श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ
प्रस्तुति आचार्य राधेश्याम द्विवेदी
श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है। अष्टादश पुराणों में भागवत नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। पुराणों की गणना में भागवत अष्टम पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है (भागवत 12.7.23)। भागवत पुराण में महर्षि सूत जी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सूत जी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह स्कन्ध हैं। प्रथम स्कन्ध में सभी अवतारों का सारांश रूप में वर्णन किया गया है। श्रीमद्भागवत भक्तिरस तथा अध्यात्मज्ञान का समन्वय उपस्थित करता है। भागवत निगमकल्पतरु का स्वयंफल माना जाता है जिसे नैष्ठिक ब्रह्मचारी तथा ब्रह्मज्ञानी महर्षि शुक ने अपनी मधुर वाणी से संयुक्त कर अमृतमय बना डाला है। स्वयं भागवत में कहा गया है-
सर्ववेदान्तसारं हि श्रीभागवतमिष्यते।
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित् ॥
श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता।)
तद्रसामृततृप्तस्य नान्यत्र स्याद्रतिः क्वचित् ॥
श्रीमद्भाग्वतम् सर्व वेदान्त का सार है। उस रसामृत के पान से जो तृप्त हो गया है, उसे किसी अन्य जगह पर कोई रति नहीं हो सकती। (अर्थात उसे किसी अन्य वस्तु में आनन्द नहीं आ सकता।)
भागवत की
टीकाएँ :- 'विद्यावतां भागवते परीक्षा' : भागवत विद्वत्ता की कसौटी है और इसी कारण टीकासंपत्ति की दृष्टि से भी यह अतुलनीय है। विभिन्न वैष्णव संप्रदाय के विद्वानों ने अपने विशिष्ट मत की उपपत्ति तथा परिपुष्टि के निमित्त भागवत के ऊपर स्वसिद्धांतानुयायी व्याख्याओं का प्रणयन किया है जिनमें कुछ टीकाकारों का यहाँ संक्षिप्त संकेत किया जा रहा है – श्रीधर
स्वामी (भावार्थ दीपिका; 13वीं शती, भागवत के सबसे प्रख्यात व्याखाकार),सुदर्शन सूरि
(14वीं शती शुकपक्षीया व्याख्या विशिष्टाद्वैतमतानुसारिणी है); सन्त एकनाथ (एकनाथी
भागवत; १६वीं शती मे मराठी भाषा की उत्तम रचना), विजय ध्वज (पदरत्नावली 16वीं शती;
माध्वमतानुयायी), वल्लभाचार्य (सुबोधिनी 16वीं शती, शुद्धाद्वैतवादी), शुदेवाचार्य
(सिद्धांतप्रदीप, निबार्कमतानुयायी) और सनातन गोस्वामी (बृहद्वैष्णवतोषिणी) आदि।
श्रीमद्भागवत कथा :- श्रीमद्भागवत एक ज्ञान यज्ञ है। यह मानवीय जीवन को रसमय बना देता है। भगवन् कष्ष्ण की अद्भूत लीलाओं का वर्णन इसमें समाहित है। भव-सागर से पार पाने के लिये श्रीमद्भागवत कथा एक सुन्दर सेतु है। श्रीमद्भागवत कथा सुनने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है। इस पुराण में 18 स्कन्ध
एवं 335 अध्याय
हैं। ब्यास जी ने 17 पुराणों
की रचना कर ली लेकिन श्रीमद्भागवत कथा लिखने पर ही उन्हें सन्तोष हुआ। फिर ब्यास जी ने अपने पुत्र शुकदेव जी को श्रीमद्भागवत पढ़ायी, तब
शुकदेव जी ने राजा परीक्षित को जिन्हें सात दिन में मरने का श्राप मिला, उन्हें
सात दिनों तक श्रीमद्भागवत की कथा सुनायी। जिससे राजा परीक्षित को सात दिन में मोक्ष की प्राप्ति हुयी।
निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतं द्रवसंयुतं।
पिवत भागवतं रसमालयं महुरसो रसिका भुविभावुकाः।।
श्रीमद्भागवत वेद रूपी वष्क्षों से निकला एक पका हुआ फल है। शुकदेव जी महाराज जी के श्रीमुख के स्पर्श होने से यह पुराण अमश्तमय एवं मधुर हो गया है। इस फल में न तो छिलका है, न गुठलियाँ हैं और न ही बीज हैं। अर्थात इसमें कुछ भी त्यागने योग्य नहीं हैं सब जीवन में ग्रहण करने योग्य है। द्रवमय अमष्त से भरे इस रस का पान करने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है। इसलिये अधिक से अधिक श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिये। जितनी ज्यादा कथा सुनेंगे उतना ही जीवन सुधरेगा।
पित्रों का उद्धारक :- श्रीमद्भागवत करने से पित्रों का उद्धार हो जाता है। भागवत पुराण करवाने वाला अपना उद्धार तो करता ही है अपितु अपने सात पीढि़यों का उद्धार कर देता है। पापी से पापी व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत की कथा सुन ले तो उसके भी समस्त पाप दूर हो जाते हैं। जीवन पर्यन्त कोई पाप कर्म करता रहे और पाप कर्म करते-करते मर जाय एवं भयंकर भूत-प्रेत योनि में चला जाय, यदि उसके नाम से हम श्रीमद्भागवत कथा करवायें तो वह भी बैकुण्ठ-लोक को प्राप्त करता है।
निगमकल्पतरोर्गलितं फलं शुकमुखादमृतं द्रवसंयुतं।
पिवत भागवतं रसमालयं महुरसो रसिका भुविभावुकाः।।
श्रीमद्भागवत वेद रूपी वष्क्षों से निकला एक पका हुआ फल है। शुकदेव जी महाराज जी के श्रीमुख के स्पर्श होने से यह पुराण अमश्तमय एवं मधुर हो गया है। इस फल में न तो छिलका है, न गुठलियाँ हैं और न ही बीज हैं। अर्थात इसमें कुछ भी त्यागने योग्य नहीं हैं सब जीवन में ग्रहण करने योग्य है। द्रवमय अमष्त से भरे इस रस का पान करने से जीवन धन्य-धन्य हो जाता है। इसलिये अधिक से अधिक श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण करना चाहिये। जितनी ज्यादा कथा सुनेंगे उतना ही जीवन सुधरेगा।
पित्रों का उद्धारक :- श्रीमद्भागवत करने से पित्रों का उद्धार हो जाता है। भागवत पुराण करवाने वाला अपना उद्धार तो करता ही है अपितु अपने सात पीढि़यों का उद्धार कर देता है। पापी से पापी व्यक्ति भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत की कथा सुन ले तो उसके भी समस्त पाप दूर हो जाते हैं। जीवन पर्यन्त कोई पाप कर्म करता रहे और पाप कर्म करते-करते मर जाय एवं भयंकर भूत-प्रेत योनि में चला जाय, यदि उसके नाम से हम श्रीमद्भागवत कथा करवायें तो वह भी बैकुण्ठ-लोक को प्राप्त करता है।
श्रीमद्भागवत कथा का फल:- मानव जीवन सबसे उत्तम और अत्यन्त दुर्लभ है। श्रीगोविन्द की विशेष कृपा से हम मानव-योनि में आये हैं। भगवान के भजन करने के लिये ही हमें यह जीवन मिला है और श्रीमद्भागवत कथा सुनने से या करने से हम अपना मानव जीवन में जन्म लेना सार्थक बना सकते हैं। श्रीमद्भागवत कथा सुनने के अनन्त फल हैं।
1. श्रीमद्भागवत कथा सुनने से मनुष्य को आत्मज्ञान होता है। भगवान की दिव्य लीलाओं को सुनकर मनुष्य अपने ऊपर परमात्मा की विशेष अनुकम्पा का अनुभव करता है।
2. श्रीमद्भागवत कथा करने से मनुष्य अपने सुन्दर भाग्य का निर्माण शुरू कर देता है। वह ईह लोक में सभी प्रकार के भोगों को भोग कर परलोक में भी श्रेष्ठता को प्राप्त करता है।
3. श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य को जीना सिखाती है तथा मृत्यु के भय से दूर करती है एवं पित्र दोषों को शान्त करती है।
4. जिस व्यक्ति ने जीवन में कोई सत्कर्म न किया हो, सदैव दुराचार में लिप्त रहा हो, क्रोध रूपी अग्नि में जो हमेशा जलता रहा हो, जो व्यभिचारी हो गया हो, परस्त्रीगामी हो गया हो, यदि वह व्यक्ति भी श्रीमद्भागवत की कथा करवाये तो वह भी पापों से मुक्त हो जाता है।
5. जो सत्य से विहीन हो गये हों, माता-पिता से भी द्वेष करने लगे हों, अपने धर्म का पालन न करते हों, वे भी यदि श्रीमद्भागवत कथा सुनें तो वे भी पवित्र हो जाते हैं।
6. मन-वाणी, बुद्धि से किया गया कोई भी पापकर्म-चोरी करना, छद्म करना, दूसरों के धन से अपनी आजीविका चलाना, ब्रह्म-हत्या करने वाला भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत कथा सुनले तो उसका भी जीवन पवित्र हो जाता है।
7. जीवन-पर्यन्त पाप करने के पश्चात् मरने के बाद भयंकर प्रेत-योनि (भूत योनि) में चला गया व्यक्ति के नाम पर भी यदि हम श्रीमद्भागवत की कथा करवायें तो वह भी प्रेत-योनि से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन स्थान :- श्रीमद्भागवत कथा करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में श्रीमद्भागवत कथा करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। कथा के लिये स्थान का निर्वाचर करके सर्वप्रथम भूमि का मार्जन और गोबर से लेप करना चाहिये। वहाँ एक मण्डप और उसके ऊपर गुम्बद के आकार का चन्दोवा लगाकर तथा हनुमान जी के लिये एक झण्डा लगायें तथा पित्रों के निमित्त एक सात गाँठ वाले बाँस लगायें।
श्रीमद्भागवत कथा के कुछ खास नियम:- श्रीमद्भागवत कथा का वक्ता विद्वान ब्राह्मण, शास्त्रज्ञ, देवभक्त, निर्लोभी, आचारवान, संयमी, एवं संशय निवारण में समर्थ होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। श्रीमद्भागवत कथा में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करके कलश की स्थापना करनी चाहिये। गणेश, नवग्रह, योगिनी, मातृका , क्षेत्रपाल, बटुक, तुलसी, विष्णु, शंकर आदि की पूजा करके भगवान नारायण की अराधना करनी चाहिये। कथा के दिनों में श्रोता एवं वक्ता को क्षौर-मुण्डन आदि नहीं कराना चाहिये। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, संयमित, शुद्ध आचरण तथा अहिंसाशील होना चाहिये। प्याज, लहसून, माँस-मदिरा, धूम्रपान इत्यादि तामस पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये तथा वक्ता एवं श्रोता को इनका तथा स्त्री संग का त्याग करना चाहिये। इस प्रकार श्रीमद्भागवत की कथा सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।
2. श्रीमद्भागवत कथा करने से मनुष्य अपने सुन्दर भाग्य का निर्माण शुरू कर देता है। वह ईह लोक में सभी प्रकार के भोगों को भोग कर परलोक में भी श्रेष्ठता को प्राप्त करता है।
3. श्रीमद्भागवत कथा मनुष्य को जीना सिखाती है तथा मृत्यु के भय से दूर करती है एवं पित्र दोषों को शान्त करती है।
4. जिस व्यक्ति ने जीवन में कोई सत्कर्म न किया हो, सदैव दुराचार में लिप्त रहा हो, क्रोध रूपी अग्नि में जो हमेशा जलता रहा हो, जो व्यभिचारी हो गया हो, परस्त्रीगामी हो गया हो, यदि वह व्यक्ति भी श्रीमद्भागवत की कथा करवाये तो वह भी पापों से मुक्त हो जाता है।
5. जो सत्य से विहीन हो गये हों, माता-पिता से भी द्वेष करने लगे हों, अपने धर्म का पालन न करते हों, वे भी यदि श्रीमद्भागवत कथा सुनें तो वे भी पवित्र हो जाते हैं।
6. मन-वाणी, बुद्धि से किया गया कोई भी पापकर्म-चोरी करना, छद्म करना, दूसरों के धन से अपनी आजीविका चलाना, ब्रह्म-हत्या करने वाला भी यदि सच्चे मन से श्रीमद्भागवत कथा सुनले तो उसका भी जीवन पवित्र हो जाता है।
7. जीवन-पर्यन्त पाप करने के पश्चात् मरने के बाद भयंकर प्रेत-योनि (भूत योनि) में चला गया व्यक्ति के नाम पर भी यदि हम श्रीमद्भागवत की कथा करवायें तो वह भी प्रेत-योनि से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर लेता है।
श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन स्थान :- श्रीमद्भागवत कथा करवाने के लिये स्थान अत्यधिक पवित्र होना चाहिये। जन्म भूमि में श्रीमद्भागवत कथा करवाने का विशेष महत्व बताया गया है - जननी जन्मभूमिश्चः स्वर्गादपि गरियशी - इसके अतिरिक्त हम तीर्थों में भी श्रीमद्भागवत कथा का आयोजन कर विशेष फल प्राप्त कर सकते हैं। फिर भी जहाँ मन को सन्तोष पहुँचे, उसी स्थान पर कथा करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है। कथा के लिये स्थान का निर्वाचर करके सर्वप्रथम भूमि का मार्जन और गोबर से लेप करना चाहिये। वहाँ एक मण्डप और उसके ऊपर गुम्बद के आकार का चन्दोवा लगाकर तथा हनुमान जी के लिये एक झण्डा लगायें तथा पित्रों के निमित्त एक सात गाँठ वाले बाँस लगायें।
श्रीमद्भागवत कथा के कुछ खास नियम:- श्रीमद्भागवत कथा का वक्ता विद्वान ब्राह्मण, शास्त्रज्ञ, देवभक्त, निर्लोभी, आचारवान, संयमी, एवं संशय निवारण में समर्थ होना चाहिये। उसे शास्त्रों एवं वेदों का सम्यक् ज्ञान होना चाहिये। श्रीमद्भागवत कथा में सभी ब्राह्मण सदाचारी हों और सुन्दर आचरण वाले हों। वो सन्ध्या बन्धन एवं प्रतिदिन गायत्री जाप करते हों। ब्राह्मण एवं यजमान दोनों ही सात दिनों तक उपवास रखें। केवल एक समय ही भोजन करें। भोजन शुद्ध शाकाहारी होना चाहिये। स्वास्थ्य ठीक न हो तो भोजन कर सकते हैं।
प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्रों को धारण करके कलश की स्थापना करनी चाहिये। गणेश, नवग्रह, योगिनी, मातृका , क्षेत्रपाल, बटुक, तुलसी, विष्णु, शंकर आदि की पूजा करके भगवान नारायण की अराधना करनी चाहिये। कथा के दिनों में श्रोता एवं वक्ता को क्षौर-मुण्डन आदि नहीं कराना चाहिये। उन्हें ब्रह्मचर्य का पालन, सात्विक भोजन, संयमित, शुद्ध आचरण तथा अहिंसाशील होना चाहिये। प्याज, लहसून, माँस-मदिरा, धूम्रपान इत्यादि तामस पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिये तथा वक्ता एवं श्रोता को इनका तथा स्त्री संग का त्याग करना चाहिये। इस प्रकार श्रीमद्भागवत की कथा सुनने से मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है।
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