सौर मंडल में ध्रुव तारा चमके मेरे आंगन में दीप्त हुआ।
वह सूर्य के कई गुना है बड़ा मेरा ध्रुव नन्हा अदना सा।
सप्त ऋषियों का सानिध्य उसे यहां भी सप्त प्राणी ही हैं ।
वह शास्वत नित्य चिरंतन है ये अंश व भौतिक नश्वर है ।।
वो आसमान में चमक रहा तुम घर आंगन में दीप्तिमान।
वो जग को अटल भक्ति देता तुम्हारा भी ना कम है मान।
वो सृष्टि का आदि अंत तुम भी कई पीढ़ी के जग महान।
वह वहां जमाता है धाक तुम यहां हो अपनों के सर्व मान।।
मेरे आंगन का कलरव तुम हृदय आकाश के तारक हो । ध्रुव सा हो जीवन के जगमग खुशियों के विस्तारक हो । । पूरे होंगे अब सारे काज तुम इन सब ही के सहायक हो।
अपने अपने सब कर्म करें तुम सब के कर्मों के प्रेरक हो।।
सुबह जल्द उठ जाते हो खुश नुमा माहौल प्रदायक हो।
रोते हो तुम यदा कदा घर आंगन के तुम चहचहावट हो।
तेरी आवाजें जब निकले परिसर में पूरे तुम गुंजायक हो।
घुव तारे जैसे जिद्दी दृढ़ तुम अपने मन की लीला करते।
हर कोई से मेलजोल बढ़ाते मनोरंजन भी भरपूर करते।
कभी चले बकैया कभी चलें सरककर कभी कभी बैठते।
ज्यादातर खड़े खड़े खेलें औरों से बिल्कुल जुदा रहते।।
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