़फोड़ से संरक्षित करे. उसे हटाने, उसमें बदलाव की कोशिशों
से संरक्षण प्रदान करे. संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 49 को राज्य के नीति निदेशक
तत्वों में शामिल कर ये सुनिश्चित किया कि राष्ट्रीय महत्व के ऐतिहासिक धरोहरों का
संरक्षण और उनका नियमन सरकार की जिम्मेदारी होगी.
सुविधाओं के विकास के संदर्भ में निर्देश:- ऐतिहासिक धरोहरों के
एरिया के आसपास 200 मीटर तक के इलाके में किसी भी तरह के संरचनात्मक बदलाव को रोकने
का निर्देश भी इसमें शामिल है. ऐतिहासिक धरोहरों के पास सुविधाओं के विकास के लिए सरकार
अपने नियंत्रण में कुछ बदलावों की अनुमति दे सकती है लेकिन इसे धरोहर के बुनियादी संरचना
पर कोई असर न हो. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी समय-समय पर सरकार को जरूरी निर्देश
दिए हैं.
2010 में नेशनल मान्युमेंट अथॉरिटी अस्तित्व में आया. इसके बाद
धरोहरों के आसपास के 100 मीटर की परिभाषा को पुनर्परिभाषित किया गया और इसे निर्माण
निषेध इलाका घोषित किया गया. इसके अलावा 100 से 300 मीटर के इलाके में सुविधाओं के
विकास के लिए नियमों में भी कुछ बदलाव किए गए लेकिन वो भी सरकारी नियंत्रण के अनुसार
ही संभव हो सकते हैं. किसी भी ऐतिहासिक इमारत की मूल संरचना में सिर्फ मरम्मत का काम
हो सकता है उसकी संरचना में किसी तरह का कोई बदलाव नहीं किया जा सकता. ऐतिहासिक धरोहरों
पर नियंत्रण पूरी तरह सरकार का ही होगा और जो भी वहां काम होगा वह कानून के तहत और
एएएसआइ की देखरेख में ही हो सकता है.
एएसआई के अधिकारी नाराज, वर्चस्व की लड़ाई शुरू हुई
:- 17वीं शताब्दी के ऐतिहासिक लाल किले को डालमिया भारत ग्रुप को गोद दिए
जाने के बाद कार्यात्मक
आधिपत्य
को
लेकर
भारतीय
पुरातत्व
सर्वेक्षण
(एएसआई)
में
वर्चस्व
कायम
रखने
का
माहौल
पैदा
हो
गया।
सुविधाओं
के
लिए
लाल
किले
की
आउटसोर्सिंग
के
बाद
से
भारतीय
पुरातत्व
सर्वेक्षण
का
अधिकार
क्षेत्र
सीमित
हो
गया
है,
लेकिन
लाल
किले
की
खूबसूरती
को
बनाए
रखने
का
सबसे
महत्वपूर्ण
कार्य
अभी
भी
एएसआई
के
पास
ही
है।
कई
दशकों
से
लाल
किले
के
संरक्षण
से
जुड़े
अधिकारियों
द्वारा
इसकी
आउटसोर्सिंग
को
लेकर
नाराजगी
भी
जाहिर
की
जा
रही
है।
डालमिया
समूह
को
किला
गोद
देने
के
बाद
से
एएसआई
का
बदला
माहौल
एएसआई
सूत्रों
के
मुताबिक,
लाल
किले
के
कायाकल्प
को
लेकर
पहले
से
जारी
कार्य
वर्तमान
में
भी
जारी
हैं।
पर्यटकों
की
सुविधाओं
को
बेहतर
बनाने
के
मद्देनजर
लाल
किले
को
डालमिया
भारत
समूह
को
पांच
वर्ष
के
लिए
सौंपा
गया
है,
लेकिन
लाल
किले
की
ऐतिहासिक
दीवारों
से
लेकर
किले
के
हर
उस
क्षेत्र
पर
एएसआई
का
अधिकार
क्षेत्र
है,
जो
मुगल
काल
में
बनकर
तैयार
हुआ।
लाल
किले
के
सबसे
महत्वपूर्ण
अंगों
में
नक्कार
खाना,
दीवान-ए-आम, नहर-ए-बहिश्त, जनाना, हयात बख्श बाग, मोती मस्जिद, दीवान-ए-खास और खास महल के संरक्षण का जिम्मा पूरी तरह से एएसआई के पास है एएसआई सूत्रों का कहना है कि दशकों से लाल किले के संरक्षण और सुविधाओं का जिम्मा एएसआई के पास था। लाल किला गोद दिए जाने के बाद से हालांकि एएसआई का कार्यभार कम हो जाएगा, लेकिन देश में लोगों के बीच विभाग की गरिमा और कार्यशैली पर भी सामंजस्य पैदा हो सकता है। बताया गया है कि लाल किले में कैफेटेरिया आने वाले समय में डालमिया समूह द्वारा संचालित किया जाएगा, साथ ही पीने के पानी, जानकारी केंद्र, लाइटिंग और शौचालयों समेत अन्य सुविधाएं डालमिया समूह द्वारा प्रदान की जाएंगी, लेकिन किले की लाल पत्थर से बनी दीवारों और अन्य जगहों के कायाकल्प का कार्य एएसआई के अनुभवी अभियंता ही करेंगे।
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