उत्तर-पश्चिमी प्रांत" का तात्पर्य ब्रिटिश भारत में एक ऐतिहासिक प्रशासनिक क्षेत्र या उत्तर-पश्चिमी भारत के आधुनिक भौगोलिक क्षेत्र सेहो सकता है । ऐतिहासिक रूप से, यह ब्रिटिश भारत का एक प्रशासनिक प्रभाग था जो 1836 से 1902 तक अस्तित्व में था और इसमें आधुनिक उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से और अन्य क्षेत्र शामिल थे। आजकल, इस शब्द का प्रयोग प्रायः भारत के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र का वर्णन करने के लिए किया जाता है, जिसमें पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्य, तथा दिल्ली, जम्मू और कश्मीर और लद्दाख जैसे केंद्र शासित प्रदेश शामिल हैं। 1836 में स्थापित, इसे बाद में 1858 में अवध में मिला दिया गया और इसका नाम बदलकर उत्तर-पश्चिमी प्रांत और अवधकर दिया गया । 1858 तक इसकी राजधानी आगरा थी, उसके बाद यह इलाहाबाद बन गयी। 1902 में प्रांत का पुनर्गठन किया गया और इसे आगरा और अवध का संयुक्त प्रांत बना दिया गया । मूल प्रांत में आधुनिक उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्से शामिल थे और बाद में इसका विस्तार कर इसमें दिल्ली क्षेत्र (1858 तक) और अन्य क्षेत्र भी शामिल कर दिए गए। इसमें पंजाब, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं। यह क्षेत्र अपनी विविध भौगोलिक स्थिति, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत तथा भारत की जनसंख्या के एक बड़े भाग के निवास के लिए जाना जाता है, तथा हिमालय इस भौगोलिक क्षेत्र का एक बड़ा हिस्सा है।
पुरातत्व संस्कृति संग्रहालय और खोज का
कार्य पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग कर रहा था।
पहले इसका मुख्यालय लखनऊ था।
आगरा में मुस्मिल स्मारकों के बहुलता के कारण इस मण्डल का मुख्यालय सितम्बर 1903 में लखनऊ से हटाकर आगरा बनाया गया। अधीक्षक का एक पद लाहौर मे पदास्थापित कर दिया गया। उसका मुख्यालय लाहौर बनाया गया।
आगरा मण्डल कार्यालय
उत्तरी/आगरा मंडल की यात्रा वृतांत
यूनाइटेड प्राविंस आफ आगरा एण्ड अवध तथा पंजाब सर्किल का मुख्यालय आगरा हो ही गया था। प्रधान नक्शानवीस मुंशी गुलाम रसूल बेग के पास इस मण्डल का प्रभार आया जो 4 दिसम्बर 1903 तक पुरातत्व सर्वेक्षक कार्यालय के प्रभारी रहे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक ने डबलू एच निकोलस को 7 मार्च 1904 को आगरा के सर्वेक्षक का प्रभार लेने के लिए महानिदेशक कार्यालय कार्यमुक्त किया। इस अवधि में यूनाइटेड प्राविंस पंजाब का प्रभार महानिदेशक के पास रहा। 1904 -05 तक अकालाजिकल सर्वेयर यूनाइटेड प्राविंस एवं पंजाब का पद नाम मिलता है। इस क्षेत्र को 1905-06 में उत्तरी नार्दन सर्किल के रुप में जाना जाने लगा। अब तक डबलू एच निकोलस यहां पर सर्वेयर पद पर बना रहा।
वर्तमान का पुरातत्व ब्लॉक
1905-06 से उत्तरी मंडल में पुस्तकालय की स्थापना हेतु पुस्तकों का क्रय किया जाना शुरु हो गया था। 1905-10 तक यह भूभाग नार्दन सर्किल उत्तरी मंडल के रुप में प्रयुक्त होता रहा है। 1905-06 से 1910-11 तक यूनाइटेड प्राविंस एवं पंजाब का भूभाग नार्दन सर्कल के रुप में प्रयुक्त होता रहा। अभी तक मण्डल प्रमुख को आर्कालाजिकल सर्वेयर के रुप में जाना जाता था। 1911 की एनुवल प्रोगे्रस रिपोर्ट में आर्कालाजिकल सर्वेयर के साथ साथ सुप्रिन्टेन्डेन्ट का पद भी प्रयुक्त होने लगा। गार्डन सैण्डर्सन उत्तरी मंडल का अन्तिम सर्वेयर तथा प्रथम सुप्रिन्टेन्डेन्ट रहा। पुरातत्व सर्वेयर टक्कर साहब नें 1 जुलाई 1908 में कैन्ट के आपरेशन के दौरान एक पखवाड़े के अल्प समय के नोटिस पर आये उन्हें सिविल लाइन्स में दूसरा कार्यालय भवन खोजना था। उन्हे एक अन्य मकान हेतु 55 रुपये प्रति माह किराये की और स्वीकृति लेनी पड़ी। यद्यपि 1908 में सिविल लाइन्स में दूसरा किराये का मकान मिल गया था। एक तरफ सर्वेयर का पद नाम बदलकर 1911 में सुप्रिन्टेन्डेन्ट हो गया दूसरी ओर स्मारकों के प्रकृति के आधार पर वर्गीकरण करके दो पृथक पृथक मण्डल बनाये गये। लाहौर मुख्यालय बनाते हुए नार्दन सर्किल का हिन्दू बोद्धिस्ट मोनोमेंट एक पृथक सर्किल बनाया गया।
प्रवेश द्वार पुरातत्व पुस्तकालय
आगरा स्थित पुराना नार्दन सर्किल अब मुस्लिम एण्ड ब्रिटिस मोनोमेंट का मुख्यालय बन गया। वर्तमान 22 मालरोड भवन में कार्यरत रहा। पहले यह भवन किराये पर रहा और 1922 में उसे स्थाई रुप से क्रय करके भारत सरकार ने इसे अपना लिया।
आगरा मंडल, जिसे पहले उत्तरी मंडल कहा जाता था, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सबसे पुराने मंडलों में से एक है। इसकी प्रथम बार स्थापना 1885 में हुई थी और इसका मुख्यालय 22, द मॉल, आगरा में है।
प्रमुख अधिकारी
आर. फ्राउड टकर, एम. मुहम्मद शुऐब, गॉर्डन सैंडरसन, एच. हरग्रीव्स, जे एफ ब्लैकिस्टन, जे ए पेज, मौलवी जफर हसन, एम एस वत्स, के एन पुरी, बी बी लाल, एस सी चंद्रा, एस आर राव, एन आर बनर्जी, वाई डी शर्मा, डी आर पाटिल, डब्ल्यू एच सिद्दीकी, शंकर नाथ, पी बी एस सेंगर, ए आर सिद्दीकी, इंदुधर द्विवेदी धर्म बीर शर्मा , के के मुहम्मद, डा डी दयालन, डी एन डिमरी, एन के पाठक, डा भुवन विक्रम, वसन्त कुमार स्वर्णकार, एम आर के पटेल डॉ. स्मिता एस कुमार और अन्य विद्वानों जैसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों ने इस मंडल का नेतृत्व किया है।
2003 तक आगरा मण्डल उत्तर प्रदेश के 24 जिलों में स्थित 265 स्मारकों पुरास्थलों की देखभाल कर रहा था । उक्त कार्य के सफल संचालन हेतु ताजमहल, आगरा किला, एतमाद-उद-दौला, सिकन्दरा, फतेहपुर सीकरी, मथुरा, मेरठ एवं कन्नौज मण्डलों की स्थापना की गई थी।
वर्तमान समय में देहरादून और मेरठ मण्डल निकलने पर आगरा मंडल के अधिकार क्षेत्र में 155 स्मारक/स्थल हैं जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के 9 जिलों में फैले हुए हैं, जिनमें तीन विश्व धरोहर स्मारक जैसे ताजमहल, आगरा किला और फतेहपुर सीकरी शामिल हैं, जो सभी मुगल काल के हैं और आगरा जिले में स्थित हैं। मंडल अपने 8 उप-मंडलों के माध्यम से स्मारकों और स्थलों का संरक्षण और प्रबंधन कर रहा है ताजमहल, आगरा किला, फतेहपुर सीकरी, सिकंदरा, इत्मादुद्दौला, मथुरा और एटा।
कभी पश्चिम उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के स्मारक इसी कार्यालय के अधीन थे। बाद में उत्तराखंड का नियंत्रण देहरादून मंडल से और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के स्मारकों का नियंत्रण मेरठ मंडल से होने लगा है। देहरादून मंडल, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण का एक नया मंडल है जो 16 जून 2003 को देहरादून मंडल अस्तित्व में आया था। इसका गठन आगरा सर्कल से विभाजन के बाद नए राज्य (उत्तराखंड) के स्मारकों के बेहतर रखरखाव के लिए किया गया था। देहरादून मंडल में 42 स्मारक हैं और यह मंडल उत्तराखंड के सभी 13 जिलों को कवर करता है।
28 अगस्त 2020 की अधिसूचना के आधार पर आगरा मंडल के उत्तरी हिस्से को काटकर मेरठ मंडल बनाया गया।मेरठ सर्किल में कुल 16 जिले शामिल किए गए हैं। जिन्हें पांच सब सर्किल में बांटा गया है। मेरठ पुरातत्व मंडल से 16 जिलों के 82 स्थल संरक्षित हो रहे हैं।
पुरातत्व पुस्तकालय की वीथिका
उत्तरी/आगरा मंडल में पुरातत्व पुस्तकालय
वर्ष 1904-05 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 300 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1906-07 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 21 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 198 पांच आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1907-08 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1908-09 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 20 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 199 ग्यारह आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। 10 पुस्तकें निःशुल्क प्राप्त हुईं। पायनियर नामक समाचार प़त्र खरीदा जाने लगा था। वर्ष 1909-10 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 32 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 217 चार आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 11 पुस्तकें दान में तथा तीन पाण्डुलिपियां प्राप्त हुईं। इस साल भी पायनियर पेपर मंगवाया गया। वर्ष 1910-11 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 15 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 199 और बारह आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इस साल 19 पुस्तके दान स्वरुप प्राप्त हुईं। वर्ष 1911-12 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 24 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 48 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1912-13 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 18 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 297 और चार आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 01 पुस्तक दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1913-14 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 35 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 160 ,तेरह आने और 06 पैसे पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। वर्ष 1914-15 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 05 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 371 और पांच आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 12 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1915-16 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 03 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 147 और तेरह आने पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1916-17 वर्ष 1917-19 तथा वर्ष 1918-19 का विवरण उपलब्ध नहीं है।1920-.21 में 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुई भी कही गयी हैं। वर्ष 1921-22 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 34 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 पुस्तकालय के लिए एलाट हुआ था तथा रुपया रु. 125 और आना 15 खर्च किया गया। वर्ष 1922-23 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 03 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 एलाट तथा रुपया 166, आना 02 और पैसा 02 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 33 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1923-24 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 12 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 200 एलाट तथा रुपया 215 और आना 11 ,पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 42 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं । वर्ष 1924-25 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 27 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 700 एलाट हुआ था तथा रुपया रुपया 1259 और आना 12 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 22 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1925-26 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इस साल रुपया 300 एलाट हुआ था तथा रुपया रुपया 300 और आना 14 पुस्तकालय के लिए खर्च किया गया। इसके अलावा 27 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1926-27 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 30 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 34 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1927-28 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 14 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1928-29 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 22 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1929-30 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 06 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1930-31 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 74 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 41 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1931-32 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 09 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 24 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1932-33 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1933-34 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 15 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं। वर्ष 1934 -35 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 23 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 23 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं
वर्ष 1935-36 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 33 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 56 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं वर्ष 1936-37 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 33 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 21 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं वर्ष 1937-38 में उत्तरी मण्डल के पुस्तकालय में 10 पुस्तकें खरीदी गईं। इसके अलावा 35 पुस्तकें दान में प्राप्त हुईं।
लेखक आचार्य डा राधेश्याम द्विवेदी
ब्रिटिश समय में पूरे भारत में आय- व्यय का पूरा लेखा जोखा हर वर्ष के एनुवल रिपोर्ट में दर्ज होती आई है। जब से एनिसेंट इंडिया और इंडियन आर्कियोलॉजी- ए रिव्यू में विवरण आने लगा, ये विवरण नदारद हो गया। अस्तु !आगे इसे अद्यतन किया जाना सम्भव नहीं रहा।
पुस्तकालय मंदिर, पुस्तकें प्रभु के विग्रह तथा पाठक उस प्रभु के परम प्रिय भक्त होते हैं। मैं तो प्रभु और भक्त के बीच सेवक के रुप में एक कड़ी था। मुझे प्रभु और भक्तों दोनों का भरपूर सहयोग, प्यार और आशीर्वाद निरन्तर मिलता रहा। अब उस भौतिक मंदिर से बाहर रहते हुए अपने मन मंदिर के प्रभु से सभी भक्तों के प्रसन्न व आनंदिन रहने की प्रार्थना करता रहता हॅू।
(पूर्व सहायक पुस्तकालय एवम् सूचनाधिकारी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण आगरा मण्डल आगरा