मैं जब भी अकेला
होता हूं, यादें अतीत की आती हैं।
लाख कोशिसें भीकर डालूं, वे डेरा अपना
जमाती हैं।
एक जरा ओझल
ना होता ,दूसरा आकर घेरता है।
बीते पलों की वे स्मृतियां
,बार- बार कुरेदती हैं।।
बीते लमहों की यादें क्यूँ,
बार-बार आ जाती हैं,
समय चक्र की परतों में,
दब क्यों नही जाती हैं।
उस अतीत की
वे यादें, जो मुझे याद
नहीं करनी
ना जाने क्यूँ
मनमन्दिर में, धुएँ सा उठ जाती
हैं।।
पल में आकार
बदलकरके, साँसों का दम घोंटती
हैं।
वह अतीत का
काला धुआँ, धुप अंधेरे में गिराती है।
कभी ना खत्म होने
वाले, धुँएं को वो उठाती
हैं ।
बुझी आग में रहरहकर,
राखें चिंगारियाँ देतीं हैं।।
बीते पलों को यादयादकर, रोना
अच्छा लगता है।
हम उन यादों
में पागल ,हो जायें ऐसा
लगता है।
बीते पलों की
वे यादें , रोज ही मिलने आती हैं।
अँधेरे दिल में जगह बना,ख्वाबों का मेला लगता
है।।
बनावटी दिखावटी बोली से, अब संतुष्टि ना
होती है।
ना जाने कुछ
छद्म भावका, गुंजाइस अब दीखती है।
हम अपना स्वभाव
नहीं, अब बदल सकेंगे
इस युग में।
नुकसान भले ही सहते रहेंगे,
पर वैसे ही बनती है।।
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