क्या भारत सरकार इसे प्रकाश में ला सकती है ?
आगरा की बसावट
:- आगरा एक ऐतिहासिक नगर है, जिसका प्रमाण यह अपने चारों ओर समेटे हुए है। इतिहास में
आगरा का प्रथम उल्लेख महाभारत के समय से माना जाता है, जब इसे अग्रबाण या अग्रवन के
नाम से संबोधित किया जाता था। कहा जाता है कि पहले यह नगर आर्य गृह के नाम से भी जाना
जाता था। तौलमीख, पहला ज्ञात व्यक्ति था, जिसने इसे आगरा नाम से संबोधित किया। अगर
वन वर्तमान उत्तर प्रदेश का आगरा मंडल है, जो ब्रज क्षेत्र तथा पुरातन शूरसेन महा जनपद
का भाग था। यह ब्रह्मर्षि प्रदेश या ब्रह्मावर्त भी कहा जाता था। ब्रजमण्डल के 12 बनों
एवं 24 उपबनों में अगर वन को आधार बनाकर ही आगरा आज अपने इस स्वरुप तक पहुंच सका है।
इन्हीं में से विल्व बन के प्रतीक के रूप में परम्परागत बल्केश्वर आज भी जीवन्त है।
इसका राजनीतिक इतिहास बहुत ही धुंधला है।
प्रागैतिहासिक कालीन चित्रित शिलाश्रयों में
संस्कृतियां तो बसती थी। किन्तु उनके नगर आयोजन जैसे प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं। यद्यपि
तत्कालीन स्तरीय कलाकृतियां व मृदभाण्ड परम्परायें पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हुई
हैं। महाभारत काल का वटेसर, शौरीपुर, गोकुलपुरा का कंस का किला, कंस का गेट व आसपास
आदि के क्षेत्र इसी काल के थे। इन सभी को महत्व नहीं मिल पाया और मथुरा को प्रधानता
मिलकर सांस्कृतिक एवं धार्मिक केन्द्र के रुप में विकसित हो गया था। तत्कालीन उत्तरवैदिक
व आद्यैतिहासिक काल में चित्रित सिलेटी पात्र परम्परायें काफी विकसित रही हैं। छठी
शती ई. पू. का उत्तरी काले चमकीले पात्र परम्परायें यहां बहुतायत से मिल चुकी हैं।
आगरा किले के पास रेलवे के विस्तार के समय यहां इस काल की अनेक जैन मूर्तियां मिली
हैं, जो लखनऊ संग्रहालय में हैं, इस नगर की वैभव का एहसास कराती हैं।। अब तक आगरा या
अग्रवन केवल एक छोटा-सा गाँव था, जिसे ब्रजमंडल के चैरासी वनों में अग्रणी माना जाता
था। शीघ्र ही इसके स्थान पर एक भव्य नगर खड़ा हो गया। कुछ दिन बाद सिंकदरशाह भी यहाँ
आकर रहने लगा। तारीखदाऊदी के लेखक के अनुसार सिकंदरशाह प्रायः आगरा में ही रहा करता
था।मध्य काल में आगरा गुजरात तट के बंदरगाहों और पश्चिमी गंगा के मैदानों के बीच के
व्यापार मार्ग पर एक महत्त्वपूर्ण शहर हुआ करता था।
अंगिरा ऋषि के नाम पर नामकरण :- आगरा शहर का नाम अंगिरा ऋषि के नाम पर पढ़ा था, अंगिरा ऋषि इसी इलाके में रहते थे, और वो भगवान् शिव के भक्त थे, आज जहाँ पर ताजमहल है, वहां पर हज़ारों साल पहले अंगिरा ऋषि ने शिवमंदिर बनाया था तेजोमहालय रखा था,
कुछ लोग इसे अग्रेश्वर महादेव के नाम से भी सम्बोधित करते रहे हैं।
तेजोमहालय अग्रेश्वर महादेव
शिवमंदिर :- भगवान् शिव के शिवलिंग पर पूर्णिमा की रात को, या फिर उन रातों को जब चंद्र अच्छी रौशनी देता है, उसकी रौशनी शिवलिंग पर पड़ती थी तो सफ़ेद शिवलिंग रात को चमकता था इसलिए ऋषि ने इस शिवलिंग और मंदिर को तेजोमहालय का नाम दिया था, यानि वो महादेव जो की चंद्र की रौशनी में चमकते हैं, चंद्र भगवान शिव के मस्तक पर भी विराजमान रहता है, इसलिए शिव और चंद्र में अटूट रिश्ता है!
यहाँ पर एक छोटा सा ही मंदिर था, जिसमे सफ़ेद शिवलिंग था, 15वी सदी में जयपुर के राजा जय सिंह इस मंदिर में आये थे, और उन्होंने इस मंदिर को भव्य बनाया और आज का जो ताजमहल है, उसे जयसिंह ने ही बनवाया!
इतिहासकार आपको बताते है की, मुमताज बेगम मर गयी तो उसकी याद में शाहजहां ने ताजमहल बनवाया, पर ताजमहल को बनाने में तो सालों लगे, तबतक क्या मुमताज की लाश हवा में थी !
असल में मुमताज महल की मौत आगरा या दिल्ली में हुई ही नहीं थी बल्कि उसकी मौत मध्य प्रदेश के बुरहानपुर में हुई थी जहाँ आज भी बुरहानपुर किला मौजूद है जहाँ मुमताज महल रहा करती थी, मौत के बाद उसे वहीं दफनाया गया था, और आपको अब सबूत देते है की जब मुमताज महल जिन्दा थी तब भी ताजमहल था, क्यूंकि असल में ताजमहल तो 15वी सदी का ही बना हुआ है जिसे राजा जयसिंह ने बनवाया था, देखिये बुरहानपुर किले का वो कमरा जिसमे मुमताज महल की मौत हुई थी ये आज भी मौजूद है!
ये है वो कमरा जिसमे मुमताज महल अपने 14वे बच्चे को जन्म दे रही थी, और उसी दौरान प्रसव पीड़ा से उसकी मौत हुई थी, इसी कमरे में मुमताज महल मरी थी, इस कमरे में रंगीन पत्थरों से कई चीजों को बनाया गया है था, शाहजहां ने मुमताज के कहने पर इन चीजों को नक्काशी के जरिये बनवाया था क्यूंकि मुमताज महल को ये चीजें, नक्काशियां पसंद थी, अब देखिये इसी कमरे में नक्काशी में आपको कुछ नजर आएगा, ये आज भी मौजूद है!
इसी कमरे की दीवार पर ये नक्काशी आज भी मौजूद है, देखिये ये ताजमहल की ही तस्वीर है, जिसे रंगीन पत्थरों से मुमताज महल के कमरे में उसकी इक्षा के बाद बनाया गया था, यानि जब मुमताज जिन्दा थी तब भी ये ईमारत मौजदू थी, मैडम को ये ईमारत पसंद थी इसलिए उन्होंने इसकी पेंटिंग समझ लीजिये, नक्काशी अपने कमरे में बनवाया था!
तो यही पकड़ा जाता है वामपंथी इतिहासकारो का झूठ की ताजमहल को मुमताज की मौत के बाद बनवाया गया, असल में ये ईमारत तो पहले से ही आगरा में था, और मुमताज को ये पसंद था इसलिए बुरहानपुर मध्य प्रदेश में उसने अपने कमरे में इसे बनवाया भी था!
मुमताज मरी तो उसे बुरहानपुर में ही दफ़न कर दिया गया, पर बाद में शाहजहां को मुमताज के करीबियों ने बताया की मुमताज को ताजमहल पसंद था तो उसकी कब्र को 2 साल बाद बुरहानपुर में फिर खोदा गया और उसकी जर्जर हो चुकी लाश को ताजमहल में गाड़ दिया गया, ध्यान से पढ़ते रहिये अभी बहुत कुछ बाकि है!
भारत जब आज़ाद हुआ तो नेहरू ने डाक्टर पीएन ओके को ताजमहल के निरक्षण के लिए भेजा, और ओके साहब ताजमहल का निरक्षण करने लगे, और उन्होंने निरक्षण में जो पाया वो आपके होश उड़ाने के लिए काफी है, और ये चीजें आज भी मौजूद है, कभी आपको यकीन न हो तो आगरा जाकर अपनी आँखों से देख सकते है, ताजमहल के स्ट्रक्चर को देखिये, ये चित्र है!
ये जो 7 नंबर है, वहां यमुना नदी का पानी आता है, वहां पानी भरा रहता है, मकबरे में इसकी कोई जरुरत नहीं, मुगलों के किसी मकबरे में नीचे पानी आने के लिए नहीं बनाया गया, कब्र को गीला थोड़ी करना है, ये पानी बहती यमुना से इस भाग में आता है, प्रेशर बनता है, छोटी सी नली बनाई गयी है, उस प्रेशर से पानी ऊपर जाता है, और ऊपर कहाँ जाता है वो बाद में बतायेगे!
जो 6 नंबर है वो जमींन पर बना हुआ है, अगर आप आगरा जाएं तो आपको ये नजर आएंगी, इसको आप ताजमहल का ग्राउंड फ्लोर भी कह सकते है, इस ग्राउंड फ्लोर पर 21 अलग अलग कमरे है, जिनके दरवाजों को ईंट से सील कर दिया गया है, ये दरवाजे कुछ इस प्रकार दिखाई देते है, देखिये 1950 में ओके साहब ने ये तस्वीर खिंचवाई थी!
ये अलग अलग कमरे है, जिनके दरवाजों को ईंटों से सील कर दिया गया है, जय सिंह ने जब 15 सदी में इस मंदिर को बनाया था, तब उसने हज़ारों की सख्या में मंदिर में यानि तेजोमहायल में हिन्दू देवी देवताओं, घोड़े, बैल इत्यादि की मूर्तियां लगवाई थी, इन बंद कमरों में वही मूर्तियां है, मंदिर को शाहजहां ने मकबरे का स्वरुप दिया और मूर्तियों को तोड़कर यहाँ वहां फेंका कुछ मूर्तियों को कमरों में बंद कर दिया, जैसे स्टोर रूम में हम चीजों को फेंक देते है वैसे ही, पोल न खुल जाये इसलिए इन कमरों को ईंट से सील कर दिया गया ताजमहल में एक तलघर भी है, जिसमे 1950 में ओके साहब घुसे थे और उन्होंने 1950 में ये तस्वीर खींची थी
अब पैरों के चिन्ह कहाँ पर होते है, इस्लामिक इमारतों में या फिर हिन्दू मंदिरों में ये आपको बताने की जरुरत तो शायद नहीं होनी चाहिए, जय सिंह ने तेजोमहालय को बनाते हुए उसी अंग्रिया ऋषि के पैरों के चिन्ह मंदिर में बनवाये थे, जिन्होंने यहाँ अपने हाथों से ओरिजिनल शिव लिंग स्थापित किया था, मंदिर जर्जर स्तिथि में था तो जय सिंह ने उसे ठीक किया और भव्य तेजोमहालय बनवाया तब उसने हज़ारों की सख्या में मंदिर में यानि तेजोमहायल में हिन्दू देवी देवताओं, घोड़े, बैल इत्यादि की मूर्तियां लगवाई थी इन बंद कमरों में वही मूर्तियां है मंदिर को शाहजहां ने मकबरे का स्वरुप दिया और मूर्तियों को तोड़कर यहाँ वहां फेंका कुछ मूर्तियों को कमरों में बंद कर दिया | शाही इमारत ताजमहल के निर्माण के लिए आवश्यक मकराना संगमरमर इत्यादि की नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए शाहजहां द्वारा राजा जय सिंह के नाम से भेजे गए दिनांक ए एच 1042 (अगस्त, 1632) के फरमान तथा जयपुर के राजा जय सिंह के नाम से भेजे गए दिनांक 20 जून, 1637 के एक और फरमान की प्रति भी ताज म्यूजियम की दीर्घा में प्रदर्शित की गई हैं।
आगे भी देखिये-तलघर में ही कमल के फूल के बीचों बीच ॐ बनाया हुआ है, ऐसा कमल का फूल और ॐ मकबरे में होता है या मंदिर में ये भी शायद आपको बताने की जरुरत नहीं है, अब आपको एक बड़ी चीज दिखाते है
पहली तस्वीर 1950
की है, दूसरी रंगीन तस्वीर हाल ही की है, ये कबर पर आपको लटकी हुई चीज दिखाई दे रही है, बिलकुल कलश जैसी है न, क्या कबर ऊपर कलश लटकाया जाता है ?, कलश कहाँ लटकाया जाता है वो देखिये
किसी भी कब्र पर लक्ष्य नहीं लटकाया जाता, आपको कहीं भी कब्र पर कलश लटका हुआ नहीं मिलेगा कलश लटकाया जाता है, कलश को शिवलिंग पर लटकाया जाता है, ताकि उस से पानी बूँद बूँद करके गिरे या फिर दूध या ऐसा ही कोई तरल, लिक्विड
अब आपको ध्यान होगा हमने ऊपर ताजमहल का स्ट्रक्चर दिखाया था, जिसमे 7 नंबर में यमुना का पानी ताजमहल के नीचे आता था, जय सिंह के शिल्पकारों ने अच्छी इंजीनियरिंग की थी, शिवलिंग पर आटोमेटिक पानी गिरे, इसलिए उन्होंने 7 नंबर बनाया था यानि मंदिर के नीचे का स्थान जहाँ यमुना का बहता हुआ पानी आये और प्रेशर बने तो पानी ऊपर तक आये और इस कलश तक नली बनी हुई है, कलश के नीचे शिवलिंग था, वहां वो यमुना का पानी टप टप करता हुआ गिरे और भगवान् शिव को दिन रात यमुना का पानी चढ़ता रहे, पर जहाँ शिवलिंग था वहां शाहजहां ने कब्र बनवा दिया, शिवलिंग को तोड़कर फेंक दिया गया, और देखिये, ये तस्वीर हाल ही की है, पहले भी ऐसा ही था आज भी ऐसा ही है
ताजमहल के बिलकुल ऊपर ये लगा हुआ है, आप कलश देख सकते है, साथ ही त्रिशूल भी देख सकते है, ये हिन्दू मंदिर में लगता है, दुनिया के किसी मकबरे में ऐसा नहीं लगा और न ही लगाया जाता है, चूँकि यहाँ ऋषि द्वारा बनाया हुआ शिवलिंग था, राजा जय सिंह ने उसे शिव मंदिर ही बनाया था, ऋषि के पैरों के चिन्ह भी सांकेतिक तौर पर बनाये थे, दीपावली पर हम भी लक्ष्मी माता के पैरों के चिन्ह अपने घरों में बना ही देते है ये पुरानी परंपरा है
ताजमहल का निर्माण जय सिंह ने मुमताज महल के जन्म से पहले ही करवाया था, उसे ये ईमारत बहुत पसंद थी इसलिए मुमताज ने इसकी नक्काशी या पेंटिंग भी कह सकते है वो अपने मध्य प्रदेश के बुरहानपुर किले के कमरे में बनवाया था जहाँ वो रहती थी मुमताज मर गयी तो उसकी लाश को वहीँ दफ़न किया गया, बाद में 2 साल बाद लाश को शाहजहां आगरा के तेजोमहालय ले आया, मंदिर को उसने मकबरे की शक्ल दे दी, और शिवलिंग तथा अन्य हिन्दू मूर्तियों को तोड़कर यहाँ वहां फेंक दिया, 21 कमरों में भी बहुत सी मूर्तियां पड़ी है जो इस ईमारत के ग्राउंड फ्लोर पर है
1950 में ओक साहब ये सारी जानकारियां लेकर प्रधानमंत्री नेहरू के पास दिल्ली में भी पहुंचे थे और 21 कमरों को खोलने की इज़ाज़त मांगी थी, नेहरू ने ओके साहब को डांटकर वहां से भगा दिया कहा की दंगे हो जायेगे, उसके बाद से आजतक किसी सरकार ने ये कमरे खुलवाए ही नहीं
शाहजहां ने बहुत कोशिश की पर ताजमहल से वो हिन्दू मंदिर होने के सारे सबूत नहीं मिटा पाए, उसने हालाँकि ताजमहल में छोटे मोठे चेंज भी करवाए ताकि ये मकबरे जैसा दिखाई दे, उसने अरबी और अन्य भाषाओँ में ताजमहल की दीवारों पर न जाने क्या क्या गुदवाया, ताकि ये मकबरा ही लगे, ताजमहल एक हिन्दू मंदिर है, इसका शिवलिंग ऋषि ने स्थापित किया था, तेजोमहालय नाम दिया था क्यूंकि शिवलिंग पर चंद्र का तेज पड़ता था तो वो चमकता था, 15वी सदी में जयपुर के राजा ने जर्जर मंदिर को भव्य स्वरुप दिया
दरअसल ताजमहल के दरवाजों में कई रहस्य दफन हैं, और निश्चित रूप से जिस प्रकार प्रोफ़ेसर पुरुषोतम नाथ ओके ने अपने ताजमहल को शिव मन्दिर होने की बात कही है, ये बात कहीं न कहीं सही भी है और ये बात लोगों के सामने आनी भी चाहिए. जिन रास्तों से मुगल शाहजांह किले से ताजमहल पहुंचते थे, उन दरवाजों को ईंटों से बंद कर दिया गया है. 1980 के दशक तक यहाँ लकड़ी का दरवाजा हुआ करता था और यहाँ यमुना से 18 फीट तक सिल्ट जमा हो चुकी है!
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