गयाजी में वर्तमान में 54 वेदी स्थल हैं, जहां यह कर्मकांड किए जाते हैं. इन वेदी स्थलों में आठ ऐसे सरोवर हैं, जिनका पौराणिक व धार्मिक महत्व है. साथ ही गया से उनका रिश्ता कई युग पुराना है. गया जी के पास निम्न सरोबर/तालाब ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित हैं।ब्रह्म सरोवर, वैतरणी, उत्तर मानस सरोवर, सूर्यकुंड, रुक्मिणी सरोवर, ब्रह्म कुंड, राम कुंड व गोदावरी सरोवर, सभी ब्रह्मा जी के द्वारा निर्मित हैं.
1ब्रह्म कुंड
गया जी का ब्रह्म कुंड वेदी और ब्रह्म सरोवर अलग-अलग स्थान हैं। शहर से करीब आठ किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में प्रेत शिला के पास ब्रह्मकुंड स्थित है. पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को यहां पिंडदान व तर्पण का विधान है. ब्रह्मकुंड पिंडदान से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है.ब्रह्मकुंड पिंडदान से पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलती है. वर्तमान में इस सरोवर की सफाई ठीक नहीं है, जबकि ब्रह्मकुंड की सफाई व इसकी पानी की शुद्धता के लिए प्रशासनिक स्तर पर घोषणा की गयी है.
2.ब्रह्म सरोवर
शहर के दक्षिणी क्षेत्र में ब्रह्म सरोवर स्थित है. पितृपक्ष मेले की चतुर्थी तिथि को यहां पिंडदान, श्राद्धकर्म व तर्पण का विधान बतलाया गया है. इस सरोवर में पिंडदान व तर्पण करनेवाले श्रद्धालुओं के पितरों का उद्धार होता है और उनको बैकुंठ लोक की प्राप्ति होती है. करीब चार वर्ष पहले इस सरोवर का केंद्र सरकार की हृदय योजना से जीर्णोद्धार कराया गया है. वर्तमान में इस सरोवर की स्थिति शहर के अन्य सरोवरों से बेहतर है. इस योजना के तहत लोगों को आकर्षित करने के लिए यहां लाइट एंड साउंड के अत्याधुनिक सिस्टम लगाये गये हैं.
ब्रह्म सरोवर एक पवित्र कुंड है जहाँ ब्रह्मा जी ने यज्ञ के बाद स्नान किया था। गया के दक्षिण फाटक से 350 दूर वैतरणी सरोवर के पास यह सरोवर स्थित है। इसमें एक गदा खण्ड पड़ा हुआ है। इसकी परिक्रमा की जाती है। ब्रह्म तीर्थ में तर्पण-पिंडदान के बाद ब्रह्मा जी के यज्ञयूप की प्रदक्षिणा एवं पितृमुक्ति हेतु समीप ब्रह्म सरोवर के दूसरी ओर काकबलि वेदी है जिस पर काले उरद की बलि होती है। ब्रह्म सरोवर में ब्रह्मा जी ने यज्ञ के अंत में अवमृथ स्नान किया था। स्नान के बाद यज्ञ काष्ठ श्राद्ध के पांचवे दिवस है में इस तिथि को ब्रह्म सरोवर तीर्थ में तर्पण- पिंडदान के बाद ब्रह्मा जी के यज्ञयूप की प्रदक्षिणा एवं पितृमुक्ति हेतु समीप में स्थित काकबलि वेदी पर काले उरद की बलि होती है।ब्रह्म सरोवर में ब्रह्मा जी ने यज्ञ के अंत में अवमृथ स्नान किया था। स्नान के बाद यज्ञ काष्ठ को यज्ञयूप के रूप में स्थापित करना यज्ञ की एक विधि है। उसकी प्रदक्षिणा से श्राद्ध कर्ता को अश्वमेध यज्ञ का फल प्राप्त होता है। साथ ही एक आम्रवृक्ष उत्पन्न हुआ था। समीप में पश्चिम उत्तर कोण पर इसका वृक्षारोपण ब्रह्मा ने किया। वृक्ष की जड़ में कुशा के सहारे जलाधारा देने से पितर मुक्त हो जाते हैं। इसके बाद पितृतारक ब्रह्मा का दर्शन किया जाता है। ब्रह्मा की मूर्ति पुष्कर तीर्थ के अलावा एक मात्र गया तीर्थ में है। इनको तारक ब्रह्म कहा जाता है। इनके दर्शन नमस्कार से पितर तर जाते हैं।
गया धाम में यज्ञ करने की बेला में अपने शरीर से ब्रह्मा ने उक्त ब्रह्म मूर्ति को उत्पन्न किया था। गय असुर के सिर भाग का परिमाण ब्रह्म सरोवर से ही प्रारंभ होता है। इसका सिर ब्रह्म सरोवर से उत्तर मानस तक दक्षिण-उत्तर में व्याप्त है। नागकूट पर्वत (सीता कुंड) से मंगलागौरी (भष्मकुट पर्वत) तक इसका सिर भाग पूर्व-पश्चिम में व्याप्त है। गय असुर के सिर का भाग को फल्गु तीर्थ भी कहते हैं। फल्गु तीर्थ क्षेत्र में गया श्राद्ध की सर्वाधिक वेदियां हैं।
3.वैतरणी सरोवर
शहर के दक्षिणी क्षेत्र में वैतरणी सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले की चतुर्दशी तिथि को यहां कर्मकांड का विधान बताया गया है. यहां गोदान से स्वर्ग के लिए दरवाजे खुल जाते हैं शहर के दक्षिणी क्षेत्र में वैतरणी सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले की चतुर्दशी तिथि को यहां कर्मकांड का विधान बतलाया गया है. वैतरणी सरोवर में गोदान व तर्पण करनेवाले श्रद्धालुओं के पितरों को भवसागर की प्राप्ति होती है. उनके लिए स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं. सरोवर पर सुबह से ही भीड़ देखी जा रही है। जहां पिंडदानी अपने पितरों के स्वर्ग लोक जाने को लेकर गोदान कर रहे हैं। मान्यता है कि ब्रह्मा जी ने गया क्षेत्र में वैतरणी नदी को पितरों उतारने के लिए यमलोक से अवतरित करवाया था। इस तर्पण से 21 कुलो का उद्धार होता है। गोदान एवं तर्पण के बाद पिंडदानी पास में स्थित मारकंडे महादेव का दर्शन एवं पूजन कर रहे हैं।
वैतरणी सरोवर पर तर्पण और गोदान करने से पितर सीधे यमपुरी पहुंचते हैं और वहां से स्वर्ग लोक की ओर प्रस्थान करते हैं. पुराणों में वर्णित है कि वैतरणी नदी को पार करना पितरों के लिए आवश्यक है. इस वेदी पर किए गए कर्मकांड पितरों को इस कठिन मार्ग को पार करने में सहायता करते हैं, जिससे उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.हृदय योजना से इस सरोवर का भी जीर्णोद्धार कराया गया है. लेकिन प्रशासनिक उपेक्षा के कारण वर्तमान में यहां गंदगी की भरमार है.
वंशजों के लिए सुख-शांति:आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को वैतरणी वेदी पर तर्पण, गोदान और ब्राह्मणों को दान देने की परंपरा है. इन कर्मकांडों से न केवल पितरों को स्वर्ग लोक की प्राप्ति होती है, बल्कि पिंडदानी के घर में सुख, शांति और समृद्धि का आगमन भी होता है. यह कर्मकांड परिवार की समृद्धि और दुखों के नाश के लिए महत्वपूर्ण माने जाते हैं.
वैतरणी सरोवर में गोदान व तर्पण करने वाले श्रद्धालुओं के पितरों को भवसागर की प्राप्ति होती है. उनके लिए स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते हैं. हृदय योजना से इस सरोवर का भी जीर्णोद्धार कराया गया है.
4.गोदावरी सरोवर : -
शहर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित गोदावरी सरोवर है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के अनंत चतुर्दशी तिथि को जो पुनपुन नदी नहीं जा सकते, उनके लिए यहां पिंडदान व तर्पण का विधान है. गोदावरी में पिंडदान से तीर्थ करने के समान फल मिलता है. आज की तारीख में गोदावरी सरोवर की सीढ़ियों पर मोटे तह में काई जमी हुई है. प्रदूषण से इसका पानी हरे रंग का हो गया है.
5.रामकुंड सरोवर : -
शहर के उत्तरी क्षेत्र में रामशिला पहाड़ के पास रामकुंड स्थित है. यहां पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को पिंडदान व तर्पण का विधान है. रामकुंड में पिंडदान व तर्पण करनेवाले श्रद्धालुओं के पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती है. प्रशासनिक स्तर पर रामकुंड से गंदे पानी को निकाल कर साफ व शुद्ध पानी भरने की व्यवस्था शुरू की गयी है.
6.उत्तर मानस सरोवर : -
शहर के मध्य क्षेत्र में फल्गु नदी के तट पर उत्तर मानस सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले की द्वितीया तिथि को यहां भी पिंडदान व तर्पण का विधान बताया गया है. वायु पुराण में भी इस सरोवर की चर्चा है. यहां के पंडा भवानी पांडेय के अनुसार इस सरोवर में तर्पण करनेवाले श्रद्धालुओं के पितरों को जन्म-मरण यानी जीवन चक्र से छुटकारा मिल जाता है. वर्तमान में इस सरोवर का पानी भी काफी प्रदूषित है. गंदगी के साथ-साथ सीढ़ियों पर भी काई जमी हुई है.
7.सूर्यकुंड :
विष्णुपद मंदिर के पास सूर्यकुंड (दक्षिण मानस) सरोवर स्थित है. 17 दिवसीय पितृपक्ष मेले के तीसरे दिन यहां कर्मकांड का विधान है. जानकारों के अनुसार सूर्यकुंड सरोवर में तर्पण करनेवाले तीर्थयात्रियों के पितरों को सूर्य लोक की प्राप्ति होती है. पितृपक्ष मेले के मुख्य क्षेत्र में स्थित होने से यह सरोवर सालों भर साफ-सुथरा रहता है.
8.रुक्मिणी सरोवर :
शहर के दक्षिणी क्षेत्र स्थित अक्षयवट वेदी के पास रुक्मिणी सरोवर स्थित है. अक्षयवट वेदी पर भीड़ अधिक रहने से श्रद्धालु इस सरोवर में आकर पिंडदान, श्राद्ध व तर्पण का कर्मकांड करते हैं. इस स्थल पर कर्मकांड करनेवाले श्रद्धालुओं के पितरों को अक्षयवट वेदी पर कर्मकांड करने जैसे फल की प्राप्ति होती है, वह यहां भी मिलती है. वर्तमान में यह सरोवर पूरी तरह से स्वच्छ है.
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, धर्म, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं। लेखक स्वयं चारों धाम की यात्रा कर गया जी के तथ्यों से अवगत हुआ है।
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