(बस्ती के छंदकार भाग 3 कड़ी 17)
डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस'
आचार्य डॉ. राधेश्याम द्विवेदी
जीवन परिचय :-
रामकृष्ण लाल "जगमग" की जन्मतिथि 15 अक्टूबर 1953, है । वे बस्ती जिले के बहादुर पुर ब्लाक के ग्राम-कैथवलिया में पैदा हुए थे। जगमग जी बी०ए०,डी०टी० सी० करने के बाद जिला परिषद के प्राथमिक विद्यालय में अध्यापन कार्य में लगे हुए थे । जगमग जी हास्य और व्यंग्य के अनूठे कवि है। जगमग जी ने दोहों को अपना करके हास्य और व्यंग्य का पुट दिया है। मंच की दृष्टि से जगमग जी का जितना समादर हो रहा है,वह गिने-चुने लोगों में है।
प्रकाशित कृतियाँ :-
जगमग’ की अभी तक 8 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है।
1.चाशनी' दुमदार दोहे (प्रथम संस्करण- 1978), (तृतीय संस्करण-2006),अब तक 6 संस्करण प्रकाशित हुए हैं।
2.किसी की दिवाली किसी का दिवाला' (1982)
'3.विलाप' खण्ड काव्य,(1990)
4.हम तो केवल आदमी हैं' (काव्य संकलन-1997)
5.'बाल चेतना' (बालोपयोगी रचनाएं- 2000)।
6.सच का दस्तावेज’
7.खुशियों की गौरैया,
8.‘बाल सुमन’
9.'स्वामी विवेकानन्द' - इन दिनों वे स्वामी विवेकानन्द पर केन्द्रित महाकाव्य का सृजन कर रहे हैं।
इन कृतियों में वे कभी हास्य तो कभी गंभीर दर्शन के रूप में आम आदमी की पीड़ा व्यक्त करते हुये उनका प्रतिनिधित्व करते हैं।निश्चित रूप से उनका साहित्यिक संसार घोर तमस में समाज का पथ प्रदर्शन करेगा।
प्रथम दो संग्रहों 'चाशनी’ और 'किसी की दिवाली किसी का दिवाला' का विवेचन :-
इस शोध प्रबंध के। लिखे जाने 1984 तक जगमग जी की यह दोनो कृतियां प्रकाशित हुई हैं जिसमें दोहे और गजलो का प्रयोग अधिक हुआ है। जगमग जी के काव्य में में युगबोध का स्वरअधिक है। यह समाजवादी प्रवृत्तियों के अधिक निकट है। सम्पादन के क्षेत्र में भी इनका स्थान अच्छा है। “मंजरी मौलश्री" नामक पत्रिका इनके सहयोग और सम्पादकत्व में पिछले तीन वर्षों से छप रही है। "मंजरी- मौलश्री” के द्वारा जगमग जी ने नवोदित छन्दकारों को अच्छा प्रश्रय दे रखा है। जगमग़ जी को कवि सम्मेलनों में सदैव आदर मिलता रहा है। वे स्वयं कवि सम्मेलन कराने के शौकीन हैं। पत्रिका के माध्यम से प्रान्तीय और राष्ट्रीय स्तर कवियों की कविताएं छापकर जिले के कवियों का मार्ग दर्शन कर रहे हैं। उनमें व्यवहार कुशलता कूट-कूट कर भरी है। राजनीतिक खेमा के लोगो के साथ-साथ अधिकारियो से भी साहित्यिक योगदान प्राप्त करने में सफल रहते हैं । जगमग जी की भाषा में हिन्दी के साथ उर्दू का सम्मिश्रण पाया जाता है। उनके मुक्तकों में तीखा प्रहार दर्शनीय रहता है। इनका सम्पूर्ण साहित्य मानतीय संवेदनाओं के सन्ननिकट है।
पुरस्कार और सम्मान : -
अनेकानेक राष्ट्रीय संस्थाओं द्वारा समय समय पर जगमग जी को सम्मानित किया जाता रहा है। उनका दायरा राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच गया है। उन्हें भारतीय सेना संस्थान, दिल्ली द्वारा काव्य भूषण सम्मान, विक्रमशिला विद्यापीठ भागलपुर द्वारा विदया वाचस्पति मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है। इसके अलावा साहित्य वृहस्पति सम्मान 20 05 2018 को ,भारत गौरव 20 जनवरी 2022 को, अंतरराष्ट्रीय साहित्य गौरव भूटान में 03 मई 2024 को , साहित्य गौरव 20 01 2025 को तथा वैज्ञानिक योगदान के लिए 06032025 को 'साहित्य वाचस्पति' पुरस्कार से अलंकृत किया गया है। सम्भव है इस सूची में कुछ नाम छूट भी गए हो। हम उनके उत्तम स्वास्थ्य और दीर्घ आयु की मंगल कामना करते हैं। उनका दुमदार दोहे बहुचर्चित रहे हैं-
कुछ दुमदार दोहे
हतनी कुठा बढ़ गई, भूल गये हर फर्ज । कुछ नालायक कर रहे, पूज्य बाप से अर्ज ।।
आप अब चले जाइए ।
गांधी बाबा देश का, डूब रहा है नाम । पाँचो चेले आपके निकले नमक हराम ।।
गुरु कुछ करो दवाई ॥
पहले अपने बाप का, नाम करो उजियार । और अंधेरे में करो, जो जी चाहे यार ।।
न कोई कुछ बोलेगा ।।
बिद्यालय को क्या कहूं, लुप्त हुआ हर ज्ञान छात्रों से अब मांगते, शिक्षक जीवन-दान ।।
यही शिक्षा की इति है ।।
कहा उन्होंने चुप रहो, मत लो मेरा टोह । छोड़ नहीं सकता कभी, मैं सत्ता का मोह ॥
लाख तुम करो घिसाई ॥
कहा कृष्ण ने क्या कहूं, मित्र सुदामा आज। फटे हाल हूं आपकी, कैसे रक्खू लाज ।।
जेब देखो है खाली ॥
कुछ लोगों ने प्रेम से, गरमाया जब दूध । इतने में सब लड़ पड़, आपस में दूग मूंदे ।।
मलाई हम खायेंगे ॥
सुनिये मेरी बात को, सेठ जानकी दास । मरते दम कुछ रूपये, लेते जाना पास ।।
वहां भी बिजनेस करना ।।
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