16 सितंबर 2025
अक्षय वट
गया जी का वटवृक्ष ब्रह्म सरोवर के पास स्थित है। यहां सर्व सिद्धिदायक एक अति प्राचीन और विशाल वटवृक्ष हैं जिसे बोधि वृक्ष भी कहा जाता है। इससे उत्तर बटेश्वर महादेव का मंदिर है । इसका रोपण ब्रह्मा ने स्वर्ग से लाकर किया। बाद में जगद्जननी सीता के आशीर्वाद से अक्षयवट की महिमा जगद विख्यात हुई। मुक्तिप्रद तीर्थ गया में जिस स्थान पर अंतिम पिंड होता है वह अक्षयवट ही है। विशाल जड़ों से युक्त बड़े क्षेत्र में विस्तृत अक्षय वट के प्रथम दर्शन से ही इसकी प्राचीनता का सहज अनुमान लग जाता है।
जब मां सीता जी ने दशरथ को पिण्ड दान कर साक्ष्य मांगा तो केवल अक्षयवट ने ही सत्यवादिता का परिचय देते हुए माता की लाज रखी थी। अक्षयवट को सत्य संभाषण हेतु अक्षय होने का आशीर्वाद माता सीता द्वारा प्राप्त हुआ था। यही कारण है कि कितनी भी गर्मी क्यों न हो
अक्षयवट सदैव हरा भरा रहता है।श्राद्ध समाप्ति के बाद यहां पर गयापाल पंडे के द्वारा सफल विदाई दी जाती है।अक्षयवट वृक्ष को गया श्राद्ध के अंतिम क्रिया का स्थल माना गया है।
सज्जा दान
अक्षय वट पर दान अमोघ होता है। हमारे गयापाल के प्रतिनिधि ने यहां हमारे द्वारा दिए पैसे से सज्जा दान का कार्यक्रम संपन्न कराया था। इसमें दरी चद्दर बरतन कपड़े मच्छरदानी चप्पल नारी का आभूषण श्रृंगार तथा घर गृहस्थी का पूरा सामान संकल्प कराया जाता है। 13 सितंबर के डांड का बकाया राशि भी बेरहमी से वसूल किया था।
पास की अन्य वेदियां
इस वेदी से संबंधित निम्न कुछ प्रमुख वेदियां इस प्रकार हैं -
1.वृद्ध प्रपिता माहेश्वर मंदिर , 2.रुक्मणी तालाब, 3.गदालोल दधिकुल्या 4. मधु कुल्या तीर्थ वेदी , 5.गदालोल वेदी और
6.गो प्रचार वेदी आदि। पर इनकी अवस्थिति और महत्व के बारे में आम तीर्थ यात्री की रुचि कम रह जाती हैं। वह चार पांच दिन के गया प्रवास से यहांके सत्कर्म और अपकर्म से निजात पाना चाहता है।
बट वृक्ष के बाद में सरोवर के लिए
वैतरणी सरोवर
वैतरणी सरोवर में गोदान व तर्पण करनेवाले श्रद्धालुओं के पितरों को भवसागर से मुक्ति की प्राप्ति होती है। उनके लिए स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं।
सरोवर पर सुबह से ही भीड़ देखी जा रही है। जहां पिंडदानी अपने पितरों के स्वर्ग लोक जाने को लेकर गोदान आदि विविध कर्म कांड कर रहे हैं। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने गया क्षेत्र में वैतरणी नदी को पितरों उतारने के लिए यमलोक से अवतरित करवाया था। इस तर्पण से 21 कुलो का उद्धार होता है। गोदान एवं तर्पण के बाद पिंडदानी पास में स्थित मारकंडे महादेव का दर्शन एवं पूजन करते हैं।
सीताकुंड शैय्या दान होटल पर
सीता कुण्ड वेदी का दान हर गृह पुरोहित का होता है। सीता जी ने गयापाल के द्वारा पिण्ड दान के साक्षी के रूप में झूठ बोलने के कारण ये दान और डांड गयापाल के लिए निषेध कर रखा है।अतएव गृह पुरोहित ने हर तीर्थ यात्री के कमरे में जाकर हर यात्री द्वारा घर से लाए माता पिता के
वस्त्र आभूषण ,दरी चद्दर बरतन,मच्छरदानी चप्पल नारी का आभूषण श्रृंगार तथा घर गृहस्थी का पूरा सामान संकल्प कराते हैं । हमने तो माता पिता और नाना नानी के वस्त्र आभूषण पहले से तैयार कर रखे थे। इनका दान कर बड़ी आत्म संतुष्टि मिली। इससे हमारे पुर्वज आनंदित हुए होंगे ऐसी भावना हमने अनुभव किया।
सभी तीर्थ यात्रियों का सामान दान संकल्प से कम हो गया। तीर्थ यात्रा में लाया पिंडे का बचा खुचा सामान और एक सप्ताह से पूजा पाठ में प्रयुक्त होने वाला थाली लोटा भी गृह पुरोहित के अधीन कर दिया गया। थोड़ा सा चावल रोककर शेष अक्षत चावल भी सौंप दिया गया। गृह पुरोहित के टीम के सहयोगी हर यात्री के पास जा जाकर अपने स्वामी को सहयोग कर रहे थे।
होटल से देवघर/ बाबा धाम के लिए प्रस्थान
शाम को कुछ विशेष भोजन यात्रा के आयोजकों द्वारा कराया गया और देर रात गया से झारखंड के लिए प्रस्थान किया गया। अब तक पिण्ड दान और तर्पण की प्रक्रिया चल रही थी। अब देव दर्शन की प्रक्रिया शेष यात्रा में चलेगी। अब तक मंदिर में प्रवेश कर देव निग्रह के दर्शन निषेध थे जो अब खुल गए हैं।
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