अखण्ड भारत की एकता का संवाहक एकमात्र संगठन :- राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की जब स्थापना हुई ,उस समय अपने हिंदू समाज
की स्थिति ऐसी थी कि जो उठता था वही हिंदू
समाज पर आक्रमण करता था और यह दृश्य बना हुआ था कि जब कभी भी कोई आक्रमण होगा तो हिंदू मरेगा, हिंदू
लूटेगा .यह एक परम्परा बन गयी थी हिंदू यानि दब्बू, हिंदू यानि सहनशील, हिंदू यानि
गौ जैसा बड़ा ही शांत रहने वाला प्राणी. इसका तुम अपमान करो तो वह प्रतिकार नहीं करता,
सब कुछ सहन करता है. इसको मारो तो चुप-चाप मार खाता है . इसलिए देश और समाज
को संगठित रखने के लिए आर एस एस की स्थापना हुई,क्योकि अगर आज आरएसएस न होता तो इस
देश में सेक्युलरिज्म का फायदा उठाकर इतने अलगाववादी सगंठन और शक्तियां पनप जाती ,
कि उनको संभालना मुश्किल हो जाता. आरएसएस वो संगठन है जिसके अन्दर भारत की आत्मा बसी
है, देश प्रेम और सेवा इसका मुख्य आधार है .ये कांग्रेस और कथित सेक्युलरो के दुष्प्रचार
से कभी भी आहत नहीं हुआ है. आरएसएस तो जहर को अपने अन्दर आत्मसात करके लोगो को अमृत
देता है। आज भी देश के किसी भी हिस्से में कोई
आपदा आती है -तो सबसे पहले आरएसएस लोगो की सहायता के लिए पहुचता है और बिना किसी भेदभाव
के इंसानों की सेवा करता है. आरएसएस दुनिया का सबसे बडा स्वयंसेवी संगठन है .और जब
तक आरएसएस है ,तब तक भारत अखंड है. अगर आरएसएस की स्थापना 10 साल देर से होती तो पाकिस्तान की सीमा आगरा
तक होती. हम इस सत्यता को स्वीकारे और अच्छे नागरिक होने का परिचय दें.
विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान :- राष्ट्रीय
स्वयंसेवक संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी संस्थान है। यह संघ या आरएसएस के नाम
से अधिक लोकप्रिय है। इसका मुख्यालय महाराष्ट्र के नागपुर में है।आज से 92 वर्ष
पहले 27 सितम्बर 1925 को विजयदशमी के शुभ अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की
स्थापना डॉ0 केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा की गयी थी। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की
पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे। आज देशभर में 50 हजार से अधिक शाखाएं और
उनसे जुड़े लाखों स्वयंसेवक हैं।संघ की पहली शाखा में सिर्फ 5 लोग शामिल हुए थे,
जिसमें सभी बच्चे थे. उस समय में लोगों ने हेडगेवार जी का मजाक उड़ाया था कि
बच्चों को लेकर क्रांति करने आए हैं. लेकिन अब संघ विश्व का सबसे बड़ा स्वयंसेवी
और हिंदू संगठन है. सांप्रदायिक हिंदूवादी, फ़ासीवादी और
इसी तरह के अन्य शब्दों से पुकारे जाने वाले संगठन के तौर पर आलोचना सहते और सुनते
हुए भी संघ को कम से कम 9 दशक हो चुके हैं. दुनिया में शायद ही किसी संगठन की इतनी
आलोचना की गई होगी. वह भी बिना किसी आधार के. संघ के ख़िलाफ़ लगा हर आरोप आख़िर में
पूरी तरह कपोल-कल्पना और झूठ साबित हुआ है. जब 1962 में देश पर चीन का आक्रमण हुआ था.
तब देश के बाहर पंचशील और लोकतंत्र वग़ैरह आदर्शों के मसीहा जवाहरलाल न ख़ुद को संभाल
पा रहे थे, न देश की सीमाओं को. लेकिन संघ अपना काम कर रहा था.स्वतंत्र भारत में आरएसएस ही ऐसा संगठन है जो इतने दुष्प्रचार
और हमलों के बावजूद निरंतर राष्ट्र निर्माण के कार्य में लगा हुआ है. ये देश का दुर्भाग्य है कि यहां फर्जी
महात्मा व चाचा को हमारी पहचान पर थोप दिया गया है. वहीं वर्षो से राष्ट्र के नाम जीवन
अर्पण कर कार्य करने वाले राष्ट्र भक्तो की कही कोई चर्चा नही होती, बल्कि उल्टा उन्हे
विघटनकारी ताकते ठहरा दिया जाता है। आरएसएस एक
ऐसा महासागर है जिसके अन्दर दोगले लोगो की गन्दी मानसिकता को अपने अन्दर समाने की शक्ति
है.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आजादी और बादमें योगदान :-संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी। जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे। विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे।1962 के युद्ध में सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद कर जवानों के कदम से कदम मिलाया। 1962 के युद्ध में सेना की मदद के कारण जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा. मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए।कश्मीर के विलय हेतु सरदार पटेल ने संघ के द्वितीय सर संघचालक श्री गुरु गोलवलकर से मदद मांगी. तब गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले. इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का आजादी और बादमें योगदान :-संघ के स्वयंसेवकों ने अक्टूबर 1947 से ही कश्मीर सीमा पर पाकिस्तानी सेना की गतिविधियों पर बगैर किसी प्रशिक्षण के लगातार नज़र रखी। जब पाकिस्तानी सेना की टुकड़ियों ने कश्मीर की सीमा लांघने की कोशिश की, तो सैनिकों के साथ कई स्वयंसेवकों ने भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करते हुए लड़ाई में प्राण दिए थे। विभाजन के दंगे भड़कने पर, जब नेहरू सरकार पूरी तरह हैरान-परेशान थी, संघ ने पाकिस्तान से जान बचाकर आए शरणार्थियों के लिए 3000 से ज्यादा राहत शिविर लगाए थे।1962 के युद्ध में सेना की मदद के लिए देश भर से संघ के स्वयंसेवक जिस उत्साह से सीमा पर पहुंचे, उसे पूरे देश ने देखा और सराहा. स्वयंसेवकों ने सरकारी कार्यों में और विशेष रूप से सैनिक आवाजाही मार्गों की चौकसी, प्रशासन की मदद, रसद और आपूर्ति में मदद कर जवानों के कदम से कदम मिलाया। 1962 के युद्ध में सेना की मदद के कारण जवाहर लाल नेहरू को 1963 में 26 जनवरी की परेड में संघ को शामिल होने का निमंत्रण देना पड़ा. मात्र दो दिन पहले मिले निमंत्रण पर 3500 स्वयंसेवक गणवेश में उपस्थित हो गए।कश्मीर के विलय हेतु सरदार पटेल ने संघ के द्वितीय सर संघचालक श्री गुरु गोलवलकर से मदद मांगी. तब गुरुजी श्रीनगर पहुंचे, महाराजा से मिले. इसके बाद महाराजा ने कश्मीर के भारत में विलय पत्र का प्रस्ताव दिल्ली भेज दिया।
1965 के पाकिस्तान से युद्ध के समय लालबहादुर शास्त्री को भी संघ याद आया
था. शास्त्री जी ने क़ानून-व्यवस्था की स्थिति संभालने में मदद देने और दिल्ली का
यातायात नियंत्रण अपने हाथ में लेने का आग्रह किया, ताकि इन कार्यों से मुक्त किए
गए पुलिसकर्मियों को सेना की मदद में लगाया जा सके। 1965 के पाकिस्तान से युद्ध के
समय देश में युद्ध के समय घायल जवानों के लिए सबसे पहले रक्तदान करने वाले भी संघ
के स्वयंसेवक होते थे. युद्ध के दौरान कश्मीर की हवाईपट्टियों से बर्फ़ हटाने का
काम संघ के स्वयंसेवकों ने किया था। गोवा के विलय के समय दादरा, नगर हवेली और गोवा
के भारत विलय में संघ की निर्णायक भूमिका थी. 21 जुलाई 1954 को दादरा को
पुर्तगालियों से मुक्त कराया गया, 28 जुलाई को नरोली और फिपारिया मुक्त कराए गए और
फिर राजधानी सिलवासा मुक्त कराई गई। गोवा के विलय के समय संघ के स्वयंसेवकों ने 2
अगस्त 1954 की सुबह पुतर्गाल का झंडा उतारकर भारत का तिरंगा फहराया, पूरा दादरा
नगर हवेली पुर्तगालियों के कब्जे से मुक्त करा कर भारत सरकार को सौंप दिया. संघ के
स्वयंसेवक 1955 से गोवा मुक्ति संग्राम में प्रभावी रूप से शामिल हो चुके थे. हिन्दू धर्म में सामाजिक
समानता के लिये संघ ने दलितों व पिछड़े वर्गों को मन्दिर में पुजारी पद के प्रशिक्षण
का पक्ष लिया है. आरएसएस के चौथे प्रचारक राजेंद्र सिंह उर्फ रज्जू भैया की आत्मकथा
में लिखा है कि उत्तरप्रदेश में गौहत्या पर प्रतिबंध 1955 में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता
और तत्कालीन सीएम गोविंद वल्लभ पंत ने रज्जू भैया के कहने पर ही लगाया गया था. 1971 में ओडिशा में आए भयंकर चंक्रवात से लेकर भोपाल
की गैस त्रासदी तक, 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों से लेकर गुजरात के भूकंप, सुनामी
की प्रलय, उत्तराखंड की बाढ़ और कारगिल युद्ध के घायलों की सेवा तक - संघ ने राहत और
बचाव का काम हमेशा सबसे आगे होकर किया है. भारत में ही नहीं, नेपाल, श्रीलंका और सुमात्रा
तक में RSS ने अपने सेवा
प्रकल्पों से मानव मात्र की सहायता किया है.
दूसरी आजादी
में योगदान :- 1975 में जब आपातकाल की घोषणा हुई तो तत्कालीन जनसंघ पर भी संघ के साथ
प्रतिबंध लगा दिया गया.1975 से 1977 के बीच आपातकाल के ख़िलाफ़ संघर्ष और जनता पार्टी के गठन तक
में संघ की भूमिका की याद अब भी कई लोगों के लिए ताज़ा है. सत्याग्रह में हजारों
स्वयंसेवकों की गिरफ्तारी के बाद संघ के कार्यकर्ताओं ने भूमिगत रह कर आंदोलन
चलाना शुरु किया. 1975 से 1977 के बीच आपातकाल में जब लगभग सारे ही नेता जेलों में
बंद थे, तब सारे दलों का विलय करा कर जनता पार्टी का गठन करवाने की कोशिशें संघ की
ही मदद से चल सकी थीं. केन्द्र में मोरारजी देसाई के प्रधानमन्त्रित्व में मिलीजुली सरकार बनी.
1975 के बाद से धीरे-धीरे इस संगठन का राजनैतिक महत्व बढ़ता गया और इसकी परिणति भाजपा
जैसे राजनैतिक दल के रूप में हुई जिसे आमतौर पर संघ की राजनैतिक शाखा के रूप में देखा
जाता है. संघ की स्थापना के 75 वर्ष बाद सन् 2000 में प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी
के नेतृत्व में एन०डी०ए० की मिलीजुली सरकार भारत की केन्द्रीय सत्ता पर आसीन हुई. 2014
में भारी बहुमत से केन्द्र में एनडीए की तथा 14 राज्यों में भाजपा व उसके मित्र दल
की संयुक्त सरकारें यह बतलाती हैं कि इस संगठन का योगदान कागजी ना होकर वास्तविक धरातल
पर भी है. यह आर एस एस की विचारधारा ही है जो भारत को आज सम्मान के साथ सिर उंचा करने
में गर्व महशूस हो रहा है.
सामाजिक समरसता संघ का लक्ष्य:- सामाजिक समरसता के लक्ष्य को लेकर
देशभर में 3563 प्रकल्प इस समय चल रहे हैं. महाराष्ट्र की संस्था “भटके विमुक्त
विकास प्रतिष्ठान’ यहां की एक घुमन्तु जनजाति “पारदी’ के उत्थान का कार्य कर रही
है. मगर सांगवी गांव में पारदियों के 25 परिवारों को बसाया गया है, उनके बच्चों को
विद्यालयों में भर्ती कराया गया है. पेड़-पौधों की अंधाधुंध कटाई और गैर कानूनी
निर्माण कार्यों ने पर्यावरण पर गम्भीर संकट खड़ा कर दिया है. वनों के संरक्षण के
लिए हिन्दू सेवा प्रतिष्ठान के आरोग्य विकास प्रकल्प ने कराया.
न्यायपालिका ने भी सराहा:-सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज के.टी. थॉमस ने कहा कि वह इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते कि सेक्युलरिज्म धर्म की रक्षा के लिए है. अगर पूछा जाए कि भारत में लोग सुरक्षित क्यों हैं, तो मैं कहूंगा कि देश में एक संविधान है, लोकतंत्र हैं, सशस्त्र बल हैं और चौथा आरएसएस है. मैं ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि आरएसएस ने आपातकाल के विरुद्ध काम किया. इमरजेंसी के खिलाफ आरएसएस की मजबूत और सु-संगठित कार्यों की भनक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को भी लग गई थी. वह समझ गई कि यह ज्यादा दिन तक नहीं चल पाएगा. उन्होंने कहा है कि सेक्युलरिज्म का विचार धर्म से दूर नहीं रखा जाना चाहिए. 31 दिसंबर को कोट्टयम में संघ के प्रशिक्षण कैंप को संबोधित करते हुए पूर्व जज ने कहा, ”अगर किसी एक संस्था को आपातकाल के दौरान देश को आजाद कराने का श्रेय मिलना चाहिए, तो मैं वह श्रेय आरएसएस को दूंगा . संघ अपने स्वयंसेवकों में ”राष्ट्र की रक्षा” करने हेतु अनुशासन भरता है. उन्होंने कहा, ”सांपों में विष हमले का सामना करने के लिए हथियार के तौर पर होता है। इसी तरह, मानव की शक्ति किसी पर हमला करने के लिए नहीं बनी है. शारीरिक शक्ति का मतलब हमलों से (खुद को) बचाने के लिए है, ऐसा बताने और विश्वास करने के लिए मैं आरएसएस की तारीफ करता हूं. मैं समझता हूं कि आरएसएस का शारीरिक प्रशिक्षण किसी हमले के समय देश और समाज की रक्षा के लिए है.” जस्टिस थॉमस ने कहा, ”माइनॉरिटीज सेक्युलरिज्म को अपनी रक्षा के लिए इस्तेमाल करती हैं, लेकिन सेक्युलरिज्म का सिद्धांत उससे कहीं ज्यादा है. इसका अर्थ है कि हर व्यक्ति के सम्मान की रक्षा होनी चाहिए. एक व्यक्ति का सम्मान किसी भेदभाव, प्रभाव और गतिविधियों से दूर रहना चाहिए. भारत में हिंदू शब्द कहने से धर्म निकल आता है, लेकिन इसे एक संस्कृति का पर्याय समझा जाना चाहिए। इसी लिए हिंदुस्तान शब्द का प्रयोग होता था. पूर्व में भी हिंदुस्तान ने सबको प्रेरित किया है, और अब वह शब्द आरएसएस और भाजपा द्वारा अलग किया जा रहा है.अल्पसंख्यकों को तभी असुरक्षित महसूस करना चाहिए जब वे उन अधिकारों की मांग शुरू कर दें जो बहुसंख्यकों के पास नहीं हैं.”
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