Friday, September 10, 2021

दुर्लभ - जटिल शंख लिपि में गुप्त कालीन अभिलेख मिला डाक्टर राधे श्याम द्विवेदी

एटा का एतिहासिक पुरास्थल
एटा के एतिहासिक और भारत सरकार द्वारा संरक्षित बिलसड़ पुरास्थल है जहां से दुर्लभ और जटिल शंख लिपि में गुप्त कालीन अभिलेख मिला है। बिलसड  भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के एटा जिले के अलीगंज प्रखंड का एक गाँव है । यह जिला मुख्यालय एटा से पूर्व की ओर 62 किमी दूर स्थित है।  यह स्थान एटा जिले और फर्रुखाबाद जिले की सीमा में है।
कुमार गुप्त प्रथम का सबसे प्राचीन अभिलेख 415-16 ई. के लाल बलुआ पत्थर के अखंड बिलासड़ पर मिला था। बिलसड उत्तर प्रदेश के एटा जिले में तीन भागों से मिलकर बना एक गाँव है। ऐसा प्रतीत होता है कि बिलसड में दो उत्कीर्ण स्तंभों का एक मंदिर से सीधा संबंध था, जो अब बर्बाद हो चुका है। शिलालेख का उद्देश्य कार्तिकेय के मंदिर की सिद्धि , उसकी प्रतोली और एक सत्र की स्थापना को रिकॉर्ड करना है । यह गुप्त शासक की वंशावली भी देता है ।बिलसड़ में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त के शासन काल 96 गुप्तसंवत का एक स्तंभ-लेख प्राप्त हुआ था। जिसमें ध्रुवशर्मन द्वारा, स्वामी महासेन (कार्तिकेय) के मंदिर के विषय में किए गए कुछ पुण्य कार्यों का विवरण है- सीढ़ियों सहित प्रतोली या प्रवेशद्वार का निर्माण, सत्र या दान-शाला की स्थापना और अभिलेख वाले स्तंभ का निर्माण किया गया था।।संभवत: चीनी यात्री युवानच्वांग ने इस स्थान का 'विलोशना' या 'विलासना' नाम से उल्लेख किया है। जो इस स्थान पर 642 या 643 ई. में आया था।
दुर्लभ और जटिल शंख लिपि:-
शंख लिपि प्राचीन लिपियों में से एक है, जो आज भी एक अनसुलझी पहेली बनी हुई है। इनमें लिखित अभिलेख आज तक नहीं पढ़े जा सके हैं। भारत तथा जावा और बोर्निया में प्राप्त बहुत से शिलालेख शंख लिपि में हैं। इस लिपि के वर्ण 'शंख' से मिलते-जुलते कलात्मक होते हैं। इसीलिए इसे शंख लिपि कहते हैं। शंख लिपि को विराटनगर से संबंधित माना जाता है। उदयगिरि की गुफाओं के शिलालेखों और स्तंभों पर यह लिपि खुदी हुई है। इस लिपि के अक्षरों की आकृति शंख के आकार की है। प्रत्येक अक्षर इस प्रकार लिखा गया है कि उससे शंखाकृति उभरकर सामने दिखाई पड़ती है। इसलिए इसे शंख लिपि कहा जाने लगा। राजस्थान के जयपुर में स्थित बिजार अथवा बीजक की पहाड़ियों में बड़ी संख्या में ऐसी कंदराएं हैं, जिनमें एक रहस्यमय लिपि उत्कीर्ण है। इस लिपि को अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है। शंख लिपि के नाम से जानी जाने वाली इस लिपि के लेख बड़ी संख्या में बीजक की पहाड़ी, भीम की डूंगरी तथा गणेश डूंगरी में बनी गुफाओं में अंकित हैं। इन लेखों के अक्षर शंख की आकृति के हैं। वैज्ञानिकों को इस लिपि के अभिलेख भारतीय उपमहाद्वीप के भारत, इण्डोनेशिया, जावा तथा बोर्निया आदि देशों से मिले हैं, जिनसे यह धारणा बनती है कि जिस तरह किसी कालखंड में सिंधु लिपि जानने वाली सभ्यता भारतीय उपमहाद्वीप में विकसित हुई थी, उसी तरह शंख लिपि जानने वाली कोई सभ्यता किसी काल खण्ड में भारतीय उपमहाद्वीप में फली-फूली। ये लोग कौन थे? इनका कालखंड क्या था? आदि प्रश्नों का उत्तर अभी तक नहीं दिया जा सका है। भारत में शंख लिपि के अभिलेख उत्तर में जम्मू- कश्मीर  के अखनूर से लेकर दक्षिण में सुदूर कर्नाटक तथा पश्चिमी बंगाल के सुसुनिया से लेकर पश्चिम  गुजरात  के  जूनागढ़ तक उपलब्ध हैं । ये अभिलेख इस लिपि के अब तक ज्ञात विशालतम भण्डार हैं। राजगीर की प्रसिद्ध सोनभंडा की गुफाओं में लगे दरवाजों की प्रस्तर चौखटों पर एवं भित्तियों पर शंख लिपि में कुछ संदेश लिखे हैं, जिन्हें पढ़ा नहीं जा सका है। बिहार में मुण्डेश्वरी मंदिर तथा अन्य कई स्थानों पर यह लिपि देखने को मिलती है। मध्य प्रदेश में उदयागिरि की गुफाओं में, महाराष्ट्र में मनसर से तथा बंगाल एवं कर्नाटक से भी इस लिपि के लेख मिले हैं। इस लिपि के लेख मंदिरों एवं चैत्यों के भीतर, शैल गुफाओं में तथा स्वतंत्र रूप से बने स्तम्भों पर उत्कीर्ण मिलते हैं।
आगरा सर्किल की नवीन उपलब्धि:-
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा सर्किल के अधिकारियों की टीम ने एटा के बिलसड़ में वैज्ञानिक ढंग से उत्खनन में गुप्त कालीन 5वीं सदी के मंदिर के अवशेष खोज निकाले हैं। लाल बलुई पत्थर की मंदिर की सीढ़ियां और शंख लिपि में लेख प्राप्त हुआ है, जिस पर सम्राट कुमार गुप्त के लिए श्री महेंद्रादित्य लिखा हुआ है। बिलसड़ के टीले पहले से ही भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित साइट है, लेकिन वैज्ञानिक ढंग से उत्खनन में मिले इन अवशेषों से बिलसड़ का समृद्धशाली इतिहास सामने आ पाएगा। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा सर्किल के अधीक्षण पुरातत्वविद वसंत कुमार स्वर्णकार के नेतृत्व में पुरातत्वविदों की टीम ने गुप्तकालीन 5वीं सदी के अवशेषों को जमीन के नीचे से निकाला है। यहां लाल पत्थर का फर्श और पांच सीढ़ियां मिली हैं, जो मंदिर की हैं। गुप्तकालीन सम्राट कुमार गुप्त ने 415 ई. से 455 ई. तक शासन किया था। उसी दौरान उन्हें श्री महेंद्रादित्य की उपाधि दी गई थी। अति प्राचीन शंख लिपि में इस उत्खनन के दौरान शिलालेख पर यही श्री महेंद्रादित्य लिखा हुआ मिला है।
पुरातत्वविदों के मुताबिक बिलसड़ में और भी वृहद इतिहास जमीन में दबा हुआ है। साइंटिफिक क्लीयरेंस में टीले के आसपास और भी अवशेष मिल सकते हैं। इससे पहले 1960 के दशक में बिलसड़ में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने उत्खनन किया था, जिसमें लाल बलुई पत्थर के स्तंभ और उस पर लेख मिले थे। 

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