चिल्का, सातपाड़ा, खोरधा जिला पुरी , ओडिशा राज्य में स्थित एक खारे पानी की झील है। यह भारत की सबसे बड़ी और दुनिया की दूसरी एशिया की सबसे बड़ी तटीय झील है , जो अपनी जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध है, जिसमें कई प्रवासी पक्षी और समुद्री जीव जैसे कि इरावदी डॉल्फ़िन शामिल हैं।
इसकी लंबाई 65 किमी चौड़ाई 9 से 20 किमी.और गहराई लगभग 2 मी.है! मोटे रूप में चिलिका झील 70 किलोमीटर लम्बी तथा 30 किलोमीटर चौड़ी है। यह समुद्र का ही एक भाग है जो महानदी द्वारा लायी गई मिट्टी के जमा हो जाने से समुद्र से अलग होकर एक छीछली झील के रूप में बन गया है। दिसम्बर से जून तक इसमें समुद्र का पानी वापस गिरने से झील का जल खारा रहता है, किन्तु वर्षा ऋतु में बरसात की नदियों का पानी गिरने से इसका जल मीठा हो जाता है। इसकी औसत गहराई 3 मीटर है। यह विशाल मछली पकड़ने की जगह है। जो 132 गाँवों में रह रहे 150,000 मछुआरों को आजीविका का साधन उपलब्ध कराती है।
इस खाड़ी में लगभग 160 प्रजातियों के पछी पाए जाते हैं। कैस्पियन सागर, बैकाल झील, अरल सागर और रूस, मंगोलिया, लद्दाख, मध्य एशिया आदि विभिन्न दूर दराज़ के क्षेत्रों से यहाँ पछी उड़ कर आते हैं। ये पछी विशाल दूरियाँ तय करते हैं। प्रवासी पछी तो लगभग 12000 किमी से भी ज्यादा की दूरियाँ तय करके चिल्का झील पंहुचते हैं।
1981 में, चिल्का झील को रामसर घोषणापत्र के मुताबिक अंतरराष्ट्रीय महत्व की आर्द्रभूमि के रूप में चुना गया। यह इस महत्व वाली पहली पहली भारतीय झील थी।
एक सर्वेक्षण के मुताबिक यहाँ 45% पछी भूमि, 32% जलपक्षी और 23% बगुले हैं। यह झील 14 प्रकार के रैपटरों का भी निवास स्थान है। लगभग 155 संकटग्रस्त व रेयर इरावती डॉल्फ़िनों का भी ये घर है। इसके साथ ही यह झील 37 प्रकार के सरीसृपों और उभयचरों का भी निवास स्थान है। यात्री अपनी यात्रा में इन्हें देखने का अवसर पाते हैं।
उच्च उत्पादकता वाली मत्स्य प्रणाली वाली चिल्का झील की पारिस्थितिकी आसपास के लोगों व मछुआरों के लिये आजीविका उपलब्ध कराती है। मॉनसून व गर्मियों में झील में पानी का क्षेत्र क्रमश: 1165 से 906 किमी. तक हो जाता है। एक 32 किमी. लंबी, संकरी, बाहरी नहर इसे बंगाल की खाड़ी से जोड़ती है। यह नौकायन का बहुत सशक्त साधन भी है। सीडीए द्वारा हाल ही में एक नई नहर भी बनाई गयी है जिससे झील को एक और जीवनदान मिला है। लघु शैवाल, समुद्री घास, समुद्री बीज, मछलियाँ, झींगे और केकणे आदि चिल्का झील के खारे जल में फलते फूलते हैं।
इतिहास:-
भूवैज्ञानिक साक्ष्य इंगित करता है कि चिल्का झील अत्यंतनूतन युग (18 लाख साल से पूर्व 10,000 साल तक) के बाद के चरणों के दौरान बंगाल की खाड़ी का हिस्सा था। चिल्का झील के ठीक उत्तर में खुर्दा जिले के गोग्लाबाई सासन गांव (20°1′7″N 85°32′54″E / 20.01861°N 85.54833°E) में खुदाई भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा आयोजित की गई। गोलाबाई गांव तीन चरणों में चिल्का क्षेत्र- नवपाषाण युग (नियोलिथिक) (c. 1600 ईसा पूर्व), ताम्रपाषाण युग (c. 1400 ईसा पूर्व से c. 900 ईसा पूर्व) और लौह युग (c. 900 ईसा पूर्व से c. 800 ईसा पूर्व संस्कृति के एक दृश्य का सबूत प्रदान करता है।
भूविज्ञान:-
यह झील बदलते माहौल वाले वातावरण में एक ज्वारनदमुखी डेल्टा प्रकार की अल्पकालिक झील है। भूवैज्ञानिक अध्धयनों के अनुसार की झील की पश्चिमी तटरेखा का विस्तार अत्यंतनूतन युग (Pleistocene Era) में हुआ था जब इसके उत्तरपूर्वी क्षेत्र समुद्र के अंदर ही थे। इसकी तटरेखा कालांतर में पूर्व की तरफ़ सरकने के प्रमाण इस बात से मिल जाते हैं कि कोर्णाक सूर्य मंदिर जिसका निर्माण कुछ साल पहले समुद्र तट पर हुआ था अब तट से लगभग 3 कि॰मी॰ (2 मील) दूर आ गया है।
चिल्का झील का जल निकासी कुण्ड पत्थर, चट्टान, बालू और कीचण के मिश्रण के आधार से निर्मित है। इसमें विभिन्न प्रकार के अवसादी कण जैसे चिकनी मिट्टी, कीचड़, बालू, बजरी और शैलों के किनारे है लेकिन बड़ा हिस्सा कीचण का ही है। हर वर्ष लगभग 16 लाख मीट्रिक टन अवसाद चिल्का झील के किनारों पर दया नदी और अन्य धाराओं द्वारा जमा की जाती हैं।
एक कल्पना के अनुसार पिछले 6,000–8,000 वर्षों के दौरान विश्वव्यापी समुद्री स्तर में बढोत्तरी हुई। 7,000 साल पहले इस प्रक्रिया में आई कमी की वजह से झील के दक्षिणी क्षेत्रों में पर रेतीले तटों का निर्माण हुआ। समुद्र स्तर में बढोत्तरी के साथ साथ तट का विस्तार होता रहा और इसने पूर्वोतर में समुद्र की तरफ बढते हुए चिल्का की समुद्री भूमि का निर्माण किया। इस समुद्री भूमि के दक्षिण-पश्चिमी छोर पर मिले एक जीवाश्म बताता है कि झील का निर्माण 3,500–4,000 वर्ष पूर्व हुआ होगा। झील के उत्तर में तट की दिशा में तीखे बदलाव, तट पर बालू को बहाती तेज हवाएँ, लंबा त्टीय मोड़ (समुद्रतटवर्ती बहाव), विभिन्न उपक्षेत्रों में मजबूत ज्वार व नदी तरंगों की उपस्थिति और अनुपस्थिति इस समुद्री भूमि के विकास का कारण हैं।
दक्षिणी क्षेत्र में वर्तमान समुद्री स्तर से 8 मी॰ (26 फीट) की उंचाई पर स्थित कोरल की सफ़ेद पट्टीयाँ यह दर्शाती हैं कि यह क्षेत्र कभी समुद्र के अंदर था और वर्तमान गहराई से कहीं ज्यादा गहरा था। बाहरी घेरेदार रेतीली भूमि पट्टी के क्रमविकास का घटनाक्रम यहाँ पाए जाने वाले खनिज पदार्थों के अध्धयन से पता किया गया है। यह अध्धयन झील की सतह के 16 नमूनों पर किया गया। नमूनों की मात्रा उपरी सतह के 40 और निचली सतह के 300 वर्ष तक पुराने होने के क्रम में 153 ± 3 ग्रे और 2.23 ± 0.07 ग्रे के बीच थी।
भूगोल और स्थलाकृति:-
चिल्का झील का मनचित्र जिसमें नालाबण द्वीप, चिल्का पछी अभयारण्य, डॉल्फ़िन अभयारण्य, पुरी नगर और मलुद प्रायद्वीप दिख रहे हैं।चिल्का झील विशाल क्षेत्रों वाली कीचड़दार भूमि व छिछले पानी की खाड़ी है। पश्चिमी व दक्षिणी छोर पूर्वी घाट की पहाड़ियों के आंचल में स्थित हैं।
तमाम नदियाँ जो झील में मिट्टी व कीचड़ ले आती है झील के उत्तरी छोर को नियंत्रित करती हैं। बंगाल की खाड़ी में उठने वाली उत्तरी तरंगो से एक 60 कि॰मी॰ (37 मील) लंबा घेरेदार बालू-तट जिसे रेजहंस,कहा जाता है, बना और इसके परिणाम स्वरूप इस छिछली झील और इसके पूर्वी हिस्से का निर्माण हुआ। एक अल्पकालिक झील की वजह से इसका जलीय क्षेत्र गर्मियों में 1,165 कि॰मी2 (449.8 वर्ग मील) से लेकर बारिश के मौसम में 906 कि॰मी.(349.8 वर्ग मील) तक बदलता रहता है।
चिल्का झील का उत्तरी छोर:-
इस झील में बहुत सारे द्वीप हैं। संकरी नहरों से अलग हुए बड़े द्वीप मुख्य झील और रेतीली घेरेदार भूमि के मध्य स्थित हैं। कुल 42 कि॰मी2 (16 वर्ग मील) क्षेत्रफल वाली नहरें झील को बंगाल की खाड़ी से जोड़ती हैं। इसमें छ: विशाल द्वीप हैं परीकुड़, फुलबाड़ी, बेराहपुरा, नुआपारा, नलबाणा, और तम्पारा। ये द्वीप मलुद के प्रायद्वीप के साथ मिलकर पुरी जिला के कृष्णा प्रसाद राजस्व क्षेत्र का हिस्सा हैं।
झील का उत्तरी तट:-
झील का उत्तरी तट खोर्धा जिला का हिस्सा है व पश्चिमी तट गंजाम जिला का हिस्सा है। तल छटीकरण के कारण रेतीले तटबंध की चौड़ाई बदलती रहती है और समुद्र की तरफ़ मुख कुछ समय के लिये बंद हो जाता है। झील के समुद्री-मुख की स्थिति भी तेजी से उत्तर-पूर्व की तरफ खिसकती रहती है। नदी मुख जो 1780 में 1.5 कि॰मी॰ (0.9 मील) चौड़ा था चालीस साल बद सिर्फ़ .75 कि॰मी॰ (0.5 मील) जितना रह गया। क्षेत्रीय मछुआरों को अपना रोजगार क्षेत्र बचाने व समुद्र में जाने के लिये झील के मुख को खोद कर चौड़ा करते रहना पड़ता है।
पानी की गहराई सूखे मौसम में 0.9 फीट (0.3 मी॰) से 2.6 फीट (0.8 मी॰) और वर्षा ऋतु में 1.8 मी॰ (5.9 फीट) से 4.2 मी॰ (13.8 फीट) तक बदलती रहती है। समुद्र को जाने वाली पुरानी नहर की चौड़ाई जिसे मगरमुख के नाम से जाना जाता है अब 100 मी॰ (328.1 फीट) है। झील मुख्यत: चार क्षेत्रों में बंटी हुई है, उत्तरी, दक्षिणी, मध्य व बाहरी नहर का इलाका। एक 32 कि॰मी॰ (19.9 मील) लंबी बाहरी नहर झील को बंगाल की खाड़ी से अराखुड़ा गाँव में जोड़ती है। झील का आकर किसी नाशपाती की तरह है और इसकी अधिकतम लंबाई 64.3 कि॰मी॰ (40.0 मील) और औसत चौड़ाई 20.1 कि॰मी॰ (12.5 मील) बनी रहती है।
जल व अवसाद की गुणवत्ता:-
चिल्का विकास प्राधिकरण (सीडीए) पानी की गुणवत्ता माप का एक संगठित प्रणाली की स्थापना की और लिमनोलॉजी (अंतर्देशीय जल का अध्ययन करने वाले) की तहकीकात, झील के पानी की निम्नलिखित भौतिक- रासायनिक विशेषताओं को बतलाते है। झील को क्षारीय मात्रा के अनुसार मुख्य रूप से 4 भागों में विभाजित किया गया है। जिन्हें मुख्यत: दक्षिणी, मध्य, उत्तरी व बाहरी नहरें के नाम से जाना जाता है। मॉनसून के दौरान ज्वार की वजह से आने वाले समुद्री पानी की भारी मात्रा से उतपन्न क्षारीयता को उत्तरी व मध्य क्षेत्रों में भारी बारिश से आये ताजे पानी की भारी मात्रा बराबर कर देती है। दक्षिणी भाग में ताजे पानी के ज्यादा ना पंहुचने की वजह से मॉनसून के दौरान भी क्षारीयता बनी रहती है। हालांकि मॉनसून के बाद के मौसम में उत्तरी हवाओं के चलने से दक्षिणी भाग में क्षारीयता कुछ कम हो जाती है। यह हवाएँ पानी को झील के अन्य भागों से मिलाने का काम करदेती हैं। गर्मियों में झील का पानी का स्तर नीचे होता है, इसकि वजह से समुद्री पानी बाहरी नहरों से ज्यादा आता है और गर्मियों में क्षारीयता बढ जाती है।
चिल्का झील की गतिविधियाँ:-
1. नाव की सवारी :-
चिल्का झील के विशाल विस्तार का आनंद लेने और विभिन्न द्वीपों की यात्रा करने के लिए नाव की सवारी की जा सकती है। आप मनोरम दृश्यों का आनंद लेने और वन्यजीवों को देखने के लिए मोटरबोट और पारंपरिक लकड़ी की नावों सहित विभिन्न प्रकार की नावों में से चुना जा सकता है।
2. पक्षी-दर्शन :-
चिल्का झील पक्षी-प्रेमियों के लिए एक स्वर्ग है, खासकर सर्दियों के मौसम में जब दुनिया भर से हज़ारों प्रवासी पक्षी झील पर आते हैं। शांत वातावरण का आनंद लेते हुए रंग-बिरंगे और दुर्लभ पक्षी प्रजातियों को देखा जा सकता है।
3. जल क्रीड़ाओं का आनंद :-
दिल की धड़कनें तेज़ करने के लिए कयाकिंग, कैनोइंग और विंडसर्फिंग जैसे विभिन्न जल क्रीड़ाओं में हाथ आजमाया जा सकता है। यह झील की शांति में डूबने का एक शानदार तरीका है।
4. सूर्योदय - सूर्यास्त के नज़ारों का आनंद :-
चिल्का झील पर सूर्योदय और सूर्यास्त के मनमोहक नज़ारे देखा जा सकता है। झील पर पड़ते आकाश के बदलते रंग एक जादुई नज़ारा बनाते हैं।
5. कैंपिंग का अनुभव : -
चिल्का झील के आसपास कैंपिंग कर तारों के नीचे रहने जैसा महसूस होता है। यहांअलाव भी जलाया जा सकता है। यहां खाना भी बनाया जा सकता है। अपने साथियों के साथ कुछ मज़ेदार खेल खेलकर अच्छा समय बिताया जा सकता है। यह एक ऐसा जीवन भर का अनुभव है जिसे हर किसी को ज़रूर आज़माना चाहिए!
6. फ़ोटोग्राफ़ी :-
झील के आसपास के नज़ारे हरे-भरे और मनोरम हैं, जो इसे फ़ोटोग्राफ़रों के लिए कुछ बेहतरीन तस्वीरें लेने के लिए एक बेहतरीन जगह बनाते हैं। झील के आसपास के जीवंत पक्षी जीवन और जीवन के सार को अपने कैमरे में कैद किया जा सकता है और अपनी यात्रा को जीवन भर याद किया जा सकता है।
7. कालीजय द्वीप : -
पास ही में कालीजय द्वीप है , जो अपने धार्मिक महत्व के लिए जाना जाता है। यहाँ देवी कालीजय का मंदिर है और यहाँ की यात्रा से आध्यात्मिक अनुभव के साथ-साथ झील के मनमोहक दृश्य भी देखने को मिलता है।
8. सतपाड़ा द्वीप :-
चिल्का झील के दक्षिणी किनारे पर स्थित सतपाड़ा शहर की सैर करें। यह नौका विहार और डॉल्फ़िन देखने के लिए एक लोकप्रिय जगह है।
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए सम सामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।
मोबाइल नंबर +91 8630778321;
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