Saturday, June 21, 2025

दक्षिण एशिया में शक्ति पूजा के विविध आयाम#आचार्य डॉ राधेश्याम द्विवेदी


हिन्दू धर्म में चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं-वैष्णव, शैव, शाक्त और स्मार्त। ये सम्प्रदाय, हिन्दू धर्म के भीतर विभिन्न देवताओं और दर्शनों पर ध्यान केंद्रित और हिन्दू धर्म के भीतर विभिन्न विश्वासों और प्रथाओं को दर्शाते हैं, फिरभी वे सभी एक ही सनातन धर्म का हिस्सा हैं।
1. वैष्णव:- 
यह सम्प्रदाय भगवान विष्णु को सर्वोच्च मानते हैं और उनकी विभिन्न अवतारों और स्वरूपों की पूजा करते हैं।
2. शैव:- 
यह सम्प्रदाय भगवान शिव को सर्वोच्च मानते हैं और उनकी विभिन्न अवतारों और स्वरूपों की पूजा। उनकी पूजा करते हैं।
3. शाक्त:- 
यह सम्प्रदाय देवी (शक्ति) को सर्वोच्च मानते हैं और उनकी विभिन्न स्वरूपों की पूजा करते हैं।
4. स्मार्त:- 
यह सम्प्रदाय, पांच देवताओं (गणेश, विष्णु, शिव, सूर्य और देवी) को एक समान मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।
शाक्तधर्म शक्ति की साधना का विज्ञान:- 
हिन्दू धर्म के चार प्रमुख सम्प्रदायों में से शाक्त एक प्रमुख संप्रदाय एवम् पूजा- साधना की पद्धति है। शाक्तवाद दक्षिण एशिया में विभिन्न देवी परम्पराओं को नामित करने वाला आम शब्द है, जिसका सामान्य केन्द्र बिन्दु देवियों की पूजा है। शाक्त शब्द का अर्थ शक्ति (देवी) की पूजा करने वाला होता है । यह शक्ति की साधना का विज्ञान है। इसके मतावलंबी शाक्त धर्म को भी प्राचीन वैदिक धर्म के बराबर ही पुराना मानते हैं। उल्लेखनीय है कि इस धर्म का विकास वैदिक धर्म के साथ ही साथ या सनातन धर्म में इसे समावेशित करने की ज़रूरत के साथ ही हुआ है।
शक्ति साधना के विभिन्न स्वरूप:- 
.तांत्रिक परंपराएं:- 
शक्ति पूजा में तांत्रिक परंपराएं भी शामिल हैं, जो देवी की पूजा के लिए विशिष्ट अनुष्ठानों और मंत्रों का उपयोग करती हैं। 
२.चौसठ योगिनियों के रूप में योगदान:- 
योगिनियों की उत्पत्ति के बारे में विभिन्न कथाएं हैं। एक कथा के अनुसार, देवी काली ने दैत्य घोर का वध करने के लिए 64 योगिनियों का रूप धारण किया था। 
चौसठ योगिनी हिंदू धर्म की तांत्रिक परंपरा में देवी शक्ति के 64 रूपों का एक समूह है।ये योगिनियां देवी के विभिन्न पहलुओं का प्रतिनिधित्व करती हैं, जैसे ज्ञान, शक्ति, सौंदर्य और करुणा आदि। चौसठ योगिनी मंदिरों को अक्सर गोलाकार या आयताकार संरचनाओं में बनाया जाता है, जिनमें प्रत्येक में 64 छोटे कक्ष होते हैं, जो प्रत्येक योगिनी को समर्पित होते हैं। यहां सूर्य के गोचर के आधार पर ज्योतिष और गणित की शिक्षा दी जाती प्रदान की जाती थी। इनके मंदिर में 64 कमरे होते हैं और हर कमरे में भघवान शिव और योगिनी की मूर्ति स्थापित होती है। इसी कारण इसे चौसठ योगिनी मंदिर कहा जाता है। दिन ढलने के पश्चत यहां तंत्र साधक(अघोरी) आते हैं और भगवान शिव की योगिनियों को जाग्रत करने का प्रयास करते हैं। मंदिर को "तांत्रिक विश्वविद्यालय" के रूप में भी जाना जाता है, क्योंकि यह माना जाता है कि यहां तंत्र-मंत्र की शिक्षा दी जाती थी। सात माताएँ या सप्तमातृका (ब्राह्मी, माहेश्वरी, कौमारी, वैष्णवी, वाराही, इंद्राणी (ऐंद्री) और चामुंडी), चंडी और महालक्ष्मी से मिलकर नौ-मातृका समूह बनाती हैं। प्रत्येक मातृका को एक योगिनी माना जाता है और वह 8 अन्य योगिनियों से जुड़ी होती है जिसके परिणामस्वरूप 64 के बजाय 81 (9 गुणा 9) का समूह बनता है।
३.ग्राम देवी - देवता की पूजा -:
भारतीय गांवों में, विभिन्न ग्राम देवताओं (गांव के देवी-देवताओं कली मां, समय मां और दिवहारे बाबा आदि) की भी पूजा की जाती है, जो अक्सर शक्ति के स्थानीय रूप होते हैं। 
४.नवरात्रि पूजन और शत चण्डी यज्ञ का विधान :- 
नवरात्रि एक प्रमुख त्योहार है जो देवी दुर्गा की पूजा के लिए समर्पित है। यह त्योहार साल में दो बार मनाया जाता है, एक बार वसंत ऋतु में और दूसरी बार शरद ऋतु में। शक्ति पूजा का भौतिक रूप इन आयोजनों में दिखाई देता है।
५. कीर्तन जागरण और देवी गीतों का विशेष आयोजन :- 
देवी स्तुति कीर्तन की प्रस्तुति, लोकगीत ने परिवेश में भक्ति, आध्यात्मिकता और सकारात्मकता का संचार किया जाता है।समाज व मंडल वासियों के सहयोग से कार्यक्रम होता है। विभिन्न स्थानों से कलाकारों को बुलाया जाता है। उन्होंने बताया कि नवरात्रि शक्ति पर्व में हम सभी इस शक्ति को सकारात्मक शक्ति के रूप में स्वयं में महसूस किया जाता है।
दक्षिण एशिया में शक्ति पूजा के विविध आयाम :- 
शक्ति पूजा के कई आयाम हैं, जिनमें दुर्गा, काली, सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती और त्रिपुर सुंदरी जैसी विभिन्न देवियों की पूजा शामिल है। शक्ति पूजा में देवी को ब्रह्मांड की ऊर्जा और शक्ति का स्रोत माना जाता है। शक्ति पूजा का दर्शन यह है कि देवी ही ब्रह्मांड की ऊर्जा और शक्ति का स्रोत हैं, और उनकी पूजा करने से व्यक्ति को आध्यात्मिक और भौतिक आशीर्वाद मिल सकता है। यह पूजा जीवन के विभिन्न पहलुओं, जैसे कि ज्ञान, धन, साहस, और प्रेम में सफलता प्राप्त करने के लिए की जाती है। 
देवी के विभिन्न स्वरूप :- 
शक्ति पूजा में देवी के विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, प्रत्येक का अपना महत्व और गुण है। दुर्गा को शक्ति, साहस और विजय की देवी माना जाता है। काली को समय, परिवर्तन और विनाश की देवी माना जाता है। सरस्वती को ज्ञान, कला और संगीत की देवी माना जाता है। लक्ष्मी को धन, समृद्धि और वैभव की देवी माना जाता है। पार्वती को प्रेम, उर्वरता और भक्ति की देवी माना जाता है।शाक्त लोग माँ देवी की पूजा शक्ति के रूप में , विभिन्न रूपों में करते हैं। इन रूपों में काली , पार्वती / दुर्गा , लक्ष्मी और सरस्वती शामिल हो सकते हैं । हिंदू धर्म की वह शाखा जो देवी की पूजा करती है, जिसे देवी के रूप में जाना जाता है, शक्तिवाद कहलाती है । शक्तिवाद के अनुयायी शक्ति को ब्रह्मांड की सर्वोच्च शक्ति के रूप में पहचानते हैं। देवी को अक्सर पार्वती (शिव की पत्नी) या लक्ष्मी (विष्णु की पत्नी) के रूप में दर्शाया जाता है। उन्हें अन्य रूपों में भी दर्शाया गया है, जैसे कि सुरक्षात्मक दुर्गा या हिंसक काली । शक्तिवाद तांत्रिक हिंदू धर्म से निकटता से जुड़ा हुआ है, जो मन और शरीर की शुद्धि के लिए अनुष्ठान और अभ्यास सिखाता है। सती और शिव एक ही ब्रह्मांडीय सिक्के के दो पहलू :- 
देवी सती और भगवान शिव की कहानी, जो एक शक्तिशाली यज्ञ से शुरू होती है और शिव के ससुर द्वारा अपमान और पत्नी सती के बाद में आत्मदाह के साथ समाप्त होती है, शक्ति की नींव रखती है। इस बात से चिंतित कि प्रतिशोधी शिव का तांडव दुनिया को नष्ट कर देगा, महाविष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 51 या 108 टुकड़ों में काट दिया। 
शाक्त धर्म के विविध स्वरूप:- 
शाक्त संप्रदाय देवी शक्ति (आदिशक्ति) को सर्वोच्च देवता मानते हैं और उनकी पूजा करते हैं।आदिशक्ति अर्थात माता पार्वती की उपासना करने वाला सम्प्रदाय शाक्त सम्प्रदाय कहलाता है। शाक्त संप्रदाय के अनुयायी देवी शक्ति के विभिन्न रूपों और अवतारों की भी पूजा करते हैं, जैसे कि दुर्गा, काली, लक्ष्मी, आदि. शाक्त संप्रदाय के कुछ प्रसिद्ध उपसंप्रदाय हैं: श्री विद्या, काली, आदि।'शक्ति की पूजा' शक्ति के अनुयायियों को अक्सर 'शाक्त' कहा जाता है। शाक्त न केवल शक्ति की पूजा करते हैं, बल्कि उसके शक्ति-आविर्भाव को मानव शरीर एवं जीवित ब्रह्माण्ड की शक्ति या ऊर्जा में संवर्धित, नियंत्रित एवं रूपान्तरित करने का प्रयास भी करते हैं। विशेष रूप से माना जाता है कि शक्ति, कुंडलिनी के रूप में मानव शरीर के गुदा आधार तक स्थित होती है। जटिल ध्यान एवं यौन- यौगिक अनुष्ठानों के ज़रिये यह कुंडलिनी शक्ति जागृत की जा सकती है। इस अवस्था में यह सूक्ष्म शरीर की सुषुम्ना से ऊपर की ओर उठती है। मार्ग में कई चक्रों को भेदती हुई, जब तक सिर के शीर्ष में अन्तिम चक्र में प्रवेश नहीं करती और वहाँ पर अपने पति-प्रियतम शिव के साथ हर्षोन्मादित होकर नहीं मिलती। भगवती एवं भगवान के पौराणिक संयोजन का अनुभव हर्षोन्मादी-रहस्यात्मक समाधि के रूप में मनों-दैहिक रूप से किया जाता है, जिसका विस्फोटी परमानंद कहा जाता है कि कपाल क्षेत्र से उमड़कर हर्षोन्माद एवं गहनानंद की बाढ़ के रूप में नीचे की ओर पूरे शरीर में बहता है।
मान्यता :- 
हिन्दुओं के शाक्त सम्प्रदाय में भगवती काली और ललिता को ही दुनिया की पराशक्ति और सर्वोच्च देवता माना जाता है । यह पुराण वस्तुत: 'दुर्गा चरित्र' एवं 'दुर्गा सप्तशती' के वर्णन के लिए प्रसिद्ध है। इसीलिए इसे शाक्त सम्प्रदाय का पुराण भी कहा जाता है। शास्त्रों में कहा गया है- 'मातर: सर्वभूतानां गाव:' यानी गाय समस्त प्राणियों की माता है। इसी कारण आर्य संस्कृति में पनपे शैव, शाक्त, वैष्णव, गाणपत्य, जैन, बौद्ध, सभी धर्म-संप्रदायों में उपासना एवं कर्मकांड की पद्धतियों में भिन्नता होने पर भी वे सब गौ के प्रति आदर भाव रखते हैं। हिन्दू धर्म के अनेक सम्प्रदायों में विभिन्न प्रकार के तिलक, चन्दन, हल्दी और केसर युक्त सुगन्धित पदार्थों का प्रयोग करके बनाया जाता है। वैष्णव गोलाकार बिन्दी, शाक्त तिलक और शैव त्रिपुण्ड्र से अपना मस्तक सुशोभित करते हैं।
शक्ति पीठ इस सम्प्रदाय के प्रमुख आकर्षण केन्द्र रहे :- 
माता सती के शरीर के अंग और आभूषण दक्षिण एशिया के भारतीय उपमहाद्वीप में विभिन्न स्थानों पर धरती पर गिरे। ये पवित्र स्थान 51 शक्ति पीठ हैं, जिनमें से प्रत्येक संस्कृत वर्णमाला के 51 अक्षरों से जुड़ा हुआ है। शक्ति और काल भैरव सभी पीठों में मुख्य देवता होते हैं। धर्म ग्रंथ “शाक्त सम्प्रदाय” में देवी दुर्गा के संबंध में 'श्रीदुर्गा भागवत पुराण' एक प्रमुख ग्रंथ है, जिसमें १०८ देवी पीठों का वर्णन किया गया है। उनमें से भी ५१-५२ शक्ति पीठों का बहुत ही महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी में दुर्गा सप्तशति भी है। इसके अलावा कालिका पुराण, शाक्त महाभागवत और ६५ तंत्र प्रमुख हैं।
      'दर्शन' शाक्तों का यह मानना है कि दुनिया की सर्वोच्च शक्ति स्त्रेण है। इसीलिए वे देवी को ही ईश्वर रूप में पूजते हैं। दुनिया के सभी धर्मों में ईश्वर की जो कल्पना की गई है, वह पुरुष के समान की गई है। अर्थात ईश्वर पुरुष जैसा हो सकता है, किंतु शाक्त धर्म दुनिया का एकमात्र ऐसा धर्म है, जो सृष्टि रचनाकार को जननी या स्त्रेण मानता है। सही मायने में यही एकमात्र धर्म स्त्रियों का धर्म है। शिव तो शव है, शक्ति परम प्रकाश है। 
शक्ति पूजा का इतिहास :- 
सिंधु घाटी सभ्यता में भी मातृदेवी की पूजा के प्रमाण मिलते हैं। चार सम्प्रदाय प्राचीन सम्प्रदाय है। गुप्त काल में यह उत्तर-पूर्वी भारत, कम्बोडिया, जावा, बोर्निया और मलाया प्राय:द्वीपों के देशों में लोकप्रिय था। बौद्ध धर्म के प्रचलन के बाद इसका प्रभाव कम हुआ। शाक्त संस्कृति’ कृष्ण काल में ब्रज में शाक्त संस्कृति का प्रभाव बहुत बढ़ा। ब्रज में महामाया, महाविद्या, करोली, सांचोली आदि विख्यात शक्तिपीठ हैं। मथुरा के राजा कंस ने वासुदेव द्वारा यशोदा से उत्पन्न जिस कन्या का वध किया था, उसे भगवान श्रीकृष्ण की प्राणरक्षिका देवी के रूप में पूजा जाता है। देवी शक्ति की यह मान्यता ब्रज से सौराष्ट्र तक फैली है। द्वारका में भगवान द्वारकानाथ के शिखर पर चर्चित सिंदूरी आकर्षक देवी प्रतिमा को कृष्ण की भगिनी बतलाया गया है, जो शिखर पर विराजमान होकर सदा इनकी रक्षा करती हैं। ब्रज तो तांत्रिकों का आज से १०० वर्ष पूर्व तक प्रमुख गढ़ था। यहाँ के तांत्रिक भारत भर में प्रसिद्ध रहे हैं। कामवन भी राजा कामसेन के समय तंत्र विद्या का मुख्य केंद्र था, उसके दरबार में अनेक तांत्रिक रहते थे।
शाक्तधर्मके'उद्देश्य' :- 
सभी सम्प्रदायों के समान ही शाक्त सम्प्रदाय का उद्देश्य भी मोक्ष है। फिर भी शक्ति का संचय करो, शक्ति की उपासना करो, शक्ति ही जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सर्वत्र व्याप्त है और शक्ति की सभी को आवश्यकता है। बलवान बनो, वीर बनो, निर्भय बनो,स्वतंत्र बनो और शक्तिशाली बनो। इसीलिए नाथ और शाक्त सम्प्रदाय के साधक शक्तिमान बनने के लिए तरह-तरह के योग और साधना करते रहते हैं। सिद्धियाँ प्राप्त करते रहते हैं। शक्ति से ही मोक्ष पाया जा सकता है। शक्ति नहीं है तो सिद्ध, बुद्धि और समृद्धि का कोई मतलब नहीं है।
शक्तिपीठ हैं क्या है?
शिवपुराण, देवी भागवत, श्रीमद भागवत समेत समस्त पौराणिक और तंत्रचूड़ामणि, देवी गीता, देवी भागवत समेत ज्यादातर उत्तर पौराणिक ग्रंथों में शक्तिपीठों का प्रसंग मिलता है। थोड़े बहुत अंतर के साथ इनकी कहानी कॉमन सी है। इन ग्रंथों के मुताबिक भगवान शिव के मना करने के बावजूद माता सती बिना निमंत्रण के ही अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में पहुंच गईं थीं।
वीरभद्र ने नष्ट कर दिया दक्ष प्रजपति का यज्ञ:- 
वहां सभा में उन्होंने अपने पति भोलेनाथ का अपमान होते देखा तो बर्दाश्त नहीं कर पायीं और योगाग्नि में खुद को भस्म कर लिया था. देवर्षि नारद से यह खबर भगवान शिव को मिली तो वह सती के मोह में व्याकुल हो गए. उन्होंने तुरंत अपनी जटा खोली और लट को जमीन पर पटक दिया. इससे वीरभद्र नामक वीर पुरुष प्रकट हुआ. जिसने भोलेनाथ के आदेश पर दक्ष का वध करते हुए यज्ञ को विध्वंस कर दिया. वहीं यज्ञ पुराहित का सिर धड़ से उखाड़ लिया था. उस समय भगवान शिव भी अपनी व्याकुला के प्रभाव में माता सती के शरीर को हाथ में लेकर पूरे वेग के साथ सृष्टि में तांडव करने लगे थे।
नारायण का मिला था आशीर्वाद:- 
भगवान नारायण ने शक्ति पीठ को आशीर्वाद दिया था । इससे प्रलय की नौबत आ गई और भगवान नारायण को आगे आना पड़ा था। उस समय नारायण ने सुदर्शन चक्र से माता के शरीर के कई टुकड़े कर दिए थे। इससे भी भगवान शिव का गुस्सा शांत नहीं हुआ तो नारायण भगवान ने वरदान दिया था कि सती के अंग जहां जहां गिरे हैं, वह सभी स्थान शक्तिपीठ के रूप में जाने जाएंगे और इन सभी स्थानों पर देवी सती जीवंत भाव में रहेंगी।यही नहीं, इन स्थानों पर जो भी कोई भक्त भाव के साथ पूजा करेगा वह देवी सती की कृपा का पात्र बनेगा। इससे उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होंगी। यह सुनकर भगवान शिव शांत तो हो गए, लेकिन उनका वियोग कम नहीं हुआ और वह अनिश्चित काल के समाधि में चले गए थे।
      108 शक्ति पीठों की सूची:- 
शक्ति पीठों को पवित्र और धार्मिक स्थल माना जाता है। वे हिंदू धर्म की दिव्य स्त्री देवी सती को समर्पित हैं।शक्तिपीठों की संख्या को लेकर विद्वानों में अक्सर मतभेद होता है। हमारे पौराणिक और उत्तर पौराणिक ग्रंथ भी इनकी संख्या को लेकर एकराय नहीं है। ऐसे में कभी 18 तो कभी 51-52 या 72 शक्तिपीठ बताए जाते हैं।
      यह तो सबको पता है कि माता सती के अंग जहां जहां गिरे, वहां शक्तिपीठ बन गए. यह सभी शक्तिपीठ आज भी जीवंत माने जाते हैं। यह शक्तिपीठ कितने हैं और कहां कहां हैं? इसको लेकर अक्सर सवाल पूछा जाता है। वहीं इस सवाल के जवाब में अलग अलग ग्रंथों में जवाब भी अलग अलग मिलते हैं। देवी पुराण के मुताबिक माता के 51 अंग धरती पर गिरे थे। इस लिए शक्तिपीठों की संख्या भी 51 है. वहीं देवी पुराण में 108 शक्ति पीठ बताए गए हैं. इसी प्रकार देवी गीता में 72 और तंत्र चूड़ामणि में 52 शक्तिपीठों के नाम दिए गए हैं।
    पौराणिक कथाओं के अनुसार, जो 51 या 108 शक्तिपीठ हैं, ये संख्या विभिन्न हिंदू शास्त्रों में अलग-अलग है। शक्ति पीठों का उल्लेख भगवान शिव और सती के बलिदानों के वर्णन में मिलता है। सती माता राजा दक्ष और रानी प्रसूति की पुत्री थीं, जो भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थीं। सती ने अपने पिता के विरुद्ध जाकर भगवान शिव से विवाह किया, जो सभी के मुख्य और सर्वोच्च देवता हैं।
      माता सती और भगवान शिव का मिलन पुरुषत्व और नारीत्व की सबसे शक्तिशाली ऊर्जा को दर्शाता है। एक बार भगवान शिव का अपमान करने के लिए राजा दक्ष ने एक भव्य यज्ञ का आयोजन किया और अपनी बेटी और दामाद को छोड़कर सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। माता सती बिना बुलाए इस यज्ञ में शामिल होना चाहती थीं, लेकिन भगवान शिव जाने से मना कर देते हैं। माता सती यज्ञ में चली गईं और उस समय उनके पति का उनके पिता राजा दक्ष ने सार्वजनिक रूप से अपमान किया। यह सुनने के बाद, उन्होंने अपनी दिव्य शक्ति निकालकर खुद को यज्ञ की अग्नि में जिंदा जला दिया।
     यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो गए और उन्होंने वहां तांडव किया और राजा दक्ष का सिर काट दिया। दुखी होकर भगवान शिव ने माता सती के शरीर को उठा लिया और उनके दुःख और क्रोध से पूरे ब्रह्मांड का नाश होने का डर था। इसे रोकने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती माता के शरीर के अंगों को 108 भागों में काट दिया।
        108 शक्ति पीठ सूची :- 
108 शक्तिपीठों की संख्या, उनके नामों और स्थानों का उल्लेख विभिन्न धार्मिक ग्रंथों में मिलता है। जैसे कि देवी भागवत पुराण में 108 शक्तिपीठों का वर्णन है। 108 शक्तिपीठों की सूची और उनके स्थान इस प्रकार है :- 

1.वैष्णो देवी,जम्मू:- ,यह मंदिर देवी सती के सिर के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

2.अमरनाथ देवी महामाया जम्मू और कश्मीर :- यह सती का गला गिरा था।

3. नाभा माता शक्तिपीठ :- माता सती जम्मू से 50 किमी. यहां माता की नाभि गिरी थी।

4.फुलारा माँ फुल्लारा,पश्चिम बंगाल , यहां माता की निचले होंठ गिरे थे।

5. बहुलादेवी बहुला,पश्चिम बंगाल , यहां माता का बांया हाथ गिरा था।

6.त्रिस्रोता शक्ति भ्रामरी,जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल, यहां माता का बायां पैर गिरा था।

7.दक्षिणेश्वर काली,कोलकाता, पश्चिम बंगाल:-, यहां माता का दाएँ पैर की उंगलियाँ गिरी थी।

8. कालीघाट शक्ति कालिका बीरभूम, पश्चिम बंगाल :- यह मंदिर देवी सती के दाहिने पैर के पंजे के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

9.तारापीठ देवी तारा बीरभूम, पश्चिम बंगाल :- यहां माता जी की दाहिनी आंख गिरी थी।

10.नलहाटी माँ नलतेश्वरी,हुगली, पश्चिम बंगाल :- यहां माता का गला या 'नाला' गिरा था।

11.विभाष शक्ति पीठ,कपालिनी मेदनीपुर, पश्चिम बंगाल:- यहां माता का बायां टखना गिरा था।

12.नंदिकेश्वरी देवी नंदिनी,बीरभूम, पश्चिम बंगाल:- यहां माता का गले का हार गिरा था।

13.मंगल चंडिका देवी चंडी पूर्बा बर्धमान, पश्चिम बंगाल, यहां माता की दांयी कलाई गिरी थी।

14.महिषमर्दिनी शक्ति पीठ, देवी काली बीरभूम, पश्चिम बंगाल :- इसे देवी त्रिपुर सुंदरी/तुरिता माता भी कहा जाता है।वहां देवी सती का भ्रूण गिरा था, अन्यत्र सती के भौहों के बीच का हिस्सा इस स्थान पर गिरा होना बताया गया है।

15.कंकलिताला देवी देवगर्भा,बोलपुर, पश्चिम बंगाल, यहां माता की कमर गिरी थी।

16.किरितेश्वरी देवी दाक्षायणी सती ,मुर्शिदाबाद, पश्चिम बंगाल- यहां माता के शिर का ताज गिरा था।

17.अम्बाजी आदि शक्ति अम्बाजी, गुजरात में है।अर्बुदा देवी को कात्यायनी माता का स्वरूप माना जाता है। यह मंदिर देवी सती के हृदय/ दिल के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

18.चंद्रभागा शक्ति पीठ , माँ चंद्रभागा सोमनाथ, गुजरात- यहां माता का उदर (पेट) गिरा था ।

19. पावागढ़,जगतजननी माँ कालिका , हलोल, गुजरात- यहां माता का दाहिना पैर गिरा था।

20.बहुचराजी,बहुचरा माता ,मेहसाणा, गुजरात- यहां माता का बायां हाथ गिरा था।

21.मणिबंध गायत्री पुष्कर, राजस्थान- यहां माता की कलाई गिरी थी।

22.विराट शक्ति पीठ अंबिका शक्ति भरतपुर, राजस्थान- यहां माता के बाएं पैर की उंगलियां गिरी थी।

23.जीन माता देवी जीण माता सीकर जिला, राजस्थान- यहां माता की नाक गिरी थी।

24.श्री त्रिपुर सुंदरी मंदिर,बांसवाड़ा, राजस्थान - यहां माता सती के दाहिने पैर का भाग (दक्षिण चरण) जिसमें अंगूठे भी शामिल हैं, गिरा था।

25.देवी तालाब मंदिर त्रिपुरा मलिनी जालंधर, पंजाब- यहां माता का बायां स्तन गिरा था।

26. श्री देवी कूप भद्रकाली भद्रकाली कुरुक्षेत्र, हरियाणा- यहां माता टखने की हड्डी गिरी हुई थी।

27.मनसा देवी,पंचकूला, हरियाणा- यहां माता का दांया हाथ गिरा था।

28.नैना देवी नैना देवी जोल, हिमाचल प्रदेश- यहां माता की आँखें गिरी थी।

29.चिंतपूर्णी छिन्नमस्तिका देवी ऊना, हिमाचल प्रदेश- यहां माता का पैर गिरा था।

30.ज्वाला देवी ज्वालामुखी कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश - यह मंदिर देवी सती की जीभ के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

31.बज्रेश्वरी देवी वज्रेश्वरी कांगड़ा, हिमाचल प्रदेश - यहां माता का बायां स्तन गिरा था।

32. चामुंडा देवी चामुंडा पादर, हिमाचल प्रदेश- यहां माता का कान गिरा था।

33.योगमाया महरौली, नई दिल्ली- यहां माता का सिर गिरा था।

34.कालीमठ धारी देवी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड - यहां माता के शरीर निचला आधा भाग गिरा था।

35. धारी देवी मंदिर धारी देवी रुद्रप्रयाग, उत्तराखंड- यहां माता के शरीर ऊपरी आधा भाग गिरा था।

36.कुंजापुरी देवी दुर्गा अदाली, उत्तराखंड,- यहां माता का कान गिरा था।

37.पूर्णागिरी ,टनकपुर, उत्तराखंड - यहां माता का नाभि गिरा था।

38.मणिकर्णिका घाट विशालाक्षी वाराणसी, उत्तर प्रदेश - यहां माता का चेहरा या कान की बाली गिरी थी।

39.कात्यायनी उमा वृंदावन, उत्तर प्रदेश- यहां माता के बालों की लटें गिरी थी।

40. महा माया शक्तिपीठ, अमरनाथ गुफा,जंबू - यहां माता का कंठ गिरा था। इसकी शक्ति को महामाया और भैरव को त्रिसंध्येश्वर कहते हैं।

41.ललिता देवी इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश - यहां माता की अंगुलियों गिरी थी।  

42.अलोपी देवी अलोपीप्रयागराज, उत्तर प्रदेश - यहां माता के दाहिने हाथ की चार उंगलियाँ गिरी थी।

43.शाकुंभरी देवी शाकुंभरी सहारनपुर उत्तर प्रदेश - यहां माता का शिर गिरा था।

44.विंध्याचल धाम विन्ध्यवासिनी मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश- विंध्याचल धाम में सती का कोई अंग नहीं गिरा था। यह मंदिर एक शक्तिपीठ है।यह एक पूर्ण पीठ माना जाता है, जहां माता स्वयं विराजमान हैं. मान्यता है कि यहां देवी दुर्गा ने खुद को स्थापित किया था.।

45.चामुंडा देवी भगवती जगदम्बा मथुरा, उत्तर प्रदेश - यहां माता का बालों का गुच्छा गिरा था। 

46.रामगिरी/शिवानी शिवानी चित्रकूट, उत्तर प्रदेश- यहां माता का स्तन गिरा था। 
47.बड़ी पाटन देवी ,दुर्गा, पटना, बिहार- यहां माता का दायां पैर गिरा था। 

48.छोटी पाटन देवी,दुर्गा पटना, बिहार- यहां माता का साड़ी और कपड़े गिरे थे।

49.शीतला माता ,शीतला देवी पटना, बिहार- यहां माता का कंगन गिरा था।

50.मंगला गौरी, गया, बिहार - यहां माता का स्तन गिरा था।

51.ताराचंडी , सासाराम, बिहार - यहां माता की दाहिनी आंख गिरी थी।

52.चंडिका स्थान शक्ति मुंगेर, बिहार - यहां माता का आंख गिरी थी।

53.अंबिका भवानी, सारण, बिहार- यहां माता के शरीर का धड़ गिरा था।

54.रजरप्पा छिन्नमस्ता रामगढ़, झारखंड- यहां माता का कटा हुआ सिर गिरा था।

55. जयदुर्गा शक्तिपीठ,जय दुर्गा देवघर झारखंड- यहां माता का दिल गिरा था।

56.दंतेश्वरी ,माँ दंतेश्वरी ,जगदलपुर, छत्तीसगढ़- यहां माता के दांत गिरे थे।

57.अंबाबाई मंदिर देवी महालक्ष्मी कोल्हापुर, महाराष्ट्र- यहां माता का तीसरी आंख गिरी थी।

58.तुलजा भवानी भवानी धाराशिव, महाराष्ट्र- यहां माता का दाहिना हाथ गिरा था।

59.एकवीरिका देवी,रेणुका देवी नांदेड़, महाराष्ट्र - यहां माता का बायां हाथ गिरा था।

60.कन्या आश्रम, कन्याकुमारी भगवती, कन्याकुमारी, तमिलनाडु- 
यहां माता की रीढ़ की हड्डी गिरी थी।

61.शुचिन्द्रम देवी नारायणी कन्याकुमारी, तमिलनाडु- यहां माता के ऊपरी दांत गिरे थे।

62.कामाक्षी अम्मन मंदिर,कामाक्षी चेन्नई, भारत- यहां माता की नाभि गिरी थी।

63.चामुंडेश्वरी देवी दुर्गा,मैसूरु, कर्नाटक- यहां माता के बाल गिरे थे।

64.वनशंकरी वनशंकरी बागलकोट, कर्नाटक- यहां देवी सती का दाहिना पैर गिरा था। इनका दूसरा लोकप्रिय नाम शाकंभरी भी है,

65.श्री शैलम श्रीसुंदरी त्रिपुरांतकम, आंध्र प्रदेश - यहां माता की दाहिना पायल गिरी थी।

66.पुरुहुतिका देवी मंदिर,पुरुहुतिका मातापूर्वी गोदावरी आंध्र प्रदेश- यहां माता सती का पिछला भाग/बायां हाथ गिरा था।

67.गोदावरी शक्ति विश्वेश्वरी रतनपुर, छत्तीसगढ़– यहां माता सती का बायां गाल गिरा था।

68.जोगुलम्बा मंदिर ,जोगुलम्बा आलमपुरम, तेलंगाना - यहां माता सती का उपरी दांत गिरा था। 

69.मणिक्यम्बा,द्रक्षारामम आंध्र प्रदेश - यहां माता सती का बायां गाल गिरा था। 

70.तारा तारिणी गंजम, ओडिशा-  
यहां माता सती का स्तन गिरा था। 

71.विमला मंदिर,विमलापुरी, ओडिशा- यहां माता सती का पैर गिरा था। 

72.माँ बिराजा मंदिर,गिरिजा जाजपुर, ओडिशा – यह उड़ीसा का सबसे पुराना तांत्रिक शक्तिपीठ है ,जहाँ सती माता की नाभि गिरी थी।

73.समलेश्वरी मंदिर समलेश्वरी संबलपुर, ओडिशा । यहां सती का दायां पैर गिरा था।

74 कामाख्या मंदिर कामाख्या गुवाहाटी, असम–यह मंदिर देवी सती के योनि भाग के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है.।

75.दीर्घेश्वरी मंदिर दुर्गा गुवाहाटी, असम यहां सती के पैर का “अंगूठा” गिरा था। 

76.ग्रतारा मंदिर,ग्रा तारा गुवाहाटी, असम- मान्यतानुसार भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती की नाभि यहां गिरी थी।

77.महामाया,कोकराझार, असम मान्यतानुसार भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती की गर्दन यहां गिरी 

78.जयंती जयंती पश्चिम जयंतिया हिल्स, मेघालय मान्यतानुसार भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती की बाईं जांघ यहां गिरी थी।

79.त्रिपुर सुंदरी,गोमती, त्रिपुरा। मान्यतानुसार भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती का दाहिना पैर यहां गिरी थी।

80.अवंती अवंतिका उज्जैन, मध्य प्रदेश- मान्यतानुसार भगवान शिव की प्रथम पत्नी सती की ऊपरी होंठ/कोहनी यहां गिरी थी।

81.नर्मदा सोनाक्षी अमरकंटक, मध्य प्रदेश- यहां सती का दायां नितम्ब गिरा था।

82.हरसिद्धि माता शक्तिपीठ हरसिद्धि माता उज्जैन, मध्य प्रदेश- यहां सती का कोहनी गिरा था।

83.महाकालेश्वर मंदिर,महाकाली उज्जैन, मध्य प्रदेश - यहां सती के होंठ के ऊपर का हिस्सा गिरा था।

84.त्रिंकोमाली शक्ति पीठम शंकरी उत्तरी प्रांत, श्रीलंका। यहां सती के पेट और जांघ के बीच का हिस्सा ऊसन्धि गिरा था।

85.नागपोशनी अम्मन मंदिर पार्वती जाफना, श्रीलंका। यहां सती की पायल गिरी थी।

86.हिंगलाज शक्तिपीठ,हिंगलाज देवी पाकिस्तान- यह मंदिर देवी सती के सिर के ऊपरी हिस्से के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

87.शारदा पीठ,देवी शारदा शारदा, कश्मीर, पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर । यहां सती का दांया हाथ गिरा था।

88.गंडकी चंडी शक्तिपीठ,गंडकी चंडी मस्तंग, नेपाल- यह मंदिर देवी सती के दाहिना गाल के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

89.गुह्येश्वरी शक्तिपीठ,गुह्येश्वरी काठमांडू, नेपाल- यह मंदिर देवी सती के दोनों घुटनों के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

90.अपर्णा शक्तिपीठ,अपर्णा बोगरा, बांग्लादेश । यहां सती के बाएं पैर की बायीं पायल (आभूषण) गिरी थी।

91.जेशोरेश्वरी शक्तिपीठ,जेशोरेश्वरी ईश्वरीपुर, बांग्लादेश– यह मंदिर देवी सती की बाईं हथेली के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

92.चट्टल भवानी शक्तिपीठ, भवानी सीताकुंडा, बांग्लादेश। यह मंदिर देवी सती की दाहिनी भुजा के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

93,.सुगंधा शक्तिपीठ,सुगंधा बरिसाल, बांग्लादेश - सुगंधा शक्तिपीठ, बांग्लादेश। यह मंदिर देवी सती की नाक के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है.

94.श्री शैल शक्तिपीठ महालक्ष्मी सिलहट, बांग्लादेश। यह मंदिर देवी सती की गर्दन के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

95.ढाकेश्वरी शक्तिपीठ,ढाकेश्वरी ढाका, बांग्लादेश।यहां सती के मुकुट का रत्न गिरा था।

96.दाक्षायणी शक्ति पीठ,मनसा तिब्बत- यह मंदिर देवी सती का दायां हाथ के गिरने से स्थापित हुआ माना जाता है।

97.शश्री पर्वत शक्तिपीठ, जो लद्दाख के पर्वत पर स्थित है, में माता सती के दाएं पैर की पायल गिरी थी। यह शक्तिपीठ श्रीसुंदरी देवी के नाम से प्रसिद्ध है और इसके भैरव सुंदरानंद हैं।

98.पंच सागर शक्तिपीठ,पंच सागर शक्तिपीठ उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित है। यह शक्तिपीठ माँ आदिशक्ति के वाराही स्वरुप को समर्पित है और माना जाता है कि यहाँ देवी का निचला जबड़ा गिरा था।
99. मिथिला शक्तिपी–मिथिला, बिहार: यहाँ देवी का बायां कंधा गिरा था। 

100. रत्नावली शक्तिपीठ,पश्चिम बंगाल के हुगली जिले में स्थित है. यह मंदिर रत्नाकर नदी के तट पर स्थित है और इसे कुमारी शक्तिपीठ या आनंदमयी शक्तिपीठ भी कहा जाता है. कुछ लोगों का मानना है कि यह वही स्थान है जहाँ देवी सती का माता सती का दाहिना कंधा गिरा था। 

101.रामगिरी शक्ति पीठ चित्रकूट, जिसे शिवानी शक्तिपीठ के नाम से भी जाना जाता है, उत्तर प्रदेश के चित्रकूट में स्थित–माता सती का दाहिना वक्ष (दायां स्तन) गिरा था. यहां माता सती को देवी शिवानी के रूप में पूजा जाता है।

102.ललिताम्बिका शक्ति पीठ मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) में स्थित है। इसे ललिता देवी मंदिर या ललिता पीठ भी कहा जाता है. यह मंदिर प्रयागराज के मीरापुर मोहल्ले में यमुना नदी के तट पर स्थित है. यहां सती का दिल गिरा था ।

103.मदोत्तमा, श्रीलंका में स्थित है, जहाँ देवी सती के बाएं पैर की उंगली गिरी थी।  

104.काली कपाली,कपालिनी शक्तिपीठ पश्चिम बंगाल के पूर्व मेदिनीपुर जिले में विभाष (तमलुक) में स्थित है। जहां देवी सती के शरीर का बायां टखना गिरा था। यह मंदिर देवी दुर्गा को समर्पित है और इसे भीमाकाली मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। 

105.विश्वेश्वरी, विश्वेश्वरी शक्ति पीठ, जिसे गोदावरी तीर शक्ति पीठ या सर्वशैल शक्ति पीठ के नाम से भी जाना जाता है, आंध्र प्रदेश के राजमुंदरी के पास गोदावरी नदी के किनारे स्थित है। जहां देवी सती का बायां गाल गिरा था। यहाँ देवी विश्वेश्वरी (या विश्वेशी) और भगवान शिव वत्सनाभ (या दंडपाणि) के रूप में पूजे जाते हैं। 

106.पंचवक्त्र शक्तिपीठ जिसे "वाराणसी पंचसागर" भी कहा जाता है, उत्तर प्रदेश के वाराणसी शहर में स्थित है। यह शक्ति पीठ देवी सती के निचले जबड़े का हिस्सा गिरने के कारण बना है।

107.कलमाधव,अनुपपुर, मध्य प्रदेश में स्थित है। यहां सती मां का बायां नितंब गिरा था।

108.मैहर मां, मैहर/शिवानी सतना, मध्य प्रदेश में स्थित है। यहां माता सती का स्तन गिरा था।


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