स्वामी
ज्ञानस्वरूप सानन्द भारत के प्रसिद्ध पर्यावरणप्रेमी रहे उनका मूल नाम जी. डी. अग्रवाल
था। 2009 में भागीरथी नदी पर बांध निर्माण रुकवाने के लिये उन्होने अनशन आरम्भ किया
था जो सफल रहा। वे आई आई टी, कानपुर के सिविल इंजीनियरिंग और पर्यावरण विभाग में प्राध्यापक,
केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में प्रथम सचिव और राष्ट्रीय नदी संरक्षण निदेशालय
के सलाहकार रह चुके हैं। सम्प्रति वे महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय
में पर्यावरण विज्ञान के मानद प्राध्यापक (ऑनरेरी प्रोफेसर) हैं। चित्रकूट के एक छोटे
से कमरे में सादगी और स्वावलंबन को संजोकर ज्ञान बांटने वाले प्रो. अग्रवाल का कार्य
सराहनीय रहा। एक सन्यासी और एक गंगापुत्र के रूप में प्रो. अग्रवाल ने जिस दृढ़ संकल्प
का परिचय दिया उससे सरकार उत्तरकाशी के ऊपर तीन बांध परियोजनाओं को रद्द करने को विवश
हुई और भगीरथी उद्गम क्षेत्र को पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील घोषित करना पड़ा। वह कहते
है कि गंगा उनकी मां है। वह मां के लिए अपनी जान दे सकते हैं वह मां का सौदा नहीं कर
सकते जिसको लेकर वह व्यथित थे। वह अनेक बार अनशन कर चुके हैं। 81 वर्ष की उम्र वाले
प्राण पर संकट देकर सरकार ने जी. डी. को मर जाने दिया। गंगा तट और गंगा आंदोलनकारियों
की जद से दूर नर्मदा के उद्गम पर। यह एक मां के लिए एक पुत्र का बलिदानी कदम है।स्वामी
सानंद का यह कोई पहला अनशन नहीं है। इससे पूर्व भी वह कई बार मृत्यु के करीब जाकर लौट
चुके हैं।
अनशन पर चुप्पी :-
उनकी सेहत बिगड़ने लगी है.इसके कहीं कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई नहीं दे रही न राज की
ओर से, न समाज की ओर से और न गंगा संरक्षण के नाम पर नित गठित हो रहे नये संगठनों की
ओर से। सर्वश्री शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती, गोविंदाचार्य, उमा भारती, स्वामी
रामदेव, आचार्य जितेन्द्र और स्वामी चिन्मयानंद से लेकर राजेन्द्र सिंह तक। गंगा प्राधिकरण
के विशेषज्ञ सदस्य, आईआईटीयन समूह, माटू संगठन, गंगा समग्र. किसी ने कोई प्रतिक्रिया
नहीं दी। उनसे मिलने इनमें से कोई अमरकंटक नहीं पहुंचा। खबरों को सूंघने के लिए मशहूर
मीडिया की नाक भी वहां नहीं पहुंची।
स्वामी निगमानंद की मौत से नहीं सीखा सबक :- बहुत संभव है कि यह अनशन स्वामी सानंद का निजी फैसला
हो सकता है । क्या गंगा के लिए प्राण-प्रण से लगे कार्यकर्ताओं की चिंता किए बगैर गंगा
संरक्षण के आंदोलनों को एक और मजबूती दी जा सकती है? अनशन के पीछे है स्वामी सानंद
की खिन्नता। उनका अनशन स्थगित कराया गया, सरकार ने वे पूरे नहीं किए। इससे पूर्व
23 मार्च, 2012 को जब अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली जवाहरलाल नेहरु
सभा कक्ष में शहद मिला गंगाजल पिलाकर स्वामी सानंद का अनशन स्थगित कराया गया तब स्वामी
श्री ज्ञानस्वरूप सानंद को संबोधित कुल जमा दो पेज का एक दस्तावेज और उस पर हुए चार
हस्ताक्षर लाये थे।
बार-बार मिला धोखा :-उल्लेखनीय
है कि सरकार की ओर से लिखित में यह भी कहा गया था कि विषय से जुड़े कुछ मुख्य मसले,
जिन्हें भिन्न बैठकों में स्वामी सानंद द्वारा मौखिक तौर पर सरकारी प्रतिनिधियों को
बताया गया हो। क्या यह सब हुआ? अब तक नहीं! स्वामी सानंद के ताजा अनशन का कारण यही
है। सवाल सिर्फ एक गंगापुत्र के जीवन को बचाने का नहीं है सवाल सामाजिक आंदोलन और आंदोलनकारियों
के प्रति सामाजिक विश्वास को बचाने का है।
एक और भगीरथ चला गया :- चैंपियन ऑफ
द अर्थ की नाक के नीचे एक और अनर्थ हो गया. अपने जीवन काल में गंगा को साफ होते देखने
की चाह रखने वाले प्रो. जी डी अग्रवाल का निधन हो गया. 17 साल तक आईआईटी कानपुर के
सिविल एंड एन्वायरेन्मेंटल इंजीनियरिंग पढ़ा चुके प्रो. अग्रवाल ने न जाने कितने छात्रों
को इस विषय के प्रति जागरूक किया. मीडिया और राजनीति को भी गंगा के बारे में बताया.
वो गंगा के लिए भगीरथ बन कर आए थे मगर राजनीति और सिस्टम की उदासीनता ने उनकी जान ले
ली. समाज भी उदासीन ही रहा. आईआईटी कानपुर का प्रोफेसर, 86 साल की उम्र में 111 दिनों
का उपवास करे, लेकिन एक ईमानदार प्रयास के साथ कोई नहीं आया. न गंगा बची न जी डी अग्रवाल
बच सके. 111 दिन के अनशन के बाद दम तोड़ दिया.. 22 जून 2018 से अनशन पर थे और अपनी मांग
ना माने जाने पर उन्होंने जल भी त्याग दिया था. इसके बाद हरिद्वार जिला प्रशासन ने
बुधवार को उन्हें कनखल के मातृसदन से जबरन उठा लिया. इस दौरान मातृसदन के आसपास धारा
144 तक लगा दी गई जिसकी कोई जरूरत नहीं थी. मातृसदन से जबरन ले जाकर प्रो. जीडी अग्रवाल को उन्हें एम्स ऋषिकेश
में भर्ती करा दिया गया. यहां भी उन्होंने अनशन के साथ जल त्याग जारी रखा लेकिन डॉक्टरों
के मनाने पर वो दवा के तौर पर पोटैशियम लेने को तैयार हो गए. 111 दिन के अनशन के बावजूद
उनकी तबीयत ऐसी खराब नहीं थी. उनकी मृत्यु के कारणों की जांच होनी चाहिए. प्रो. जीडी
अग्रवाल का निधन एक व्यक्ति का निधन नहीं है. ये एक संस्था का निधन है, प्रो. अग्रवाल
ने प्रधानमंत्री को कई बार पत्र लिखा. वे कुछ ठोस होते हुए देखना चाहते थे। जी डी अग्रवाल गंगा को लेकर
सरकार को उसके वादे की लगातार याद दिलाते रहे। कहते रहे कि गंगा की धारा को अविरल किया जाए, उसके रास्ते में बांध
बनाने बंद किए जाएं। गंगा के किनारे अवैध खनन बंद
कराया जाए, गंगा में गिर रही गंदगी को रोका जाए. इसके लिए गंगा को लेकर एक कानून बनाया
जाए जिसका एक ड्राफ्ट उन्होंने केंद्र सरकार को भेजा भी था. लेकिन उनका अनशन तुड़वाने
के लिए उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक अपने साथ गंगा और जल संसाधन
मंत्री नितिन गडकरी का जो आश्वासन लेकर आए उसमें कोई भी ठोस आश्वासन नहीं था. उन्होंने
जल त्याग कर दिया।
2016 में खुद
गंगा मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा कि बांधों से गंगा को जो
नुकसान हुआ है उसकी भरपाई नहीं की जा सकती. इसलिए बांधों पर रोक लगनी जरूरी है. लेकिन
सरकार ने इन्हें गंभीरता से नहीं लिया. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ डिजास्टर मैनेजमेंट की
एक रिपोर्ट में कहा गया था कि उत्तराखंड की विकास नीतियों ने डिजास्टर के लिए एक परफेक्ट
रेसिपि तैयार की है. राज्य में सड़कों के निर्माण, बांधों का निर्माण, अंधाधुंध टूरिज्म
को आपदा का जिम्मेदार ठहराया गया था. 2014 में रवि चोपड़ा कमेटी ने साफ कहा था कि गंगा
पर बने सभी बांधों ने अपूरणीय क्षति पहुंचाई है. इस कमेटी में कई जाने-माने वैज्ञानिक
और जानकार शामिल थे लेकिन सरकार ने इसे भी ठंडे बस्ते में डाल दिया. इसी साल की शुरुआत
में नीति आयोग ने कहा कि हिमालय में पानी के 60ः स्रोत सूखने की कगार पर पहुंच गए हैं.
इसी साल की फॉरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट कह रही है कि एक हजार मीटर से ऊपर वन
क्षेत्र घटता जा रहा है. जुलाई 2018 नेशनल ब्यूरो ऑफ सॉयल सर्वे एंड लैंड यूज प्लैनिंग,
नागपुर की रिपोर्ट आई है जिसमें कहा गया है कि करीब आधा उत्तराखंड अति गंभीर भू कटाव
की जद में है और मिट्टी का ये कटाव टॉलरेंस लिमिट से ऊपर है. सबसे खराब स्थिति गंगा
के कैचमेंट एरिया की है. यहां 40 से 80 टन प्रति हैक्टेयर प्रति वर्ष की दर से भू कटाव
हो रहा है जो गंभीर श्रेणी में है।
मौत से कुछ घंटे पहले गंगापुत्र की मांगें मान ली गई थीं :- गंगा को अविरल बनाने के लिए गंगा एक्ट की मांग को लेकर 22 जून 2018
से अनशन पर बैठे पर्यावरणविद प्रोफेसर जीडी अग्रवाल उर्फ ज्ञानस्वरूप सानंद का 11अक्तूबर
को निधन हो गया. प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिन से अनशन पर थे और उन्होंने 09 अक्तूबर
से जल भी त्याग दिया था. जिसके बाद 10 अक्तूबर को उन्हें प्रशासन ने जबरन उठाकर ऋषिकेश
के एम्स में भर्ती कराया, जहां 86 वर्षीय जीडी अग्रवाल ने अंतिम सांस ली. गंगा की अविरलता
के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले प्रोफेसर जीडी अग्रवाल का अनशन खत्म कराने के लिए
पिछले दिनों केंद्रीय मंत्री उमा भारती उनसे मिलने गई थीं और नदी विकास और गंगा संरक्षण
मंत्री नितिन गडकरी से उनकी फोन पर बात भी कराई थी. लेकिन प्रोफेसर अग्रवाल ने गंगा
एक्ट लागू होने तक अनशन जारी रखने की बात कही थी. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी
ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बाताया कि गंगा के ई-फ्लो के लिए केंद्र सरकार ने अधिसूचना
जारी की है. इसके तहत सभी बैराज को निर्देश दिए गए हैं कि उन्हें साल भर किस तरह से
गंगा में पानी छोड़ना है ताकि गंगा का प्रवाह निरंतर बना रहे और गंगा को अविरल बनाए
रखने के साथ ही निर्मल भी बनाया जा सके। गडकरी ने कहा कि उनकी 70-80 फीसदी मांगें मान
ली गई हैं। गडकरी ने यह भी बताया कि गंगा और उसकी सहायक नदियों पर कुछ पनबिजली परियोजनाओं
को रद्द करने की उनकी मांग थी. जिसके लिए सरकार सभी हितधारकों को साथ लाकर मामले को
जल्द से जल्द सुलझाने का प्रयास कर रही है. प्रोफेसर जीडी अग्रवाल गंगा को बांधों से
मुक्त कराने के लिए कई बार आंदोलन कर चुके थे. मनमोहन सरकार के दौरान 2010 में उनके
अनशन के परिणामस्वरूप गंगा की मुख्य सहयोगी नदी भगीरथी पर बन रहे लोहारी नागपाला, भैरव
घाटी और पाला मनेरी बांधों के प्रोजेक्ट रोक दिए गए थे, जिसे मोदी सरकार आने के बाद
फिर से शुरू कर दिया गया. सरकार से इन बांधों के प्रोजेक्ट रोकने और गंगा की अविरलता
बरकरार रखने के लिए गंगा एक्ट लागू करने की मांग को लेकर प्रोफेसर अग्रवाल अनशन पर
थे।
श्रद्धांजलियां :- प्रोफेसर अग्रवाल के निधन के बाद तमाम राजनीतिक हस्तियों
ने शोक व्यक्त किया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी केंद्रीय मंत्री उमा भारती कांग्रेस
अध्यक्ष राहुल गांधी तथा पूर्व केंद्रीय पर्यावरण मंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता जयराम
रमेश ने शोक व्यक्त किया है। अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद के अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया
ने कहा कि प्रोफेसर अग्रवाल चाहते थे कि प्रधानमंत्री गंगा को अविरल बनाने के उनके
प्रोजेक्ट को देखें। उन्होंने कहा प्रोफेसर अग्रवाल पिछले 111 दिन से अनशन पर थे और
कमजोर हो चुके थे. फिर भी उन्हें जबरन उठाया गया, ठीक वैसे ही जैसे कुछ दिनों पहले
अयोध्या से महंत परमहंस दास को हटाया गया. सरकार से उनसे बेहतर बर्ताव की उम्मीद थी।
इस महान क्षति की भरपाई संभव नहीं है।
No comments:
Post a Comment