व्यास गुफा में व्यास पोथी
भारत और चीन की सीमा के पास उत्तराखंड (uttarakhand) के माणा गांव (mana) में बदरीनाथ से लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर पौराणिक बद्री बन में व्यास पोथी नाम की जगह है। यहां पर श्री मद भागवत पुराण के रचनाकार महर्षि वेद व्यास जी की गुफा मौजूद है। व्यास गुफा को बाहर से देखकर ऐसा लगता है, मानो कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। इसलिए इसे व्यास पोथी भी कहते हैं।
भगवान गणेश थे भागवत लेखक :-
भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र गणेश जी मंगलकर्ता और ज्ञान एवं बुद्घि के देवता माने जाते हैं। ऐसे में जब भी कोई शुभ काम किया जाता है, उससे पहले भगवान गणेश का स्मरण किया जाता है। वेद व्यास जी ने जब श्री मद भागवत पुराण की रचना करने की सोची तो सभी देवी देवताओं की क्षमताओं का अध्ययन किया लेकिन वे संतुष्ट नहीं हुए। तब उन्हें भगवान गणेश जी का ध्यान आया। महर्षि वेद व्यास ने गणेशजी से संपर्क किया और महाकाव्य लिखने का आग्रह किया। भगवान गणेश जी ने वेद व्यास जी के आग्रह को स्वीकार कर लिया लेकिन एक शर्त उनके सम्मुख रख दी। शर्त के अनुसार काव्य का आरंभ करने के बाद एक भी क्षण कथा कहते हुए रूकना नहीं है। क्योंकि ऐसा होेने पर गणेश ने कहा कि वे वहीं लेखन कार्य को रोक देंगे। गणेश जी की बात को महर्षि वेद व्यास ने स्वीकार कर लिया, लेकिन उन्होनें भी एक शर्त गणेशजी के सामने रख दी। महर्षि वेद व्यास जी ने कहा कि बिना अर्थ समझे वे कुछ नहीं लिखेंगे। इसका अर्थ ये था कि गणेश जी को प्रत्येक वचन को समझने के बाद ही लिखना होेगा। इससे कथा का स्वमेव परिष्कार भी होता रहा। गणेश जी ने महर्षि वेद व्यास की इस शर्त को स्वीकार कर लिया। इसके बाद श्री मद भागवत पुराण की रचना आरंभ हुई। कहा जाता है कि श्री मद भागवत पुराण लेखन कार्य पूर्ण होने में तीन वर्ष का समय लगा। इन तीन वर्षों में गणेश जी ने एक बार भी महर्षि वेद व्यास जी को एक पल के लिए भी नहीं रोका। वहीं महर्षि ने भी अपनी शर्त पूरी की। इस तरह से श्री मद भागवत पुराण कथा पूर्ण हुआ।
गणपति जी सिर्फ रिद्धि-सिद्धि के दाता ही नहीं बल्कि लेखन कला के देव भी हैं। इसलिए अगर हम लेखन कौशल में आगे बढ़ना चाहते हैं तो गणेश जी की पूजा करनी चाहिए। भगवान गणपति ने ही पौराणिक कथाओं को लोगों तक पहुंचाने के लिए महर्षि वेदव्यास के कहने पर श्री मद भागवत को सरल भाषा में लिपिबद्ध किया था। व्यास गुफा के नजदीक ही गणेश गुफा भी है। मान्यता है कि यह वही गुफा है, जहां पर महर्षि वेद व्यास जी ने श्री मद भागवत पुराण को बोला था और भगवान गणेश ने उसे लिखा था। हिमालय की सघन बदरी बन की वादियों के बीच स्थित इस गुफा में वेद व्यास जी जैसा-जैसा बोलते गए, भगवान गणेश उसे लिखते रहे। इस तरह पवित्र महाकाव्य की रचना हुई। श्रद्धालुओं का मानना है कि आज भी वेद व्यास जी और भगवान गणेश इस गुफा में मौजूद हैं। गणेश गुफा में भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित है।
दोनों ही विद्वान जन एक साथ आमने-सामने बैठकर अपनी भूमिका निभाने में लग गए और कथा लिपिबद्ध होने लगी। महर्षि व्यास ने बहुत अधिक गति से बोलना शुरू किया और उसी गति से भगवान गणेश ने महाकाव्य को लिखना जारी रखा। वहीं ऋषि भी समझ गए कि गजानन की त्वरित बुद्धि और लगन का कोई मुकाबला नहीं है। मान्यता है कि इस महाकाव्य को पूरा होने में तकरीबन तीन साल का वक्त लगा था। इस दौरान गणेश जी ने एक बार भी ऋषि को एक क्षण के लिए भी बोलने से नहीं रोका, वहीं महर्षि ने भी शर्त पूरी की। महर्षि वेद व्यास ने वेदों को सरल भाषा में लिखा था, जिससे सामान्य जन भी वेदों का अध्ययन कर सकें। उन्होंने 18 पुराणों की भी रचना की थी।
गुफा की छत पहाड़ की है। इसकी परिक्रमा पहाड़ से ही की जाती है। व्यास गुफा में व्यास जी का मंदिर बना हुआ है। मंदिर में व्यास जी के साथ उनके पुत्र शुकदेव जी और वल्लभाचार्य की प्रतिमा है। इनके अलावा भगवान विष्णु की एक प्राचीन प्रतिमा भी यहां स्थापित है।
इस गुफा में प्रवेश करने पर शांति और आत्मिक सुख की असीम अनुभूति होती है। इस स्थान के एक तरफ भगवान विष्णु का निवास स्थान बद्रीनाथ धाम है जबकि दूसरी तरफ ज्ञान की देवी सरस्वती का नदी रूप में उद्गम स्थल है।अन्य मान्यता के अनुसार पांडव इसी गांव से होकर स्वर्ग गए थे, लेकिन ठंड की वजह से चारों पांडव और द्रौपदी गल गयी सिर्फ युधिष्ठिर घर्म और सत्य का पालन करने के कारण ठंड को झेल पाये और सशरीर स्वर्ग पहुंच सके।
महर्षि वेदव्यास जी की स्तुति:-
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार महर्षि वेदव्यास स्वयं ईश्वर के स्वरूप थे। निम्न श्लोकों से इसकी पुष्टि होती है । महर्षि वेदव्यास जी की स्तुति इस प्रकार की गई है --
नमोऽस्तु ते व्यास विशालबुद्धे फुल्लारविन्दायतपत्रनेत्रः।
येन त्वया भारततैलपूर्णः प्रज्ज्वालितो ज्ञानमयप्रदीपः।।
( अर्थात् - जिन्होंने महाभारत रूपी ज्ञान के दीप को प्रज्वलित किया ऐसे विशाल बुद्धि वाले महर्षि वेदव्यास को मेरा नमस्कार है।)
व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे।
नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नम:।।
( अर्थात् - व्यास विष्णु के रूप है तथा विष्णु ही व्यास है ऐसे वसिष्ठ-मुनि के वंशज का मैं नमन करता हूँ। वसिष्ठ के पुत्र थे 'शक्ति'; शक्ति के पुत्र पराशर, और पराशर के पुत्र व्यास जी का मै नमन करता हूं।)
भगवान श्री कृष्ण स्वयं श्री गीता जी में कहते हैं
‘मुनीनामप्यहं व्यास:’।
मुनियों में वेदव्यास मैं हूं।
नारायणं नमस्कृत्य नरं चैव नरोत्तमं।
देवीं सरस्वतीं व्यासं ततो जय मुदीरयेत।।
जयति पराशरस्सु: सत्यवती हृदयनन्दनो व्यास:। यस्यऽऽस्यकमलगलितं वाङ्गमयममृंत जगत्पिवति।।
सत्यवती के हृदय नंदन पराशर के पुत्र श्री व्यास जी की जय हो। जिनके मुख कमल से निकले अमृत का पान सारा संसार करता है।
इसी प्रकार बाद में हिन्दी के महान संत तुलसी दास जी द्वारा गुरु वंदना किया गया है---
बंदऊं गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा॥
अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू।।
सुकृति संभु तन बिमल बिभूती। मंजुल मंगल मोद प्रसूती॥
जनमनमंजु मुकुर मलहरनी। किएँ तिलक गुन गन बस करनी॥
श्री गुर पद नख मनि गन जोती। सुमिरत दिब्य दृष्टि हियं होती॥
दलन मोह तम सो सप्रकासू। बड़े भाग उर आवइ जासू॥3॥
उघरहिं बिमल बिलोचन हीके। मिटहिं दोष दुखभव रजनी के॥
सूझहिं रामचरित मनिमानिक। गुपुतप्रगट जहंजोजेहि खानिक।
बंदउं गुरु पद कंज कृपा सिंधु नररूप हरि।
महामोह तम पुंज जासु बचन रबि कर निकर॥5॥
जथा सुअंजन अंजि दृग साधक सिद्ध सुजान।
कौतुक देखत सैल बन भूतल भूरि निधान।। 6।।
गुरुपदरज मृदुमंजुल अंजन। नयन अमिअ दृग दोष बिभंजन॥
तेहिंकरि बिमलबिबेक बिलोचन। बरनउंरामचरित भवमोचन।।
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