पूजा से पूर्व और पूजा पश्चात कई कर्मकांडी नियमों का पालन करना होता है. इन्हीं में एक होती है आचमन की विधि. आचमन पूजा का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. पूजा से पहले आचमन करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि इसके बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है. आचमन का अर्थ होता है पवित्र जल ग्रहण करते हुए आंतरिक रूप से मन और हृदय की शुद्धि करना.पूजा, यज्ञ आदि आरंभ करने से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्र पढ़ते हुए जल पीना ही आचमन कहलाता है.किसी भी पूजा में आचमन करना सर्वथा आवश्यक माना गया है, ऐसा ना करने से पूजा का फल आधा माना जाता है वहीं ऐसा करने पर भक्तों को भगवान की दोगुनी कृपा प्राप्त होती है.
किसी भी पूजा-पाठ में शरीर का शुद्ध होना बहुत जरूरी होता है. शरीर को शुद्ध करने की इसी प्रक्रिया को आचमन कहा जाता है. आचमन का स्पष्ट अर्थ होता है पवित्र जल का पान करना. पूजा से पूर्व शुद्धि के लिए मंत्रोच्चारण के साथ शुद्ध जल को ग्रहण किया जाता है. शुद्ध जल को ग्रहण करने की यह प्रकिया ही आचमन कहलाती है.
आचमन की विधि :-
पूजा से पूर्व तांबे के पात्र में गंगाजल या पीने योग्य साफ-शुद्ध जल लेकर उसमें तुलसी की कुछ पत्तियां डालकर पूजा स्थल पर रखा जाता है और पूजा शुरु होने से पूर्व आचमनी (तांबे का छोटा चम्मच जिससे जल निकाला जाता है) से हाथों पर थोड़ी मात्रा में तीन बार यह जल लेकर अपने ईष्टदेव, सभी देवतागण तथा नवग्रहों का ध्यान करते हुए उसे ग्रहण किया जाना चाहिए। यह जल आचमन का जल कहलाता है. माना जाता है कि ऐसे आचमन करने से पूजा का दोगुना फल मिलता है. जल लेकर तीन बार निम्न मंत्र का उच्चारण करते हैं:- हुए जल ग्रहण करें-
आचमन के लिए मंत्र:-
आचमन के लिए शुद्ध जल ग्रहण करते समय मंत्रोच्चारण करना जरूरी होता है. आचमन करते समय-
‘ॐ केशवाय नम:
ॐ नाराणाय नम:
ॐ माधवाय नम:
ॐ ह्रषीकेशाय नम:’ ( इस मंत्र के द्वारा अंगूठे से मुख पोछ ले) (ॐ गोविंदाय नमः यह मंत्र बोलकर हाथ धो ले ) . इस बात का भी ध्यान रखें कि आचमन करने के बाद हाथ को माथे और कान से छूकर प्रणाम करें.पूजा शुरू करने से पहले भगवान का ध्यान करते हुए आचमनी से जल निकालकर हथेली पर रखें और ग्रहण करें. इस प्रकिया को तीन बार किया जाता है.इस तरह की पूजा में मन, वचन और कर्म तीनों की शुद्धता बनी रहती है और पूजा से भगवान प्रसन्न होकर आशीर्वाद देते हैं.
आचमन करते समय दिशा:-
पूजा-पाठ की विधियों में दिशा का विशेष महत्व होता है क्योंकि गलत दिशा में की गई पूजा से इसका फल प्राप्त नहीं होता. आचमन करते समय इस बात का ध्यान रखें कि आपका मुख पूर्व, उत्तर या ईशान कोण की तरफ रहे.
उपरोक्त विधि ना कर सकने की स्थिति में केवल दाहिने कान के स्पर्श मात्र से ही आचमन की विधि की पूर्ण मानी जाती है.
आचमन करते समय हथेली में 5 तीर्थ बताए गए हैं-
1. देवतीर्थ, 2. पितृतीर्थ, 3. ब्रह्मातीर्थ, 4. प्रजापत्यतीर्थ और 5. सौम्यतीर्थ.
कहा जाता है कि अंगूठे के मूल में ब्रह्मातीर्थ, कनिष्ठा के मूल प्रजापत्यतीर्थ, अंगुलियों के अग्रभाग में देवतीर्थ, तर्जनी और अंगूठे के बीच पितृतीर्थ और हाथ के मध्य भाग में सौम्यतीर्थ होता है, जो देवकर्म में प्रशस्त माना गया है। आचमन हमेशा ब्रह्मातीर्थ से करना चाहिए। आचमन करने से पहले अंगुलियां मिलाकर एकाग्रचित्त यानी एकसाथ करके पवित्र जल से बिना शब्द किए 3 बार आचमन करने से महान फल मिलता है.आचमन हमेशा 3 बार करना चाहिए.
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