बागों पर विचार करने पर जब हम इतिहास के झरोखों में झांकते हैं तो आर्यों के पूर्व की आरण्यक संस्कृति झलक दिखलाई पड़ती है। मोहनजोदारों में भी पीपल बृक्ष की पूजा वाली मोहर प्रकाश में आई है। उस समय मानव जंगल-जंगल भोजन की तलाश में घूमता था। वेद उपनिषदों में सुन्दर उद्यानों का वर्णन मिलता है। हमारे ऋषि मुनि इन्हीं में बैठकर अपनी साधना करते रहे हैं। रामायण महाभारत का सारा कथानक भी जल, जंगल और जमीन के इर्द-गिर्द ही घूमता रहा है। बौद्धों के तपोवन में बोधि बृक्ष इसी कड़ी का प्रतिनिधित्व करते हैं। गुप्तकालीन हिन्दू उद्यान के विवरण तत्कालीन संस्कृत तथा पालि के जातक साहित्य में लिखित तथा स्मारकों के दृश्यो के चित्रणों के रुप में देखने को मिलने लगता है।
वन या उपवन
वन या उपवन संज्ञा पुंलिुग शब्द है जिसका एक अर्थ बाग बगीचा होता है इसे कुंज और फुलवारी भी कहा जाता है। उपवन का दूसरा अर्थ छोटे छोटे जंगल भी माना जाता है। अकेले ब्रज क्षेत्र में 12 बन व 24 उपबन का उल्लेख मिलता है। ब्रज के 12 बनों के नाम इस प्रकार है- मधुबन, तालबन,, कुमुदबन, बहुलाबन, कामबन, खिदिरबन, बृन्दाबन, भद्रवन, भांडीरबन, बेलबन, लोहबन और महाबन आदि। पुराणों में ब्रजक्षेत्र में 24 उपवन गिनाए गए हैं। ये निम्नवत हैं- अराट (अरिष्टवन), सतोहा (शान्तनु कुंड), गोबरधन, बरसाना, परमदरा, नंदगांव, संकेट, मानसरोवर, शेषशायी, बेलवन, गोकुल, गोपालपुर, परसोली, आन्योर, आदि बदरी, विशालगढ़, पियासो, अंजनखोर ,करहला, कोकिलावन, दधिबन (दधगांव), रावल, बच्छबन और कौरव बन आदि।
गार्डन सिटी के रुप में बंगलूर को जाना जाता है लेकिन सही मायने में आगरा के अतीत को देखकर हम इसे उद्यान सिटी या गार्डन सिटी कह सकते हैं। आगरा की भूमि मुगलकालीन राजाओं,बेगमों उच्च पदस्थ लोगों तथा साधु महात्माओं के स्मारकों, महलों ,बाग बगीचों व बगीचियों से भरी पड़ी है। मुगल पूर्व बागों में कैलाश, रेनुकता, सूरकुटी, बृथला, बुढ़िया का ताल आदि प्रमुख हैं। मुगलकालीन बागों की एक लम्बी श्रृंखला यहां देखने को मिलती है। ये मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- 1. अस्तित्व या वजूद वाले, 2. विना अस्तित्व वाले या विलुप्त और 3. केवल नाम के बाग। इनमें कुछ अवशेष के रूप में देखे जा सकते हैं कुछ समय के साथ मोहल्ले एवं बस्तियों की आवादी के कारण समाप्त हो चुके हैं। इन बागों में फल फूलों, सजावटी वृक्षों , छायादार वृक्षों , मेवादार वृक्षों तथा औषधिवाले वृक्षों का भरमार है। इनके पास कुएं, हौज, नदी, ताल , रहट, फव्वारे तथा सीढ़ियां आदि भी होती रहीं। यहां तरबूज, अंगूर, गुले सुर्ख, गुले नीलोफर के पौधे लगे हुए थे।
सिकन्दर लोदी , बाबर एवं हुमायूं के समय आगरा जमुना के दोनों तरफ आबाद था। अकबर के समय यह पूरब की अपेक्षा पश्चिम की ओर ज्यादा आबाद हुई थी। यमुना के दोनों किनारे लगभग 4 कोस के दायरे में मकबरे, हवेलियां , मंदिर, मस्जिद तथा बागों की लम्बी श्रृंखला थी। मुगलपूर्व ईरानी प्रभाव वाले बाग विकसित हुए हैं। बाबर का चारबाग का प्रचलन उसके पूर्व से हमारे साहित्य में मिलता आया है। मुगल उद्यान एक समूह हैं, उद्यान शैलियों का, जिनका उद्गम इस्लामी मुगल साम्राज्य में है। यह शैली फारसी बाग एवं तैमूरी बागों से प्रभावित है। आयताकार खाकों के बाग एक चारदीवारी से घिरे होते हैं। इसके खास लक्षण हैं, फव्वारे, झील, सरोवर, इत्यादि। मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर या तैमूर ने इसे चारबाग कहा था। बाबर ने कहा था, कि भारत में, इन बागों हेतु तेज बहते स्रोत नहीं हैं, जो कि अधिकतर पर्वतों से उतरी नदियों में मिलते हैं। जब नदी दूर होती जाती है, धारा धीमी पड़ती जाती है। आगरा का रामबाग इसका प्रथम उदाहरण माना जाता है। भारत एवं पाकिस्तान (तत्कालीन भारत) में मुगल उद्यानों के अनेकों उदाहरण हैं। इनमें मध्य एशिया बागों से काफी भिन्नता है, क्योंकि यह बाग ज्यामिति की उच्च माप का नमूना हैं। एक वर्गाकार बाग को चार छोटे भागों में, चार पैदल पथों द्वारा बाँटा जाता है। ताजमहल के बाग भी इसी शैली के उत्कृष्टतम उदाहरण हैं। अधिकतर मुगल मकबरों के बाग इसी शैली में बने हैं। इसके हरेक बाग में चार फूलों की बडी-बड़ी क्यारियाँ हैं। चारबाग का मूल फारस के एकाएमिनिड साम्राज्य कालीन कहा जाता है। यद्यपि भारतीय प्राच्य साहित्य में उद्यान उपवन आरण्यक आदि के पर्याप्त साक्ष्य भी मिलतें हैं जिन्हें हम नजरन्दाज नहीं कर सकते हैं ।
विदेशी इतिहासकार इबा कोच द्वारा ताजनगरी में खोजी गई मुगलिया विरासत को भारत सरकार का संस्कृति मंत्रालय सहेजने में जुटा है। ज्यादातर उद्यानों की भूमि पर पट्टे हैं। जिन पर ईंट-पत्थरों के मकान बन चुके हैं। इस पर चर्चा के लिए कुछ वर्ष पहले आगरा में एक अंतरराष्ट्रीय सेमिनार किया गया था। भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय ने ताजनगरी में यमुना नदी के दोनों ओर बने मुगलकालीन उद्यानों को संरक्षित करने की योजना बनाई थी। इस के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग, उप्र पर्यटन और जिला प्रशासन को ऑस्ट्रिया की इतिहासकार ईवा कोच की पुस्तक द कंप्लीट ताजमहल एंड द रिवर फ्रंट गार्डंस ऑफ आगरा में उल्लेखित उद्यानों को चिन्हित करने और रिपोर्ट तैयार करने का प्रयास किया है। ताज के पार्श्व में बहने वाली यमुना आज बदहाल है। उसमें जमा सिल्ट और रेत में यमुना किनारे बने घाट कहीं गुम हो गए हैं। कभी आगरा को यमुना के किनारे बने उद्यानों और हवेलियों के लिए जाना जाता था। उसके दोनों तटों पर 45 उद्यान, हवेलियां और मकबरे बने थे। 45 में से 13 उद्यान ही फिलहाल संरक्षित हैं। इनमें आठ का संरक्षण एएसआई कर रही है। 32 उद्यानों का अस्तित्व मिट चुका है।
आगरा में यमुना का दायें किनारे के बाग
सिकन्दरा अकबर के मकबरे का बाग, मरियम के मकबरे का बाग, हवेली खान-ए-दुर्रां, हवेली आगा खान, ताजमहल, बाग खान-ए-आलम, हवेली असालत खान, हवेली महाबत खान, हवेली होशदार खान, हवेली आजम खान, हवेली मुगल खान, हवेली इस्लाम खान, आगरा किला, हवेली दाराशिकोह, हवेली खान-ए-जहां लोदी, हवेली हाफिज खिदमतगार, हवेली आसफ खान, हवेली आलमगीर, हवेली आलमगीर, मस्जिद मुबारक मंजिल, हवेली शाइस्ता खान, हवेली जफर खान, शाइस्ता खां का मकबरा, हवेली वजीर खान, हवेली मुकीम खान, हवेली खलील खान, बाग-ए-राय शिवदास, बाग-ए-हाकिम काजिम अली, जफर खां का मकबरा, जसवंत सिंह की छतरी।
यमुना के बायें किनारे के बाग
बाग-ए-शाह नवाज खान, बुलंदबाग, बाग-ए-नूर अफशां (रामबाग), बाग-ए-जहांआरा, अनाम उद्यान, चीनी का रोजा, बाग-ए-ख्वाजा, बाग-ए-सुल्तान परवेज, एत्माद्दौला, बाग-ए-मुसावी खान सदर, बाग पादशाही, मोती बाग पादशाही, बाग पादशाही, लाल बाग पादशाही, द्वितीय चार बाग पादशाही, चारबाग पादशाही (चैबुर्जी), बाग-ए-मेहताब पादशाही (मेहताब बाग)।
मुगल शहंशाह शाहजहां के दरबार में कभी जिनका प्रभाव था, जिनकी हवेलियां ताजमहल के एकदम नजदीक थीं, वक्त ने न केवल उन हवेलियों का नाम ही भुला दिया बल्कि उनके अवशेष तक आंखों से ओझल होने के कगार पर थे। 350 साल पहले शहंशाह का बनवाया ताज तो बुलंदी से दुनिया भर में छाया, लेकिन मुगलिया दौर की ये धरोहरें उससे सटी होने पर भी अपना वजूद न बचा सकीं। आगरा के 40 बागों का जिक्र शैलचन्द्र की फारसी तथा मुन्शी कमरूद्दीन की उर्दू किताब में हुआ जयपुर सिटी पैलेस के 1720 के नक्शे के अनुसार 45 बागों का अध्ययन आस्ट्रेलियाई इतिहासकार ईबा कोच ने अपने कम्पलीट गार्डन आफ आगरा में किया है। ज्यादातर बाग ताज महल के आस पास तथा रामबाग के बीच में पाये जाते हैं।
सिकन्दर लोदी की बारादरी/मरियम का मकबरा - मरियम का मकबरा आगरा-मथुरा सड़क पर बायीं ओर तथा अकबर का मकबरा, सिकंदरा से पश्चिम की ओर स्थित है। इस मकबरे में आमेर (जयपुर) की राजपूत राजकुमारी, बादशाह अकबर की बेगम तथा जहागीर (सलीम) की मा मरियम जमानी के पार्थिव अवशेष हैं। 1495 ई. में सिकंदर लोदी द्वारा बनवाया गया यह भवन एक उत्सव मण्डप था। इस बारादरी में 1623 ई. में नवनिर्माण तथा पुननिर्माण कर इसे मकबरे में बदला गया। भूतल पर सिकंदर लोदी द्वारा बनवाए गए लगभग 40 प्रकोष्ठ हैं जिनपर चित्रकारी तथा पलस्तर युक्त दीवारों के जीर्ण-शीर्ण अवशेष हैं। भूतल के मध्य (केन्द्र) में मरियम की समाधि है। बारादरी का अग्रभाग लाल बालुआ-पत्थर का पृष्ठावरण है जो कई खण्डों में बॅंटा है तथा इन पर ज्यामितीय नमूने तथा निम्न उद्भृत ( ऐसी निर्मितियाॅं जिनमें आकृति आधार पटल से कुछ उभरी हुई होती है) नक्काशी की हुई है। इस संरचना के प्रत्येक कोनों पर अलंकृत अष्टफलकीय मीनार लगी हैं। मीनार के ऊपर पतले स्तम्भों पर टिका एक मण्डप है। ऊपरी मंजिल पर खुले आकाश के नीचे संगमरमर की समाधि है। मकबरे के ठीक सामने चारबाग पद्धति का एक सुन्दर व आकर्षक उद्यान स्थापित किया गया है।
अकबर का मकबरा - चारबाग प्रकार के विस्तृत उद्यान के केन्द्र में स्थित है। वर्गाकार योजना का यह मकबरा पाच तल ऊँचा है जिसका प्रत्येकतल क्रमशः छोटा होकर इसे पिरामिडनुमा आकार देता है। इसके चारो ओर परंपरागत चारबाग नमूने पर आधारित, थोड़े अवनत, इस बाग को चार चतुष्फलकों में बाटा गया है। प्रत्येक चतुष्फलक एक-दूसरे से एक ऊँचे रास्ते से अलग होता है, जिसके बीच में एक छिछली नाली है, जो एक-दूसरे को अलग करती है। यह बाग चारों ओर से एक ऊँचे परकोटे से घिरा है। इस परकोटे के दक्षिणी भाग में अंदर जाने के लिए एक राजसी प्रवेश द्वार है। अन्य दिशाओं में परकोटे में समरूपता दिखाने के लिए छद्म द्वार बने हैं।
रामबाग (अराम बाग)- भारत का पहला मुगल गार्डन था, जिसे बाबर ने 1528 में बनवाया था। यह वह विशिष्ट चार बाग नहीं है, जिसे आम तौर पर पाया जाता है। यह स्वर्ग के फारसी आदर्श से निकला है और जैसे इस बाग में प्रवेश किया जाता है। एक बिल्कुल सादे प्रवेश द्वार के माध्यम से जहां एक असाधारण लंबा, उठा हुआ, लाल बलुआ पत्थर का पैदल रास्ता यमुना नदी के किनारे तक फैला हुआ है। यह रास्ता जियोमेट्रिक वॉटर चैनल और वाटर पूल के साथ काटा गया है। घास गंदगी के रास्ते दोनों ओर समकोण पर तब तक विकीर्ण होते हैं जब तक कि एक और प्रशस्त क्षेत्र यमुना की ओर जाने वाले मार्ग का लगभग 4 भाग बन जाता है। 2 मंडप नदी के पास और एक पक्के आँगन के पास स्थित हैं, प्रत्येक कोने पर छतरियाँ भी हैं। बाबर को गर्मी का आनंद नहीं मिला और उसने यमुना से निकलने वाली हवा को प्रचुर पानी के चैनलों के साथ जोड़ दिया और राहत की सांस ली। इसके अलावा उन्होंने एक तखना स्थापित कियाय एक भूमिगत कमरा जिसने उसे ठंडा रखने में सक्षम किया। मैंने पढ़ा है कि कभी-कभी ये टेकखान नदियों के नीचे बनाए जाते थे, इसलिए उनकी दक्षता में इजाफा हुआ। इसके अलावा हवा पकड़ने वाले टावरों (बिलगिरों) ने उन्हें ठंडा करने वाली हवा को मोड़ दिया। उद्यान अच्छी तरह से पेड़ों और फूलों की झाड़ियों के साथ लगाए गए हैं। पक्षी, बंदर, गिलहरी और तितलियाँ लाजिमी हैं। बगीचा बहुत बड़ा है और आम तौर पर काफी सभ्य क्रम में है, हालांकि इसमें सुधार की गुंजाइश है। जब मराठों ने 1775 ई. से 1803 ई. तक आगरा पर अधिकार कर लिया, तो उस समय अपभ्रंशित होकर इसका नाम रामबाग हो गया। बाग-ए-नूर-अफसाँ के रूप में इसका प्रथम ऐतिहासिक वर्णन देखकर कुछ इतिहासकारों को ऐसा लगा कि इसके नाम की उत्पत्ति काबुल के बाग-ए-नूर-अफसाँ या नूर-अफसाँ से हुई है। चाहरदिवारी से घिरा बागरू-यह बाग ऊँची चाहरदिवारी से घिरा हुआ है। चारों ओर फैला हुआ यह भव्य बाग नहर के जरिए चार भागों में बंटा हुआ है। इस्लाम में जन्नत के बाग या चारबाग की जो अवधारणा है, रामबाग उसी का प्रतीक है।बाग के नहर में पानी यमुना नदी से तीन चबूतरों पर बने झरने से आता है। बाग में दो गुंबददार इमारत भी है, जिसका रुख यमुना नदी की ओर है। इसमें तयखाना भी है, जिसमें कड़ी गर्मी के समय शाही परिवार शरण लेता था। इस बाग की खूबसूरती बेजोड़ है। इसमें ढेर सारे आड़े-तिरछे पानी के रास्ते और फव्वारे हैं। बाग के कोने की बुर्जियों के ऊपर स्तम्भयुक्त मंडप है। नदी के किनारे दो- दो मंजिले भवनों के बीच में एक ऊँचा पत्थर का चबूतरा है। इन संरचनाओं में परिवर्तन पहली बार जहाँगीर के शासनकाल में तथा दूसरी बार ब्रिटिश शासनकाल में हुआ। इस स्मारक के उत्तरी-पूर्वी किनारे में एक दूसरा चबूतरा है जहाँ से हम्माम के लिए रास्ता है। हम्माम की छत मेहराबदार है। नदी के किनारे बनाए गए इस बाग को ऊपर से देखने पर ऐसा लगता है कि यह मुगलकालीन विहार उद्यान का विशिष्ट उदाहरण है। नदी से पानी निकालकर एक चबूतरे से बहते हुए चैड़े नहरों, हौजों (कुंडों), जलप्रपातों के समूहों (तंत्रों) के रास्ते दूसरे चबूतरे में बहाया जाता था। मुगल बादशाह जहांगीर की पत्नी बेगम नूरजहां ने इस बाग का नवीनीकरण भी करवाया था।
रामबाग के दक्षिण में अनेक उद्यान- जहाराबाग बहुत ही दयनीय सिथति में हैं। इसका ज्यादातर हिस्सा जवाहर पुल के निर्माण में दब गया है। इसे मुमताज महल ने अपनी बेटी की स्मृति में बनवाया था हो सकता है यहां उसकी कब्र भी रही हो। यहां यह भवन ना होकर सीताराम जी के नाम का एक मंदिर बना हुआ मिलता है। बाग की कुछ छतरियों के अवशेष ही देखे जा सकते हैं। इसके दक्षिण में चीनी का रोजा बना हुआ है।यह शाहजहां के मंत्री अल्लामा अफजलखान शकरउलला शिराज का मकबरा व उद्यान कहा जाता है। यह 1635 में बना एकमात्र पारसी इमारत है। इसमें चीनी टाइलें लगी हैं। इसका गोलाकार गुम्बद है। इसके सामने बहुत ही उम्दा किस्म का बाग बना हुआ है जिसमें पैदल पथ फूल पत्ते तथा क्यारियां बनी हुई हैं। इसके और दक्षिण बाग वजीर खान है। इसी नाम को एक मोहल्ला भी यहां बना हुआ है। वजीन खां शाहजहां के दरबारी थे। थोड़ा और दक्षिण जाने पर शहजादे परवेज के नाम का मकबरा व बाग है। यह 1626 में बनवाया गया था। परवेज शाहजहां का भाई था। उसके निधन के बाद उसका परिवार यहां रहता था। उसके बेटी की शादी दारा शिकोह से हुई थी।
चौबुर्जी बाबर का चारबाग- चौबुर्जी जिसका मूल रूप है बाग.ए.ज़ार अफ़शान ने कहा थाए भारत का सबसे पुराना मुगल उद्यान है। इसे 1528 में मुगल सम्राट बाबर ने बनवाया था। बताते हैं कि बाबर को बगीचा में काम करने वाली एक महिला से प्यार हो गया था और इस महिला के जवाब के लिए बाबर को बगीचे में ही छह दिनों तक इंतजार करना पड़ा था ।एत्माद्दौला के सामने स्थित चौबुर्जी एक कोने में वीरान पड़ी है।1530 ई. में जब बाबर की मृत्यु हुई तो अंतिम समाधिस्थल काबुल ले जाने से पूर्व उसे अस्थायी तौर पर इसी बाग में दफनाया गया था। चौबुर्जी में बाबर के शव को छह माह तक रखा गया थाए बाद में उसे काबुल ले जाया गयाण् चौबुर्जी में चार बुर्जी हैंण् इसके पीछे हमाम हुआ करता थाए जिसके अब अवशेष मात्र है।इसमें चार टैंक भी हैंए जिनमें पानी भरा रहता थाण् इससे यहां फाउंटेन चलते थे इस इमारत की खास बात ये है कि इसके किसी भी कोने में बैठने से लगातार हवा आती है। चार बुर्जी होने के कारण इसका नाम चौबुर्जी पड़ा 1526 में बाबर आगरा आया तो उसने यमुना के किनारे आरामबाग और चारबाग बनवाया। बाबर के टाइम में चारबाग में पॉश एरिया होता थाण् यह रामबाग की तरह आबाद था यहां बहुत पेड़ हुआ करते थे। ये एक हराभरा पीसफुल प्लेस हुआ करता था। चौबुर्जी में जहां बाबर के इंतेकाल के बाद उसके शव को दफनाया गया। बाद में बाबर की इच्छानुसार उसके शव को काबुल ले जाकर दफनाया गया था। चौबुर्जी में दो शाही कुए हुआ करते थे जो शायद अब बंद हो गये हैं यहां चारबाग में बहुत पेड़ थे लेकिन अब यहां लोगों ने कब्जा कर लिया है।
एत्मदौल्ला का मकबरा
एत्माद-उद-दौला का मकबरा यमुना नदी के बांयी तट पर, चीनी का रोजा के बाद है। एत्माद-उद-दौला, साम्राज्य के खजाँची तथा जहाँगीर के शासनकाल में वजीर के पद पर पदोन्नत साम्राज्ञी नूरजहाँ के पिता-मिर्जा गियास बेग को दी गई उपाधि थी। नूरजहाँ ने अपने पिता के मकबरे का निर्माण उनकी मृत्यु के लगभग 7 वर्ष बाद 1628 ई. में पूरा करवाया। यह मकबरा चारबाग प्रणाली के एक बाग के मध्य बना है जो चारों ओर से ऊँची दीवारों से घिरा हुआ खड़ा है। एक उठी हुई बलुआ-पत्थर के चबूतरे पर खडा यह मकबरा श्वेत संगमरमर का बना हुआ है। एत्माद-उद्-दौला का मकबरा, इसके संपूर्ण सतह पर अत्यधिक बहुरंगी अलंकरण तथा नक्काशी के लिए प्रसिद्ध है। अलंकरण योजना में गुलदस्ता, गुलाब-जल के कलश, अंगूर, शराब की प्याली एवं बोतल का स्वतंत्र रूप से प्रयोग किया गया है। पुष्प संबंधी प्रमुख तत्वों का चित्रण अधिकांशतः मर्तबान के आकार के गुलदस्तों में चित्रकारी के रूप में है। यह अत्यंत रूचि का विषय है कि चित्रित खंडों की योजना में मानवाकृति भी बनायी गई है। बाग तथा मकबरे के चारों तरफ एक छिछली नाली बहती है जिसमें मूलतः नदी किनारे स्थित दो कंडों से पानी भरा जाता था।
अचानक बाग - एत्माद्दौला के पास ही हुमायूं मस्जिद कछपुरा में पहले अचनक बाग हुआ करता था। अचानक बाबर की दूसरी पुत्री थी। इस बाग में अचानक बंगम की कब्र रही। इस बाग के कुछ दरवाजे यमुना की तरफ खुलते थे।
मेहताबबाग- यमुना नदी के बाँये तट पर ताजमहल के विपरीत दिशा में स्थित बगीचे के परिसर को मेहताब बाग या श्चाँदनी बागश् के नाम से जाना जाता है। पहले यहाँ धरती पर केवल दक्षिणी चाहरदीवारी का एक भाग दक्षिण-पूर्वी बुर्जी ही दिखाई पड़ती थी। परंतु 1996-97 में विभाग द्वारा कराए गए पुरातत्वीय उत्खनन में 25 फब्बारों सहित एक विशाल अष्टभुजीय तालाब, एक छोटा केन्द्रीय कुंड पूर्वी बारादरी के अवशेष तथा उत्तरी प्रवेशद्वार निकला। उत्तरी तथा पूर्वी भाग में बुरी तरह से ध्वस्त चाहरदीवारी का भी पता चला है। यह स्थल काले पत्थर के ताजमहल की दन्तकथा से भी जुड़ा है परन्तु उत्खनन से इसके एक बाग परिसर होने के पर्याप्त प्रमाण मिले है। इस बात की पुष्टि शाहजहाँ को संबोधित औरंगजेब के पत्र से भी होती है जिसमें 1652 ई. के बाढ़ के बाद बाग की दशा का वर्णन है।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की उद्यान शाखा ने खुदाई में निकले अवशेषों के आधार पर इसे चारबाग प्रणाली पर आधारित एक विशिष्ट मुगल बाग के रूप में विकसित किया है। इस मुगल उद्यान में 40 से अधिक प्रजातियों के पौधे उगाए गये है। वृक्षों झाड़ियों तथा बेलो घासों की प्रजातियाँ जैसे नीम, मौलसरी, शहतूत, अमरूद, जामुन, गुड़हल, नींबू, रन्तजोत, चाँदनी, लाल कनेर, पील कनेर, चंदन, लिली, अनार, अशोक आदि लगाए गए है। ताजमहल के चारों ओर प्रदूषण कम करने के लिए हरित क्षेत्र बनाने के लिए इस बाग को विकसित किया गया है।
अंगूरीबाग, आगरा किला -मुगल शहंशाह अकबर ने आगरा किले का जीर्णोद्धार वर्ष 1565 से 1573 के दौरान कराया था। उसने यहां कई भवन बनवाए थे। उसका पुत्र जहांगीर अधिकांश समय कश्मीर एवं लाहौर में ही रहा, लेकिन आगरा की नियमित यात्राएं करता रहा। इस दौरान वह आगरा किले में ही प्रवास करता था। उसकी बेगम नूरजहां ने आगरा किले में खास महल के सामने अंगूरी बाग बनवाया था। इसके लिए कश्मीर से मिट्टी मंगवाई गई थी। बाग की खासियत है कि इसे षटकोण के डिजाइन में रेड सैंड स्टोन (लाल बलुआ पत्थर) द्वारा अलग-अलग भागों में बांटा गया है। केके मोहम्मद तत्कालीन अधीक्षण पुरातत्वविद, आगरा सर्किल के निर्देशन में उत्खनन कराया गया था। यहां खोदाई कर यह देखा गया था कि इसके नीचे कोई संरचना तो नहीं है। खोदाई में नीचे बाग की मूल संरचना मिली थी। बाद में ब्रिटिश काल में वही पैटर्न अपनाते हुए बाग लगवा दिया गया था।
ताजमहल का उद्यान
भारत में शाहजहाँ ने अपनी पत्नी मुमताज महल की याद में ताजमहल बनवाया। यहाँ इस शैली का उपयोग बहुत ही खूब है। अन्य ऐसे उदाहरणों से पृथक, ताजमहल चारबाग के मध्य में ना होकर इसके उत्तरी किनारे पर स्थित है। इस बाग में मोरपंखी के पेड़ लगे हैं। साथ ही फलों के पेड़ भी दिखाई देते हैं। मुगल उद्यान भारत में और साथ ही अन्य देशों में इस्लामी शैली में मुगलों द्वारा निर्मित कुछ ही बगीचे हैं। ताज के कॉम्प्लेक्स को घेरे है विशाल 300 वर्ग मीटर का चारबाग, एक मुगल बाग। इस बाग में ऊँचा उठा पथ है। यह पथ इस चार बाग को 16 निम्न स्तर पर बनी क्यारियों में बांटता है। बाग के मध्य में एक उच्चतल पर बने तालाब में ताजमहल का प्रतिबिम्ब दृश्य होता है। यह मकबरे एवं मुख्यद्वार के मध्य में बना है। यह प्रतिबिम्ब इसकी सुंदरता को चार चाँद लगाता है। अन्य स्थानों पर बाग में पेडो की कतारें हैं एवं मुख्य द्वार से मकबरे पर्यंत फौव्वारे हैं। इस उच्च तल के तालाब को अल हौद अल कवथार कहते हैं, जो कि मुहम्मद द्वारा प्रत्याशित अपारता के तालाब को दर्शाता है। चारबाग के बगीचे फारसी बागों से प्रेरित हैं, तथा भारत में प्रथम दृष्ट्या मुगल बादशाह बाबर द्वारा बनवाए गए थे। यह स्वर्ग (जन्नत) की चार बहती नदियों एवं पैराडाइज या फिरदौस के बागों की ओर संकेत करते हैं। यह शब्द फारसी शब्द पारिदाइजा से बना शब्द है, जिसका अर्थ है एक भीत्त रक्षित बाग। फारसी रहस्यवाद में मुगल कालीन इस्लामी पाठ्य में फिरदौस को एक आदर्श पूर्णता का बाग बताया गया है। इसमें कि एक केन्द्रीय पर्वत या स्रोत या फव्वारे से चार नदियाँ चारों दिशाओं, उत्तर, दक्षिण, पूर्व एवं पश्चिम की ओर बहतीं हैं, जो बाग को चार भागों में बांटतीं हैं।
अधिकतर मुगल चारबाग आयताकार होते हैं, जिनके केन्द्र में एक मण्डप मकबरा बना होता है। केवल ताजमहल के बागों में यह असामान्यता है कि मुख्य घटक मण्डप, बाग के अंत में स्थित है। यमुना नदी के दूसरी ओर स्थित माहताब बाग या चांदनी बाग की खोज से, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने यह निष्कर्ष निकाला है, कि यमुना नदी भी इस बाग के रूप का हिस्सा थी और उसे भी स्वर्ग की नदियों में से एक गिना जाना चाहिये था। बाग के खाके एवं उसके वास्तु लक्षण जैसे कि फव्वारे, ईंटें, संगमर्मर के पैदल पथ एवं ज्यामितीय ईंट-जड़ित क्यारियाँ, जो काश्मीर के शालीमार बाग से एकरूप हैं, जताते हैं कि इन दोनों का ही वास्तुकार एक ही हो सकता है, अली मर्दान। बाग के आरम्भिक विवरण इसके पेड़-पौधों में, गुलाब, कुमुद या नरगिस एवं फलों के वृक्षों के आधिक्य बताते हैं। जैसे जैसे मुगल साम्राज्य का पतन हुआ, बागों की देखे रेखे में कमी आई। जब ब्रिटिश राज्य में इसका प्रबन्धन आया, तो उन्होंने इसके बागों को लंडन के बगीचों की भांति बदल दिया।
ताजनगरी में 11 अप्रैल 2018 की शाम करीब 130 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से तूफान आया था। इसके साथ सर्वाधिक नुकसान उद्यान में हुआ था। यहां लगे 52 बड़े पेड़ और लगभग सौ छोटे पेड़-पौधे टूट गए थे। इनमें से कुछ पेड़ ब्रिटिश काल में और कुछ बाद में लगाए गए थे। ताज ट्रेपेजियम जोन (टीटीजेड) में केवल 6.73 फीसद क्षेत्रफल में ही हरित कवर होने से पेड़ों का टूटना अपूर्णनीय क्षति है। ताजमहल के उद्यान को फिर मुगलकालीन स्वरूप दिया । इसमें पुराने पेड़-पौधों से छेड़छाड़ नहीं , लेकिन हाल के तूफान में उखड़े 150 से ज्यादा पेड़ों की जगह वही पौधे लगेंगे, जो मुगलकाल में प्रयोग में लाए जाते थे। इसमें अधिकांश आंवला, अनार, अंजीर, जैतून जैसे फलदार वृक्ष थे।
ताज का उद्यान जन्नत के कांसेप्ट पर बना हुआ है। इसे बाग-ए-बहिश्त कहा जाता था। इसमें बीच-बीच में नहरें बनी हैं। मुगल काल में उद्यान काफी गहराई में था, और उसमें फलों व फूलों के पौधे लगे थे। बाद में ब्रिटिश पीरियड में उद्यान में मिट्टी का भराव कर उसे ऊंचा करा दिया गया। मुगल काल में उद्यानों में साइप्रस, अंजीर, जैतून, चंदन, अनार, आंवला आदि के पेड़ लगाए थे। वहीं फूलों में गुलाब, गुलदाउदी, गुलमोहर आदि प्रमुख होते थे। ताज महल में इस समय सिरस, मौलश्री, अशोक, अर्जुन, चंदन, कचनार, पाकड़, सेमल, नीम, आंवला, मौसमी, चीकू, आड़ू के पेड़ लगे हैं। फूलों के सीजनल पौधे लगाए जाते हैं। इन्हीं में से दर्जनों पेड़ों को नुकसान हुआ। जो पेड़ इस समय लगे हैं, उसमें कई बहुत पुराने हैं। यहां चंदन के अब कुछ ही पेड़ बचे हैं।
बाग खान-ए-आलम
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा ताज की पश्चिमी दीवार के बराबर में स्थित बाग खान-ए-आलम के पार्श्व में यमुना किनारे पर साइंटिफिक क्लीयरेंस कराई जा रही है। यहां छह दशक पूर्व तक बसई घाट था, जो आज सिल्ट और पत्थरों के रोके में दबा हुआ है। दरअसल, बाग-खान-आलम ही नहीं, यमुना किनारे पर मुगल काल में बागों और हवेलियों की यमुना के बायें तट पर आज केवल बाग-ए-नूर अफशां, चीनी का रोजा, एत्माद्दौला, मेहताब बाग ही अस्तित्व में हैं। अन्य बागों का कहीं पता नहीं है। नदी के दायें तट पर वर्तमान में हवेली खान-ए-दुर्रां, ताजमहल, बाग खान-ए-आलम, आगरा किला, दाराशिकोह की हवेली, जसवंत सिंह की छतरी ही बचे हैं। हवेली आगा खान के नाम पर केवल टीले हैं, वहीं दाराशिकोह की लाइब्रेरी एएसआइ द्वारा संरक्षित नहीं है
रीक्लेम्ड एरिया आफ ताज हेरिटेज कोरिडोर गार्डन
होशदार खान, आजम खान, मुगल खान और इस्लाम खान हवेलियों की जगह पर ताज हेरिटेज कारीडोर बन रहा है। ताजमहल और आगरा किला के बीच 20 एकड़ में फैली जमीन यमुना नदी का हिस्सा है, लेकिन रिवर फ्रंट गार्डन के तहत मुगलिया दौर में मौजूद बागीचों को इस कारीडोर स्थल पर बनाने की योजना है। इसे री-क्लेम्ड एरिया आफ ताज हेरिटेज कारीडोर नाम दिया गया है। इसमें मुगलकाल की हवेली होशदार खान, हवेली आजम खान, हवेली मुगल खान और हवेली इस्लाम खान की जगह पर प्रस्तावित है। इन चारों हवेलियों का उल्लेख आस्ट्रियाई इतिहासकार ईवा कोच की पुस्तक और राजा जय सिंह के पुराने नक्शे में मिलता है। ताज और आगरा किले के मोहक नजारों के बीच बनने वाले रिवरफ्रंट गार्डन के निर्माण में यह क्षेत्र खूबसूरत हो जाएगा। ताज हेरिटेज कॉरीडोर पर हरियाली विकसित करने को सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को निर्देश दिए थे। पिछले वर्ष केंद्रीय संस्कृति एवं पर्यटन मंत्रालय के दखल के बाद इसके लिए टास्क फोर्स गठित किया था। एएसआइ ने इसके लिए हाल ही में ताज हेरिटेज कॉरीडोर स्थल को संरक्षित स्मारक घोषित करने की अधिसूचना जारी की है। जिसमें हाथी घाट से लेकर बाग खान-ए-आलम तक का यमुना किनारे का क्षेत्र शामिल है।बाग खान-ए-आलम से आगरा किला के बीच मुगल सरदारों की हवेलियां थीं। जिनमें हवेली असालत खां, हवेली महाबत खां, हवेली आजम खां, हवेली मुगल खां और हवेली इस्लाम खां शामिल हैं। इनके अवशेष ही कहीं-कहीं नजर आते हैं।
हाल ही में संस्कृति मंत्रालय तथा पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने आगरा के किले और ताजमहल के बीच ताज कॉरिडोर क्षेत्र में ‘ताज व्यू गार्डन’ की नींव रखी। इस गार्डन के निर्माण का उद्देश्य बड़ी मात्रा में वृक्षारोपण करके ताजमहल के चारों ओर हरियाली को बढ़ावा देना है। इससे न केवल ताजमहल के आस-पास के प्रदूषण को कम करने में मदद मिलेगी बल्कि यह आगंतुकों को एक मनोरम दृश्य भी प्रदान करेगा। ताज व्यू गार्डन को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण द्वारा मुगलकालीन चारबाग उद्यान की तर्ज पर विकसित किया जा रहा है। चारबाग शैली उद्यान स्थापत्य की एक फारसी शैली है जिसमें एक वर्गाकार बाग को चार छोटे भागों में, चार पैदल पथों या बहते पानी द्वारा चार छोटे भागों में बाँटा जाता है। इस तरह की उद्यान शैली ईरान और भारत सहित संपूर्ण पश्चिमी और दक्षिण एशियाई देशों में पाई जाती है। भारत में हुमायूँ के मकबरे (दिल्ली) और ताज महल (आगरा) का निर्माण चारबागशैली में किया गया है।
हवेली खान-ए-दुर्रान:- मुगल बादशाह शाहजहां के दक्षिण के गवर्नर खान ए दुर्रान की हवेली ही अब ताज टैनरी के नाम से प्रचलित है। 1633 में दौलताबाद किले में उनका अहम योगदान रहा। मुगलिया दौर में ताजमहल से एकदम सटी उनकी हवेली ब्रिटिश काल में टैनरी में तब्दील हो गई, जिसमें आजादी के बाद तक आगरा की प्रमुख जूता कंपनी द्वारा टैनिंग का काम होता रहा। मुगलिया दौर के साथ कई निर्माण इसमें ब्रिटिश काल के भी हैं। इन दिनों ये वीरान है।।यह हवेली नदी के तट से लगा हुआ है।
हवेली आगा खां:-शहंशाह शाहजहां के दरबारी और फौजदार आगा खां की हवेली, खान-ए-दुर्रान हवेली और ताजमहल के बीच में है। आगा खां पर नदियों के किनारे कानून व्यवस्था बनाने की जिम्मेदारी थी और मुगल सेना के हजारों घोड़ों की देखरेख उनके पास थी। आगा खान मुमताज महल के लिए काम करने वाले किन्नर थे। वह 1652 तक आगरा में फौजदार भी रहे थे। ताजमहल की मुतावली भी उन्हीं के पास थी। उन्होंने शाह जहान के लिए 1652 में एक शिकारमहल भी बनवाया था। 1658 में आगा खां की मृत्यु हुई। हवेली की फाउंडेशन ही अब शेष है। यमुना नदी में कई बार आई बाढ़ से इस हवेली को नुकसान पहुंचा।।यह हवेली नदी के तट से लगा हुआ है। संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर दिया गया है।
हाथी खाना:-ताजमहल के पूर्वी गेट की ओर यमुना नदी के पास विशाल दरवाजा हाथीखाना के नाम से प्रचलित है। हाथी खाना के रास्ते हाथियों को रखने वाली जगह जाया जाता था। 17वीं सदी में अब्दुल हमीद लाहौरी द्वारा लिखित पादशाहनामा में हाथीखाना का जिक्र है। एएसआई के मुताबिक ताजमहल के निर्माण के दौरान संगमरमर और भारी पत्थरों को ढोने वाले हाथी इसी जगह रात को बांधे जाते थे। गुंबद के साथ यह दरवाजा विशाल है और किसी बड़े बाड़े का गेट प्रतीत होता है। यह भवन खाने दौरा के विल्कुल पीछे स्थित है। संस्कृति मंत्रालय ने राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित कर दिया गया है।
मुगलिया आगरा के गायब 23 बागीचे
मुगलिया आगरा के गायब 23 बागीचे
यमुना के बाएं ओर
बाग चर्चित नाम/हाल स्वामित्व
1. बाग ए शाह नवाज खान सतकुईयां एएसआई
2. बुलंद बाग 32 खंभा एएसआई
3. बाग ए नूर अफशां राम बाग एएसआई
4. बाग ए जहांआरा बस्ती, निजी, आबादी
5. अज्ञात उद्यान पौधशाला नजूल
6. अफजल खां का मकबरा (चीनी का रोजा) एएसआई
7. बाग ए ख्वाजा बाग निजी आबादी
8. बाग ए सुल्तान परवेज मकबरा निजी आबादी
9. एत्माद्दौला का मकबरा बेबी ताज एएसआई
10. बाग ए मुसावी खां सद्र अवशेष नहीं नजूल
11. बाग पादशाही अवशेष नहीं नजूल
12. मोती बाग पादशाही बस्ती निजी स्वामित्व
13. बाग पादशाही बस्ती निजी
14. लाल बाग पादशाही चारदीवारी के अवशेष निजी स्वामित्व
15. द्वितीय चार बाग पादशाही मजार सरकार/निजी
16. बाग ए हस्त बिहिश्त 11 सिड्डी एएसआई
17. बाग ए महताब महताब बाग एएसआई
यमुना के दाएं ओर
18. हवेली खान ए दुर्रान ताज टेनरी एएसआई नव संरक्षित
19. हवेली आगा खां अवशेष बचे एएसआई नव संरक्षित 20. ताजमहल सर्वाधिक संरक्षित एएसआई
21. बाग ए खान ए आलम सर्वाधिक संरक्षित एएसआई
22. असालत खां हवेली अवशेष बचे एएसआई नव संरक्षित
23. महावत खां हवेली अवशेष बचे एएसआई नव संरक्षित
24. हवेली होशदार खां आबादी वन विभाग ----------
25. हवेली आजम खां अवशेष आबादी, वन विभाग एएसआई नव संरक्षित
26. हवेली मुगल खां अवशेष नहीं वन विभाग --------
27. हवेली इस्लाम खां अवशेष बचे वन विभाग एएसआई नव संरक्षित
28. पादशाही किला सर्वाधिक संरक्षित एएसआई
29. दाराशिकोह की हवेली अवशेष नहीं बस्ती मौजूद
30. खान ए जहां लोधी हवेली दो बुर्ज मौजूद -----------
31. हाफिज खिदमतगार की हवेली अवशेष नहीं -----------
बाग चर्चित नाम/हाल स्वामित्व
1. बाग ए शाह नवाज खान सतकुईयां एएसआई
2. बुलंद बाग 32 खंभा एएसआई
3. बाग ए नूर अफशां राम बाग एएसआई
4. बाग ए जहांआरा बस्ती, निजी, आबादी
5. अज्ञात उद्यान पौधशाला नजूल
6. अफजल खां का मकबरा (चीनी का रोजा) एएसआई
7. बाग ए ख्वाजा बाग निजी आबादी
8. बाग ए सुल्तान परवेज मकबरा निजी आबादी
9. एत्माद्दौला का मकबरा बेबी ताज एएसआई
10. बाग ए मुसावी खां सद्र अवशेष नहीं नजूल
11. बाग पादशाही अवशेष नहीं नजूल
12. मोती बाग पादशाही बस्ती निजी स्वामित्व
13. बाग पादशाही बस्ती निजी
14. लाल बाग पादशाही चारदीवारी के अवशेष निजी स्वामित्व
15. द्वितीय चार बाग पादशाही मजार सरकार/निजी
16. बाग ए हस्त बिहिश्त 11 सिड्डी एएसआई
17. बाग ए महताब महताब बाग एएसआई
यमुना के दाएं ओर
18. हवेली खान ए दुर्रान ताज टेनरी एएसआई नव संरक्षित
19. हवेली आगा खां अवशेष बचे एएसआई नव संरक्षित 20. ताजमहल सर्वाधिक संरक्षित एएसआई
21. बाग ए खान ए आलम सर्वाधिक संरक्षित एएसआई
22. असालत खां हवेली अवशेष बचे एएसआई नव संरक्षित
23. महावत खां हवेली अवशेष बचे एएसआई नव संरक्षित
24. हवेली होशदार खां आबादी वन विभाग ----------
25. हवेली आजम खां अवशेष आबादी, वन विभाग एएसआई नव संरक्षित
26. हवेली मुगल खां अवशेष नहीं वन विभाग --------
27. हवेली इस्लाम खां अवशेष बचे वन विभाग एएसआई नव संरक्षित
28. पादशाही किला सर्वाधिक संरक्षित एएसआई
29. दाराशिकोह की हवेली अवशेष नहीं बस्ती मौजूद
30. खान ए जहां लोधी हवेली दो बुर्ज मौजूद -----------
31. हाफिज खिदमतगार की हवेली अवशेष नहीं -----------
32 से 43 हवेली के अवशेष नहीं निजी स्वामित्व
44. जफर खां मकबरा लाल मस्जिद एएसआई
45. जसवंत सिंह की छतरी संरक्षित एएसआई
23 हवेलियों, बागीचों के अवशेष नहीं
हवेली आसफ खां, हवेली आलमगीर, हवेली आलमगीर, मस्जिद मुबारक मंजिल, हवेली शाईस्ता खां, हवेली जाफर खां, शाईस्ता खां का मकबरा, हवेली वजीर खां, हवेली मुकीम खां, हवेली खलील खां, बाग ए राय शिवदास, बाग ए हाकिम काजिम अली को कोई अवशेष नहीं नजर आता। इसके साथ ही इस पूरे क्षेत्र में यमुना किनारे आबादी बसी हुई है।
44. जफर खां मकबरा लाल मस्जिद एएसआई
45. जसवंत सिंह की छतरी संरक्षित एएसआई
23 हवेलियों, बागीचों के अवशेष नहीं
हवेली आसफ खां, हवेली आलमगीर, हवेली आलमगीर, मस्जिद मुबारक मंजिल, हवेली शाईस्ता खां, हवेली जाफर खां, शाईस्ता खां का मकबरा, हवेली वजीर खां, हवेली मुकीम खां, हवेली खलील खां, बाग ए राय शिवदास, बाग ए हाकिम काजिम अली को कोई अवशेष नहीं नजर आता। इसके साथ ही इस पूरे क्षेत्र में यमुना किनारे आबादी बसी हुई है।
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