Monday, June 16, 2025

सम्राट मान्धाता राजा की कथा (राम के पूर्वज- 10) #आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी


इक्ष्वाकु वंश के राजा युवानाश्व
राजा युवनाश्व की पुत्र प्राप्ति की चिंता के बारे में भृगुनंदन महर्षि च्वयन को पता था। इसलिए उन्होंने उनकी इच्छा पूरी करने के लिए एक कलश में अभिमंत्रित सिद्ध जल रखा था। यह जल रानी के लिए था ताकि वह इसे पीकर इंद्र के बराबर पराक्रमी संतान को जन्म दें। लेकिन जंगल में विचरण करते हुए राजा को भयंकर प्यास लगी। वह सूखे गले से व्याकुल हो उठे और पानी की तलाश में इधर-उधर भटकने लगे। उन्हें तभी एक आश्रम दिखा और वह वहां रखे कलश का जल पी गए। अगली सुबह जब महर्षि च्वयन ने खाली कलश देखा तो उन्होंने अपने शिष्यों से पता लगाने के लिए कहा कि कलश का जल कहां गया। तब राजा युवनाश्व ने बताया कि उन्होंने प्यास से विवश होकर कलश का जल पी लिया। यह जानकर महर्षि ने राजन से कहा कि आपने गलत किया। यह आपकी पत्नी के लिए था, ताकि वह महापराक्रमी पुत्र को जन्म दे सके। इस जल को कठोर तपस्या के बाद सिद्ध किया गया था। महर्षि ने कहा कि वह अब इसका प्रभाव नहीं टाल सकते हैं। यह विधि का विधान ही होगा कि आपने यह जल पीया। अब आपके गर्भ से पुत्र का जन्म होगा और आपको प्रसव पीड़ा सहनी होगी।
इंद्र की वजह से मांधाता नाम मिला
इसके बाद करीब 100 वर्षों का समय बीता और राजा युवनाश्व की बायीं कोख फाड़कर महाप्रतापी बालक का जन्म हुआ। जिसे देखने के लिए इंद्र समेत देवता आए। तब देवताओं ने इंद्र से पूछा कि यह बालक क्या पीयेगा, इस पर उन्होंने बालक के मुंह में उंगली डालकर कहा, माम् अयं धाता यानी कि यह मुझे ही पीयेगा, इसके बाद देवताओं ने इस बालक का नाम मांधाता रखा। इंद्र की उंगली का रसास्वादन करने के बाद बालक 13 बित्ता बढ़ गया। उस बालक को सभी वेद, धनुर्वेद और दिव्यास्त्रों की शिक्षा-दीक्षा दी गई। बालक को अभेद्य कवच, आजगव धनुष और सींग से बने बाणों से सुसज्जित किया गया। यही बालक आगे चलकर इक्ष्वाकु वंश का महाप्रतापी राजा मांधाता कहलाया। 
वह भगवान राम के पूर्वज थे और इतने बलशाली थे कि एक दिन में ही तीनों लोकों को जीत लिया था। उन्होंने रावण को धूल चटाई थी और देवराज इंद्र को ललकारा था। लेकिन इंद्र ने अपना सिंहासन बचाने के लिए उन्हें अपने जाल में फंसा के मरवा डाला। ऐसे महापराक्रमी राजा का नाम मांधाता था। 
पौराणिक अनुश्रुति के अनुसार भारत के सम्राटों में प्रथम सम्राट मान्धाता प्रसिद्ध है। उसे पुराणों में चक्रवर्ती सम्राट कहा गया है। उसने पड़ोस के अनेक राज्यों को जीतकर दिग्विजय किया। राजा मांधाता के बारे में महाभारत, भागवत पुराण और वाल्मीकि रामायण में प्रसंग मिलते हैं। मांधाता के जन्म की कथा भी बड़ी रोचक है। वह अपनी मां की जगह, पिता युवानाश्व की कोख से जन्मे थे। दरअसल इक्ष्वाकु वंश के राजा युवनाश्व भी बड़े साहसी और धार्मिक थे। उन्होंने एक हजार अश्वमेघ यज्ञ संपन्न कराए थे। वह ब्राह्मणों को दान देते थे। इसके अलावा कई श्रेष्ठ यज्ञ करवाते थे।
सम्राट मान्धाता के सम्बन्ध में पौराणिक अनुश्रुति में कहा गया है कि सूर्य जहां से उगता है और जहां अस्त होता है, वह सम्पूर्ण प्रदेश मान्धाता के शासन में था। जिन आर्य राज्यों को जीतकर मान्धाता ने अपने अधीन किया उनमें पौरव, आनव, द्रुहयु और हैह्य राज्यों के नाम विशेष रूप से उल्लेख पूर्ण हैं। मान्धाता को चक्रवर्ती और सम्राट बताने तथा उसकी विजयों के बारे में आर्य राज्यों को जीतना कारण बताया गया है, जिससे निष्कर्ष निकलता है वह स्वयं भी आर्य था। चूंकि भारत का इतिहास आर्यों से ही आरम्भ होता है, इसलिए भारत की सभ्यता का ज्ञान आर्यों के भारत आगमन से ही प्रकाश में आता है इसलिए कहा जा सकता है कि सम्राट मान्धाता का काल 5,000 वर्ष पूर्व रहा है। मान्धाता बड़े प्रतापी राजा हुए। उसने पड़ोस के अन्य आर्य राज्यों को जीतकर दिग्विजय किया।
        मांधाता, एक ऐसे राजा जिनसे राक्षस तो क्या इंद्र भी थरथर कांपते थे, उनका युद्ध कौशल ऐसा था कि उनके साहस के आगे एक-एक करके सभी यातो नतमस्तक हो गए या उन्हें मुंह की खानी पड़ी। एक दौर ऐसा भी आया जब राजा मांधाता ने समस्त पृथ्वी पर अपना शासन स्थापित करके इंद्र लोक की ओर रुख करने का विचार किया, तभी देवराज इंद्र ने अपनी सत्ता को बचाने के लिए पिता के गर्भ से पैदा हुए इस महापराक्रमी राजा को धोखे से मरवा दिया। लेकिन राजा मांधाता जब तक जीवित रहे, तब तक उनकी बुद्धिमत्ता, पराक्रम और धर्मपरायणता अद्वितीय रही। खास बात यह कि राजा मांधाता श्रीराम के पूर्वज थे और उन्होंने एक ही दिन में तीनों लोकों को जीत लिया था। 
सम्राट मान्धाता द्वारा विजित राज्य :- 
जिन राज्यों में सम्राट मान्धाता ने दिग्विजय की उसमें प्रमुख नाम है-पौरव, आनव, दुहयु और हैह्य। ये अपने समय के बड़े राज्य थे। जिन्हें जीतकर मान्धाता ने अपने आधीन किया। इनके अलावा अन्य स्थानों पर अपने राज्य का विस्तार किया। सम्राट मान्धाता की विजयों के परिणाम अन्य राज्यों का फैलाव-राजा अनु और राजा दक्ष्यु जिन पर सम्राट मान्धाता ने विजय प्राप्त की थी। वो अयोध्या के पश्चिम से शुरू करके सरस्वती नदी के प्रदेशों पर शासन करते थे। सम्राट मान्धाता से पराजित होने के बाद वो और अधिक पश्चिम की ओर चले गए जिसकी वजह से राज्य विस्तार हुआ। राजा द्रहयु ने पराजित होने के बाद उत्तर-पश्चिमी पंजाब में (रावलपिण्डी से भी आगे) जाकर अपना स्वतंत्र राज्य स्थापित किया। मनु लोगों से हारने के बाद पराजित राजाओं ने पंजाब में-मौधेय, केकय, शिवि, मद्र, अम्बष्ठ और सौवीर राज्य स्थापित किए। सम्राट मान्धाता से परास्त होने के बाद आनव (ऐल वंश की एक शाखा के लोग) ने पंजाब की ओर जाकर कई राज्य स्थापित किये। आनवों की एक शाखा सुदूर-पूर्व की ओर गयी। उनका नेता तितिक्षु था। इसने पूर्व की ओर जाकर वर्तमान समय के बिहार में अपना राज्य स्थापित किया। 
विजित राजाओं को मारा नहीं:- 
चक्रवर्ती सम्राट मान्धाता ने अनेकानेक राज्यों पर दिग्विजय की। परन्तु पराजित राजा तथा उसके वंश के लोगों का वध नहीं किया। उनकी अधीनता मात्र से या तो सन्तुष्ट हो गए या फिर उनको सपरिवार, सकुटुम्ब राज्य से निकालकर अपना राज्य स्थापित किया। सम्राट मान्धाता के काल में पौरव वंश, कान्यकुब्ज वंश और ऐल वंश शक्तिशाली राजवंश के रूप में विकसित हुए। 
अयोध्या नरेश मानधाता से रावण का युद्ध
रावण की युद्ध करने की लालसा अभी ख़त्म न हुयी थी। इसलिए वो एक बार फिर से अयोध्या जा पहुंचा। इस बार उसका सामना अयोध्या नरेश मानधाता से हुआ। इस युद्ध में एक फिर कड़ी टक्कर हुयी। अंत में महाराज मानधाता ने रावण को मारने के लिए शिव जी द्वारा दिए गए पशुपात को हाथ में लिया। तब रावण को बचाने के लिए उसके दादा पुलस्त्य मुनि और गालव मुनि ने आकर रावण को धिक्कारा। जिससे रावण को बहुत ग्लानी हुयी। तब पुलस्त्य मुनि ने महाराज मानधाता और रावण की मैत्री करवाई।
तीनों लोकों पर था राजा मांधाता का राज
राजा मांधाता का राज तीनों लोकों तक था। समस्त पृथ्वी पर उनका शासन चलता था। पृथ्वी के सारे रत्न उनके पास थे। सब कुछ हासिल करने के बाद भी वह धर्म के रास्ते पर चलते थे। ब्राह्मणों को दान देना, हवन यज्ञ करवाना, प्रजा की रक्षा करना ये उनके दैनिक काम थे। उन्होंने इंद्र का आधा सिंहासन भी प्राप्त कर लिया था। एक दौर ऐसा भी आया जब 12 वर्षों तक बारिश नहीं हुई तब अपनी प्रजा की रक्षा के लिए मांधाता ने महामेघ के समान गरजते हुए बारिश कराई थी। मांधाता के प्रताप के आगे सभी राक्षस खौफ खाते थे।
रावण को अकेले ही परास्त कर दिया
रामायण में जिक्र आता है कि एक बार राजा मांधाता ने रावण की पूरी सेना को अकेले ही परास्त कर दिया था। तब रावण ने आवेश में आकर उन पर रौद्रास्त्र चलाया था जिसे उन्होंने आग्नेयास्त्र से निष्क्रिय कर दिया था। इससे रावण और क्रोधित हो गया और उसने गंधर्व अस्त्र उनकी ओर भेजा था, राजा मांधाता ने ब्रह्मास्त्र के इस्तेमाल से उसे काट दिया। इसके बाद रावण ने आगबबूला होकर पाशुपतास्त्र का आह्वान किया तब इस भयंकर अस्त्र से पृथ्वी पर संकट पैदा हो जाता इसलिए गालव और पुलस्त्य ऋषि ने आकर युद्धविराम करवाया।
इंद्र के जाल में फंस गए राजा मांधाता
रामायण में कथा आती है कि राजा मांधाता ने सारी पृथ्वी पर नियंत्रण हासिल करने के बाद स्वर्ग की ओर चढ़ाई करने की योजना बनाई। इसके बारे में देवराज इंद्र को पता चला तो वह चिंतित हो उठे। तब उन्होंने राजा मांधाता से बचने के लिए एक चाल चली। वह राजा मांधाता के पास पहुंचे और उनसे कहा कि तुम देवलोक पर शासन करने की तैयारी कर रहे हो लेकिन पहले पृथ्वी लोक पर तो पूरी तरह राज स्थापित कर लो। तब राजा मांधाता ने पूछा पूरी पृथ्वी मेरे अधीन है, ऐसी कोई जगह नहीं जहां मेरी आज्ञा नहीं मानी जाती हो। तब मधु दैत्य का पुत्र लवणासुर किसी की नहीं सुनता है। राजा मांधाता इंद्र के जाल में फंस गए, क्योंकि इंद्र को पता था कि लवणासुर के पास भगवान शिव का अमोघ शूल है जिसके प्रहार से कोई नहीं बच सकता है। राजा मांधाता लवणासुर को ललकारने पहुंच गए। उन्होंने लवणासुर को युद्धक्षेत्र में घायल कर दिया। तब अपनी जान पर संकट आता देख उसने राजा मांधाता पर अमोघ शूल चला दिया। इसने राजा मांधाता और उनकी सेना को राख कर दिया। और इंद्र अपनी इस चाल से देवलोक का सिंहासन बचाने में कामयाब रहे।


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