Thursday, October 2, 2025

राम शिला और आसपास की वेदियां (गया के तीर्थ 12)✍️ आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

रामशिला पहाड़ बिहार के गया शहर के उत्तर-पूर्व में विष्णु पद से लगभग 3 मील उत्तर फल्गु नदी के तट पर स्थित एक पवित्र और ऐतिहासिक स्थल है, जो भगवान राम के बनवास से जुड़ा हुआ है। जहां त्रेतायुग में भगवान राम अपने पूर्वजों को मुक्ति और मोक्ष दिलाने हेतु परिवार सहित गया आने पर निवास किए थे । उस स्थल का राम गया या राम शिला के नाम से ख्याति मिला है। त्रेता युग मे भगवान राम अपने पिता दशरथ जी की मृत्यु के बाद फल्गु तट पर पिण्डदान किया और उसके बाद यहाँ आ कर रामशिला पहाड़ के ठीक सामने सड़क के पार रामकुंड में भगवान राम ने स्नान कर रामशिला वेदी पर पिता राजा दशरथ को पिंड दिया था। राम शिला पहाड़ की ऊंचाई 715 फीट है. पहाड़ पर बने पातालेश्वर शिव और राम लक्ष्मण मंदिर दर्शनीय है।साथ ही वासुकीनाथ भी अपने अलौकिक रूप में नजर आते है। यहां पूजा-अर्चना करने से काल सर्प और असामयिक मृत्यु का भय दूर हो जाता है। शिव मंदिर का निर्माण टिकारी राज अम्बिका शरण सिंह द्वारा टिकारी राज के कोर्ट ऑफ वर्ड्स के समय, गया शहर में प्रवास के दौरान, सन 1886 ई. में कराया था। उन्होंने द्वारा रामशिला पहाड़ पर पातालेश्वर महादेव मंदिर जाने के लिए सीढियों का पुनर्द्धार किया गया था ।रामशिला में अवस्थित शिवलिंग शीतलता का प्रतीक है।
सावन में लगती है भीड़ 
रामशिला स्थित शिवलिंग पर दूध चढ़ाने से मन को चंद्रमा के समान शीतलता मिलती है. इसके अलावा बाबा भोलनाथ भक्तों के हर प्रकार के कष्ट को दूर कर देते हैं । 
स्फटिक शिवलिंग
रामशिला की श्रृंखला पर भगवान राम द्वारा शिवलिंग की स्थापना और राम कुंड का निर्माण कराया गया ।रामशिला पहाड़ के तलहट्टी में दुर्लभ स्फटिक शिवलिंग स्थापित है।रामशिला पहाड़ के तलहट्टी स्थापित मंदिर में, जहां देश का तीसरा स्फटिक शिवलिंग विराजमान है. पहला स्फटिक शिवलिंग रामेश्वरम में, दूसरा जम्मू के रघुनाथ मंदिर और तीसरा रामशिला स्थित स्फटिक शिवलिंग मंदिर में है। मंदिर में करीब एक फीट ऊंचे और इतना ही वृत्ताकार शिवलिंग जो काफी दुर्लभ है। स्फटिक शिवलिंग के अंदर नाग की आकृति अभी तक रहस्य और विस्मयकारी बनी हुई है। स्फटिक रेत एवं ग्रेनाइट का मुख्य घटक है। पृथ्वी के धरातल पर क्वार्ट्ज दूसरा सर्वाधिक पाया जाने वाला खनिज है । वेदों और पुराणों तथा ज्योतिष शास्त्र के अनुसार रामशिला पर अवस्थित स्फटिक शिवलिंग का दर्शन और पूजन करने से मन की शांति,चतुर्दिक विकास तथा चंद्रमा,सूर्य ,और शुक्र ग्रह मिल कर ऊर्जा का संचार और भगवान शिव की कृपा होती रहती है साथ ही सभी ग्रह का प्रभाव विकास की ओर ले जाता है ।
श्रीराम मंदिर
रामशिला पहाड़ के ऊपर 20 सीढ़ी चढ़ने पर श्रीराम मंदिर है। यहाँ पर श्री जगमोहन में चरण-चिन्ह बना बना है। मंदिर के दक्षिण में बरामदे में दो-तीन प्राचीन मूर्तियां है।
श्री गणेश जी की भव्य प्रतिमा
रामशिला पहाड़ी में बने मंदिर में भगवान श्री गणेश जी के मूंगा की पांच फीट ऊंचा भव्य प्रतिमा है। यह बहुत ही दुर्लभ मूर्ति है और भारत वर्ष में बहुत ही कम देखने को मिलता है और बहुत ही कीमती है।
रामेश्वर या पातालेश्वर शिवलिंग की स्थापना
भगवान राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ गया धाम के उत्तरी सिरे पर अवस्थित पर्वत के शिखर पर विश्राम किया था। शिखर पर उन्होंने रामेश्वर या पातालेश्वर महादेव शिवलिंग की स्थापना और पूजन किया । यहां पिंडदान करने से पूर्वज सीधे स्वर्ग लोक जाते हैं। रामकुंड में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है । रामशिला पहाड़ के उपर उसके आस पास बहुत पुराने कई मूर्ति स्थापित है और उसमें कुछ नए भी है। यह सन 1041में मुख्यतः बना है । रामशिला पहाड़ पर पातालेश्वर महादेव मंदिर से गया शहर का सुन्दर एवं मनोरम दृश्य दिखाई पड़ता है।
        ऐसा माना जाता है कि भगवान राम ने त्रेता युग में अपने पिता राजा दशरथ का पिंडदान यहीं किया था और उनके चरण चिन्ह आज भी पहाड़ की चोटी पर मौजूद हैं, जहाँ 374 सीढ़ियाँ चढ़कर पहुँचा जा सकता है। यहाँ एक प्राचीन शिव मंदिर भी है, जिसके शिवलिंग के दर्शन से श्रद्धालु धन्य होते हैं, और मंदिर में राम, सीता, और हनुमान जी की प्रतिमाएं भी विराजमान हैं। लोग वहाँ दर्शन और पिंड दान के लिए जाते हैं। राम शिला पहाड़ी के नीचे रामकुंड नामक सरोवर है ।
       सरोवर के दक्षिण एक शिव मन्दिर है। राम शिला में 20 सीढ़ी ऊपर एक राम मन्दिर है। इसके जग मोहन में चरण चिन्ह बना हुआ है। मंदिर के दक्षिण बरामदे में दो तीन मूर्तियां हैं। श्री राम जी आने के पूर्व 
इस पहाड़ी का नाम भी प्रेत शिला था।
रामशिला वेदी भी पिंडदानियों के लिए विशेष स्थान रखती है। मान्यता है कि यहीं भगवान राम ने पिंडदान किया था। यह धार्मिक पर्यटन का एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यह पहाड़ी अपने मनमोहक नजारों और हरियाली के लिए भी जानी जाती है, जो इसे एक लोकप्रिय स्थल बनाती है।
राम शिला की इस कहानी को इस लिंक से और स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है -- 
https://www.instagram.com/reel/DNaSxnxyp0y/?igsh=MW00N25mcjhubGV0ZQ==

          आस पास के अन्य वेदियां 
राम कुंड :- 
शहर के उत्तरी क्षेत्र में रामशिला पहाड़ के पास रामकुंड स्थित है। यहां जल कुंड का निर्माण कराया जिसे राम सरोवर के नाम विख्यात है। यहां पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को पिंडदान व तर्पण का विधान है। रामकुंड में पिंडदान व तर्पण करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है।
कागबली वेदी
काकवाली: रामशीला पहाड़ी के पास 200 गज दक्षिण मारन पुर में एक घेरे के मध्य एक बट वृक्ष है। यहां काकबलि, यम बलि और श्वान बलि नामक तीन वेदियां हैं। काकबलि बेदी ब्रह्मा सरोवर और वैतरणी के पास स्थित है। गया में कागबली वेदी पितृपक्ष के दौरान पिंडदान और तर्पण के लिए एक महत्वपूर्ण स्थान है, जहाँ पितरों की आत्माओं को प्रेत बाधा से मुक्ति दिलाने और उन्हें तृप्त करने के लिए कौआ, कुत्ते और गाय को भोजन रूपी पिंड अर्पित किया जाता है। यह वेदी ब्रह्मसरोवर तीर्थ के पास स्थित है और यहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस वेदी पर यमराज के दूत माने जाने वाले कौआ, कुत्ता और गाय को पिंड के रूप में भोजन दिया जाता है, जिससे यमराज का क्रोध शांत होता है और पितृ तृप्त होते हैं। मान्यताओं के अनुसार, कागबली वेदी पर पिंडदान करने से पितरों को प्रेत बाधा से मुक्ति मिलती है। पितृपक्ष के दौरान इस वेदी पर पिंडदान करने से पितरों की आत्माएं तृप्त होती हैं और उन्हें बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है, जहाँ वे जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त हो जाते हैं। समीप में तारक ब्रह्म का दर्शन किया जाता है। अब आम का वृक्ष वहां नहीं है केवल एक पक्का तालाब बना हुआ है।
यम बलि 
गया में पितृपक्ष के दौरान की एक धार्मिक प्रक्रिया है, जहाँ ब्रह्म सरोवर के पास रामशिला वेदी पर यमराज, कौआ और अन्य पितरों के लिए यम बलि या काकबलि पिंडदान किया जाता है, जिसमें उड़द या मूंग के आटे के पिंड चढ़ाए जाते हैं। 
श्वान बलि
रामशिला (गया में एक स्थान), वेदी (पूजा के लिए ऊँचा स्थान) और श्वान बलि (कुत्ते को बलि देना) एक धार्मिक अनुष्ठान से संबंधित हैं, जो पितृपक्ष के दौरान काक बलि वेदी पर किया जाता है। इस अनुष्ठान में, पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए उड़द के आटे का पिंड बनाकर कौवे, यमराज के कुत्ते और गाय को अर्पित किया जाता है।रामशिला वेदी पर पिंडदान करने और फिर नीचे उतरकर मुख्य पथ पर काक बलि वेदी पर बलि चढ़ाने का विधान है। 


लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक स्वयं चारों धाम की यात्रा कर गया जी के तथ्यों से अवगत हुआ है।
वॉट्सप नं.+919412300183


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