राष्ट्रवाद
लोगों की आस्था का नाम :- राष्ट्रवाद लोगों के किसी समूह की उस आस्था का नाम है जिसके तहत वे
ख़ुद को साझा इतिहास, परम्परा, भाषा, जातीयता और संस्कृति के आधार पर एकजुट मानते हैं।
इन्हीं बंधनों के कारण वे इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि उन्हें आत्म- निर्णय के आधार
पर अपने सम्प्रभु राजनीतिक समुदाय अर्थात् ‘राष्ट्र’ की स्थापना करने का आधार है। राष्ट्रवाद
के आधार पर बना राष्ट्र उस समय तक कल्पनाओं में ही रहता है जब तक उसे एक राष्ट्र-राज्य
का रूप नहीं दे दिया जाता। हालाँकि दुनिया में ऐसा कोई राष्ट्र नहीं है जो इन कसौटियों
पर पूरी तरह से फिट बैठता हो, इसके बावजूद अगर विश्व की एटलस उठा कर देखी जाए तो धरती
की एक-एक इंच ज़मीन राष्ट्रों की सीमाओं के बीच बँटी हुई मिलेगी। राष्ट्रवाद के आधार
पर बने कार्यक्रम और राजनीतिक परियोजना के हिसाब से जब किसी राष्ट्र-राज्य की स्थापना
हो जाती है तो उसकी सीमाओं में रहने वालों से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी विभिन्न
अस्मिताओं के ऊपर राष्ट्र के प्रति निष्ठा को ही अहमियत देंगे। वे राष्ट्र के कानून
का पालन करेंगे और उसकी आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए अपने प्राणों का बलिदान भी
दे देंगे। यहाँ यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि आपस में कई समानताएँ होने के बावजूद
राष्ट्रवाद और देशभक्ति में अंतर है। राष्ट्रवाद अनिवार्य तौर पर किसी न किसी कार्यक्रम
और परियोजना का वाहक होता है, जबकि देशभक्ति की भावना ऐसी किसी शर्त की मोहताज नहीं
है। राष्ट्रवाद के ज़्यादातर आलोचक राष्ट्र की सीमा में रहने के लिए ही विवश नहीं हैं,
पर उनमें से कई हस्तियाँ किसी न किसी राष्ट्र की स्थापना में योगदान करते हुए नज़र
आती हैं। राष्ट्रवाद विभिन्न विचारधाराओं को भी अपने आगोश में समेट लेता है।
गांधी का राष्ट्रवाद मुस्लिम तुष्टीकरण :- गांधी की दृष्टि में राष्ट्रवाद का अर्थ सिर्फ मुस्लिम तुष्टीकरण था । सन 1921 के खिलाफत आंदोलन को गांधी ने समर्थन देकर मुसलमानो में कठमुललापन , कट्टरता , और धर्मांधता बधाई ही , साथ ही उन्हे हिन्दुओ के नरसंघार करने को प्रेरित करते रहे ... मालबार में
मोपाला मुसलमानो ने लगभग 22 हजार हिन्दुओ को बड़ी क्रूरता से कत्ल कर दिया । लेकिन गांधी को इस हिन्दुओ के नरसंघार से कोई दुख नहीं हुआ , बल्कि गांधी ने उसका समर्थन करते हुये कहा की में समझता था मुस्लिम अपने मजहब पर अमल कर रहे है। एक मदांध मुसलमान अब्दुल रसीद ने 23 दिसंबर 1923 को स्वामी श्रध्द्धानंद सरस्वती
जी की हत्या कर दी थी , लेकिन गांधी ने इस जघन्य
हत्याकांड की निंदा करना तो दूर , हत्यारे को
प्यारे रसीद कहकर संबोधित किया । इतना ही नही
जब अंग्रेज़ सरकार ने अब्दुल रसीद को फासी की सजा सुनाई तो गांधी ने तत्काल रसीद के लिए सरकार से क्षमा और दया की भीख मांगी , जिसे अंग्रेज़ सरकार ने अस्वीकार कर दिया । लेकिन इसी गांधी ने देश के अमर शहीदो सरदार भगत सिंह , व उनके साथियो को फांसी की
सजा न देने के लिए वायसराय से प्रार्थना करने
से इंकार कर दिया था। यह कहकर कि भगत सिह और
उसके हिंसा के अपराधी थे , यहा तक कि गांधी
ने भगत सिंह को आतंक का पर्याय बताते हुये
फासी की सजा को उचित ठहराया था गांधी को कभी यह याद
नहीं रहा कि भारत हिन्दू बाहुल देश है । गांधी
अंग्रेज़ो कि तरह मुसलमानो का पक्ष लेते रहे
तथा उनकी अलगाववादी मांगो को बढ़ावा देते रहे।16 अगस्त
1946 को जिन्ना के डायरेक्ट एक्शन के तहत कलकतते में 20 हजार हिन्दुओ की मुसलमानो द्वारा हत्या कर दी गयी । उस समय बंगाल में मुस्लिम लीग की सरकार थी । तब तत्काल गांधी ने मुसलमानो की रक्षा के लिए (हिन्दुओ की नहीं ) पहले राजा जी को वह का राज्यपाल नियुक्त करवाया , फिर स्वयं पाहुचकर वहा सुहारवर्दी के साथ रहने लगे और आमरण अनशन शुरू कर दिया ताकि हिन्दू लोग मुसलमानो को न मारे बल्कि मुसलमानो की रक्षा करे ।
विभाजन के समय विभेद :- 1947 में जब भारत विभाजन
के समय पाकिस्तान में हिन्दुओ और सिक्खो की
जघन्य हत्याए हो रही थी , ट्रेनों में , बसो
में हिन्दुओ और सिक्खो कि औरतों बच्चो , बूढ़ो,
जवानो को बड़े बेरहमी से कत्ल करके लाशे हिंदुस्तान
भेजी जा रही थी तब गांधी ने हिन्दुओ और सिक्खो को सलाह दी कि तुम मुस्लिम हत्यारो के प्रति प्रेम भावना प्रदर्शित करो . 23 सितंबर
1947 की प्रार्थना सभा में गांधी ने कहा था
– में अपने परामर्श को फिर दोहराता हू ,हिन्दुओ और सिक्खो को भारत नहीं आना चाहिए , वही मर जाना चाहिए । सितंबर 1947 में पाकिस्तान ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया था और वह हिन्दुओ तथा सिक्खो को काटा जा रहा था लेकिन गांधी पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपया दिलाने के लिए आमरण अनशन पर बैठ गए और भारत से पाकिस्तान को 55 करोड़ रुपया दिलवाकर ही दम लिया ।
मुसलमानो के कार्यो कि प्रशंसा की:- गांधी
नेअपने सारे जीवन में केवल मुसलमानो के कार्यो कि प्रशंसा ही की है उसे हिन्दुओ को मुसलमानो द्वारा गाजरमुली कि तरह कटवाने में मजा
आता था । सदैव मुसलमानो को खून खराबे के लिए प्रेरितही करता रहा ( उनका साथ देकर )
. फिर उसे हम कैसे अहिंसावादी या महात्मा कह सकते हा ?ये तो गांधी की काली करतूतों
की झलक मात्रहै ...अगर उसके जीवन कि पूर्णकारगुजारियों को सामनेला दिया जाये ...तो
गांधी एक क्रूर , हिंसक ,दुरात्मा , राष्ट्र के प्रति , सनातन धर्म केप्रति , हिन्दुओ
और सिक्खो के प्रति गद्दारऔर एक मक्कार चरित्र के अलावा और कुछनहीं है ... गांधी कि
महात्मागिरी एक छलावा और धोखा थी ...गांधी का
अहिंसा का नारा केवल हिन्दुओ को नपुंसक बनाने,
और उन्हे भेड बकरियो कि तरह कटवाने के लिए था
, जैसे अहिंसा तो कदापि नहीं कहा जा सकता ।
गांधी अगर अहिंसा प्रिय था तो उसने हमेशा मुस्लिमो
के दुराचारो का औरघोर हिंसक करित्यों का कभी विरोध क्यो नहीं किया ? बल्कि हमेशा समर्थन ही
किया ।अपने ब्रांहचर्या के प्रयोग के लिए अपनी
जवान पोतियो के साथ , खुद नंगा होकर , अपनी
पोतियो को नंगा करके उनके साथ सोने वाले गांधी
को , आश्रम कि महिलाओ को नंगा करके उनके साथ
सोने वाले उस गांधी को सिर्फ और सिर्फ
विवेकहींन ,भ्रांतिपूर्ण मनुष्य ही अपना आदर्शमान सकते
है ।
स्कूली किताबो मे
कारनामों का जिक्र
:- महात्मा
गाँधीजी की कुछ उन असलियत के बारे में जाने, जो हमें हमारी स्कूली किताबो मे पढ़ने को
नही मिलता है. हमें
तो यही पढ़ाया गया है कि गांधी जी की अहिंसा नीति से डरकर अंग्रेजो ने देश छोड़ दिया
था. हमें उन असंख्य बलिदानियों तथा अमर सपूतों के बीरता की कहानी नहीं बताई जाती जो
हंसते हंसते फांसी के फन्दे पर लटक गये थे. आज उन परिवार का कोई बन्दा अपने पूर्वजों
के बीरता की कीमत को देशकी जनता से वसूलते नहीं देखा जा सकता है. गांधीजी ने जो कुछ
किया उसका सबसे ज्यादा फायदा केवल कांग्रेस और वह भी नेहरु परिवार ने पीढ़ी दर पीढ़ी
उठाया है. देश में गांधीजी के केवल अच्छे काम को ही प्रकाशित तथा प्रसारित किया जाता
रहा है। आज हम कुछ एसे कारनामों का जिक्र करेंगे कि आप कम से कम गांधीजी का नाम उतनी
श्रद्धा से ना ले सकेंगे.
अखंड भारत को तीन हिस्सो मे तोड़ने की स्वीकृति :- आजादी
के बाद अखंड भारत को तीन हिस्सो मे तोड़ने की
स्वीकृति इसी गाँधीजी ने दी थी. सरदार पटेल की जगह नेहरू को प्रधानमंत्री बनाने
के लिए भी गाँधीजी ने ही कहा था. ये वही गाँधीजी हैं जिसने सुभाष चंद्र बोस का कांग्रेस
के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिलवाया था. जब नेहरू की बेटी इंदिरा एक मुस्लिम के साथ शादी
कर चुकी थी और नेहरू ने उसे अपने घर से, अपने नाम से,अपनी हर चीज से बेदखल कर दिया
था, तब इसी गाँधीजी ने इंदिरा और फिरोज को अपना उपनाम देकर गाँधी बनाया ताकि गाँधी
के नाम पर ये इस देश को अंग्रेजो की तरह लूटते रहे. जब सरदार भगतसिंह को फाँसी होने
वाली थी तो गाँधीजी और नेहरू ही वो शख्स थे जो इस फाँसी को रुकवा सकते थे. गाँधीजी
ने ही भगतसिंह की फाँसी रुकवाने की बजाए उसकी फाँसी की तिथि बदलवाकर पहले करवा दिया
था ,क्योकि अंग्रेज एक हफ्ते के अंदर सभी क्रांतिकारियो को रिहा करने वाले थे और भगतसिंह
उस वक्त इतने लोकप्रिय हो गए थे कि लोग उनकी एक आवाज पर अपनी जान दे देने को तैयार
थे।. गाँधीजी को अपनी दबती हुई छवि मंजूर नही थी. नेताजी सुभाष चंद्र बोस जिनकी एक
आवाज पर लोगो ने अपने गहने जेवरात बेचकर 24 घंटे के अंदर लाखो रुपए इकठ्ठे कर लिए थे
सुभाष का साथ देने के लिए, उस लोकप्रिय सुभाष को गाँधीजी और नेहरू ने मिलकर भारत से
बाहर भेजकर एक गुमनामी की जिंदगी जीने के लिए मजबूर कर दिया और उनकी मृत्यु की झूठी
खबर फैला दी ताकि लोगो की सुभाष के लिए बढ़ती आवाज को दबा सके, क्योकि वह नही चाहते
थे कि आजादी के समय गाँधी से ज्यादा कोई और लोकप्रिय नेता हो.
कांग्रेस सरकार ने गांधीजी के नाम की माला :-
सत्तर साल तक कांग्रेस सरकार ने गांधीजी के नाम की माला जपते जपते सत्ता से चिपक कर
देश की इस प्रकार की दुर्गति कर दी है कि हम आज अपना शिर उठाकर नहीं जी सकते हैं. हमारे
देश की प्रतिभाओं को अपना हुनर दिखाने के लिए विदेशों की शरण लेनी पड़ती है. उन विदेशी
सरकारों द्वारा दी जाने वाली तमाम प्रकार की जिल्लतें भी सहनी पड़ती है. वर्तमान भाजपा
सरकार भी कांग्रेस के नक्शेकदम पर चलते हुए गांधीजी के असलियत से परदा ना उठाकर उन्हें
ही महिमा मण्डितकर सत्ता से जुड़ा रहना पसन्द करती है. अब समय आ गया है जब गांधीजी के
इन दुराग्रहों का पर्दाफाश किया जाय . उन्हें राष्ट्रपिता के सम्मान से मुक्त किया
जाय. इस देश में महापुरुषों की कमी नहीं है. किसी और को राष्ट्रपिता के लिए चयनित किया
जाय. इतना ही नहीं उनके द्वारा लाभ पहुचाये गये दल व परिवार का भी परदाफाश किया जाना
चाहिए. यही लोकतंत्र की पहचान है और आवश्यकता भी.
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