Monday, October 28, 2024

नेताओं ने बस्ती का विकासअवरुद्ध किया आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी


भाजपा के पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी को हराकर बस्ती की जनता अपने पैर में कुल्हाड़ी मारी है। वर्तमान सांसद राम प्रसाद को जीताकर जनता अपनी भड़ास भले ही मिटा लिया हो पर उसे कुछ भी नहीं मिला। बस्ती का विकास जो विगत दस साल से अवाध गति से चल रही थी वह उसी स्थान पर पूर्ण रूप से अवरुद्ध हो गया है। शहर की सड़कें मालवीय और स्टेशन मार्ग पैदल चलनेमें भी दिक्कत है। बड़े बन कम्पनी बाग का चौड़ीकरण कच्छप गति से चल रहा है। कटरा आदि कई मोहल्ले में पानी की सप्लाई लगभग साल भर से अवरुद्ध है। शहर की लाइट का आना जाना लगा रहता है लेकिन दिन भर लाइट जलती रहती है। देश के विकास और पहचान में बस्ती जिले में शून्यता आ गई है।

विपक्षी की जीत में विकास रुका

इतिहास गवाह है, जब भी विपक्ष को कोई जीता तो जिले के विकास का नुकसान हुआ है।इसीलिए बार-बार यही कहा जाता रहा है कि उसी को जिताइए जिसकी केंद्र या राज्य में सरकार हो। सरकार विहीन जनप्रतिनिधि जनता और जिले के विकास के लिए कुछ नहीं कर पाते। पांच साल तक यही रोते  रहते हैं कि अगर उनकी सरकार होती तो कुछ करते। विपक्ष के जन प्रतिनिधि की दौड घर से सदन और सदन से घर तक रह जाती हैं। कुछ छोटे मोटे धरना प्रदर्शन तक ये सिमट जाते हैं। इनके हिस्से में सिर्फ अपनी अपनी सांसद, विधायक या पार्षद वाली निर्धारित निधियां का बन्दर बांट रह जाता है।जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज तक ना उठाता होऔर कार्यालय तक ना जा आता हो, उससे जनता और क्या उम्मीद करें?

जिले की जनता को क्या मिला

भाजपा प्रत्याशी किसलिए और क्यों हारे और सपा प्रत्याशी कैसे और क्यों जीते? यह पुरानी बात हो गई है। नई बात यह है, कि हरीश द्विवेदी को हराकर और राम प्रसाद चौधरी को जीताकर जिले की जनता को क्या मिला? जो विपक्ष का सांसद भरष्टाचार और अराजकता के खिलाफ आवाज ना उठा सके और विकास भवन स्थित अपने कैम्प कार्यालय में नियमित जनता दरबार ना लगा सके, उससे जनता क्या उम्मीद कर सकती है ?  सपा के तीनों विधायक तो यह जब से जीते हैं, तभी से यह रोना रोते आ रहे हैं, कि भाजपा की सरकार में उनकी कोई सुनने वाला नहीं, अब तो इन तीनों के साथ सुर में सुर मिलाने के लिए सांसद भी शामिल हो गए हैं । अब तो भाजपा वाले और भी नहीं सुनेगें।

सांसद और विधायक क्या करेंगे

एक सांसद और तीनों विधायक क्या करेंगे सवाल उठ रहा है कि आखिर में एक सांसद और तीनों विधायक क्या करेंगे? इसका मतलव यह हुआ है, कि तीनों विधायक और सांसद सिर्फ अपने निधि से ही जो विकास और भ्रष्टाचार करना होगा, वही कर पाएगें। सच यह है, कि यह लोग जनता को बेवकूफ बनाने के लिए रोना रो रहे हैं। इनसे कोई यह पूछे कि क्या भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ यह भी सही है कि अगर दोनों के स्थान पर और कोई मजबूत विकल्प होता तो कहानी कुछ और होती।

पूर्व भाजपाध्यक्ष का रोल 

अगर श्री दया शंकर मिश्र सपा में नहीं गए होते और अपनी टीम के साथ पूरी उर्जा सपा को जीताने में नहीं लगाते तो परिणाम कुछ और होता। जिस तरह भाजपा प्रत्याशी को हराने में सपा के लोगों का हाथ रहा, ठीक उसी तरह सपा प्रत्याशी को जीताने में श्री मिश्र का हाथ रहा। पूर्व भाजपा अध्यक्ष दयाशंकर मिश्र के रुप में जो जिलो के लोगों को विकल्प के रुप में मिला भी था, उन्हें भी कुछ लोगों ने अपने फायदे के लिए छीन तो लिया। पर छीनने वाले को भी फायदा नहीं हुआ। जनता अवश्य एक ऐसे नेता से वंचित हो गई, जिसकी प्रशसा विपक्ष भी करता था। जनता का यह भी मानना है, कि आवाज उठाने के लिए भी भाजपा की ही जरुरत पड़ेगी। यह लोग तब तक रोना रोते रहेगे, जब तक इनकी सरकार नहीं बन जाती, फिर तो यह लूटपाट में ही पूरी तरह से लग जाएगे। 

घर से सदन और सदन से घर तक

अब बस्ती के सांसद और विधायक लोगों की दौड़ घर से सदन और सदन से घर तक ही सीमित रह गई है। जिलो के विकास और जनहित समस्याओं की तो उसे जनता भूल ही जाए तो बेहतर होगा। सवाल उठ रहा है कि जिस जिले में सपा के तीन विधायक और एक साँसद हो और वह लोग जिले का विकास ना कर सके, या फिर जनता की समस्याओं का निस्तारण ना करा सके, भ्रटाचार को लेकर सड़क पर ना उतर सके।

मजबूत विपक्ष के होने का क्या लाभ

ऐसे मजबूत विपक्ष के होने का क्या लाभ? धीरे-धीरे लोगों को अब यह समझ में आने लगा कि उन्होंने हरीश द्विवेदी को हराकर और राम प्रसाद चौधरी को जिताकर गलत ही किया है। जिले की अधिकाश जनता यही कह रही है कि जनता के लोगों को हरीश द्विवेदी को हराना था, तो हरा दिया, राम प्रसाद चौधरी को जीताना था तो जीता  दिया। अब चाहे इसका खामियाजा जिले की जनता धोखे में रहे या फिर भ्रष्टाचार बढ़े, इससे हराने और जीताने वालों से कोई सरोकार नहीं रहा। आज भी  अगर जिले में उप चुनाव हो जाए तो परिणाम चौकाने वाला रहेगा। सपा का सफाया भी हो सकता है।

भ्रष्टाचार और विकास में सन्तुलन 

लोग कहते हैं कि हरीश द्विवेदी के कारण भ्रष्टाचार बढ़ा, लेकिन यह भी सच है कि इसी भ्रष्टाचार के बीच उन्होंने जितना भी हो सका जिले का विकास किया, जनता को सांसद के होने का यह हमेशा एहसास कराते रहे। इन्होंने जिले को कभी भी सांसद विहीन होने का एहसास नहीं होने दिया। भले ही इस विकास में उनके लोगों का हित छिपा रहा। यह भी सच है, कि पूरे देश में बस्ती की पहचान बनाने में हरीश द्विवेदी का बड़ा योगदान रहा, खेल सहित अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से जिस तरह यह देश के बड़े-बड़े नेताओं को लेकर बस्ती की धरती पर लाए, उसी के कारण बस्ती की पहचान बनी।  सांसद महाकुंभ खेल सफल कराने का श्रेय पूरे देश में इन्हीं को जाता है। रिंग रोड जैसा प्रोजेक्ट लाने का क्रेडिट इन्हीं को मिला, मेडिकल कालेज में सुविधा बढ़ाने के लिए भी हरीश जी सदा जाने जायेंगे। आस पास के अन्य जिलों के सांसद सपना ही देखते रहे। उपलब्धता और सरलता अगर विपक्ष को सीखना है, तो वह भाजपा के पूर्व सांसद हरीश जी से सीख सकते हैं। 

विपक्ष को जीताना सही नहीं 

आज यह जिले के कोने-कोने में कही और जा रही है, कि उन लोगों ने जिस उम्मीद के साथ राम प्रसाद चौधरी को जीताया, वह उम्मीद अभी तक पूरा नहीं हुआ, बल्कि इन्होंने  अपने होने का एहसास अभी तक जनता को नहीं कराया। रही बात तीनों विधायकों को तो इन तीनों की जीत में भी भाजपा वालों का ही सहयोग रहा। कहना गलत नहीं होगा, कि अगर भीतरघात का खेल ना होता तो जिला सपा विहीन रहता। जीते की हुए सपा का एक भी विधायक और सांसद ऐसा नहीं हैं, जो अपने दम पर चुनाव जीत सके। चारों की जीत में पार्टी का अपना काम  और भाजपा के भीतरवालों का का अधिक योगदान रहा। भाजपा अभी तक एक भी भीतर घातियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर पाई, जब कि चुनाव  समाप्त ही वड़े जोर-पोर से यह कहा जा रहा था, कि भीतर घातियों की पहचान हो गई है,जिसे से लेकर मंडल स्तर की जा रही है, जल्द ही भीतर घातियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई होगी। यही बात 2022 के कम विधान सभा चुनाव में भी पार्टी ने कहा था, अगर उसी समय कार्रवाई कर दी गई होती तो 2024 में भीतर घातियों की संख्या ना बढ़ती, और तब शायद भाजपा प्रत्याशी को हार ना होती।


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)

Friday, October 25, 2024

बहेरिया का कुवां फिरोजपुर झंझरी, स्वामी नारायण छपिया :: आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


छपिया के नैरित्य कोण पर फिरोजपुर गांव है । फिरोजपुर ग्राम पंचायत गोंडा जिला परिषद के झंझरी पंचायत समिति भाग में एक ग्रामीण स्थानीय निकाय है । फ़िरोज़पुर ग्राम पंचायत क्षेत्राधिकार के अंतर्गत कुल 3 गाँव हैं। इसी गांव में यह बहिरिया का प्रसादी कुवां है। इसमें बालप्रभु घनश्याम के छोटे भाई इच्छाराम एक बार गिर गए थे तो बालप्रभु ने अपने चमत्कार से उनकी जान बचाई थी।
      एक बार इस गांव में नट लोग आए थे। वे अपना करतब दिखा रहे थे। घनश्याम और इच्छाराम भी मित्रों के साथ रात में वहां गए हुए थे। खेल देखकर वे देर रात अंधेरे में घर लैट रहे थे। इच्छाराम का ध्यान भंग होने से वह इसी कुएं में गिर गए। इतने में एक बनिए के लड़के को बोला हे हरि कृष्ण हे घनश्याम! इच्छाराम बहेरिया के कुएं में गिर गए हैं।
      यह सुन कर घनश्याम कुएं की तरफ़ दृष्टि डाली तो तुरन्त पानी सूख गया और पाताल में चला गया। इच्छाराम कुंए से बोले' “हे घनश्याम भाई आप की दया से मैं स्वस्थ हूं। मुझे किसी प्रकार की चोट नहीं लगी है।”
      इतने में छपिया गांव में यह बात फैल गई कि इच्छाराम बहेरिया के कुंए में गिर गए हैं। इस बात को सुन कर धर्म पिता तत्काल बहेरिया के कुएं पर आकर घनश्याम प्रभु से पूंछा, “इच्छाराम भाई कहां हैं?”
      इतने में कुएं से इच्छा राम ने आवाज लगाई ,” हे धर्म पिता! मैं कुएं में हूं। मैं घनश्याम प्रभु की कृपा से सकुशल हूं।”
       इतने में घनश्याम महराज ने कुएं में हाथ डाल कर इच्छारामभाई को बाहर निकाल दिए। 
       यह दृश्य देख कर छपियावासी अत्यन्त चकित हो गए। तब से यह कुंवा प्रसादी का स्थल हो गया और लोग इसका दर्शन करने यहां पर आने लगे।

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
(नोट : कृपयाअपने विचार और प्रतिक्रिया ब्लाग की वॉल पर नीचे दिए कमेन्ट कॉलम में करें। जिसका अनुसरण कर आगे इसका परिमार्जन किया जा सकेगा।)


मोक्ष वाले पीपल से दिव्य अवलोकन स्वामी नारायण छपिया :: आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


यह घटना बाल प्रभु के आठ वर्ष के उम्र की संबत 1845 विक्रमी की है। छपिया के नैरित्य कोण फिरोजपुर के गांव को सीमा लगती है। यहां उपवन वाटिका बहुत था। यह स्थान रेलवे स्टेशन के तरफ़ जाने वाले मार्ग पर पड़ता है। एक बार घनश्याम प्रभु झट से एक पेड़ पर चढ़ गए और चारो तरफ़ दृष्टि डाली थी। यह जानने के लिए कि मोक्ष के भागी मुमुक्षु जीव किस तरफ हैं? तब से इस पीपल का नाम मोक्ष पीपल पड़ गया।
     जब घनश्याम प्रभु इस पीपल के पेड़ पर चढ़ गए और चारो तरफ़ दृष्टि डाले थे। वे पश्चिम दिशा की ओर काफी देर तक देखते रहे।
   उनके साथ आए बच्चे खेल रहे थे। खेल लगभग ख़त्म ही होने वाला था कि उनके एक दोस्त ने उन्हें दूर से पेड़ पर बुलाया, वह उन्हे गहरे विचारों में खोए हुए देखा। उन्होंने उन्हें नीचे बुलाया और उनकी स्थिर दृष्टि का कारण पूछा।
    गहराई के गहन उत्तर ने उनके अवतार के उद्देश्य को चिन्हित रूप से समेटा। उन्होंने कहा, "मैं पश्चिम की ओर देख रहा था, जहां हजारों भक्त मेरे आगमन की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे मेरे आने और एकांतिक धर्म की स्थापना की प्रतीक्षा कर रहे हैं। वे अपने मोक्ष की प्रतीक्षा कर रहे हैं।" 
      इसी पेड़ की एक और घटना घटी है। घनश्याम को अक्सर इस विशाल पेड़ से लगाव था।वे समय पाकर इसकी ऊंचाई पर चढ़ जाते और आसमान और चारों तरफ़ देखते विचारों में खोए खोए से रहते थे। एक बार उनके साथ उनके मामा वसराम तिवारी भी थे। जो उन्हें देख कर टोकते हुए बोले,” हे भांजे! क्या देख रहे हो? नीचे आ जाओ। कहीं गिर पड़े तो हड्डी टूट जाएगी।”
     तभी घनश्याम महराज हंसते हंसते बोले,”मैं और मेरे भक्त मुमुक्षु जीव नहीं गिरेंगे।” ऐसा कह कर घन श्याम प्रभु ने मामा को पीपल के पेड़ के पत्ते पत्ते पर अलग अलग किस्म के फल दिखाए। मामा यह चमत्कार देख आश्चर्य में पड़ गए। उन्हें अनेक फल देखने और खाने की इच्छा हुई।
    मामा बोले, “भांजे दो चार फल हमें भी दो।”घनश्याम महराज ने उन्हें प्रेम पूर्वक फल प्रदान किया।
   मामा उन फलों को लेकर मामी लक्ष्मीबाई आदि बहनों को दिए थे और भांजे घनश्याम महराज के चमत्कार की जानकारी भी दिए थे। इसे सुनकर और फल देख कर सभी लोग आश्चर्य में पड़ गए थे। ऐसी सुन्दर लीला प्रभु ने इस स्थान पर की थी। तभी से यह प्रसादी स्थल माना जाने लगा।

         आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
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Thursday, October 24, 2024

भूतवाला कुआं, तिनवा,स्वामी नारायण छपिया :: आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


छपैया से थोड़ी 2 किमी दूर पर तिनवा नाम का एक गांव है, जहां भक्तिमाता के रिश्तेदार रहते थे। ये भूत वाला कुंवा तिनवा गांव के बाहर एक बाग में स्थित है।
भक्ति माता इस कुंए से पानी भरने आई हुई थी।
     उस गांव में नबाब के सैनिक आए थे जो उत्पात करते थे। यह देख कर धर्मदेव एक दिन भक्तिमाता, धर्मदेव , राम प्रताप भाई और घनश्याम तिनवा गए और अपने रिश्तेदार प्रथित पांडे और उनकी पत्नी वचनबाई के साथ एक-दो हफ्ते वहां रहे। भक्तिमाता को मेहमान माना जाता था, लेकिन उन्होंने घर के सभी कामों में मदद करना शुरू कर दिया - यहां तक कि पास के कुएं से पानी लाना भी।
     वचनबाई ने भक्तिमाता को चेतावनी दी कि शाम के बाद उन्हें कुएं से पानी लाने नहीं जाना चाहिए क्योंकि कुएं में हजारों भूत रहते हैं। कई लोगों ने भूतों को देखा था।
     एक शाम सूर्यास्त के ठीक बाद, पीने का पानी पर्याप्त नहीं था (खत्म हो गया था) इसलिए भक्तिमाता ने एक घड़ा और रस्सी ली और वह कुएँ की ओर चल पड़ी। उसने घड़े की गर्दन के चारों ओर रस्सी बाँधी और उसे कुएँ में उतार दिया। भूतों ने घड़े को पकड़ लिया और डरावनी तेज़ आवाज़ें निकालने लगे। भक्तिमाता घबरा .गई और अचानक उसे भूतों के बारे में याद आया। उसने घड़ा छोड़ दिया, जो कुएँ में गिर गया, और वह जल्दी से घर भाग गई।    
         अपनी माँ को डर से काँपते हुए देखकर, घनश्याम ने पूछा, "माँ, तुम इतनी डरी हुई क्यों हो?" फिर भक्तिमाता ने अपने बेटे को कुएँ में भूतों के बारे में बताना शुरू किया।
      अगले दिन अपने माता-पिता को बताए बिना, घनश्याम और उसके कुछ दोस्त भूत कुएँ पर चले गए। अपने दोस्तों के डर से, उसने कुएँ में कूदने की इच्छा व्यक्त की। उन्होंने यह कहकर उसे हतोत्साहित करने की कोशिश की कि भूत उसे ज़िंदा खा जाएँगे। 
     घनश्याम ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया और कुएँ में कूद गया। पानी के छींटे भूतों को जगाते थे और घनश्याम द्वारा छुआ गया पानी उन पर गिर रहा था। भगवान द्वारा छुआ गया पानी पवित्र जल है और जब यह भूतों पर पड़ा तो वे जलने लगे। 
     भूत कुएँ से बाहर निकल आए। भूतों को बाहर निकलते देखकर बच्चे बहुत डर गए। घनश्याम अपने गीले कपड़ों के साथ कुएँ पर चढ़ गया, वह कुएँ के किनारे पर खड़ा था।
        भूत-प्रेत क्षमा और दया की गुहार लगाने लगे - "आप भगवान हैं। कृपया हमारी सहायता करें"। 
     घनश्याम ने पूछा कि उन्होंने कौन से बुरे कर्म किए हैं, जो उन्हें भूतों का जीवन मिला है?
      एक भूत ने उत्तर दिया कि वे बुरे लोग थे - वे मांस खाते थे, शराब पीते थे, जुआ खेलते थे, चोरी करते थे, लोगों को परेशान करते थे और उन्हें चोट पहुँचाते ,जानवरों और मनुष्यों को मारते थे, आदि। 
   एक दिन उनका राजा और उसके सैनिकों के साथ झगड़ा हुआ। वे सभी लड़ाई में मारे गए और अपने पापों के कारण भूत बन गए। 
     एक अन्य भूत ने कहा, "हम अभी भी कुएं में जगह के लिए एक-दूसरे से लड़ते हैं।"
      भूतों ने विनती की "हे भगवान, कृपया हमें क्षमा करें और हमें हमारे बंधन से मुक्त करें"। 
     घनश्याम ने उन्हें उनके बंधन से मुक्त किया और बोले, “जिन जिन के ऊपर पानी की बूंदें पड़ी है। वे लोग बद्रीकाश्रम में जाएं। आज से यह भूतिया कुंवा महान तीर्थ के रुप में प्रसिद्ध होगा।”कुएं में एक भी भूत नहीं बचा और फिर घनश्याम घर लौट आया।
     यह खबर जल्दी ही पूरे गांव में फैल गई और हर कोई घनश्याम की प्रशंसा करने लगा। घनश्याम ने पापियों को मुक्ति दिलाने, सत्य का प्रचार करने और बुराई का नाश करने के लिए जन्म लिया था।
आज उनके भक्त इस कुएं को 'भूतियो कुवा' के नाम से जानते हैं। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में इस कुवें में स्नान करने से तथा नारायण सरोवर के किनारे बैठ कर श्राद्ध करने से भूत आदि के कष्ट से मुक्ति मिलती है। नरक प्राप्त जीवों का भी कल्याण हो जाता है।

      आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी 
  
लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)
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Tuesday, October 22, 2024

कल्याण सागर का जल जीवन दायिनी आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


कल्याण सागर तालाब छपिया मंदिर से एक किमी दूर नरेचा गांव के पश्चिम दिशा में स्थित है। यह स्वामी नारायण जी की प्रसादी की एक छतरी है। इस कल्याण सागर के जल में घनश्याम महराज के वचनामृत से मृत शरीर को तैरते छोड़ देने पर जीवन दान मिला था।

प्राचीन समय में राजा नरेचा के राजा सनमान सिंह के पुत्र की शादी थी। राज महल में आनन्द के गीत गाए जा रहे थे। सरोवर के किनारे राजा के आदमी आतिश बाजी और बंदूक की हर्ष फायरिंग कर रहे थे। इस माहौल को देख कर अगल बगल लोग भीड़ लगा कर आनन्द ले रहे थे। यहां पर उसी समय घनश्याम महराज अपने मित्रों के साथ आए हुए थे। एक सिपाही की बंदूक से गलती से गोली छूटते ही दो व्यक्ति की मृत्यु हो गई थी। यह समाचार जब राज महल में गया तो आनन्द की जगह पूरे राज महल में शोक छा गया।

      राजा को याद आया कि घनश्याम महराज को सभी लोग भगवान कहते हैं। मैं उनके पास जाकर बिनती करता हूं। वे महाराज जी के पास जाकर दोनों हाथ जोड़ कर बोले, “हे प्रभु! आप सर्व नियंता हैं। इन दोनों की मृत्यु के कारण शोक व्याप्त हो गया है। इन दोनों को जीवन दान दे दें तो अच्छा रहेगा।”

        घनश्याम महराज बोले, “एकदम आदमी मृत्यु को नहीं प्राप्त होता है। आप के महल के आगे जो सरोवर है। उसमें दोनों मृतक शरीर को लिटा दें। पानी के स्पर्श से दोनों लोग जीवित हो जाएंगे।”

विश्वास रखकर राजा ने ऐसा ही किया। घनश्याम महाराज पत्थर पर खड़े होकर दोनों का नाम पुकारे, “हे गदाधर! हे 

पृथ्वीपाल!आप लोग पानी में क्यों सो रहे हो? पानी से बाहर आओ।” इतना सुनते ही दोनों लोग आलस छोड़ कर उठ खड़े हो गए।

    दोनों लोग घनश्याम महराज के पास आकर प्रार्थना करने लगे, “हे भगवान! हम लोग इस सरोवर के जल से आप के धाम को प्राप्त हो गए थे। इतने में आप आदेश दे दिए कि हम इस देह में ही वापस आ गए।”

        यह सुनकर सनमान सिंह को यह विश्वास हो गया। बाद में राजा ने घनश्याम और उनके मित्रों को राज महल में स्वागत किया। उन्हें एक अच्छे आसन पर बैठाया गया था। राजा रानी ने मोती के थाल से, चन्दन पुष्प से पूजन किए थे। उन्हें दूध शक्कर और चीउरा इत्यादि खिलाए। घनश्याम महराज की विदाई करते समय रानी ने सुन्दर वचनों से प्रार्थना की, “हे प्रभु! आप काल के भी काल हैं। दीन दयाल हैं। आज आपने हमारी इज्ज़त रख ली। आप हमें परलोक में भी काल, कर्म और माया से रक्षा करना।”

     प्रभु ने इस प्रकार अपना आशीर्वाद भी दिया। “इस सरोवर ने दो मानव का कल्याण किया है। इस कारण से यह सरोवर कल्याण सरोवर के नाम से प्रसिद्ध होगा।”

     इस स्थान का स्वामित्व इस समय स्वामी नारायण छपिया के ट्रस्ट के अधीन है। यह बहुत ही उपेक्षित रूप में है। कच्चे घाट जलकुंभी और अन्य जलीय वनस्पतियों  से ढका हुआ है। इसे सरसरी निगाह से देखने पर कोई दिव्यता का रूप नहीं दिखाई देता। विशाल आकर का साइनेज तो देखा जा सकता है। पर इसकी महत्ता जैसा इसे नहीं रखा गया है। मन्दिर प्रशासन को इसके पुनरुद्धार के लिए प्रयास किया जाना चाहिए।

       आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी 

  

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

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Sunday, October 20, 2024

हनुमान जी का मंदिर, नरेचा ,छपिया आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी

नरेचा गांव के कल्याण सागर नामक तालाब के सामने हनुमान जी का यह मन्दिर प्रतिष्ठित है। बालप्रभु के जन्म के छ्ठी के दिन कालीदत्त राक्षस ने बाल प्रभु को मां से छीन कर गायब कर दिया था, तब हनुमान जी ने प्रभु की रक्षा की थी।

आषाढ़ संवत 1837 चैत सुदी चौदस दिनांक 8 अप्रैल 1781को छठी के अवसर पर धर्म भक्ति भवन छपिया में बाल प्रभु घनश्याम को गायब करने की घटना घटी हुई थी।

   माता भक्ति बालक के जन्म के छठे दिन  अपने कर्तव्यों में इतनी व्यस्त थीं कि वे अपने बच्चे को खुद के गोद में नहीं ले सकीं थीं । यद्यपि वह उनके लिए उनकी आत्मा से भी अधिक प्रिय था। उन्होंने अन्य छोटे बच्चों को अपने बच्चे की देखभाल करने के लिए दे दिया था तथा अतिथि महिलाओं की यथायोग्य सेवा में लग गई थी । 

     इस शुभ घड़ी में भीड़-भाड़ को देख कर कालीदत्त राक्षस ने अपने मंत्र से अभिमंत्रित पुतरियों को उत्पन्न किया था, जो बालक को उठा कर आकाश मार्ग से चलने लगी थी। इसे देख मां भक्ति देवी ने क्रंदन किया तो परिवार के सब लोग जग गए थे। बाल प्रभु ने अपना भार इतना बढ़ा दिया कि पुतरियों ने बालक को जमीन पर रख वहां से भागने लगीं थीं। 

    उसी समय प्रभु की इच्छा से हनुमान जी ने पुतरियों को ताड़ित करना शुरू कर दिया था। वे प्रभु की शक्ति समझ हनुमान जी से प्राण दान मांगी। कालीदत्त को उन

पुतरियो ने बहुत फटकारा। जो अपनी जान बचाकर जंगल में छिप गया था। तभी हनुमान जी ने बाल प्रभु को उठाकर मां की गोद में सुरक्षित लौटा दिया था।

    तभी से यह मंदिर यहा प्रतिष्ठित किया गया है। श्री घनश्याम जी महराज के माता भक्तिमाता पिता धर्मदेव हमेशा हनुमान जी पूजा करने आया करते थे।

        आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

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Saturday, October 19, 2024

खम्पा तलावड़ी, तेंदुवा रानीपुर,छपिया की लीला (पेड़ के ठूठ से जख्म):आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी


खम्पा तलवाडी एक तालाब /पोखर है जहाँ घनश्याम (स्वामीनारायण)  स्नान करते थे और पास की कुटिया में एक संत से रामायण की कहानियाँ सुनते थे। पोखर के पास एक इमली का पेड़ हुआ करता था। इसी पर चढ़ कर एक बार खेलते समय वे घायल हो गए थे, जिससे उनके शरीर पर निशान पड़ गया था।

   यह छपैया के उतर की ओर तरगांव के नैरित्य कोण पर स्थित है। इस तालाब के तट पर हरिदास जी की परम कुटी में राम कथा होती थी। धनश्याम और उनके मित्र वहां जाकर कथा सुनते तालाब में स्नान करते और तरह - तरह की लीला करते रहते थे। वे गोपालों को बाल कृष्ण जैसे दर्शन और लीला दिखाते थे।

   यहां एक छोटी  झील है जिसे अब खम्पा तलावड़ी (झील) के नाम से जाना जाता है। यह पूरे साल पानी से भरी रहती है। झील के आस-पास के क्षेत्र में कई पेड़- पौधे और खूबसूरत फूल हैं और यहाँ हमेशा ताजे फूलों की खुशबू आती रहती है। इस वजह से यह सभी स्थानीय बच्चों के खेलने-कूदने की पसंदीदा जगह बन गई है। 

     झील के किनारे एक छोटी सी झोपड़ी थी, जिसमें हरिदासजी नाम के एक बाबा रहते थे। उनके रामायण के पाठ इलाके में बहुत मशहूर थे और अक्सर बहुत सारे लोग उनके पाठ सुनने के लिए इकट्ठा होते थे।

     एक दिन घनश्याम स्वामी नारायण और उनके दोस्त वेणीराम, प्राग जी, सुखनंदन और दूसरे लोग यहां खेलने और मौज-मस्ती करने आए। घनश्याम ने बाबा जी को कथा करते देखा और अपने दोस्तों को पहले कथा सुनने के लिए राजी किया। सभी बच्चों की तरह उन्होंने कुछ देर तक कथा सुनी और फिर झील में तैरने के लिए उठ गए। तैरते समय उन्हें फूलों की मीठी सुगंध आई और उन्होंने पूछा कि यह सुगंध कहां से आ रही है। 

      सुखनंदन ने कहा कि यह चमेली के फूल की सुगंध है, इसलिए कुछ फूल तोड़कर बच्चों ने एक माला बनाई और उसे घन श्याम के सिर पर रख दिया।

    साधु बाबा इस दर्शन को पाकर अपने को धन्य माना। संयोग से उसी  समय, गायों का एक झुंड, जो वहां से गुजर रहा था। घन श्याम प्रभु ने उसे बुलाया तो गाय का झुंड वहां रुक गया और घनश्याम के दर्शन के लिए उनके चारों ओर इकट्ठा हो गया। ग्वाले ने गायों को आगे बढ़ाने की कोशिश की लेकिन वे घनश्याम के पास से हिली नहीं। 

      घनश्याम ने कुछ देर तक झुंड को धीरे से सहलाया और इमली के पेड़ पर चढ़ कर लम्बा हाथ करके दूसरी ध्वनि निकाल कर गायों से  कहा, "अब तुम जा सकते हो"। गायों ने उसकी आज्ञा का पालन किया और ग्वाले के साथ चली गईं।

बच्चों ने फिर से अपना खेल जारी रखा और घनश्याम आषाढी सम्वत 1845 के दिन जामुन के वृक्ष पर चढ़ गए थे। (कहीं कहीं इमली के पेड़ पर चढ़ने का उल्लेख आता है।) वह कुछ देर तक वहाँ खेलता रहा। जब घनश्याम पेड़ से उतर रहा था, तो उसका पैर फिसल गया । 

   गिरते समय पेड़ से एक ठूठ उसकी दाहिनी जाँघ में लगा और वह धड़ाम से ज़मीन पर गिरा। जांघ से खून की धारा निकल पड़ी ,जो रुकने का नाम नहीं ले रही थी। 

    दूसरे बच्चों ने देखा कि घाव से खून बह रहा है और वे बहुत डर गए, इसलिए उनमें से एक भागकर घर गया और घनश्याम के पिता धर्मदेव को बुलाया। 

जब वह गया हुआ था, तो अचानक एक तेज़ रोशनी चमकी और भगवान के वैद्य अश्विनीकुमार घाव का इलाज करने के लिए देवलोक से नीचे आए। उन्होंने घाव पर दिव्य औषधि लगाई और उस पर एक सूती पट्टी बाँधी। सूती कपड़ा वेणीराम ने दिया था, क्योंकि देवलोक में केवल रेशम ही होता है।

    धर्मदेव और राम प्रताप जल्दी से देखने आए कि क्या हुआ था और धर्मदेव ने पूछा कि दवा किसने लगाई और पट्टी किसने बाँधी। 

    घनश्याम ने जवाब दिया कि कुछ लोगों ने घाव का इलाज किया था और धर्मदेव से कहा कि वह शोर न मचाए, क्योंकि वह ठीक है। 

   धर्मदेव और रामप्रताप फिर घनश्याम को घर ले गए, घनश्याम ने जोर देकर कहा कि वह पैदल घर जा सकता है।

घर पर भक्तिमाता और सुवाशिनी भाभी चिंतित थीं और घनश्याम के आने का इंतज़ार कर रही थीं। जब वे पहुँचे तो भक्तिमाता ने घनश्याम को गले लगाया और पूछा कि क्या हुआ है। 

   घनश्याम ने कहा, "दुखी मत हो क्योंकि मुझे कोई चोट नहीं लगी है"। उसने पट्टी हटाई और भक्तिमाता ने देखा कि उसकी जांघ पर सिर्फ़ एक छोटा सा निशान था - घाव ठीक हो गया था। यह अश्विनीकुमार द्वारा लगाई गई दिव्य औषधि के कारण था। भक्तिमाता और सुवाशिनी भाभी अब खुश थीं।

   खपड़े यानी खापो वाली इस घटना के बाद से ही इस झील को खापा तलावड़ी के नाम से जाना जाता है। 

     आज यहां कोई झोपड़ी नहीं है, कोई बाबा नहीं है और न ही जामुन/इमली का पेड़ है, लेकिन इस घटना की याद दिलाने के लिए एक छोटी सी छतरी' जरूर है।

इस दिव्य चरित की विशेष महिमा है। इस चरित्र का वर्णन खुद प्रभु ने अपने 37वें वचनामृत में किया है।



         आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)

Friday, October 18, 2024

स्वामीनारायण ने अंधों को दृष्टि दी थी आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी

 

श्रवण पाकड़ तलावड़ी 

श्रवण पाकड़ तलावड़ी गुरु नानक चौक के पास झांझरी ब्लॉक, गोण्डा, में स्थित है। अयोध्या से करीब 35 किमी. की दूरी पर, श्रवणपाकर एक पौराणिक ऐतिहासिक स्थल है। यहां त्रेता युग में राजा दशहरा के दिन बाण से घायल होकर श्रवण कुमार ने अपना प्राण त्याग दिया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार त्रेता युग में भ्रमण के दौरान श्रवण कुमार इसी स्थान पर माता पिता के साथ विश्राम के लिए रुके थे। श्रवण कुमार ने यहां पाकड़ की दातुन करके फेंक दिया था। बाद में यहां पाकड़ का एक विशाल पेड़ तैयार हो गया। इस कारण इसे श्रवण पाकड़ नाम से जाना जाता है।

      कथाओं के अनुसार इस जगह पर वह माता-पिता को बैठा कर उनकी प्यास बुझाने के लिए पानी लेने निकले थे।जहां सरोवर पर उन्हें अयोध्या के राजा दशरथ का शब्दभेदी बाण लगा था। यहां पर प्रति वर्ष माघ महीने में विशाल मेला लगता है। 

      श्रवण तलावड़ी नामक इस तालाब में साल में एक बार मेला लगा था। इस मेले में तालाब में स्नान करना महत्वपूर्ण माना जाता था। इसलिए धर्मदेव और अन्य लोग मेले में आए। युवा घनश्याम भी उनके साथ गये थे।

   एक भिक्षुक (तपस्वी) संत उस तालाब के किनारे विशिष्ट मुद्रा में बैठे थे। उनके साथ कुछ अंधे व्यक्ति बैठे थे और उनसे विनती कर रहे थे: "हे भिक्षुक, हमें दृष्टि दीजिए।"  भिक्षुक ने कहा, "मुझे पैसे दीजिए और मैं अपने मुंह से एक फूंक मारकर आपको दृष्टि दूंगा।"

"हे भले आदमी, हम आपको पैसे कैसे दे सकते हैं? हमारे पास पैसे नहीं हैं। हम भीख मांगकर अपना गुजारा करते हैं। फिर भी हमें एक दिन में एक बार खाना मिलता है और चार बार भूखे मरते हैं। हम पैसे कहां से लाएँ?" भिक्षुक ने कहा, "तो फिर चले जाओ।" 

   घनश्याम ने यह घटना खुद देखा था। उन्हे यह बहुत बुरा लगा। उन्होंने उन अंधों को रोका जो निराश होकर जा रहे थे। उसने उनसे कहा: "हे भक्तों, निराश मत हो। भगवान दयालु हैं।"

अंधे ने कहा, "जब आप ऐसा कहते हैं, तो हमें लगता है कि भगवान सचमुच दयालु हैं। हम उनकी एक झलक पाने के लिए प्रतीक्षा कर रहे हैं।"

 घनश्याम ने उनकी आँखों को अपने कोमल हाथ से सहलाया और कहा: "क्या आप कुछ देख सकते हैं?" 

अंधे ने खुशी से चिल्लाया, "हाँ, हम देख सकते हैं, हाँ, हम इसे टिमटिमाते हुए देखते हैं। हम युवा कन्हैया को देखते हैं। वह अपने पैरों को मोड़कर खड़ा है, और वह बांसुरी बजा रहा है। ओह, क्या अद्भुत बांसुरी बजा रहा है!" "आज से आप हमेशा कन्हैया को देख सकेंगे और उसकी बांसुरी सुन सकेंगे। मुझे बताओ, क्या आप कुछ और देखना चाहते हैं?" घनश्याम ने कहा। "नहीं," अंधे ने कहा, "सब कुछ इसी में है।" भगवान में दृढ़ विश्वास (भरोसा) सभी परेशानियों का इलाज है।

   गुजरात, महाराष्ट्र सहित अन्य प्रांतों से आने वाले स्वामीनारायण संप्रदाय के हरिभक्त छपिया मंदिर में दर्शन करने के बाद यहां आकर दर्शन करते हैं।

   हर साल अयोध्या में माघ मास में आयोजित मेले में हजारों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं और यही लोग अयोध्या से श्रवणपाकर में भी आयोजित मेले में दर्शन के लिए आते हैं।  

स्वामीनारायण ट्रस्ट द्वारा जीर्णोद्धार

इस स्थान पर स्थित श्रवण मंदिर एवम पोखरे का जीर्णोद्धार स्वामी नारायण ट्रस्ट के द्वारा स्थापित किया गया है। इस पवित्र स्थली पर दूर-दराज से लोग अंत्येष्टि क्रिया के दर्शन करने आते हैं। उतर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा पर्यटन संवर्धन योजना के तहत मंदिर व पोखरे के जीर्णोद्धार के लिए 50 लाख रुपये की स्वीकृति प्रदान करते हुए करीब 23 लाख रुपये का बजट जारी कर दिया है। इसके बावजूद भी इसके आसपास काफी विकास की आवश्यकता है। इस पावन स्थली पर दूर-दराज से लोग अंत्येष्टि क्रिया सम्पन्न करने आते हैं। अतः यहां पर एक शमशान घाट भी जरूरी है।

  

         आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय


(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं. वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास   करते हुए सम-सामयिक विषयों, साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। मोबाइल नंबर +91 8630778321, वर्डसैप्प नम्बर+ 91 9412300183)