22 रानियों से महाराणा
प्रताप अकेले योद्धा :-महाराणा उदयसिंह के 22 रानियों से संतानें तो अनेक थीं, लेकिन सिर्फ प्रताप
ही वीर शिरोमणि और सिद्धांतों के प्रति अडिग हुए प्रताप को पहले दिन से ही मां जयवंता
बाई ने गढ़ा ही ऐसा था। जयवंता बाई पाली के राजा अखेराजसिंह सोनगरा की बेटी थीं। उन्हें
शादी से पहले जीवंत कंवर के नाम से भी जाना जाता था। वे बचपन से ही बेहद बहादुर और
जांबाज थीं। वे उदयसिंह की पहली पत्नी थीं। यह शादी बेहद नाटकीय ढंग और विशेष परिस्थितियों
में हुई थी। उदयसिंह की ताजपोशी के समय कुंभलगढ़ में कई बनवीर समर्थक राजपूत शासकों
ने संदेह जाहिर किया कि उदयसिंह ही वाकई में महाराणा सांगा और रानी कर्णावती का बेटा
है। इस पर अखेसिंह ने कहा : अगर मैं अपनी बेटी की शादी उनसे कर दूं तब तो आप मान लोगे
ना! इस पर उन्होंने अपने परिवार को पाली से कुंभलगढ़ बुलवाया और यह शादी हुई। 1540 में
प्रताप का जन्म हुआ और महाराणा उदयसिंह का भाग्योदय होने लगा।
महाराणा प्रताप सिंह ( शुक्ल तृतीया रविवार विक्रम संवत 1597 तदानुसार 9 मई 1549–29 जनवरी
1597) उदयपुर, मेवाड में शिशोदिया राजवंश के राजा थे। उनका जन्म कुम्भलगढ दुर्ग में हुआ था। महाराणा प्रताप की माता का नाम जैवन्ताबाई
था, जो पाली के सोनगरा अखैराज की बेटी थी। महाराणा प्रताप को बचपन में कीका के नाम
से पुकारा जाता था। महाराणा प्रताप का राज्याभिषेक गोगुन्दा में हुआ। उनका नाम इतिहास में वीरता और दृढ प्रण के लिये अमर है। उन्होंने
कई सालों तक मुगल सम्राट अकबर के
साथ संघर्ष किया। महाराणा प्रताप सिंह ने मुगलो को कही
बार युद्ध में भी हराया। उनका जन्म राजस्थान के कुम्भलगढ में महाराणा उदयसिंह एवं माता
राणी जीवत कँवर के घर हुआ था। 1576 के हल्दीघाटी युद्ध में 20,000 राजपूतों को साथ
लेकर राणा प्रताप ने मुगल सरदार राजा मानसिंह के 80,000 की सेना का सामना किया। शत्रु
सेना से घिर चुके महाराणा प्रताप को झाला मानसिंह ने आपने प्राण दे कर बचाया ओर महाराणा
को युद्ध भूमि छोड़ने के लिए बोला। शक्ति सिंह ने आपना अशव दे कर महाराणा को बचाया।
प्रिय अश्वचेतक की भी मृत्यु हुई।
यह युद्ध तो केवल एक दिन चला परन्तु इसमें 17,000 लोग मारे गएँ। मेवाड़ को जीतने के
लिये अकबर ने सभी प्रयास किये। महाराणा की हालत दिन-प्रतिदिन चिंतीत हुई। 25,000 राजपूतों
को 12 साल तक चले उतना अनुदान देकर भामा शाह भी अमर हुआ।
शादियाँ:- महाराणा प्रताप का महाराणा प्रताप ने
अपने जीवन में कुल 11 शादियाँ की थी उनके पत्नियों और उनसे प्राप्त उनके पुत्रों पुत्रियों
के नाम है :-1. महारानी अजब्धे पंवार :- अमरसिंह और भगवानदास, 2. अमरबाई राठौर :-
नत्था, 3. शहमति बाई हाडा :-पुरा, 4. अलमदेबाई चौहान:- जसवंत सिंह , 5. रत्नावती
बाई परमार :-माल,गज,क्लिंगु , 6. लखाबाई :- रायभाना ,7. जसोबाई चौहान :-कल्याणदास
,8. चंपाबाई जंथी :- कल्ला, सनवालदास और दुर्जन सिंह ,9. सोलनखिनीपुर बाई :-
साशा और गोपाल ,10. फूलबाई राठौर :-चंदा और शिखा और 11. खीचर आशाबाई :- हत्थी और राम सिंह।
चार शान्ति दूत :- महाराणा प्रताप ने भी अकबर की अधीनता को स्वीकार नहीं किया था। अकबर ने महाराणा
प्रताप को समझाने के लिये क्रमश: चार शान्ति दूतों को भेजा। 1. जलाल खान कोरची (सितम्बर
1572) 2. मानसिंह (1573) , 3. भगवान दास (सितम्बर–अक्टूबर
1573) और 4, टोडरमल (दिसम्बर 1573)
हल्दीघाटी
का युद्ध:- यह युद्ध 18 जून 1576 ईस्वी में मेवाड तथा
मुगलों के मध्य हुआ था। इस युद्ध में मेवाड की सेना का नेतृत्व महाराणा प्रताप ने किया
था। इस युद्ध में महाराणा प्रताप की तरफ से लडने वाले एकमात्र मुस्लिम सरदार थे -हकीम
खाँ सूरी। इस युद्ध में मुगल सेना का नेतृत्व मानसिंह तथा आसफ खाँ ने किया। इस युद्ध
का आँखों देखा वर्णन अब्दुल कादिर बदायूनीं ने किया। इस युद्ध को आसफ खाँ ने अप्रत्यक्ष
रूप से जेहाद की संज्ञा दी। इस युद्ध में बींदा के झालामान ने अपने प्राणों का बलिदान
करके महाराणा प्रताप के जीवन की रक्षा की।वहीं ग्वालियर नरेश 'राजा रामशाह तोमर' भी
अपने तीन पुत्रों 'कुँवर शालीवाहन', 'कुँवर भवानी सिंह 'कुँवर प्रताप सिंह' और पौत्र
बलभद्र सिंह एवं सैंकडों वीर तोमर राजपूत योद्धाओं समेत चिरनिद्रा में सो गया । इतिहासकार
मानते हे कि इस युद्ध में कोई विजय नहीं हुआ। पर देखा जाए तो इस युद्ध में महाराणा
प्रताप सिंह विजय हुए अकबर के विशाल सेना के सामने मुट्ठीभर राजपूत कितने देर तक टिक
पाते पर एसा कुछ नहीं हुए ये युद्ध पूरे एक दिन चला और राजपूतों ने मुग़लो के छक्के
छुड़ा दिया थे ओर सबसे बड़ी बात यहा हे की युद्ध आमने सामने लड़ा गया था! महाराणा कि
सेना ने मुगल कि सेना को पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया था ओर मुगल सेना भागने लग
गयी थी।
मेवाड़ मुक्ति के प्रयत्न:- ई.1579 से 1585 तक पूर्व उत्तर प्रदेश,
बंगाल, बिहार और गुजरात के मुग़ल अधिकृत प्रदेशो में विद्रोह होने लगे थे ओर महाराणा
भी एक के बाद एक गढ़ जीतते जा रहे थे अतः परिणामस्वरूप अकबर उस विद्रोह को दबाने मे
उल्जा रहा और मेवाड़ पर से मुगलो का दबाव कम हो गया । इस बात का लाभ उठाकर महाराणा
ने ई.पू. 1585 में मेवाड़ मुक्ति प्रयत्नों को ओर भी तेज कर लिया । महाराणा की सेना
ने मुगल चौकियां पर आक्रमण शरु कर दिए और तुरंत ही उदयपूर समेत 36 महत्वपूर्ण स्थान
पर फिर से महाराणा का अधिकार स्थापित हो गया। महाराणा प्रताप ने जिस समय सिंहासन ग्रहण
किया , उस समय जितने मेवाड़ की भूमि पर उनका अधिकार था , पूर्ण रूप से उतने ही भूमि
भाग पर अब उनकी सत्ता फिर से स्थापित हो गई थी । बारह वर्ष के संघर्ष के बाद भी अकबर
उसमें कोई परिवर्तन न कर सका । और इस तरह महाराणा प्रताप समय की लंबी अवधि के संघर्ष
के बाद मेवाड़ को मुक्त करने मे सफल रहे और ये समय मेवाड़ के लिए एक स्वर्ण युग साबित
हुआ । मेवाड़ पे लगा हुआ अकबर ग्रहण का अंत ई.पू. 1585 में हुआ । उसके बाद महाराणा
प्रताप उनके राज्य की सुख-सुविधा मे जुट गए , परंतु दुर्भाग्य से उसके ग्यारह वर्ष
के बाद ही 19 जनवरी 1597 में अपनी नई राजधानी चावंड मे उनकी मृत्यु हो गई अकबर की प्रतिक्रिया:- अकबर महाराणा प्रताप का सबसे बड़ा शत्रु था, पर उनकी यह लड़ाई कोई
व्यक्तिगत द्वेष का परिणाम नहीं था, हालांकि अपने सिद्धांतो और मूल्यो की लड़ाई थी
। एक वह था जो अपने क्रूर साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था , जब की एक तरफ यह था
जो अपनी भारत माँ की स्वाधीनता के लिए संघर्ष कर रहा था। महाराणा प्रताप के मृत्यु
पर अकबर को बहुत ही दुःख हुआ क्योंकि ह्रदय से वो महाराणा प्रताप के
गुणों का प्रशंसक था ओर अकबर जनता था कि महाराणा जैसा वीर कोई नहीं हे इस धरती पर ।
यह समाचार सुन अकबर रहस्यमय तरीके से मौन हो गया और उसकी आँख में आंसू आ गए।महाराणा
प्रताप के स्वर्गावसान के वक्त अकबार लाहौर में था और वहीं उसे खबर मिली कि महाराणा
प्रताप की मृत्यु हो गई है। अकबर की उस वक्त की मनोदशा पर अकबर के दरबारी दुरसा आढ़ा
ने राजस्थानी छंद में जो विवरण लिखा वो कुछ इस तरह है:-हे गुहिलोत राणा प्रतापसिंघ
तेरी मृत्यु पर शाह यानि सम्राट ने दांतों के बीच जीभ दबाई और निश्वास के साथ आंसू
टपकाए। क्योंकि तूने कभी भी अपने घोड़ों पर मुगलिया दाग नहीं लगने दिया। तूने अपनी
पगड़ी को किसी के आगे झुकाया नहीं, हालांकि तू अपना आडा यानि यश या राज्य तो गंवा गया
लेकिन फिर भी तू अपने राज्य के धुरे को बांए कंधे से ही चलाता रहा। तेरी रानियां कभी
नवरोजों में नहीं गईं और ना ही तू खुद आसतों यानि बादशाही डेरों में गया। तू कभी शाही
झरोखे के नीचे नही खड़ा रहा और तेरा रौब दुनिया पर गालिब रहा। इसलिए मैं कहता हूं कि
तू सब तरह से जीत गया और बादशाह हार गया।
कृष्ण के युद्ध कौशल जैसी ट्रेनिंग :- प्रताप को कृष्ण के युद्ध कौशल जैसी ट्रेनिंग मिली थी प्रताप की मां जयवंता बाई खुद एक घुड़सवार
थीं और उन्होंने अपने बेटे को भी दुनिया का बेहतरीन घुड़सवार और शूरवीर बनाया। वे कृष्ण
भक्त थीं, इसलिए कृष्ण के युद्ध कौशल को भी प्रताप के जीवन में उतार दिया। उन्हें प्रशासनिक
दक्षता सिखाई और रणनीतिकार बनाया। युद्ध
का आंखों देखा बयान रोंगटे खड़ा कर
देने वाला है चारण रामा सांदू ने आंखों देखा हाल लिखा
है कि प्रताप ने मान सिंह पर वार किया। वह झुककर बच गया, महावत मारा गया। बेकाबू हाथी
को मान सिंह ने संभाल लिया। सबको भ्रम हुआ कि मान सिंह मर गया। दूसरे ही पल बहलोल खां
पर प्रताप ने ऐसा वार किया कि सिर से घोड़े तक के दो टुकड़े कर दिए। युद्ध में प्रताप को बंदूक की गोली सहित
आठ बड़े घाव लगे थे। तीर-तलवार की अनगिनत खरोंचें थीं। प्रताप के घावों को कालोड़ा
में मरहम मिला। इस पर बदायूनी लिखते हैं कि ऐसे वीर की ख्याति लिखते मेरी कलम भी रुक
जाती है। 208 किलो का
वजन लेकर लड़ते थे प्रताप महाराणा प्रताप का भाला 81 किलो वजन का
था और उनके छाती का कवच 72 किलो का था। उनके भाला, कवच, ढाल और साथ में दो तलवारों
का वजन मिलाकर 208 किलो था। महाराणा प्रताप का वजन 110 किलो और लम्बाई 7 फीट 5 इंच
थी।
फिल्म एवं साहित्य :- 2013 में सोनी टीवी ने 'भारत का वीर पुत्र – महाराणा प्रताप' नाम से धारावाहिक प्रसारित
किया था जिसमे बाल कुंवर प्रताप का पात्र फैसल खान और महाराणा प्रताप का पात्र शरद मल्होत्रा ने निभाया था।राजस्थान के एक बहुत
ही होनहार कवि थे कन्हैयालाल सेठिया | वे राजस्थानी में कवितायें, गीत आदि लिखा करते
थे, बडा ही उम्दा लेखन था उनका |वे अपनी रचनाओं में शब्दों की जादूगरी जोडते थे | आज के जमाने में भी राजस्थान की महिमा का बखान करते
उनके गीत व कवितायें बहुत ही शौक से पढ़ी व सुनी जाती हैं | उनकी एक बहुत ही जोरदार
रचना है वह है पीथल और पाथल | ये कविता इंगित करती है हमें तब जब महाराणा
प्रताप का जीवन काल बहत ही कठिनाई के दौर से गुजर रहा था, वे मुगलों की अधीनता स्वीकार
नहीं करना चाहाते थे और परिणामस्वरूप उन्हें जंगल जंगल में छुप छुप कर गुजर बसर करनी
पड रही थी | राणा प्रताप मेवाड को मुगलों से वापस छीनना चाहते थे और उसी कारण छापामार
युद्ध कर रहे थे और मुगलों को करारा नुकसान दे रहे थे | उन्हीं कठीनाई के दिनों में
एक दिन जब राणा प्रताप नें अपने पुत्र अमरसिंह को घास से बनी रोटी खाने के लिये दी
और वह भी एक जंगली बिल्ला ले कर भाग गया, अपने पु्त्र को भूख से रोता देख राणा का मन
द्रवित हो उठा और उन्होने आत्मसमर्पण हेतू अकबर को एक पत्र भेजा |
478वीं जयंती:- पूरे देश में महाराणा प्रताप की 478वीं जयंती मनाई जा रही है। प्रताप ऐसे योद्धा
थे, जो कभी मुगलों के आगे नहीं झुके। उनका संघर्ष इतिहास में अमर है। महाराणा, उदय
सिंह द्वितीय और महारानी जयवंता बाई के बेटे थे। दुश्मन भी उनकी युद्धकला की तारीफ
करते थे। इतिहासकारों के मुताबिक, महाराणा का परिवार भी काफी बड़ा था। प्रताप का जन्म हुआ और महाराणा उदयसिंह का भाग्योदय
होने लगा 9 मई 1540 को प्रताप का जन्म कुम्भलगढ़ किले में हुआ था। उनके जन्म के साथ ही महाराणा उदयसिंह ने
खोए हुए चित्तौड़ किले को जीत लिया था। इस विजय यात्रा में जयवंता बाई भी उदयसिंह
के साथ थीं। चित्तौड़ विजय के बाद उदयसिंह ने कई राजघरानों में शादियां की। जिसके बाद प्रताप की मां जयवंता बाई के
खिलाफ षड्यंत्र शुरू हो गया। जयंवता बाई बालक प्रताप को लेकर चित्तौड़
दुर्ग से नीचे बनी हवेली में रहने लगीं। यहीं से प्रताप की ट्रेनिंग शुरू हुई।
तीर्थ से कम
नहीं है हल्दी घाटी की मिट्टी
स्वतंत्रता के लिए जंगलों में रहे और घास की रोटी खाने की स्थिति में भी मुगलों की अधीनता नहीं स्वीकारने वाले महाराणा प्रताप जैसे योद्धा सदियों में जन्म लेते हैं। ऐसे पराक्रमी की युद्धभूमि हल्दीघाटी किसी तीर्थ से कम नहीं है।
शिवसेना ने मनाई जयंती. अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना पूरा जीवन का बलिदान कर देने वाले ऐसे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और उनके स्वामिभक्त अश्व चेतक को शत-शत कोटि-कोटि प्रणाम ।
स्वतंत्रता के लिए जंगलों में रहे और घास की रोटी खाने की स्थिति में भी मुगलों की अधीनता नहीं स्वीकारने वाले महाराणा प्रताप जैसे योद्धा सदियों में जन्म लेते हैं। ऐसे पराक्रमी की युद्धभूमि हल्दीघाटी किसी तीर्थ से कम नहीं है।
शिवसेना ने मनाई जयंती. अपनी मातृभूमि की स्वाधीनता के लिए अपना पूरा जीवन का बलिदान कर देने वाले ऐसे वीर शिरोमणि महाराणा प्रताप और उनके स्वामिभक्त अश्व चेतक को शत-शत कोटि-कोटि प्रणाम ।
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