अयोध्या में अनेक मंदिर भी राम सखा/राम सखी सम्प्रदाय से अपने को जोड़ रखे है। सनातन धर्म के मुख्यत पांच संप्रदाय माने जा सकते हैं- 1. वैष्णव, 2. शैव, 3. शाक्त, 4 स्मार्त और 5. वैदिक संप्रदाय। वैष्णव संप्रदाय के उप संप्रदाय - वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं- जैसे बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माध्व, राधावल्लभ, सखी, गौड़ीय आदि। सखी सम्प्रदाय तो सनातन काल से ही राम सखा राम सखी सीता सखी कृष्ण सखा कृष्ण सखी राधा सखी आदि विविध रुपों में पुराणों व भक्ति साहित्य में पाया जाता है। यहां अष्ट राम तथा अष्ट जानकी जी सखियों के नाम को आत्मसात करती हुई अनेक मंदिरों की संरचना व अराधना हो रही है।
जनकपुर
में अष्ट जानकी सखियां
जनकपुर भ्रमण पर निकले श्रीराम-लक्ष्मण को देख अष्ट सखियां एकत्र हो
जाती हैं। जनकपुर में सीताजी की सखियों का वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस
प्रकार व्यक्त किया है। कहती हैं, हे सखी इनकी मनोहारी शोभा देख आंखे टिक नहीं पा रही हैं और किसी से
कुछ कहते नहीं बन रहा। हम तीनों श्रेष्ठ देवताओं (ब्रहृमा, विष्णु, महेश) से इनकी
तुलना करें तो विष्णु के चार बांह, ब्रहृमाजी के चार मुख और पंचमुख शिव जी के हैं किंतु इनके जैसी छवि
किसी देवता में नहीं। तीसरी सखी ने कहा, जानकी के योग्य इससे सुंदर वर और कोई नहीं हो
सकता। हे सखी, यदि
राजा जनक ने इनको देख लिया तो निश्चय ही वे अपने प्रण का त्यागकर सीता का विवाह
इनसे कर देंगे। चौथी सखी कहती है, हे सखी, राजा जनक ने इन्हें पहले ही पहचान लिया है। तभी तो मुनि समेत इनका
आदर सम्मान किया है। पांचवी सखी कहती है कि हे सखी, यदि विधाता ने चाहा तो जनक जी को सीता के वर के
रूप में यही मिलेंगे। छठी सखी ने कहा, इस विवाह से सबका भला होगा। सातवीं सखी ने कहा, महादेव जी का
धनुष बड़ा कठोर है और ये श्यामल किशोर अवस्था के बहुत कोमल हैं। आठवीं
सखी कहती है, ये
देखने में छोटे हैं किंतु इनका प्रभाव बहुत बड़ा है। जिनके चरण कमल की धूल लगते ही
पाप से भरी अहिल्या तर गई उसके आगे शिवजी का धनुष क्या है। सभी सखियां पुष्प वर्षा
करती हैं। यह विश्व प्रसिद्ध रामनगर की रामलीला के चौथे दिन सोमवार को पीएसी परिसर
के पास जनकपुर में श्रीजनकपुर दर्शन, अष्ट सखी संवाद, फुलवारी आदि प्रसंग पर आधारित लीला के मंचन का दृश्य था।
अयोध्या
में सीताजी की सखियां
मंदिर के गर्भगृह के पास ही शयन स्थान है जहां भगवान राम शयन करते
हैं। इस कुन्ज के चारों ओर आठ सखियों के कुंज हैं। जिन पर उनके चित्र स्थापित किए
गये है । सभी सखियाँ की भिन्न सेवायें हैं जो भगवान के मनोरंजन तथा क्रीड़ा के लिये
प्रबन्ध करती थी उनके नाम इस प्रकार है। अयोध्या के कनक भवन में रामजी की सखियों
की तरह सीताजी की आठ सखियों का मनोहारी चित्रण मिलता है।इन आठ सखियाँ श्री सीताजी
की अष्टसखी कही जाती हैं उनमें श्री चन्द्र कला जी, श्री प्रसाद जी, श्री विमला जी, मदनकला जी, श्री विश्वमोहिनी, श्री उर्मिला जी
, श्री
चम्पाकला जी, श्री
रूपकला जी हैं। इन श्री सीताजी की सखियों को अत्यन्त अन्तरंग कहा जाता है। ये श्री
किशोरी जी की अंगजा हैं। ये प्रिया प्रियतम की सख्यता में लवलीन रहती हैं।
आनन्द-विभोर की लीलाओं में, मान आदि में तथा उत्सवों में निमग्न रहते हुए दम्पति को विविध प्रकार
से सुख प्रदान करती हैं। मान्यता है कि किशोरी जी प्रतिदिन श्रीराम को उनके भक्तों
अर्थात भक्तमाल की कथा सुनातीं है। इसी भावना के तहत भक्तमाल की पुस्तक भी रखी
रहती है। उर्मिला जी का नाम व चरित्र हिन्दी साहित्य में किसी से छिपा नहीं है।
मैथिली शरण गुप्त का साकेत इस का प्रमाण है। अयोध्या में रुपकला कुंज सखी रुपकला
को समर्पित है जो गोला घाट में स्थित है।
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