सृष्टि की उत्पत्ति से पहले ये पूरा संसार जल में डूबा हुआ था. हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, भगवान शिव को ब्रह्मांड का पिता माना जाता है क्योंकि उन्होंने ब्रह्मांड के रचयिता और पुनर्योजी के रूप में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
उन्हें आदिकालीन ब्रह्मांडीय नर्तक के रूप में देखा जाता है जिनकी दिव्य लयबद्ध गतिविधियों ने सृष्टि को जन्म दिया।
शंकर जी के पिता सदाशिव (काल ब्रह्म) हैं, जबकि कुछ मान्यताओं के अनुसार वे स्वयंभू हैं और उनका कोई पिता या माता नहीं है।सदाशिव और आदिशक्ति (देवी दुर्गा) के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश की उत्पत्ति हुई थी।
नारायणदेव की नाभि से ब्रह्मा जी प्रकट
उस समय एकमात्र भगवान नारायणदेव शेष शैय्या पर लेटे हुए थे. जब सृष्टि की रचना का समय आया तो भगवान नारायण की नाभि से एक प्रकाशमान कमल प्रकट हुआ. उसी कमल से वेद मूर्ति ब्रह्माजी प्रकट हुए. चारों ओर देखने पर भी जब उन्हें कोई लोक नहीं दिखा तो वे कमल का आधार पता लगाने के लिए उसकी नाल से होते हुए जल में पहुंचे. फिर भी उन्हें कुछ पता नहीं चला.अंत में वे वापस कमल पर लौट आए. इसके बाद अव्यक्त वाणी से उन्हें तप करने की आज्ञा मिली, जिसके बाद उन्होंने एक सहस्त्र दिव्य वर्षों तक तप किया. उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ने उन्हें दर्शन देकर अपने लोक का भी दर्शन करवाया.
भगवान नारायण ने इसके बाद चार मुख वाले ब्रह्म जी को अपने भागवत तत्व का उपदेश चार श्लोकों में दिया, जिसे चतु: श्लोकी भागवत कहा जाता है. फिर भगवान ने ब्रह्माजी को अविचल समाधि द्वारा उस सिद्धांत में पूर्ण निष्ठा करने की बात कही. ताकि उन्हें अलग-अलग कल्पों में सृष्टि की रचना करते रहने पर भी कभी मोह ना हो. फिर भगवान ने अपने संकल्प से ही ब्रह्मा जी के ह्रदय में संपूर्ण वेद ज्ञान का प्रकाश कर दिया.
ब्रह्माजी के 4 कुमार और 10 मानस पुत्र
सृष्टि की रचना के लिए उन्होंने सबसे पहले चार पुत्रों सनक, सनन्दन, सनातन और सनतकुमार की उत्पत्ति की. ये चारों सदैव 5 वर्ष के बालक के रूप में रहते हैं और ज्ञान, वैराग्य और भक्ति का प्रचार करते हैं।
ब्रह्मा जी की वंशावली में सबसे प्रमुख दस मानसपुत्र हैं: मरीचि, अत्रि, अंगिरस, पुलस्त्य, पुलह, क्रतु, भृगु, वशिष्ठ, दक्ष और नारद। अपने शरीर के अंशों से ही उन्होंने मनु व शतरूपा की उत्पत्ति की, जिनसे फिर मनुष्य की उत्पत्ति हुई.
ब्रह्मा पुत्र मारीचि द्वितीय ब्रह्मा थे
मरीचि ब्रह्मा के ‘सप्तर्षि’, यानी सात महान ऋषियों में से एक थे। इन्हें ब्रह्मा ने अपनी मानसिक शक्तियों से उत्पन्न किया था। वैदिक साहित्य और पुराणों में मरीचि का वर्णन मिलता है, जहाँ वे एक महान ऋषि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। मारीचि को द्वितीय ब्रह्मा भी कहा जाता है. वे सुमेरु पर्वत पर रहते थे.उन्होंने ही भृगु ऋषि को दंडनीति की शिक्षा दी थी. मारीचि के पुत्र कश्यप और मनु बहुत प्रसिद्ध हुए. मारीचि की प्रधान पत्नी का नाम संभूति था. मारीचि के बारे में महाभारत में चित्रशिखंडी के रूप में वर्णन मिलता है. मारीचि ने ब्रह्मा जी के पुष्कर क्षेत्र में हुए यज्ञ में अच्छावाक् पद पर नियुक्ति प्राप्त की थी. ब्रह्मा जी ने मारीचि को दस हज़ार श्लोकों से युक्त ब्रह्मपुराण का दान किया था. मरीचि ऋषि, हिंदू पौराणिक कथाओं के मुताबिक, ब्रह्मा के मन से जन्मे पुत्र थे. वे सप्तर्षि में से एक थे. मरीचि का शाब्दिक अर्थ है, चंद्रमा या सूर्य से निकलने वाली प्रकाश की किरण. मरीचि एक ऋषि हैं। वे ब्रह्मा के एक मानसपुत्र तथा सप्तर्षियों में से एक हैं। गीता के अनुसार मरीचि वायु है और कश्यप ऋषि के पिता हैं। इनका विवाह दक्ष प्रजापति की पुत्री सम्भूति के साथ हुआ था। मानसपूत्र वो होते है जिनको इच्छा से पुत्र माना जाए अथवा कोई किसी को अपना पिता मान ले अर्थात जिसका मानस किसी को अपना पुत्र मानने का हो वो मानस पुत्र होता है।मरीचि, कश्यप के पिता और देवों और असुरों के दादा थे. मरीचि ने कला नाम की स्त्री से विवाह किया था और उनसे उन्हें कश्यप नाम का पुत्र मिला.
मरीचि पुत्र कश्यप
मरीचि के पुत्र कश्यप एक वैदिक ऋषि थे, जो ब्रह्मा के पोते और सृष्टि के मूल पूर्वज माने जाते हैं। मरीचि, जो ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से एक थे, ने कला से विवाह किया था और उन्हीं से कश्यप का जन्म हुआ। कश्यप ने दक्ष प्रजापति की कई कन्याओं से विवाह किया, जिनमें अदिति और दिति प्रमुख थीं, और उनके वंश से ही सभी जीव-जंतुओं और प्रजातियों का विकास हुआ। कश्यप को सृष्टि के मूल पूर्वज और सृष्टिकर्ता माना जाता है, क्योंकि उनकी पत्नियों से सभी प्रकार की प्रजातियाँ उत्पन्न हुईं।
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