Monday, January 13, 2025

बस्ती के छंदकार भाग 3 की पूर्व पीठिका एवं प्रस्तावना (कड़ी-1) लेखक:डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' ; संपादक: आचार्य डॉ.राधेश्याम द्विवेदी

शोध निर्देशक द्वारा प्रदत्त प्रमाण पत्र 

मुझे यह प्रमाणित करते हुए प्रसन्नता हो रही है कि प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध शीर्षक "बस्ती जनपद के छन्दकार" शोधकर्ता श्री मुनि लाल उपाध्याय "सरस" के कठिन अध्यवसाय का प्रतिफल है, जो शोधकर्ता द्वारा ही संकलित शोध-सामग्री पर आधारित सर्वथा मौलिक है। मैं इसे मूल्यांकन हेतु परीक्षकों के पास प्रेषित करने की संस्तुति करता हूँ।

डॉ० केशव प्रसाद सिंह, 

प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, 

काशी विद्यापीठ, वाराणसी।


संपादकीय टिप्पणी

आलोच्य शोध प्रबंध "बस्ती जनपद के छन्दकार" आज से लगभग 50 साल पहले से शुरू होकर लगभग दस साल के अथक प्रयास और भागम भाग के उपरान्त स्मृति शेष डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' जी ने लिखा जो 1984 में महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ वाराणसी से सफल प्रमाणित (awarded) घोषित हुआ है। 40- 50 साल का समय बहुत बड़ा होता है जिसमें दो - तीन पीढ़ी अपना महत्वपूर्ण योगदान दे देती हैं। तब से यह जनपद से मण्डल बन गया और बहुत ही भौगोलिक राजनीतिक परिवर्तन और विकास हुआ है। अपने जीवन काल में आदरणीय "सरस" जी ने इस प्रबंध के प्रारंभिक तीन अध्यायों को दो पृथक-पृथक लघु पुस्तकों के रूप में क्रमशः 2006 ई.और 2008 ई. में प्रकाशित कराया था। उनकी इच्छा शेष भाग को तीसरे पुस्तक के रूप में प्रकाशित कराने की रही,जो ईश्वरेच्छा से अब तक पूर्ण ना हो सकी थी। उनका आखिरी समय बहुत झंझावातों का रहा और असमय में दिवंगत हो जाने के कारण उनकी यह इच्छा अधूरी ही रही। उनकी पांडुलिपि बहुत खोजनेपर भी नहीं मिली। संयोग से इसे खोजने में आदरणीय 'सरस' जी के पौत्र इंजीनियर श्री शांतनु ने प्रयास करके शोधगंगा के संग्रह से खोज निकाला, हम इसे प्रकाशित व सार्वजनिक कर उनके अधूरे काम को पूरा करने का एक छोटा प्रयास कर रहे हैं। - आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी ।

स्मृतिशेष डा. मुनिलाल उपाध्याय 'सरस' 

मूल प्रस्तावना

डा. मुनि लाल उपाध्याय 'सरस' 

    मेरै शोध का विषय बस्ती जनपद के छन्दकार" जनपदीय छन्दकारों के साहित्यिक एवं ऐतिहासिक सर्वेक्षण से संबंधित है। इसके अन्तर्गत मैने जनपद की 250 वर्षों की उपलब्ध सामग्री के आधार पर प्रमुख छन्दकारों की समीक्षा करने का प्रयास किया है। भाषायी दृष्टिकोण से इस जनपद का आधा पश्चिमी भूभाग अवधी और बाधा पूर्वी भूभाग भोजपुरी भाषा बोलता है। किन्तु आलोच्य शोध काल के अधिकांशत छन्दकारों ने ब्रजभाषा को अपनी काव्यभाषा बनाकर रचना किया है। इसका एक मात्र कारण यहा के छंदकारों का रीति साहित्य एवं ब्रजभाषा के कवियों के प्रति अत्यधिक झुकाव है। काव्य-सृजन के दुष्टिकोण से बस्ती जनपद में ब्रज, अवधी, खड़ी बोली एवं भोजपुरी भाषाओं में छंदकारों का विशिष्ट स्थान रहा है। शोध काल के अधिकाश छन्दकारों की रचनाएं साहित्यिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व पूर्ण रही है। बहुत से कवि राष्ट्रीय स्तर के छंदकार  होते हुए भी क्षेत्र विशेष तक ही सीमित रह गये। कुछ की पाण्डुलिपियाँ एवं डायरियों में उनकी श्रेष्ठ रचनाएँ स्वान्त: सुखाय तक सीमित होने के कारण प्रचार-प्रसार के अभाव में साहित्यिक और ऐतिहासिक मूल्यांकन से वंचित रह गई हैं। मेरा उ‌द्देश्य उन प्रमुख छन्दकारों को प्रकाश में लाना है, जिनको हिन्दी साहित्य के इतिहास मे समुचित स्थान मिना वाहिए। हिन्दी साहित्य के प्रकाण्ड विद्वान, सुधी समीक्षक आचार्य पंडित रामचन्द्र शुक्ल इसी जनपद में पैदा हुए थे और इस जनपद के परवर्ती रीति कालीन प्रमुख कवि आचार्य लक्षिराम भट्ट को उन्होंने अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास में समुचित स्थान प्रदान किया है।

      साहित्यिक सर्वेक्षण से ऐसा देखने को मिला है कि अधिकांश छन्दकारों ने रीति कालीन काव्यधारा के सनिकट होकर रीतिकालीन आचार्यों और उनके लक्षण ग्रन्थों का अध्ययन एवं अनुशीलन बड़ी तत्परता के साथ किया है और उनसे प्रभावित होकर दोहा, मनहरण, घनाक्षरी, सवैया, कुण्डलिया, आदि के साथ-साथ दर्जनो मात्रिक और वर्षिक छन्दों को अपनाकर अपना काव्य-सृजन किया है। छन्द परंपरा का ऐतिहासिक सर्वेक्षण करते हुए इन छन्दकारों के छन्दों को छन्द के निष्कर्ष पर कसते हुए उन्हें संग्रहीत करने का प्रयास भी किया गया है। इस प्रसंग में मैने संस्कृत के छन्दशास्त्र से संबंधित ग्रन्ध "वृत्त रत्नाकर, रचयिता भट्ट केदार एवं हिन्दी के "छन्द प्रभाकर" रचयिता जगन्नाथ प्रसाद भानु आदि को सन्दर्भित ग्रन्थ मानकर छन्दकारों के छन्दों को समीक्षा की है। छन्दो को उदाहरण स्वरूप इस हेतु प्रस्तुत किया गया है कि छन्दों के महोदधि में इन छन्दकारों की रसज्ञता  का योगदान प्रकट हो सके ।

      प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध छ अध्यायों में विभक्त है। शोध के प्रथम चार अध्यायों में मैंने इस जनपद के छंदकारों को चार चरणों ( चार कालावधि) में उनकी रचनाओं, प्रवृत्तियों, उपलब्धियों एवं छन्दकारिता के कार्यावधियो की दृष्टि से विभाजित किया है। पाँचवा अध्याय छन्द और  छन्दकारों के छन्दो से संबंधित है। छठें अध्याय में उपसंहार प्रस्तुत किया गया है। इन अध्यायों का सामान्य अध्ययन अधोलिखित रूप से किया जा सकता है।

          विषय वस्तु:- 

1.प्रथम अध्याय-आदिचरण अथवा प्रथम चरण अथवा पीताम्बर लक्षीराम चरण

2. द्वितीय अध्याय - मध्य चरण अथवा द्वितीय चरण अथवा रंगपाल चरण।

3. मध्यौत्तर चरण अथवा तृतीय  चरण अथवा कलाधर-पाल-ब्रजेश चरण ।

4.आधुनिक चरण अथवा चतुर्थ चरण ।

5. छंद विधान और छन्दकार ।

6. उपसंहार ।

1.आदि चरण अथवा पीताम्बर-लछिराम चरण :- 

प्रथम अध्याय का नामांकन आदि चरण अथवा पीताम्बर-लछिराम चरण नाम से किया गया है। इसमें सर्वश्री पीताम्बर भट्ट, भवानी बक्स, बलदेव उर्फ बलदी, हनुमन्त कवि, रामगरीब चतुर्वेदी "गगाजन", भास्कर प्रसाद चतुर्वेदी "दिनेश", श्रीनारायण चतुर्वेदी, रामलोचन भट्ट, विश्वेश्वर वत्स पाल, महाराज शीतला बक्स  सिंह "महेश", लाल त्रिलोकी नाथ भुवनेश, पण्डित गौरीनाथ शर्मा, आचार्य लछिराम भट्ट सहित कुल 14 छंदकारों का ऐतिहासिक परिचय उनकी कृतियों की समीक्षा के साथ प्रस्तुत किया गया है।

2.मध्य चरण अथवा रंगपाल चरण:- 

द्वितीय अध्याय को मध्य वरण अथवा रंगपाल चरण के नाम से प्रस्तुत किया गया है। क्योंकि इस चरण के प्रतिष्ठित कवि बाबू रंगपाल जी" वीरेश" थे। इस अध्याय में सर्वश्री बाबू रंगनारायण पाल 'वीरेश’, पंडित वलराम मिश्र "द्विजेश, पंडित बुद्धि सागर मिश्र "पंचानन", पं० रामचरित्र पाण्डेय "पावन" "लुञ्चेश" "गंवार”, पंडित रामनारायण चतुर्वेदी, लाल रुद्रनाथ सिंह "पन्नगेश", पंडित भगौतीप्रसाद मिश्र "नन्दन”, पंडित रामभरोसे पाण्डेय "सूर्य", पंडित रामाज्ञा द्विवेदी "समीर" पंडित जनार्दन नाथ त्रिपाठी "गोपाल", आचार्य रामचन्द्र शुक्ल सहित 11 छंदकारों का उनके कृतित्व का समालोचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया गया है। आचार्य शुक्ल जी को हिन्दी साहित्य के स्मृति- स्वरूप यहाँ रखा गया है।

3.मध्योत्तर चरण अथवा कलाधर- पाल- ब्रजेश चरण:

तृतीय अध्याय का नामांकन मध्योत्तर चरण अथवा कलाधर- पाल-ब्रजेश चरण के नाम से किया गया है। इस अध्याय ने सर्वश्री भास्कर प्रसाद "भास", राजाराम शर्मा "अंचल", बद्री प्रसाद मिश्र "हरीश, रानी सौभाग्य सुन्दरी "सुन्दरअली", लालश्रीकण्ठ सिंह "ब्रजदेव ", बाबू श्री बद्रीप्रसाद "पाल", श्रीरामदेव सिंह "कलाधर ", श्री अब्बास अली "वास", पण्डित मातादीन त्रिवाठी "दीन", श्रीगणेशदत्त पाण्डेय "विशिख", श्री सरस्वती प्रसाद शर्मा "वारिज, पण्डित मोहन प्यारे द्विवेदी "मोहन", प० राम नारायण पाण्डेय "पागल,श्री केदारनाथ मिश्र "दीन”, पंडित रामचरित्र उपाध्याय, ,पंडित व्रज विहारी चतुर्वेदी 'ब्रजेश', श्री रामलाल श्रीवास्तव 'लाल', पण्डित अद्या प्रसाद पाण्डेय 'द्विजेंद्र' , श्री राम कृपाल पाण्डेय ,श्री राम आश्रय सिंह 'रसिकेन्दु' सहित बीस कवियों पर ऐतिहासिक  परिचय प्रस्तुत करते हुए उनके व्यक्तित्व तथा कृतित्व की संक्षिप्त समीक्षा प्रस्तुत की गई है। साथ ही साथ इसी अध्याय में इसी चरण के छन्दकार सर्व श्री बुध यदुनाथ जी, आचार्य धनराज शास्त्री, महात्मा गुंगदास, पण्डित चिन्तामणि त्रिपाठी, पं० सीताराम शुक्ल, सत अखंडानंद जी, सत्यदेव ब्रह्मचारी "सत्य" ,पण्डित भगवती प्रसाद मिश्र "अग्र", सन्त फागूदास, रामयज्ञ त्रिपाठी "कंचन", चन्द्र शेखर भारती, राम लखन मिश्र "रामायणी", कमला पति त्रिपाठी "जोकरेश", सुकवि रतिनाथ जी, मातादीन लाल "मुख्तार" , श्रीनरदेव पाण्डेय "साहित्यरत्न", सुकवि चन्द्रवली त्रिपाठी, बासदेव लाल "मुख्तार" सहित 18 छन्दकार जिनके बारे में विस्तृत जानकारी नहीं उपलब्ध हो सकी है, का सामान्य परिचय उनकी कृतियों के माध्यम से तथा "उपहार" और "पूर्वांचला" के प्रकाशित सूत्रों से प्रस्तुत किया गया है।इन छन्दकारों के बारे में जनपद के वयोवृद्ध छन्दकारों ने भी अपना बहुमूल्य सहयोग देने का प्रयास किया है।

      4.आधुनिक चतुर्थ चरण 

चतुर्थ अध्याय को आधुनिक चरण अथवा चतुर्थ चरण के नाम से सदर्भित किया गया है। इस अध्याय में सर्वश्री राम लखन मिश्र "मुदुल", शारदा शरण चतुर्वेदी "मौलिक" रामनरेश पाण्डेय "पद्‌मेश", घनश्याम  प्रजापति "दंगल", चिन्ताहरण  पाण्डेय "फूल", प्रेमशंकर मिश्र, जनार्दन नाथ पाण्डेय "ईश, पं० राम सुमिरन पाण्डेय "सुमन", पण्डित कंदर्प नारायण शुक्ल "कंदर्प", ठाकुर भूरी सिंह "बालसोम" गौतम,  पण्डित ब्रजभूषण उपाध्याय "ब्रजचंद , प० राममूर्ति मिश्र "सुधाकर", कृष्ण विहारी लाल "राही", मुनि लाल उपाध्याय "सरस", राम कृष्ण लाल "जगमग", राम लखन मौर्य "मयूर", आदि 16 छन्दकारों का परिचय उनके उपलब्ध साहित्य के अनुसार समालोचनात्मक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। कुछ ऐसे छन्दकार जिनके बारे में पर्याप्त सामग्री के अभाव के कारण विस्तृत परिचय नहीं दिया जा सका है, उनका सामान्य परिचय दिया गया है। इस कोटि के छन्दकारों में सर्व श्री  धर्मेन्द्रनाथ त्रिपाठी, पं० सुरेश धर "भ्रमर", प० हरिशंकर मिश्र, पण्डित हरिनाथ उपाध्याय "अटल", पण्डित रवीन्द्रनाथ त्रिपाठी, पण्डित लम्बोदर पाण्डेय "अरुण", सुकवि जगई भइया, पं० परमानन्द आनन्द, चन्द्रशेखर पाण्डेय, रामरक्षा भारती "विकल", पण्डित सरस्वती प्रसाद शुक्ल  "चंचल", रामनरेश सिंह "मंजुल", पण्डित रामदास पाण्डेय गम्भीर", पं० केशरीधर द्विवेदी, पं० उमाकान्त मिश्र "क्रंदन", श्याम लाल यादव , ठाकुर जगदंबिका सिंह उर्फ "लल्लू बाबू",रामेश्वर वर्मा ,माहेश्वर तिवारी "शलभ", डा श्याम तिवारी, स्व. सर्वेश्वर दयाल सक्सेना , माधव सिंह गौतम, डा. राधेश्याम द्विवेदी "नवीन", भद्र सेन सिंह "भ्रांत", गोपाल जी शुक्ल , कृष्ण दत्त तिवारी "प्रेम", गीतकार श्री शिव पूजन राय , श्री सतीश श्रीवास्तव , श्री विद्याधर द्विवेदी , श्री राम शरण जायसवाल , श्री चन्द पटवा , श्री नरेंद्र कुमार पाण्डेय , डा. सत्य देव द्विवेदी "सत्य",श्री रामदेव मिश्र "पिंगल", डा.सत्य प्रकाश उपाध्याय शास्त्री ' सत्य‘,इंजीनियर श्री अतुल द्विवेदी और श्री कैलाश नाथ ओझा आदि का परिचय संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत किया जा सका है।

               पंचम अध्याय

छन्द, छन्द विधान एवं छन्दकार

पांचवे अध्याय के अन्तर्गत छन्द की परिभाषा, स्वरूप, परिचय, प्रयोजन गण, गणों के नाम, मात्रिक तथा वर्णिक छन्दो के भेद आदि पर प्रकाश डालते हुए आलोच्य शोध से संदर्भित छन्दकारों के छन्दो को उदाहरण स्वरूप प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। इस अध्याय में आचार्य परम्परा के छन्दकारो छन्द उदाहरण स्वरूप अधिक लिये गये हैं। पुन. इस अध्याय में 30 मात्रिक तथ 32 वर्णिक छन्द जिनका प्रयोग जनपदीय छन्दकारों ने अपने काव्य मे किया है, की परिभाषा देते हुए उसके उदाहरण छन्दकारों के छन्दों से प्रस्तुत किया गया है। अन्त में लगभग 60 लयात्मक छन्द जिनका प्रयोग बाबू रंग नारायण पाल "वीरेश", सुकवि बद्रीपाल जी तथा बाबू रामाश्रय सिंह "रसिकेन्दु" ने अपने लोक साहित्य में साहित्यिक पुट के साथ किया है, का भी परिचय छन्द के नाम के साथ उदाहरण देते हुए प्रस्तुत किया गया है।

     षष्ठ अध्याय : उपसंहार

शोध-प्रबंध का षष्ठ अध्याय उपसंहार का है जिसमे मैंने अपने शोध की प्रमुख विशेषताजों का समाहार प्रस्तुत किया है।जनपद की विस्तृत छन्द परंपरा को देखकर उसे शोध रूप देने हेतु मेरी जिज्ञासा ने मुझे उत्सुक किया कि मैं अपने जनपदीय छन्दकारों पर ऐतिहासिक शोध प्रस्तुत करूँ। अभी तक जनपदीय छन्दकारों पर कोई भी उच्च स्तरीय ऐतिहासिक एवं साहित्यिक शोध नहीं प्रस्तुत किया जा सका है। जिन छन्दकारों के विस्तृत परिचय को ऐतिहासिक और समीक्षात्मक रूप दिया गया है, वह मेरे मौलिक प्रयास द्वारा सम्पन्न हुआ है। यद्यपि मेरी स्थापनाएँ भी इस शोध के अन्तर्गत सबंधित छन्दकारों पर प्रस्तुत की गई हैं, निर्विवाद नहीं है, किन्तु इसमें मेरा अपना मौलिक प्रयास है। अब तक जनपदीय छन्दकारों पर ऐतिहासिक और साहित्यिक समालोचनात्मक परिचय विस्तृत ढंग से मेरे अतिरिक्त किसी और ने नहीं प्रस्तुत किया है। मेरा यह प्रयास प्रथम है, ऐसा मेरा विश्वास है।

       बस्ती जनपद के छन्द-साहित्य की विखरी पड़ी सामग्री के संयोजन मे एवं छन्दकारों के जीवन और कृतित्व पर प्रकाश डालने मे जिन विद्वानों और साहित्य प्रेमियो ने मुझे सहयोग दिया है, उनका मैंने यथास्थान तो उल्लेख किया ही है परन्तु उनके प्रति अपनी कृतज्ञता भी अर्पित करता हूँ।

       शोध-प्रबंध की सामग्री हेतु अपने जनपद के कोने-कोने में ही नहीं, अपि आवश्यकतानुसार अन्य जनपदो के पुस्तकालयों एवं वयोवृद्ध छन्दकारों से भी सम्पर्क करने पड़े हैं। इन जाने-अनजाने सभी विद्वानों का मै ऋणी हूं।

     शोध-प्रबन्ध की सामग्री हैतु सुकवि रामदेव सिंह "कलाधर" धनघटा, बाबु भद्रसेन पाल हरिहरपुर, पं० बद्री प्रसाद पाण्डेय वैभरिया, पं० मातादीन त्रिपाठी "दीन", भगवानदास गुप्त, सुकवि द्विजेन्दु हरिहरपुर,  कृष्ण बिहारी लाल "राही", पण्डित रामनारायण पाण्डेय "पागल", सुकवि रामकृष्ण लाल "जगमग" बस्ती, श्री रामलाल श्रीवास्तव "लाल" महसो, प्रेनशंकर मिश्र बस्ती मिश्रौलिया अब्बास अली "बास" एवं उमाकान्त मिश्र "क्रंदन" खलीलाबाद , बाबा राम कुमार दास, मणिपर्वत अयोध्या, ब्रजबिहारी चतुर्वेदी "ब्रजेश" बकौली , श्री अमर सिह धनघटा, पंडित स्वामीनाथ त्रिपाठी, श्री सुरेन्द्र बहादुर सिह दुबौलिया बाजार, पं० उमा शंकर पाण्डेय - बांसी आदि साहित्यकारों ने सदैव सहयोग प्रदान किया है। इनका भी मैं कृतज्ञ हूँ।

     सबंधित शोध हेतु डॉ० राम जवाहिर द्विवेदी-टांडा, डॉ० रामफेर त्रिपाठी, डॉ० परमात्मा नाथ द्विवेदी, डॉ० रामदल पाण्डेय, डॉ० मधुर नारायण मिश्र, डॉ० रामनारायण पाण्डेय, डॉ० श्याम तिवारी आदि हिन्दी के वर्चस्वी विछानो ने सदैव प्रौत्साहन दिया है। इनका भी मै कृतज्ञ  हूँ।

    इस शोध-प्रबन्ध को सुलेख देने में श्री राम लखन मौर्य "मयूर" शास्त्री, श्री राधेश्याम द्विवेदी "नवीन" साहित्याचार्य सहोदर श्री बशिष्ठ प्रसाद उपाध्याय, श्री धनश्याम द्विवेदी "साहित्यरत्न" मेरे सुपुत्र डॉ० सत्यप्रकाश शास्त्री एवं ज्ञानप्रकाश शास्त्री तथा सुपुत्री श्रीमती कमला शास्त्री आदि ने सदैव बहुमूल्य समय दिया है। इनका में सस्नेहिल हृदय से कृतज्ञ हूं।

      प्रस्तुत शोध-प्रबन्ध के निर्देशक डॉ० केशव प्रसाद सिह, प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, काशी विद्यापीठ, वाराणसी, का मै आजीवन ऋणी रहूँगा जिन्होंनेअपने कुशल निर्देशन में इसे पूर्ण कराया। उनका स्नेह एवं औदार्य कभी विस्मृत नहीं होगा।

      श्री जगत नारायण पाण्डेय तथा श्री हर प्रसाद मिश्र की सेवाओं को भी कभी नहीं भूलूगा जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर टंकण कार्य सम्पन्न किया।

     जनपदीय छन्दकारों पर शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत करते हुए मैं अपने जनपद के छन्दकारों के साथ-सा अन्य सुधीविद्वानो का कृतज्ञ रहूँगा जो इस शोध सामग्री का समादर करेंगे और छन्दकारों की स्मृतियों में प्रस्तुत इस शोध- दस्तावेज को हिन्दी की सफल कृति समझेगे।

            डा.मुनि लाल उपाध्याय "सरस"

15 अगस्त, 1984


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