भारत से सटा समुद्रअपने आप में कई रहस्य समेटे हुए हैं। समुद्र के नीचे आज भी ऐसी कई साइट्स दबी हुई हैं जिनके बारे में कम लोगों को जानकारी है। कुछ वर्षों पहले एक ऐसी ही जगह की खोज हुई थी जिसके बारे में हर कोई हैरान था। ऐसी ही है गुजरात के एतिहासिक द्वारका नगरी । जिसके प्रमाण आज भी गहरे समुद्र में मौजूद है।
सप्त पुरी चार धाम में शामिल
द्वारका धाम हिंदू धर्म के चारों धामों में से एक है। यह गुजरात के काठियावाड क्षेत्र में अरब सागर के द्वीप पर स्थित है। इस नगरी का धार्मिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक महत्व है। ऐसी मान्यता है कि मथुरा छोड़ने के बाद अपने परिजनों एवं यादव वंश की रक्षा हेतु भगवान श्रीकृष्ण ने भाई बलराम तथा यादववंशियों के साथ मिलकर द्वारका पुरी का निर्माण विश्वकर्मा से करवाया था। यदुवंश की समाप्ति और भगवान श्रीकृष्ण की जीवनलीला पूर्ण होते ही द्वारका समुद्र में डूब गई मानी जाती है। इस क्षेत्र का प्राचीन नाम कुश स्थली था। धार्मिक दृष्टि से द्वारका को चार धाम और सप्तपुरियों में भी गिना जाता है।
आज की द्वारिका से अलग
आज वर्तमान में स्थित द्वारका, गोमती द्वारका के नाम से जानी जाती है। यहां आठवीं शताब्दी में सनातन धर्म की रक्षा और प्रसार के लिए आदि शंकराचार्य ने द्वारकापीठ की स्थापना की थी। और अनेक मंदिरों वा धर्म स्थलों को निर्मित किया गया। आधुनिक वैज्ञानिक खोजों में भी इस क्षेत्र में रेत एवं समुद्र के अंदर से प्राचीन द्वारका के अवशेष प्राप्त हुए हैं। द्वारका की स्थिति एवं बनावट समुद्र के बीच द्वीप पर बने किले के समान है।
पौराणिक मान्यता है कि प्राचीन द्वारका नगरी खुद भगवान श्रीकृष्ण ने बसाई थी. जो एक वक्त के बाद समंदर में समा गई। द्वारकाधीश मंदिर के पुजारी मुरली ठाकर के अनुसार द्वारका 84 किलोमीटर में फैली दुर्गनुमा सिटी थी, जो गोमती नदी और अरब सागर के संगम के तट पर बसी थी।
पानी में डूबी द्वारका की जानकारी
प्राचीन द्वारका नगरी, कुछ दशक पहले तक काल्पनिक मानी जाती थी। पहली बार भारतीय वायु सेना के पायलटों की नजर, द्वारका के समुद्री अवशेष पर पड़ी, जो समुद्र में बहुत नीचे से उड़ान भर रहे थे। 1970 के जामनगर के गजेटियर में इस बात का उल्लेख मिलता है।आर्कियोलॉजिस्ट कहते हैं कि बीसवीं सदी के मध्य में पहली बार द्वारका नगरी को ढूंढने का प्रयास हुआ। 1960 के दशक में पहली बार डेक्कन कॉलेज पुणे ने यहां खुदाई की थी। आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने 1979 में एक और खुदाई की। जिसमें कई तरह के पात्र, घड़े, मिट्टी के बर्तनों के टुकड़े और कई दूसरे अवशेष मिले हैं ।
पुरातत्व विभाग के मुताबिक इस खुदाई में 500 से ज्यादा चीजें मिलीं, जिनकी डेटिंग से पता लगा कि यह 2000 साल से ज्यादा पुरानी हैं। पानी के अंदर पत्थर के बड़े-बड़े कॉलम, अवशेष जैसी चीजें मिलीं हैं।
2007 की खुदाई से बदला इतिहास
साल 2007 में पहली बार द्वारका में बड़े पैमाने पर खुदाई की गई। 200 मीटर के एरिया में खुदाई शुरू हुई थी ,फिर 50 मीटर का एरिया ऐसा मिला, जहां ज्यादा चीजें मिल रही थीं। इसके बाद दो नॉटिकल मील का हाइड्रोग्राफिक सर्वे किया गया, जिससे पता चला कि उस खास जगह नदी का प्रवाह लगातार बदल रहा है। इसके बाद उस जगह की ग्रेडिंग की गई और बाकायदा एक-एक ग्रेड की खुदाई और सर्वे शुरू हुआ था। इस खुदाई में पिलर, सिक्के, पात्र, बड़े-बड़े कॉलम जैसी चीजें मिलीं हैं। तमाम पत्थरों पर समुद्री घास जम गई थी। जब उन्हें हटाया गया तो वास्तविक आकार का पता चला था।
बड़े-बड़े लंगर मिले
द्वारका की खुदाई में कई बड़े-बड़े लंगर पाए गए, जिससे यह साफ हो गया कि द्वारका एक ऐतिहासिक बंदरगाह शहर था। कुछ आर्कियोलॉजिस्ट कहते हैं कि संस्कृत में द्वारका शब्द का मतलब ‘द्वार’ या ‘दरवाजा’ होता है। द्वारका की खुदाई में जैसी चीजें मिली हैं, उससे प्रतीत होता है कि यह प्राचीन बंदरगाह शहर भारत आने वाले विदेशी नागरिकों के लिए कभी दरवाजे की तरह प्रयुक्त होता था। इसने 15वीं से 18वीं शताब्दी के बीच अरब देशों से व्यापारिक संपर्क में अहम भूमिका निभाई होगी।
द्वारका नगरी कैसे समुद्र में समाई
राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान के पूर्व चीफ साइंटिस्ट डॉ. राजीव निगम के अनुसार
जब यह साफ हो गया कि समुद्र के नीचे शहर का अवशेष है तो हमने यह पता लगाने की कोशिश की कि आखिर यह डूबा कैसे होगा? पिछले 15000 साल के दौरान समुद्र के स्तर की पड़ताल की गई। इससे पता चला कि 15000 साल पहले समुद्र का स्तर, 100 मीटर नीचे हुआ करता था। 7000 साल पहले समुद्र का जल स्तर बढ़ना शुरू हुआ और करीब 3500 साल पहले समुद्र का स्तर, ऐसे लेवल पर पहुंच गया, जहां अभी है और ठीक इसी वक्त द्वारका नगरी डूबी होगी।
गांधारी के श्राप का रहस्य
यह तो हुई साइंस की बात, लेकिन द्वारका नगरी डूबने के पीछे कई पौराणिक मान्यताएं भी प्रचलित हैं। पहली मान्यता गांधारी के श्राप से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई और कौरव खत्म हो गए, तब गांधारी ने श्री कृष्ण को महाभारत का दोषी ठहराते हुए श्राप दिया कि उनके कुल का नाश हो जाएगा और यही श्राप द्वारका डूबने की वजह बनी।
महाभारत के 23वें और 24वें श्लोक के अनुसार जिस दिन श्रीकृष्णा 125 साल की आयु के बाद आध्यात्मिक दुनिया में शामिल होने के लिए पृथ्वी छोड़कर गए, उसी दिन द्वारका नगरी अरब सागर में डूब गई थी। यही वह समय था जब कलयुग की शुरुआत हुई थी।
एलियन अटैक का रहस्य
द्वारका के समंदर में डूबने की एक एलियन थ्योरी भी है। एलियन सिद्धांत में विश्वास रखने वाले कुछ वैज्ञानिक ऐसा भी मानते हैं कि प्राचीन द्वारका नगरी पर एक उड़ने वाली मशीन या यूएफओ द्वारा हमला किया गया था।यह लड़ाई तकनीक और शक्तिशाली हथियारों के साथ लड़ी गई थी। एलियन स्पेसशिप ने ऊर्जा हथियारों का इस्तेमाल किया और शहर पर हमला किया था, जो बिजली गिरने जैसा प्रतीत हो रहा था। यह हमला इतना विनाशकारी था कि हमले के बाद शहर का अधिकतर हिस्सा खंडहर में बदल गया। यद्यपि इस बात की वैज्ञानिक पुष्टि नहीं हो पाई है।
नींव की तलाश जारी
आर्कियोलॉजिस्ट और समुद्र विज्ञानी प्राचीन द्वारका नगरी के और राज जानने की कोशिश में जुटे हैं। वैज्ञानिक अब इस प्राचीन शहर की दीवारों की नींव की तलाश के लिए पानी के नीचे खुदाई की तैयारी कर रहे हैं, ताकि इस बात का सही-सही पता लगाया जा सके कि अवशेष कितने पुराने हैं।
18 लोगों के साथ आए थे कृष्ण
कहा जाता है कि कृष्ण यहां कुल18 लोगों के साथ आए थे। यहां उन्होंने द्वारिका को बसाया और पूरे 36 साल तक राज किया। उनके प्राण त्याग देने के साथ ही द्वारिका नगरी भी समुद्र में डूब गई थी। समुद्र में डूबी इस द्वारिका के दर्शन कराने के लिए अब गुजरात सरकार पनडुब्बी के जरिए वहां तक ले जाने की योजना पर काम कर रही है। हजारों साल पहले समुद्र में डूब चुकी द्वारिका के दर्शन के लिए यात्री पनडुब्बी अरब सागर में जाएगी।
पनडुब्बी से लोग करेंगे पुरातन द्वारका का दर्शन
मिली जानकारी के मुताबिक, गुजरात सरकार पनडुब्बी से लोगों को द्वारका का दर्शन कराएगी। राज्य के पर्यटन विभाग के मझगांव डॉक के साथ किए गए समझौते के मुताबिक. ट्रांसपेरेंट पनडुब्बी से लोग 300 फीट नीचे जाकर द्वारका नगरी के दर्शन कर सकेंगे। हालांकि, अभी करार प्राथमिक चरण में है।
कब तक शुरू होगा सबमरीन से पर्यटन?
माना जा रहा है कि साल 2024 यानी कि इस साल की दिवाली तक इस प्रोजेक्ट को साकार करने का लक्ष्य है, जिसमें सबमरीन में बैठकर समुद्र में 100 मीटर नीचे तक पर्यटकों को ले जाया जाएगा. समुद्र के नीचे लोग अंडर वॉटर मरीन लाइफ का मजा ले पाएंगे.
क्या है इस प्रोजेक्ट का लक्ष्य?
गुजरात पर्यटन के एमडी सौरभ पारदी ने बताया कि ये अपने आप में एक अलग तरह का प्रोजेक्ट है. उन्होंने कहा, इस प्रोजेक्ट की मदद से समुद्री पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा. इसका मुख्य लक्ष्य गुजरात में पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ ही वहां धार्मिक स्थान पर आ रहे पर्यटकों को और अधिक सुविधाएं देने का है.
मिली जानकारी के मुताबिक, सबमरीन में एक साथ 24 पर्यटकों के बैठने की व्यवस्था होगी और इसे दो अनुभवी पायलट और प्रोफेशनल क्रू के साथ भेजा जाएगा. बताया गया कि पानी के 300 फीट नीचे द्वारका आईलैंड की समुद्री विशेषताएं देखने को मिलेंगी. सबमरीन में बैठे हर व्यक्ति के पास व्यू विंडो रहेगी यानी कि वो खिड़की पर बैठकर बेहद करीब से इस नजारे का लुत्फ उठा सकेगा.
आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। )
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