सम्पूर्ण भारतवर्ष के अन्य प्रदेशों की भाति उत्तर प्रदेश की आर्थिक प्रगति भी कृषि के विकास पर आधारित है । वाणिज्य, व्यापार एवं उद्योग धन्घों में पर्याप्त विकास के बावजूद भी प्रदेश की सकल आय में कृषि क्षेत्र का योगदान 35 प्रतिशत से अधिक है। रोजगार के अवसर सुलभ कराने की दृष्टि से भी कृषि लगातार सबसे व्यापक क्षेत्र बना हुआ है । प्रदेश के किसानों को कृषि उत्पादन हेतु आवश्यक संसाधन- उर्वरक, बीज, कृषि रक्षा रसायन और उपकरण, कृषि यन्त्र आदि हेतु अल्पकालीन ऋण तथा कृषि पर आधारित उद्योग सेवा एवं व्यवसाय आदि प्रयोजनों के लिये मध्यकालीन ऋण सुलभ कराने में सहकारी एवम भूमि विकास बैंकों की भूमिका अग्रणी है।
सहकारी बैंक जिसे को-ऑपरेटिव बैंक भी कहा जाता है! यह एक वित्तीय संस्थान होती हैं जो शहरी और गैर-शहरी दोनों क्षेत्रों में छोटे व्यवसायों को ऋण देने का सुविधा प्रदान करती हैं। सहकारी बैंक का गठन एवं कार्यकलाप सहकारिता के आधार पर होता है। इन बैंकों द्वारा किसानों को उनकी उपज के वैज्ञानिक भण्डारण तथा विपणन आदि की सुविधा उपलब्ध कराने के साथ-साथ दैनिक उपयोग की आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति हेतु वित्तपोषण की व्यवस्था भी की जाती है। ये बैंक ऋण वित्त पोषण के साथ ही साथ बचत की अनेक योजनाएं भी चलाते हैं। छोटी छोटी समितियों के माध्यम से ये निचले या अंतिम पायदान पर जीवन यापन करने वाले लोगों के संपर्क और पहुंच में आसानी से आ जाते हैं। इनके सदस्यों डायरेक्टर और अध्यक्ष पद के चुनाव होते हैं और हर राजनीतिक पार्टी अपने व्यक्ति को इस पद पर आसीन कराने के लिए प्रयासरत रहता है। उसे गाड़ी नौकर और सुरक्षा गार्ड उपलब्ध कराया जाता है।समाज और सरकार में उसे अच्छे रूप में देखा जाता है।
त्रिस्तरीय सहकारी ढाचा:-
प्रदेश स्तर पर उ0प्र0 सहकारी बैंक लि0 की 27 शाखायें , 17 क्षेत्रीय कार्यालय , 30 पे-आफिस कुल 74 वित्त संस्थाएं हैं। जिला स्तर पर जिला/केन्द्रीय सहकारी बैंक लि0 बैंकों की संख्या 50 है। शाखाओं की संख्या1266 है। न्याय पंचायत स्तर पर: प्रारम्भिक सहकारी कृषि समितियों की संख्या 7479 है। भारतीय सहकारी बैंकिंग का इतिहास वर्ष 1904 में सहकारी समिति अधिनियम के पारित होने के साथ शुरू हुआ। इस अधिनियम का उद्देश्य सहकारी ऋण समितियों की स्थापना करना था। स्वतंत्रता के बाद पहले 3 वर्षों के दौरान यानी वर्ष 1949 तक सहकारी बैंकिंग की दृष्टि से कुछ भी महत्त्वपूर्ण कार्य संभव नहीं हो पाया। सहकारी साख के त्रिस्तरीय ढाचे की वर्तमान वित्तीय स्थिति, उसके सम्मुख विद्यमान प्रमुख समस्यायें एवं उनके निराकरण की योजना वर्णित की जा रही है।
उ0प्र0 कोआपरेटिव बैंक लि0, मुख्यालय, लखनऊ:-
उ0प्र0 कोआपरेटिव बैंक लि0 की स्थापना जिला सहकारी बैंकों की शीर्ष सहकारी संस्था के रुप में निबन्धन संख्या 811 के द्वारा दिनांक 20 नवम्बर 1944 को हुई थी । इस प्रकार इस बैंक को कार्य करते हुए लगभग आठ दशक वर्ष हो चुके हैं । उ0प्र0 कोआपरेटिव बैंक लि0, भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की द्वितीय अनुसूची में सूचीबद्ध है। अर्थात् यह एक अनुसूचित बैंक है तथा सहकारी संस्था के रुप में उ0प्र0 सहकारी समिति अधिनियम 1965 एवं उ0प्र0 सहकारी समिति नियमावली 1968 तथा बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 के अधीन बैंकिंग के रुप में विनियमित होता है।
50 जिला सहकारी बैंक संचालित :-
सहकारिता विभाग के अधीन प्रदेश में उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक की एक शाखा, जबकि 50 जिलों में जिला सहकारी बैंक संचालित हैं। इन सभी 51 बैंकों को अलग-अलग प्रबंधन संचालित कर रहा है। हर माह करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं ।साथ ही कर्मचारी भी उसी जिले में वर्षों से जमे होने से राजनीतिक गतिविधि में शामिल हो रहे हैं। बैंकों का अपेक्षित कंप्यूटरीकरण व अन्य कार्य न हो पाने से वहां पारदर्शिता का अभाव है। इसके अलावा कार्मिकों को वेतन सही से नहीं मिल पा रहा है। केंद्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सहकार भारती के अधिवेशन में कहा था कि वे जिला सहकारी बैंकों को प्रदेश बैंक के साथ नाबार्ड से जोड़ेंगे। यह कब भलीभूत हो सकेगा कहा नही जा सकता है। अलबते चुनाव आदि के समय सभी राजनीतिक दल इसे अपने प्रतिष्ठा का विषय बना लेते हैं। इसमें पारदर्शिता पर संदेह होता है और पद प्रतिष्ठा के साथ कुछ गुप्त लाभ और सुविधाएं भी छिपा होना लाजमी है।
प्रदेश सरकार ने यूपीसीबी व जिला सहकारी बैंकों के बेहतर प्रबंधन के लिए 31 अक्टूबर 2018 को आइआइएम लखनऊ के प्रोफेसर विकास श्रीवास्तव की अगुवाई में कमेटी गठित किया था। समिति ने फरवरी 2020 में सरकार को रिपोर्ट सौंपा है कि जिला सहकारी बैंकों का यूपीसीबी में विलय कर दिया जाए, इसके अलावा कई अन्य अहम सुझाव दिए गए हैं, ये प्रकरण शासन स्तर पर लंबित है। यदि इसका निराकरण हो गया तो यह स्वतन्त्र और स्वायत्त होकर पॉकेट संगठन नहीं रह सकेगा।
नोट बन्दी के समय इस संस्था द्वारा बड़े पैमाने पर कालेधन को सफेद किया गया है। इन बैंकों द्वारा वित्तीय अनियमितताएं की गई। धड़ाधड़ अनुदान और ऋण बांटे गए। वसूली पर जोर नही दिया गया।इसलिए इनका घाटा बढ़ते बढ़ते इतना ज्यादा हो गया कि इन्हें अपना कारोबार समेट कर ताला लटकाना पड़ा। मुझे तो यह भी प्रतीत होता है कि वार्षिक लेखा परीक्षण के प्रस्तरों की भी अनदेखी की गई होगी। बाद में जब सरकार की साख पर सवाल उठा तो सीमित और मनमानी तरीके से इसे चालू करने का नाटक किया गया। यूपी के बंद 16 जिला सहकारी बैंक फिर से खुल गए हैं। भारतीय रिजर्व बैंक के आदेश के अनुसार, ये 16 जिला सहकारी बैंक प्रदेश के अन्य बैंकों की तरह कार्य शुरू कर भी दिए हैं पर सच्चाई तो कोई भुक्त भोगी ही बता पाएगा। बैंक उपभोक्ताओं को उनका पैसा मिलने और एक महीने तक इंतजार करने के अलावा और कोई सुगम रास्ता नहीं बचा है। भारतीय रिजर्व बैंक ने इन 16 जिला सहकारी बैंक के निर्धारित मानक की पूर्ति न करने के वजह से इनके लाइसेन्स निरस्त कर दिए थे। पर एक अक्टूबर 2022 से बैंक खाताधारक बिना किसी असुविधा के लेन-देन कर सकेंगे,इस प्रकार की घोषणा भी हो चुकी है । किसी भी खाताधारक को चिन्ता ना करने की और सभी ग्राहकों का पैसा पूरी तरह सुरक्षित होने की लालीपाप दिया जा चुका है। प्रभावित बैंक हैं -- जनपद गाजीपुर, वाराणसी, सीतापुर, हरदोई, आजमगढ़, फतेहपुर, बलिया, इलाहाबाद, फैजाबाद, गोरखपुर जौनपुर, सिद्धार्थनगर, सुलतानपुर, बहराइच, देवरिया तथा बस्ती की जिला सहकारी बैंक।इन सब शाखाओं के खाता भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा लाइसेंस आरबीआई द्वारा निरस्त किया गया थे।
उत्तर प्रदेश के सहकारिता राज्य मंत्री जेपीएस राठौर ने कहा था कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित मानकों की पूर्ति न करने के कारण 16 जिला सहकारी बैंकों के निरस्त लाइसेंस को रिन्यूअल कर दिया गया है। 16 कमजोर स्थिति वाली जिला सहकारी बैंकों की समीक्षा करते हुए सहकारिता मंत्री ने निर्देश देते हुए कहा था कि सभी अधिकारी व कर्मचारी मेहनत एवं लगन से कार्य करें, तथा चुनौतियों का सामना मिलजुल कर करें। बैंक की आय बढ़ाने के लिए वेतन भोगी समितियों को जोड़ा जाये। जिससे तत्काल बैंक की पूंजी बढ़ेगी। इसके साथ ही कृषक हित के ऋण देने के अतिरिक्त होम लोन, एजुकेशन लोन, बिजनेस लोन के साथ-साथ अन्य लोन भी दिए जाये। उन्होंने कहा कि कोई भी अधिकारी भ्रष्टाचार तथा वित्तीय अनियमितता में शामिल न हों।नहीं तो उनके खिलाफ सख्त कार्यवाही की जायेगी। उन्होंने कहा था कि अथक प्रयासों के बाद इन बैंकों को पुनः लाइसेंस प्राप्त हुआ है। इसीलिए सभी बैंकों को अपनी स्थिति में और सुधार करने तथा पूंजी बढ़ाने की अवश्यकता है।
इतना सब होते हुए भी इन बैंकों के काम काज में सुधार होता नहीं दिख रहा है।जो बैंक बैंक के काम काज की अवधि में उपभोक्ताओं से खचाखच भरा रहता था वह अब इने गिने लोगों को देखने को तरस रहे हैं। स्टाफ की भर्ती बंद हो गई है।एक लिपिक और एक कैशियर से काम काज चल जाता है। कुछ अन्य वफादार स्टाफ भी देखे जा सकते हैं पर वे क्या करते हैं और कितना उपभोक्ता के लिए उपयोगी है? इसे बिरले लोग ही समझ सकते हैं। आम जनता का विश्वास हासिल करने में ये सक्षम नही हो पा रहे हैं। धीरे धीरे लोग अपना एकाउंट बंद कराते जा रहे हैं। हां यदि उ0प्र0 /जिला सहकारी बैंक लि0 का अधिग्रहण और सरकारी नियन्त्रण में ले लिया जाए और जन जागरण अभियान चला कर लोगों का विश्वास जीता जाय तो ये बैंक पुनः स्थापित होकर जीवित हो सकते हैं।
जिला सहकारी बैंक बस्ती का नवीन प्रयास:-
जिला सहकारी बैंक के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राजेंद्र नाथ तिवारी ने बैंक की साख बचाने के लिए जरूरी पहल की है। उन्होंने भारत सरकार के सहकारिता मंत्री को पत्र भेजकर कहा है कि पूर्वी उत्तर प्रदेश के 16 सहकारी बैंकों में लेन देन की स्थिति विभागीय दुर्व्यवस्था के कारण इतनी खराब हो गई है कि उनकी विश्वसनीयता संदिग्ध हो गई है। रिजर्व बैंक की स्थापना के पूर्व का जिला सहकारी बैंक लिमिटेड बस्ती है। जिसको रिजर्व बैंक की मुख्य धारा में रहने के लिए रिजर्व बैंक से लाइसेंस लेना पड़ा। लाइसेंस लेने से पूर्व ही रिजर्व बैंक ने एक आदेश जारी कर जिला सहकारी बैंकों में जिसमें बस्ती, वाराणसी, गोरखपुर, बहराइच जैसे 16 जिले शामिल हैं, को लेन-देन से मना कर दिया। बाद में 16 अगस्त 2016 को लेन-देन के लिए सीमित अधिकारी देते हुए पुन: कार्य करते रहने की अनुमति दी गई। इस बीच बैंक की साख इतनी खराब हो गई कि लेन-देन की बढ़ती भीड़ के कारण और मांग के अनुरूप भुगतान न करने के कारण बैंकों पर विश्वास का संकट खड़ा हो गया। प्रधानमंत्री की ओर से सहकारी बैंकों के उपचार के लिए लिए पैकेज की घोषणा की गई। भारत सरकार ने उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड लखनऊ में धनराशि भेज दी, मगर उस धनराशि के सापेक्ष बीमार बैंकों को धन आवंटित नहीं किया गया।अध्यक्ष जी ने सहकारिता मंत्री जी से अनुरोध किया है कि जिला सहकारी बैंकों के उत्तर प्रदेश कोआपरेटिव बैंक लिमिटेड में जमा धनराशि लगभग 76 करोड़ रुपये को तुरंत अवमुक्त किया जाए। जिला सहकारी बैंक बस्ती में मांग के अनुरूप बैंक अधिकारी व कर्मचारी भी तैनात किए जाएं।
जिला सहकारी बैंक बस्ती द्वारा बस्ती और संत कबीर नगर की साधन सहकारी सहकारी संस्थाओं को वित्त पोषित करने के लिए अब तक सहकारी समितियों को 500000 से ₹1000000 तक का उर्वरक ऋण सीमा स्वीकृत की गई है। इसके साथ सहकारी बैंक द्वारा उद्यमियों सहित अन्य पात्र लोगों विभिन्न प्रकार के ऋण उपलब्ध कराये जा रहे हैं। जिससे अपने बलबूते ऊर्जा का सदुपयोग करते हुए लोग अपने जीवन स्तर में और अधिक सुधार ला सकें।
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