सोवे जुगल किशोर
महल बीच ,
नूपुर दाब चलो मोरी सजनी।
पहरेदार सजग हुई रहियो ,
तनक झनक न होय ।
महल बीच सोवे जुगल
किशोर ।।
अयोध्या के रामकोट मोहल्ले में राम जन्म भूमि के निकट भव्य रंग महल
मन्दिर स्थित है. ऐसा माना जाता है कि जब सीता माँ विवाहोपरांत अयोध्या की धरती पर
आयीं. तब कौशल्या माँ को सीता माँ का
स्वरुप इतना अच्छा लगा कि उन्होंने रंग महल सीता जी को मुँह दिखाई में
दिया.था। यह रस्म बसन्त ऋतु में हुआ था । इस कारण कौशल्याजी ने इसका नाम रंग महल
रख दिया था। यहां सावन झूला, सीताराम विवाह, रामनवमी,
बसन्त
पंचमी तथा जानकी नवमी विशेष रुप से मनाया जाता है। यहां मा सीता की उपासना होती
है। जिस तरह मिथला में मा सीता की पूजा होती है वैसे ही यहां भी की जाती है। इस
मंदिर के महन्थ स्वयं को मा सीता की सखी के रुप में मानते है। विवाह के बाद भगवान
श्री राम कुछ 4 महीने इसी स्थान पर रहे. और यहाँ सब लोगों ने मिलकर होली खेली थी।
तभी से इस स्थान का नाम रंगमहल हुआ. इस मन्दिर में आज भी होली का त्यौहार
हर्षोल्लास से मनाया जाता है। फाल्गुन माह में यहाँ होली खेलने का विशेष इंतजाम
होता है। यहाँ चारों अखाड़े के नागा साधू होली खेलने आते हैं. माघ पंचमी को यहाँ
सीता राम विवाह मनाया जाता है. विवाह समारोह से पहले पूरे अयोध्या में एक विशाल
झांकी का आयोजन किया जाता है. जिसमें हांथी, घोड़े, रथ
समेत हजारों भक्त झांकी में शामिल होते हैं. सीता राम के विवाह के समय द्वारचार,
कन्यादान,
भांवर,
कलेवा
आदि अनुष्ठान विधिवत होते हैं। सम्पूर्ण विवाह मैथली शैली में आयोजित होते हैं।
रामनगरी में रामविवाहोत्सव के अवसर पर राजसी वैभव के साथ भगवान राम
की बारात निकलती है। श्री सीताराम विवाह माघ महीने के शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि को
मनाया जाता है । बारात में दूल्हे के भेष
में भगवान राम का दर्शन करने के लिए भक्तों का समूह उमड़ पड़ता है। भजनों व गीतों ने
वातावरण को भक्तिमय बनता है। दिव्य अलौकिक रथ पर सवार भगवान की राम की एक छलक पाने
के लिए भक्त व्याकुल हो जाते हैंे। बारात निकले के पूर्व भगवान के विग्रह व
प्रतिरुपों का पूजन व आरती किया जाता है ।
तत्पश्चात वैदिक मंत्रोचार के साथ श्री सीताराम को रथ पर बैठाकर बैंड बाजे के साथ
बारात निकाला जाता है। वैसे तो अयोध्या के खास मंदिरो में रामविवाह का उत्सव मनाया
जाता है जैसे रंग महल मंदिर, चक्रवती महाराज दशरथ जी का राजमहल, कनक
भवन, रामबल्लभाकुंज, लक्ष्मण किला, रामहर्षण कुंज,
जानकी
महल ट्रस्ट ,विहउती भवन, दिव्यकला मंदिर, सहित अयोध्या के
कई मंदिरों से बारात निकलती है। लेकिन अयोध्या के रामकोट मुहल्ले में स्थित प्राचीन रंगमहल मंदिर में श्री सीताराम
विवाह की धूम चार दिनों से चलती रहती है। मंदिर में श्री राम विवाह महोत्सव को
देखने के लिए दिल्ली, कलकत्ता,
गुजरात,
हरियाणा,
पंजाब,
बाम्बे,
सहित
अनेकों स्थानों से आकर उत्सव का आनन्द लेते हैं। जगह जगह बारात का स्वागत कई जगहों पर आरती पूजन व
प्रसाद वितरण के माध्यम से किया जाता है।बारात लौटने के बाद देर रात तक
भगवान सीताराम के विवाह पूरे वैदिक रीतिरिवाज के साथ का आयोजन किया जाता
है। विवाह के दूसरे दिन कलेवा होता जिसमें भगवान को पकवान बनाकर भोग लगाया जाता है
और लोगों में प्रसाद वितरण किया जाता है।
सखी सम्प्रदाय का मंदिर होने से इस स्थान का महत्व अत्यंत वृहद और
दर्शनीय हो जाता है यहाँ नित्य भगवान राम को शयन करते समय पुजारी सखी का रूप धारण
करती हैं, भगवान को सुलाने के लिए ये सखियाँ लोरी सुनाती हैं, और
उनके साथ रास करती हैं। यहां परम्परानुसार तिलक के बजाय विन्दी लगायी जाती है।
आरती में पुजारी घूघट डालकर आरती किया करते हैं।
इस स्थान पर सरयू नाम की साहिवाल प्रकार की एक गाय भी भगवान राम की
आराधना में लीन रहती है। वह प्रतिदिन राम जन्मभूति की तरफ मुह करके परिक्रमा करती
है। वह जूठा भोजन नहीं करती है। वह एकादसी के दिन व्रत भी रहती है। वह एक निश्चित
जगह पर विगत अनेक सालों से एक निश्चित समय पर परिक्रमा करती हैं। इससे पहले इस गाय
की मां भी इसी तरह की परिक्रमा करती थी। पूरे देश से लोग यहां दर्शन के लिए आते
हैं परन्तु राम जन्मभूमि के कड़े नियमों के कारण यहां पहुंचना कहुत कठिन होता है।
मेले के अलावा मंदिर प्रायः सूना सा रहता है तथा आगन्तुको को विना दर्शन के बापस
लौट जाना पड़ता है। यहां की सामान्य व्यवस्था संतोष जनक नहीं है। 8
अगस्त को मैं अपने परिवार सहित इस मंदिर में दर्शनार्थ गया था परन्तु दोपहर में एक
भी व्यक्ति इस मंदिर में दैनिक दिनचर्या बताने वाला नहीं मिला। ना तो मंदिर का
दर्शन हुआ और ना ही सरयू गो माता की। फिर अन्य मंदिरों को देखते टहलते वापस अपने
आवास पर आना पड़ा।
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