शहर के एक अध्यादेश के अनुसार पुस्तकालय का कार्ड रखने वाला कोई व्यक्ति यदि सार्वजनिक पुस्तकालय से ली गई किसी सामग्री को नहीं लौटाता या मना कर देता है तो यह गैरकानूनी होगा. 'न्यूज कूरियर' की खबर के अनुसार अध्यादेश का उल्लंघन करने वाले किसी व्यक्ति पर 100 डॉलर तक का जुर्माना लग सकता है. उसे 30 दिन तक की जेल की सजा सुनाई जा सकती है या दोनों सजा दी जा सकती हैं जिसका निर्णय म्यूनिसिपल जज के विवेक पर निर्भर करेगा. पुस्तकालय निदेशक पॉल लॉरिटा के हवाले से अखबार ने लिखा कि अध्यादेश लागू करना जरूरी है क्योंकि लोग न केवल पुस्तकालय से किताबें चुरा रहे हैं बल्कि पुस्तकालय के अन्य ग्राहकों से भी पुस्तकें चोरी कर रहे हैं.
पुस्तकालय का उपयोग करने वाले एसे विरले
लोग होते हैं जो आम जनता और पाठकों के विचारों जिज्ञासाओं का ध्यान रखते हैं। कुछ एसे
भी बड़े बड़े लोग होते हैं जो पुस्तके अपने कक्ष में रखना पसन्द तो करते हैं पर औरों
के हकों का ध्यान नहीं देते हैं। वे पुस्तकों को अनावश्यक अपने पास रोककर पाठको ना
केवल हक मारते हैं, अपितु हर पुस्तक का हक भी मारते हैं, जिसके अनुसार हर पुस्तक को
उसका पाठक मिले। हमारे 30 साल के पुस्तकालय सेवा के अनुभव में एसे अनेक महान हस्तियों
आयी हैं, जो पुस्तकों के जितने प्रेमी होते हैं, पुस्तकालय या आम पाठक के उतने बड़े
दुश्मन भी होते हैं ।
अमेरिका की भांति भारत में भी यह दुष्प्रवृत्ति कम नहीं हैं। इस प्रकार की आदत को सामान्यतः संभा्रन्त, अधिकार सम्पन्न
तथा
बहुत
ही
विश्वासी
लोग
ही
करने
की
हिम्मत
व
दुर्विचार रखते हैं। आम पाठक इतना बड़ा कुकत्य करने को कम सोचेगा, उसे कम
अवसर
मिल
सकेगा
तथा
उसकी
आत्मा
इस
दुष्साहस
को
करने
से
मना
भी
करेगी।
जो
लोग
पुस्तकों
का
अपना
निजी
संकलन
रखते
हैं
अथवा
लिखने
पढ़ने
का
शौक
रखते
हैं
वे
अपनी
आवश्यकता
को
पूरी
करने
के
लिए
इस
अपराधबोध
के
प्रभाव
में
आ
जाते
हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनेक अधिकार सम्मत लोगों ने एसे कृत्यों का अंजाम दिया है। डा. डी वी.
शर्मा,
आई
डी.
द्विवेदी,
पी.
बी.
एस.
सेंगर.
ए.
आर
सिद्दीकी,
वाई
पी.
एस.
रावत
तथा भारतीय पुलिस सेवा के विजय कुमार आदि लोगों ने सुचिता से पुस्तकालय धर्म का निर्वहन नहीं किया है। अमेरिका की भांति भारत में इस प्रकार का कोई कानून नहीं है इस कारण पुस्तकालयों को काफी छति उठानी पड़ती है। पुस्तकालय हमारे राष्ट्र के विकास की अनुपम धरोहर हैं । इनके विकास व विस्तार के लिए सरकार के साथ-साथ हम सभी नागरिकों का भी नैतिक कर्तव्य बनता है जिसके लिए सभी का सहयोग अपेक्षित है।
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