Tuesday, March 7, 2023

मंत्र दीक्षा के एक वर्ष

             श्रीरामबल्लभा कुंज वेदांती जी मंदिर
मैं और मेरी धर्म पत्नी ने विगत 7 मार्च 2022 को अपने परिवारिक गुरु घराना "श्रीरामबल्लभा कुंज वेदांती जी मंदिर" के वर्तमान महंत आचार्य श्री राम शंकर दास जी महाराज से गुरु मन्त्र की दीक्षा लिया था। एक साल के अल्प समय में कुछ आध्यात्मिक कदम बढ़े और कुछ रुके। 
कुछ सुमिरन भजन हुआ कुछ ब्रत उपवास हुए कुछ तीर्थटन हुए। माया के बंधन और सांसारिकता में अनेक व्यवधान भी आए। कुछ नए मेहमान से परिवार की समृद्धि हुई तो लक्ष्मी जी का रूठना भी हमे झेलना पड़ा। एक वर्ष की अवधि पूर्ण होने पर गुरुदेव महाराज श्री राम शंकर वेदांती जी श्रीरामबल्लभा कुंज वेदांती जी जानकी घाट अयोध्या के श्री चरणों में सादर नमन और प्रणाम । 
               गुरुदेव महाराज श्री राम शंकर वेदांती जी
दीक्षा के कुछ नियम:-
        इस पावन अवसर पर दीक्षा के कुछ नियमों को नवागत श्रद्धालुओं के निमित्त प्रस्तुत कर रहा हूं।शिष्य को गुरू में सम्पूर्ण श्रद्धा तथा विश्वास रखना चाहिये तथा शिष्य को पूर्णरूपेण उनके प्रति आत्मसमर्पण करना चाहिये ! दीक्षाकाल में गुरू के द्वारा दिये गये तमाम निर्देशों का पूर्ण रूप से पालन करने का प्रयास करना चाहिये। यदि गुरू ने विशेष नियमों की चर्चा न की हो तो निम्नलिखित सर्व सामान्य नियमों का पालन करना चाहिये !

मंत्र जप से कलियुग में भी ईश्वर से साक्षात्कार सिद्ध होता है ! इस बात पर विश्वास रखना चाहिये !

मंत्र दीक्षा की क्रिया एक अत्यन्त पवित्र क्रिया है ! उसे मनोरंजन का साधन नहीं मानना चाहिये ! अन्य किसी की देखा देखी दीक्षा ग्रहण करना उचित नहीं ! अपने मन को स्थिर और सुदृढ़ करने के पश्चात गुरू की शरण में जाना चाहिये !

मंत्र को ही भगवान समझना चाहिये तथा गुरू में ईश्वर का प्रत्यक्ष दर्शन करना चाहिये !

मंत्र दीक्षा को यथा शक्ति सांसारिक सुख-प्राप्ति का माध्यम नहीं बनाना चाहिये ! बल्कि भगव्तप्राप्ति का माध्यम बनाना चाहिये !

मंत्र दीक्षा के उपरांत मंत्र जप को छोड़ना नहीं चाहिए। इससे मंत्र का घोर अपमान होता है तथा साधक को हानि होने की संभावना भी रहती है !

साधक को आसुरी प्रवृत्तियाँ – काम, क्रोध, लोभ, मोह, ईर्ष्या, द्वेष आदि का त्याग करके दैवी सम्पत्ति सेवा, त्याग, दान, प्रेम, क्षमा, विनम्रता आदि गुणों को धारण करने का प्रयत्न करते रहना चाहिये !

गृहस्थ को व्यवहार की दृष्टि से अपना कर्त्तव्य आवश्यक मानकर पूरा करना चाहिये ! परन्तु उसे गौण कार्य समझना चाहिये ! समग्र सांसारिक जीवन को ही आध्यात्मिक बनाने का प्रयत्न करना चाहिये ! मन, वचन तथा कर्म से सत्य, अहिंसा तथा ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये !

प्रति सप्ताह मंत्र दीक्षा ग्रहण किये गये दिन एक वक्त फलाहार पर रहना चाहिये और वर्ष के अंत में उस दिन पूर्ण उपवास रखना चाहिये !

भगवान को निराकार-निर्गुण और साकार-सगुण दोनों स्वरूपों में देखना चाहिये ! ईश्वर को अनेक रूपों में जानकर श्रीराम, श्रीकृष्ण, शंकरजी, गणेशजी, विष्णु भगवान, दुर्गा, लक्ष्मी इत्यादि किसी भी देवी-देवता में विभेद नहीं करना चाहिये ! सभी के इष्टदेव सर्वव्यापक, सर्वज्ञ सभी देवता के प्रति विरोध भाव प्रकट नहीं करना चाहिये ! हाँ, आप अपने इष्टदेव पर अधिक विश्वास रख सकेत हैं ! उसे अधिक प्रेम कर सकते हैं !

अपना इष्ट मंत्र गुप्त रखना चाहिये ! किसी से भी शेयर नहीं करना चाहिए।

पति पत्नी यदि एक ही गुरू की दीक्षा लें तो यह अति उत्तम है, परन्तु अनिवार्य नहीं है !

कभी कभी लिखित मंत्र जप भी करना चाहिये तथा उसे किसी पवित्र स्थान में सुरक्षित रखना चाहिये ! इससे वातावरण सकारात्मक और शुद्ध रहता है !

मंत्र जप के लिये पूजा का एक कमरा अथवा कोई स्थान अलग अवश्य होना चाहिये ! जिसमें नियमित धूप बत्ती व दिया अवश्य होना चाहिये ! उस स्थान को कभी भी अपवित्र नहीं होने देना चाहिये !

प्रत्येक समय अपने गुरू तथा इष्टदेव की उपस्थिति का अनुभव करते रहना चाहिये !

गुरु की आज्ञा के बिना कोई भी व्रत अनुष्ठान नहीं शुरू करना चाहिये ! एकादशी तेरस आदि प्रमुख व्रत का चयन करना चाहिए।

प्रत्येक दीक्षित दम्पति को एक पत्नीव्रत तथा पतिव्रता धर्म का पालन करना चाहिये ! अपने युगल को पूरा आदर मान सम्मान देना चाहिए।

अपने घर के मालिक के रूप में गुरू तथा इष्टदेव को मानकर स्वयं अपने को उनके प्रतिनिधि के रूप में परिवार का हर कार्य करना चाहिये !

मंत्र की शक्ति पर विश्वास रखना चाहिये ! उससे सारे विघ्नों का निवारण हो जाता है !

प्रतिदिन गुरु के बताए संख्या या कम से कम 5 माला का जप अवश्य करना चाहिये ! प्रातः और सन्ध्याकाल को नियमानुसार जप करना चाहिये !

माला फिराते समय तर्जनी, अंगूठे के पास की तथा कनिष्ठिका (छोटी) उंगली का उपयोग नहीं करना चाहिये ! माला नाभि के नीचे जाकर लटकती हुई नहीं रखनी चाहिये ! यदि सम्भव हो तो किसी वस्त्र (गौमुखी) में रखकर माला फिराना चाहिये ! सुमेरू के मनके को (मुख्य मनके को) पार करके माला नहीं फेरना चाहिये ! माला फेरते समय सुमेरू तक पहुँचकर पुनः माला घुमाकर ही दूसरी माला का प्रारम्भ करना चाहिये !

अन्त में तो ऐसी स्थिति आ जानी चाहिये कि निरन्तर उठते बैठते, खाते-पीते, चलते, काम करते तथा सोते समय भी जप चलते रहना चाहिये ।

आप सभी को अपने अपने गुरूदेव का अनुग्रह प्राप्त हो, यह हार्दिक कामना है ! 

आप सभी मंत्रजप के द्वारा अपना ऐच्छिक लक्ष्य प्राप्त करने में सम्पूर्णतः सफल हों।

 ईश्वर आपको शान्ति, आनन्द, समृद्धि तथा आध्यात्मिक प्रगति प्रदान करें ! 

आप सदा उन्नति करते रहें और इसी जीवन में भगवत्साक्षात्कार करें ! 

                          हरि ॐ तत्सत् !

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