यमराज की बहन है यमुना- हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यमुना नदी को यमराज की बहन बताया गया है। यमुना नदी का एक नाम यमी भी है। कहा जाता है कि सूर्य, यमराज और यमी के पिता हैं। बताया जाता है कि यमुना नदी को ‘काली गंगाÓ और ‘असित के नाम से भी जाना जाता है और इसके पीछे की वजह ये है कि यमुना का जल पहले कुछ साफ, कुछ नीला और कुछ सांवला था। असित नाम के पीछे ये तर्क बताया जाता है कि असित एक ऋषि थे, जिन्होंने सबसे पहले यमुना नदी को खोजा था और तभी से यमुना को ‘असित नाम से भी संबोधित किया जाने लगा।
कार्तिक पूर्णिमा के पावन अवसर पर मां की वेदना के कुछ पंक्तियां प्रस्तुत है i---
मेरे पद पंकज का वंदन चाहे तुम मत एक बार करो ।
गाल बजाने वालो के सब ढोंगो का प्रतिकार करो ।
भाव सुमन के नहीं दिखावटी माला मुझे चढ़ाते हो ।
सड़ी गली बदबू से भरकर मेरी पवित्रता मिटाते हो ।।
मुझको चुनरी नहीं चढ़ाओ मत दीपो का दान करो ।
दीन हीन को कपड़े बाँटो इनके तन को ढ़को भरो।
टूटी फूटी प्रतिमायें तस्वीरें सब मुझमे डाली जाती । जिनकी किरचें कोर नुकीली सब लोगो को चुभती ।।
बची हवन पूजन सामग्री घर से तुम ले आते हो ।
वेरहमी से पावन जल को गंदा तुम कर जाते हो ।
मूर्ति यहां विसर्जित कर तुमने ना कुछ पुण्य किया।
जहरीले रंगों तत्वों से तुमने जल मेरा बदरंग किया ।।
डाल शवो की भस्म अस्थियां क्या उनको स्वर्ग मिलेगा। जिंदा परिवारों की सोचो जल के बिना उन्हें नरक दीखेगा । सोडा साबुन प्रतिवन्धित हो जल पीने के लायक करो । शहरों के गंदे नालों से मुझको पूरा ही पूरा मुक्त करो ।।
कालिन्दी पर्वत से निकली कालिन्दी मैं कहलाती हूं।
यमनोत्री से नीचे उतर के संगम प्रयाग तक जाती हूं ।
शहर गांव उपवन फुलवारी सबको सींचती जाती हॅं।
संग सरस्वती गंगा में मिल त्रिवेणी बन जाती हूं।।
मैं सूर्यदेव की बेटी हूं इस जग को जीवन देने आई । शीतलता के साथ धरा की भी प्यास बुझाने आयी ।
यमदेव हमारे भाई हैं उनकी हम पर असीम करुणा है।
स्नान किया जिसने मुझमें यम के बंधन में ना बंधता है।।
वृन्दावन में मेरे तट पर सुन्दर घाटों की श्रृंखला है । मंदिर-देवालय, छतरियां मेरे तट पर धर्मशाला है ।
मथुरा बृन्दावन गोकुल बरसाना मेरे तट पर बसते हैं।
बाग महल मकबरे हवेलियां मेरे तट पर बनते हैं ।।
कालिया मर्दन हमने देखा कंस शिरच्छेदन देखा है।
कृष्ण की लीला देखा है वंशी की तान भी देखा है।
गौवों का गोचर देखा है पक्षी का कलरव देखा है।
गीता की वाणी सुनकर भारत का कौशल देखा है।।
मेरा पानी फसल उगाता वरना मरण तुम्हारा है ।
मेरे रहने से ही तो सम्पूर्ण अस्तित्व तुम्हारा है ।
पशुपक्षी मेरा पान करें जलचर भी मुझमें पलते हैं।
विश्व कोनों से आये पथिक हम पर जान लुटांते हैं।।
अगली पीढ़ी का तुम सोचो कैसे वह रह पाएगी ।
जल के खातिर युद्ध करे जलबिन जलभुन जाएगी ।
रेत माफिया कुछ तो सोचो गर्दन को रेत रहे मेरी ।
मुठ्ठी से बालू खिसकी तो जीवन गया बिना देरी ।।
मेरे तट पर आज अनेक कालोनिया बनती जाती हैं।
कचरे को घर से निकाल मुझमें फैलायी जाती है ।
मेरे तट पर जंगल थे अब एक भी नहीं दीखते हैं ।
खग भी मेरे तट पर अपने बसेरों के लिए तरसते हैं।।
अगर भेंट करना है कुछ तो तट पर यह संकल्प करो ।
पीड़ा नही किसी को देकर निर्वल के दुख दूर करो ।
भक्तो सबसे हाथ जोड़कर मैं यही कामना करती हूं ।
गांठ बांध लो जल ही जीवन सत्य यही मैं कहती हूं ।।
No comments:
Post a Comment