Thursday, October 2, 2025

मंगला गौरी मंदिर और समीपस्थ अन्य वेदियां (गया के तीर्थ 11)✍️आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी

मंगला गौरी मंदिर बिहार के गया जिले में, भस्मकूट पर्वत पर जनार्दन मंदिर के पास स्थित एक प्रमुख शक्ति पीठ है, जहाँ सती माता का वक्षस्थल गिरा था और यह महाशक्ति पीठों में से एक माना जाता है। जब सती का झुलसा हुआ शव कंधे पर रखकर भगवान शिव चारों ओर क्रोध से घूमने लगे तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के अंग प्रत्यंग काट डाले थे। इस तरह कट- कट कर सती के शरीर के अवयव भूतल पर जहां-जहां गिरी वहां शक्तिपीठ बन पुराणों में इसका उल्लेख किया गया है।

धर्मशास्त्र के अनुसार  सती के दो महत्वपूर्ण अंगों में से एक योनि मंडल कामाख्या में तथा दूसरा स्तन मंडल यानी मंगल भाग गया में गिरा था। इस पर्वत को भस्मकूट पर्वत कहते हैं । विष्णु पद मंदिर यहां से थोड़ी ही दूर पर है। यहां भक्ति भाव से पूजन करने वाले को अवश्य पुत्र धन अच्छे रूप में व विद्या अधिकार लाभ होता है। मां मंगला गौरी के दरबार में कई दुखियों के दुख और असाध्य रोगों को दूर होता रहा है।

मंगला गौरी मंदिर 15वीं सदी में बना। देवी सती को समर्पित 52 महाशक्तिपीठों में से एक है। मंगल गौरी मंदिर दी विभागीय मंडप आकृति पूर्वाभिमुख है मंदिर में घुसने का दरवाजा काफी छोटा है । भक्तगण झुककर अंदर जाते है और पूजा-अर्चना करते हैं। मन्दिर के गर्भगृह में अखंड दीप जलता रहता है जिसके दर्शन मात्र से आध्यात्मिक संतुष्टि प्राप्त होती है। 

परंपरागत अन्य विग्रह 

मन्दिर में अन्य कई मूर्तियों श्री वृक्ष है, जो देवी माँ का अतिप्रिय वृक्ष है जो सालों भर हरा-भरा रहता है। परिसर में भी श्रीगणेश का एक छोटा मंदिर है। मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है। इसी के पीछे खड्गधारी दुर्गा मां का मंदिर है । इसके पास ही मां का विचित्र रूप लिए एक मंदिर के सामने दो मंजिलों में बटा शिव मंदिर है जिसके बाहरी तल्लों में शिव जी का वाहन नंदी और अंदर शिवलिंग स्थापित है।

यहाँ नित्य पूजा करने वाले पुजारियों के अतिरिक्त प्रतिदिन दूर-दूर से सैकड़ो भक्तगण दर्शन करने आते है तथा विधि-विधान से पूजा-ध्यान करते हैं। सप्ताह में मंगलवार को मंगलागौरी में भक्तों की संख्या चौगुनी हो जाती है। 

चैत्र तथा आश्विन नवरात्र के समय श्रद्धालुओं की भीड़ यहाँ काफी बढ़ जाती है। ऐसी मान्यता है कि नवरात्र में इस स्थान पर की गयी साधना व्यक्ति को और भी अधिक समृद्ध बनाती है तथा मनोकामना पूर्ण होने पर भक्त प्रतिवर्ष यहाँ एक बार अवश्य आते है।

जीवन काल में श्राद्ध का विधान

इस शक्ति पीठ की विशेषता यह है कि मनुष्य अपने जीवन काल में ही अपना श्राद्धकर्म यहाँ सम्पादित कर सकता है। जीवित अवस्था में अपने श्राद्ध कर्म करने क विधान और कहीं नहीं मिलता। ऐसी मान्यता है कि जिसका श्राद्ध कर्म करने वाला कोई न हो तो वह स्वयं अपने लिए तिल रहित दही चर्तुभुज के दाहिने हाथ में दें तो वह मोक्ष प्राप्त कर लेगा। कहा जाता है कि पांडवों में से महाबली भीम भी पितृ ऋण से उद्धार पाने के लिए गया आये थे और शास्त्रानुसार पिण्डदान किये थे। भीम जी घुटने के बल. पिण्डदान कर रहे थे, तब पृथ्वी नीचे की ओर कुछ धंस गयी थी। वह स्थान आज भी मंगलागौरी के पास ही दर्शनीय है ।

मंगला गौरी के समीपस्थ अन्य वेदियां

1.अवमुक्तेश्वर नाथ मन्दिर 

ब्रह्मा सरोवर के पास पहाड़ी पर 125 सीढ़ी ऊपर यह मंदिर है इसी पहाड़ी पर और ऊपर जाने पर अवमुक्तेश्वर नाथ का प्राचीन मंदिर मिलता है यहां भगवान की चतुर्भुज मूर्ति है। जिसको श्रद्धा करने वाला कोई ना हो वह अपने लिए तिल रहित दही मिलाकर तीन पिंड यहां भगवान के दाहिने हाथ में दिया जाता है ऐसी विधि है। यह मंदिर दया की देवी माता मंगला गौरी को समर्पित है। इसी पहाड़ी पर मंगलेश्वर शिव लिंग भी है। इसी को गो प्रचार तीर्थ भी कहते हैं।

2.आकाशगंगा 

आकाशगंगा गया में दूसरी पर्वत पर हनुमान जी का स्थान है यहां एक कुंड है जिसे आकाशगंगा कहते हैं । इसे कांचन कुण्ड या आकाशगंगा कुंड भी कहते हैं , इसके पास हनुमान जी से जुड़ा एक पर्वत है जिस पर एक मंदिर बना है। यह स्थान अपनी धार्मिक महत्व और एक प्राचीन कुंड के लिए प्रसिद्ध है।

 3.पातालगंगा

मंगला गौरी के पास दूसरी पर्वत पर आकाश गंगा से कुछ नीचे एक और कुंड है जो पातालगंगा कहा जाता है । प्रतीत होता है कि यह कोई भूमिगत जल स्रोत रहा जो अब समय के साथ अदृश्य हो गया है। गया महात्म्य में इसका नामोल्लेख मिलता है।

4.कपिलधारा

मंगला गौरी के पास दूसरी पर्वत पर पहाड़ी के नीचे पश्चिम ओर कपिलधारा है। कपिलधारा, ऋषि कपिल मुनि से जुड़ा एक पौराणिक और आध्यात्मिक स्थल है।  शहर के दक्षिण-पश्चिम में स्थित कपिल धारा आश्रम में ही गुरु गंभीरनाथ ने वर्षो तपस्या की थी। यह स्थान कई ऋषियों- मुनियों की तपोस्थली के रूप में विख्यात रहा है। लेकिन, आज आश्रम की समुचित देखरेख नहीं होने से इसकी ख्याति शनै: शनै: धूमिल होती जा रही है।किंवदंती के अनुसार, ऋषि कपिल मुनि ने यहां पितृ तर्पण किया था, और उनके हाथ से गिरे जल की धारा से ही इस स्थान का नाम कपिलधारा पड़ा है। मान्यता है कि ऋषि कपिल मुनि ने ब्रह्मयोनि पहाड़ की तलहटी में पितृ तर्पण किया था, जिसके बाद उनकी अंजलि से निकला जल एक धारा के रूप में बहने लगा, जो आज भी निरंतर प्रवाहित होता है। यह स्थान ब्रह्मयोनि पहाड़ की तलहटी में स्थित है और यहां रुक्मिणी सरोवर के पश्चिम में पहुंचा जा सकता है। 

5.संकटा देवी - 

प्रपिता महेश्वरी विष्णुपद मंदिर से लगभग 350 गज दक्षिण लखन पुरा में संकटा देवी का मन्दिर है।बिहार के गया में माता संकटा का एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां की प्रतिमा रामायण काल की है। स्‍वयं लक्ष्‍मणजी ने इस प्रतिमा को स्‍थ‍ापित किया था। यहां सदैव एक अखंड जयोती जलती है और नवरात्रि में भक्‍तों की भीड़ रहती है ।कहा जाता है कि इस मंदिर में मनुष्यों के अलावा कभी शेर-बाघ भी दंडवत करने आते थे। कहा जाता है कि यहां की प्रतिमा रामायणकालीन है। यहां जो भी श्रद्धालु आते हैं, वे खाली हाथ नहीं लौटते। माता संकटा माई सभी के संकटों को दूर करती हैं।माता की प्रतिमा वर मुद्रा में है।माई चमत्कारी हैं और वह अपने दरबार से किसी को खाली हाथ नहीं जाने देती हैं। इस वजह से यहां दूर-दूर से भक्त आते हैं और माता संकटा माई के दर्शन करते हैं।

6.प्रपिता महेश्वर मंदिर 

गया के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक, प्रपिता महेश्वर मंदिर, भगवान शिव को समर्पित एक और उल्लेखनीय प्राचीन धार्मिक स्थल है। यह मंदिर पिंडदान मृतकों की आत्मा की शांति के लिए किया जाने वाला एक धार्मिक अनुष्ठान के लिए शहर आने वाले लोगों के बीच लोकप्रिय है क्योंकि भगवान प्रपिता महेश्वर को इस अनुष्ठान का साक्षी देवता माना जाता है। इस मंदिर का उल्लेख हिंदू धर्मग्रंथ अग्नि पुराण में भी मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर की स्थापना 11वीं शताब्दी में पाल वंश के नेतृत्व में हुई थी। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 14वीं शताब्दी में किए गए जीर्णोद्धार कार्य का परिणाम है। काले पत्थरों से बना यह भव्य मंदिर दो पर्वत श्रृंखलाओं ब्रह्मयोनी और भस्मकूट के निकट स्थित है। मंदिर के प्रांगण में बना सभामंडप विशाल पाषाण स्तंभों से सुसज्जित है।कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में यहीं पिंडदान किया था।

7.गोदावरी वेदी/.गोदावरी सरोवर

शहर के दक्षिणी क्षेत्र में मंगला गौरी तीर्थ के रास्ते लोर गोदावरी सरोवर स्थित है. गोदावरी सरोवर से जुड़ी हैं कई कथाएं हैं। गोदावरी सरोवर में प्राचीन काल से पिंडदान का विधान है. यहां कई कथाएं जुड़ी है. बताया जाता है, कि यहां स्वयं ब्रह्मा जी आए थे. ऐसी कई धार्मिक मान्यताओं को लेकर यहां पुनपुन में नहीं जाने वाले तीर्थ यात्रियों के लिए गोदावरी सरोवर पर पिंडदान का विधान है.

8.आम्रसेचन वेदी:- 

मंगलागौरी मंदिर के पास स्थित है।आम्रसेचन वेदी गया के पास, बोधगया में स्थित धर्मारण्य वेदी को कहते हैं, जहाँ पांडवों ने महाभारत युद्ध के बाद पितरों की शांति के लिए पितृयज्ञ किया था. धर्मारण्य वेदी में त्रिपिंडी श्राद्ध का बहुत महत्व है, जिसमें जौ, चावल, तिल और गुड़ से पिंड बनाकर अष्टकमल आकार के यज्ञकूप में विसर्जित किया जाता है. यह वेदी गया में स्थित 54 वेदियोँ में से एक है जहाँ लोग पिंडदान करते हैं. 

9.तारक ब्रह्म

 मंगलागौरी मंदिर के पास स्थित है।ब्रह्म सरोवर में ब्रह्मा जी ने यज्ञ के अंत में अवमृथ स्नान किया था। स्नान के बाद यज्ञ काष्ठ को यज्ञयूप के रूप में स्थापित करना यज्ञ की एक विधि है। उसकी प्रदक्षिणा से श्राद्ध कर्ता को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। साथ ही एक आम्रवृक्ष उत्पन्न हुआ था। समीप में पश्चिम उत्तर कोण पर इसका वृक्षारोपण ब्रह्मा ने किया। वृक्ष की जड़ में कुशा के सहारे जलाधारा देने से पितर मुक्त हो जाते हैं। इसके बाद पितृतारक ब्रह्मा का दर्शन किया जाता है। ब्रह्मा की मूर्ति पुष्कर तीर्थ के अलावा एक मात्र गया तीर्थ में है। इनको तारक ब्रह्म कहा जाता है। इनके दर्शन नमस्कार से पितर तर जाते हैं।

10.गौ प्रचार वेदी

मंगलागौरी मन्दिर के पास स्थित है।मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी मंदिर पश्चिमी दिशा में स्थित है। पिंडवेदी में एक धर्मशिला में स्थित है। धर्मशिला पर गाय कई पैर का निशान है। जहां पिंडदान किया जाता है। यहां ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था. उन्होंने यहां यज्ञ के दौरान गायों को जिस पर्वत पर रखा था, उसे गौचर वेदी कहा गया. यहां पर्वत पर गायों के खुर के निशान आज भी हैं, यहां ब्रह्मा जी पंडा को सवा लाख गौ दान किया था. ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती हैं. मान्यता हैं यहां ब्राह्मण को भोजन कराने से एक करोड़ ब्राह्मण भोजन कराने का फल मिलता है।जहां पिंडदान किया जाता है। गौप्रचार वेदी एक धर्मशिला पर स्थित है। जहां काफी संख्या में गाय के पैर का निशान है। धर्मशिला के पास पिंडदानी बैठक कर्मकांड करते है। वहीं चबूतरे में भी बैठक कर कर्मकांड किया जाता है।

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक स्वयं चारों धाम की यात्रा कर गया जी के तथ्यों से अवगत हुआ है।वॉट्सप नं.+919412300183


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