(साभार :शोध प्रबंध - "बस्ती के छंदकार" लेखक: आचार्य डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' )
रीति कालीन परम्परा के सुकवि बलराम चतुर्वेदी श्रावण शुक्ल 5 संवत् 1922 विक्रमी को संत कबीर नगर के घनघटा तालुका के मलौली गाँव में बलराम चतुर्वेदी के पुत्र के रूप में पैदा हुए थे। हैसर बाजार धनघटा नगर पंचायत में गांव सभा मलौली शामिल हुआ है । इसे वार्ड नंबर 6 में रखा गया है। यह पूरे नगर पंचायत क्षेत्र के बीचोबीच स्थित है। यह एक प्रसिद्ध चौराहा भी है जो राम जानकी रोड पर स्थित है । यहां मलौली हॉस्पिटल और कई अन्य व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी बने हुए हैं। यहां पर नगर पंचायत का कार्यालय बन रहा है।
बलराम चतुर्वेदी श्री रामगरीब चतुर्वेदी 'गंगाजन' के गाँव में पैदा हुए थे। ये राम गरीब चतुर्वेदी 'गंगाजन' के प्रपौत्र रहे हैं । इनके पिता का नाम बेनी दयाल चतुर्वेदी था। ये तीन भाई थे - घन श्याम, ईशदत्त और बेनीशंकर इनके छोटे भाई थे। इनके छंदों पर रीति कालीन परम्परा का प्रभाव था। फुटकर छंदों के अतिरिक्त हनुमान शतक इनका बहु चर्चित कृति थी। उन्होंने 111 छंदों में हनुमान जी की स्तुति की है। उनकी भाषा ओजपूर्ण ब्रज भाषा है। छंदों में लालित्य है और काव्य में ओज। सभी छंद भक्ति से परिपूर्ण थे,परन्तु पांडुलिपि गायब हो गई है। कवि बलराम चतुर्वेदी मृत्यु संवत् 1997 विक्रमी को हुई थी।
जीवन में कभी-कभी ऐसी परेशानियां आ जाती हैं कि व्यक्ति बिल्कुल निराश हो जाता है। उसे समझ नहीं आता कि आखिर किस तरह से अपनी मुसीबतों से छुटकारा पाया जाया। ज्योतिष के मुताबिक घर में हनुमान जी की पंचमुखी तस्वीर लगाने से घर पर किसी तरह की विपत्ति नहीं आती है। हनुमान जी को संकटमोचन कहा जाता है। उनके स्मरण मात्र से हर तरह की समस्या से मुक्ति मिल जाती है। पंचमुखी हनुमान के पांचों मुख का अलग-अलग महत्व है। इसमें भगवान के सारे मुख अलग-अलग दिशाओं में होते हैं। पूर्व दिशा की ओर हनुमान जी का वानर मुख है जो दुश्मनों पर विजय दिलाता है।पश्चिम दिशा की तरफ भगवान का गरुड़ मुख है जो जीवन की रुकावटों और परेशानियों को खत्म करते हैं। उत्तर दिशा की ओर वराह मुख होता है जो प्रसिद्धि और शक्ति का कारक माना जाता है। दक्षिण दिशा की तरफ हनुमान जी का नृसिंह मुख जो जीवन से डर को दूर करता है।आकाश की दिशा की ओर भगवान का अश्व मुख है जो व्यक्ति की मनोकामनाएं पूरी करते हैं।
पंचमुखी हनुमान जी के विग्रह से संबंधित सुकवि बलराम चतुर्वेदी का एक छंद द्रष्टव्य है -
पूरब बिकट मुख मरकट संहारे शत्रु
दक्षिण नरसिंह जानें दानव वपुश को।
पश्चिम गरुण मुख सकल निवारै विष
उत्तर बाराह आनें सर्प दर्प सुख को।
ऊर्ध्व हैग्रीव पर यंत्र मंत्र तन्त्रन को
करत उच्चांट बलराम दीह दुख को।
बूत करतूत सुनि भागे जगदूत भूत
बंदों सो सपूत पवन पूत पंच मुख को।।
लेखक परिचय
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
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