सांसों का क्या भरोसा रुक जाये चलते चलते ।
जीवन की है जो ज्योति बुझ जाये जलते जलते।
लोग लम्बी लम्बी हांके पर कुछ भी कर ना पायें ।
कल का है नही भरोसा कब क्या हो जाये चलते ।। सांसों
जीवन है चार दिन का बचपन है और जवानी ।
जब आएगा बुढ़ापा थक जाये चलते चलते।। सांसों
कुल खानदान कुटुम्ब भी कोई ना काम आयेगा तेरे।
जब तक है जेब में गरमी तब तक ही है ये रिश्ते । सांसों
समझा ना तू इशारा समझा ना खेल इसका।
क्यों तेरी बात बिगड़ी हर बार बनते बनते।। सांसों
तेरे साथ जायें रहवर तेरे कर्मो की कमाई।
गये जग से बादशाह भी यूं ही हाथ मलते मलते। सांसों
अब तक किया ना नेकी अब तो हरि सुमिर ले।
कह रही ये जिन्दगानी ये शाम ढ़लते ढ़लते।। सांसों
जीवन मरण है उनपर दे गति या दुरगति वो।
कोरोना से तड़पड़ाये या ले जाये हंसते हंसते। सांसों
हम हैं डाल की सूखी टहनी कभी इधर उधर फड़के।
सड़ सड़कर देंगे उरजा या रोशन करेंगे जलते जलते।।सांसों
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