स्मारक का इतिहास
:- अमर सिंह राठौर जोधपुर के राजा गजसिंह के बड़े बेटे थे। मतभेद के बाद उन्होंने पिता
का घर छोड़ दिया। उस वक्त वह वीर योद्धाओं में गिने जाते थे और मुगल शहंशाह शाहजहां
के दरबार में खास अहमियत रखते थे। सन् 1644 में अन्य दरबारियों ने उन पर जुर्माना लगवा
दिया था। जब भरे दरबार में दरबारी सलावत खां ने उनसे जुर्माना मांगा तो अमर सिंह ने
शहंशाह के सामने ही सलावत खां का सिर काट दिया। आगरा किले में मौजूद शाही सेना ने अमर
सिंह को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन वह किले से सकुशल बाहर निकल गए। उनके साले अर्जुन
सिंह ने शहंशाह से मिलीभगत कर धोखे से अमर सिंह की हत्या करवा दी। बाद अमर सिंह के
शव के साथ उनकी पत्नी हाड़ा रानी बल्केश्वर क्षेत्र में यमुना नदी के किनारे इसी स्थल
पर सती हुई थीं। तब बल्केश्वर क्षेत्र रजवाड़ा के नाम जाना जाता था। इसका नाम जसवंत
की छतरी है, पर इसका निर्माण राजा जसवंत सिंह द्वितीय के सम्मान में नहीं किया गया
था। इसका निर्माण राजस्थान के बुंदी की राजकुमारी रानी हांड़ा की याद में किया गया था।
उनकी शादी अमर सिंह राठौड़ से हुई थी, जिनका आगरा के किले में 25 जुलाई 1644 को निधन
हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार रानी हांड़ा अपनी अन्य 8 रानी बहनों के सहित अमर सिंह
राठौड़ के साथ सती हो गई थी। एक अनुश्रूति को स्वीकार करते हुए मुगल स्थापत्यकार डा.
रामनाथ इसे जसवन्तसिंह की छतरी ना मानकर उनके ज्येष्ठ भाता अमर सिंह व उनकी सती पत्नी
हांड़ा रानी का अवशेष मानते हैं। राजा जसवंत सिंह अमर सिंह के छोटे भाई थे। उन्होंने
ही महान राजपूत राजकुमारी की सती को श्रद्धांजलि देने के लिए इस छतरी का निर्माण करवाया
था। इस स्मारक को इसके निर्माता जसवंत सिंह के नाम पर जाना गया। 1644 से 1658 के बीच
बनवाया गया । यह स्मारक मुगलकाल का एकमात्र हिंदू एतिहासिक स्मारक है। यह यमुना नदी
के किनारे राजवाड़ा, बलकेश्वर में बलकेश्वर शिव मंदिर के पास तथा जफर खां के मकबरे के
उत्तर में स्थित है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित इस स्मारक में राजस्थान
के नाथद्वारे द्वारा पूजा की रस्म करायी जाती है।
स्थापत्य की खूबियां
:- राजपूतों के लिए छतरी एक स्मृति परक संरचना होती है। हिन्दू धर्म में शवों को दफनाया
नहीं जाता अपितु जलाया जाता है। मृतक के अस्थि अवशेष पर समाधि, छतरी, गुम्बद, उद्यान
तथा चहारदीवारी या खुले आसमान का प्रांगण निर्मित किया जाता है। जसवंत सिंह की छतरी
यमुना किनारे बना इकलौता राजपूताना स्मारक है। इसमें हिन्दू व इस्लामी मिश्रित वास्तुकला
का भरपूर प्रयोग हुआ है। लाल पत्थरों से बने इस स्मारक में तीन प्रवेश द्वार हैं। बुर्ज
पर सुंदर छत्रियां बनी हैं, दीवालों पर बेल-बूटों, पदम, भाले आदि की सुंदर नक्काशी
है। इसके स्तंभों में मुगलिया निर्माण शैली की झलक है। कभी इसके चारों ओर हरियाली और
फव्वारे चला करते थे, लेकिन अब इनका अस्तित्व खत्म हो चुका है। यह गुंबद के आकार का
एक स्मारक है। यह स्मारक प्रसिद्ध राजस्थानी वास्तुशिल्प शैली पर आधारित है और इसमें
हिन्दू और मुलग दोनों तरह की विशेषताएं हैं। इसे सती मंदिर की तरह मान्यता प्राप्त
है। दशहरे के दिन सुहागिनें लहंगा, फरिया, मेंहदी, विन्दी, हरी चूड़ियां यहां पर चढ़ाती
हैं और अपने सुहाग की कामना करती हैं।
चैकोर आकार
में लाल बलुए पत्थरों से बनी यह कलात्मक छतरी एक 210 गुणे 140 फिट आकार के बाग में
70 गुणे 62 फिट आकार के ऊंचे चबूतरे पर बनी है। इसमें स्तम्भों पर आधारित एक चपटी छत
टिकी हुई है। छतरी के पूरब में यमुना बहती हैं। यह ऊंची ऊंची दीवालों से घिरा एक बाग
की शक्ल का स्मारक है। बाग के चारों कोनों पर चार बुर्जिया थी जिनमें आवादी के तरफ
की दो बुर्जियों को लोगों ने तोड़ डाला है। नदी के तरफ की दो बुर्जियां बची हुई हैं
जिसे आधार बनाकर टूटी हुई बुर्जियों को पुनः निर्मित किया जा सकता है। पूर्वी दीवाल
नदी की ओर है। जिसमें ठोस पट्टियों के रुप में उभारदार नक्काशी की गयी है। इसमें नदी
के तरफ छोड़कर अन्य दिशाओं में एक एक करके तीन प्रवेशद्वार हैं। छतरी में आने के यही
प्रवेश द्वार थे। प्रत्येक द्वार के दोनो ओर पानी से उतरने की सीढ़ियां बनी हुई हैं।
यमुना तट का भाग अत्यन्त कलात्मक ढ़ंग से बनाया गया है। इसमें नियमित रुप से जालियां
दी गयी हैं।
यह छतरी आयताकार
है। यह 12 स्तम्भों एवं दरवाजों पर टिकी हुई है। लाल पत्थरों के स्तम्भों के आधार और
तोड़े अत्यन्त कलात्मक ढ़ंग से काटे गये हैं। स्तम्भों के बीच की खुली जगह में पत्थरों
की झंझरी जालियां परिवर्तित एवं सुन्दर नमूनों से युक्त हैं। स्तम्भों पर विशुद्ध भारतीय
अलंकरण सजाये गये हैं। जैसे कमल का फूल, चक्र, जंजीरों से लटकती हुई घंटियां एवं पत्र
लताएं आदि। पूर्व की ओर छतरी के अन्दर जाने के लिए एक प्रवेश द्वार है। स्तम्भों के
बीच के अन्य सारे भाग सुन्दर जालियों से बन्द कर दिये गये हैं। पत्थरों की इन जालियों
में रेखागणित की डिजाइने बनी हुई हैं। इनमें कुछ तो बहुत ही उच्च कोटि की हैं। एक जाली
के साथ त्रिकोण, वर्ग, पंचकोण, षटकोण और अष्ट तारक आकृतियांे का प्रयोग किया गया है।
कुछ डिजाइनें फतेहपुर सीकरी के नमूनों से भी अच्छे हैं।
अस्तित्व पर संकट
:- इस स्मारक के रास्ते भी अवैध निर्माणों के भूल-भुलैया में खो चुके हैं। इतिहास में
अमर सिंह को वीर योद्धा और उनकी पत्नी हाड़ा रानी को सती माना जाता है। यह स्मारक इतिहास
की एक अहम कड़ी है, जिसे अब तक पूरी तरह अहमियत नहीं मिल पाई है। ताजनगरी के इस अनूठे
स्मारक पर अवैध निर्माणों की मार है। स्मारक की दीवाल से सटकर मकान बने हुए हैं। कुछ
लोग इसके गेट पर दुधारू जानवर बांधें रखते हैं। यहां तक पहुंचने का रास्ता भी घनी बसावट
के बीच घिर गया है, जिसके चलते पर्यटक यहां तक पहुंच ही नहीं पाते। यमुना किनारे की
ओर गंदगी और संरक्षण न होने से भी इस इमारत के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। यहां
कोई निर्माण व खुदाई नहीं हो सकती है। एएसआइ द्वारा एफआइआर कराकर अपना कर्तवय पूरा
मान लिया जाता है। पुलिस अवैध निर्माण रुकवाने में रुचि नहीं लेती है। पुरातत्व विभाग
न्यायालय की शरण लेना उचित नहीं समझता है। यहां लगातार अवैघ खनन तथा निर्माण होते रहते
हैं। प्राचीन संस्मारक तथा पुरातत्वीय स्थल और अवशेष (संशोधन एवं विधिमान्यकरण),
2010 के अनुसार संरक्षित स्मारक की 100 मीटर की परिधि में कोई निर्माण नहीं हो सकता
है। इससे परे 200 मीटर की परिधि में सक्षम अधिकारी से अनुमति प्राप्त कर ही निर्माण
कराया जा सकता है। इसके उल्लंघन पर दो वर्ष की सजा या एक लाख रुपये जुर्माना या दोनों
से दंडित किया जा सकता है। पर इस अधिकार का उपयोग अधिकारी नहीं कर पा रहे हैं और स्मारक
दिनो-ब-दिन अपना अस्तित्व खोते जा रहे हैं।
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