Wednesday, June 26, 2024

इच्छ्वाकु वंश के महान राजा सगर ( राम के पूर्वज 24) आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी


इच्छाकु की प्रारंभिक वंशावली:- 

ब्रह्मांड पुराण के अनुसार – 

ब्रह्मा से इस प्रकार वंशज हुए थे - ब्रह्मा - कश्यप - विवस्वान - वैवस्वत मनु - इक्ष्वाकु - विकुक्षि - शशाद - पुरञ्जय - काकुत्स्थ - अनेनस - पृथुलाश्व - प्रसेनजित - युवानाश्व - मान्धाता - पुरुकुत्स - त्रसदस्यु - अनारण्य - आर्याश्व - वसुमानस - सुधन्वा - त्रैयारुण - सत्यव्रत (त्रिशंकु ) - हरिश्चंद्र - रोहिताश्व - हरित - कुञ्कु - सुदेव - भरुका - बाहुक - सागर।

                   ऋषि और्व 

च्वयन आश्रम पर राजकुमार का जन्म :-    

अयोध्या के राजा बाहु का राज्य पूर्व में शकों के साथ आए हैहयों और तालजंघों ने छीन लिया था। यवन, पारद, कम्बोज, पहलव (और शक), इन पांच कुलों (राजाओं के) ने हैहयों के लिए और उनकी ओर से हमला किया। शत्रुओं ने बाहु से राज्य छीन लिया। उसने अपना निवास त्याग दिया और जंगल में चला गया। अपनी पत्नी के साथ,  राजा ने तपस्या की। उसकी पत्नी, जो यदु के परिवार की सदस्य थी , गर्भवती थी और वह उसके पीछे चली गयी थी। उसकी सहपत्नी ने गर्भ में पल रहे बच्चे को मारने की इच्छा से उसे जहर दे दिया था।

       एक बार वह राजा विकलांग होते हुए भी पानी लाने गया। वृद्धावस्था एवं कमजोरी के कारण बीच में ही उनका निधन हो गया। उसने अपने पति की चिता को अग्नि दी और उस पर चढ़ गयी। भार्गव वंश के ऋषि और्व को दया आ गई उसने  रानी को सती होने से रोक दिया। वह रानी को अपने आश्रम पर ले आये । परन्तु गर्भ पर उस विष का कोई प्रभाव नहीं पड़ा; बल्कि उस विष को लिये हुए ही एक बालक का जन्म हुआ, जो 'गर' ( = विष)के साथ पैदा होने के कारण ‘सगर’ कहलाया। बालक का जन्म उसके शरीर में जहर के साथ हुआ था। उसके साथ ही उसकी माँ को दिया गया विष भी बाहर निकाल दिया गया। 

संस्कार और शिक्षा:- 

वैदिक शास्त्रों के अनुसार, पिछले युग में, सत्य युग में अवध के राजा सगर नाम के एक राजा थे, जो भगवान रामचंद्र के 13वें पूर्वज थे। और्वा ने  राजकुमार के जातकर्मण और प्रसवोत्तर अन्य पवित्र संस्कार किये। ऋषि और्व ने उसके जात - कर्म आदि संस्कार कर उसका नाम 'सगर' रखा तथा उसका उपनयन संस्कार कराया। उस पवित्र ऋषि ने अपने वर्ग की रीति के साथ उसका अभिषेक कराया। 

       भृगु (अर्थात और्व) के पोते से आग्नेय अस्त्र (एक मिसाइल जिसके देवता अग्नि-देव हैं) प्राप्त करने के बाद राजा सगर ने पूरी पृथ्वी पर जाकर तालजंघों और हैहयों को मार डाला। निष्कलंक राजा ने शकों और पहलवों के धर्म (आचार संहिता आदि) को अस्वीकार कर दिया। और्व ने ही उसे वेद, शस्त्रों का उपयोग सिखाया एवं उसे विशेष रूप से भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों को प्रदान किया।उन्होंने उसे वेद और पवित्र ग्रंथ सिखाये । इसके बाद, उन्होंने उसे मिसाइलों और चमत्कारी हथियारों को छोड़ना सिखाया।

वंश परंपरा की जानकारी:- 

एक बार यादवी ( नंदनी) को यह सुनकर रोना आ गया कि लड़का ऋषि को 'पिता' कह रहा है और जब उसने उससे उसके दुख के बारे में पूछा तो उसने उसे उसके असली पिता और विरासत के बारे में बताया। बुद्धि का विकास होने पर उस बालक ने अपनी मातां से कहा -         "माँ ! यह तो बता, इस तपो वन में हम क्यों रहते हैं और हमारे पिता कहाँ हैं ? ' इसी प्रकार के और भी प्रश्न पूछने पर माता ने उससे सम्पूर्ण वृतान्त कह दिया । सगर ने अपना जन्मसिद्ध अधिकार वापस पाने की कोशिश की। उसके बाद राजा ने शक, यवन, काम्बोज, पारद और पहलवों को नष्ट करने का निश्चय किया। 

जनता के दबाव में अपना राज्य वापस लिया:

अयोध्या के लोग , जो तालजंघा से भयभीत रहते थे, वशिष्ठ की सलाह पर चले गए , जिन्होंने उन्हें सलाह दी कि वे सगर को वापस लाकर राज्य पर कब्ज़ा कर लें। लोगों ने अपनी दलील सगर तक पहुँचाने के लिए पाँच दिनों तक और्व के आश्रम के बाहर प्रतीक्षा की। ऋषि के आशीर्वाद से और लोगों के साथ, सगर ने तालजंघा से युद्ध किया, उसका राज्य पुनः जीता और खुद को राजा घोषित किया। 

      तब पिताके राज्य का अपहरण को सहन न कर सकने के कारण उसने हैहय और तालजंघ आदि क्षत्रियों को मार डालने की प्रतिज्ञा की और प्रायः सभी हैहय एवं तालजंघ वंशीय राजाओं को नष्ट कर दिया। यह बड़ा प्रतापी राजा था। उसने पहले तो हैहयों और तालजंघों को मार भगाया फिर शकों, यवनो, पारदों और पह्नवों को परास्त किया। 

        उसके पश्चात शक, यवन, काम्बोज, पारद और पह्लवगण भी हताहत होकर सगर के कुलगुरु वसिष्ठजीकी शरणमें गये। वसिष्ठ ने इनको जीवनमृतप्राय कर दिया और सगर से कहा कि इनका पीछा करना निष्फल है। सगर के पिता बाहु को जिन दुश्मनों ने राज्य छीन लिया था, उन तालजंघा  यवन , शक , हैहय और बर्बरों के जीवन लेने से कुमार सगर को रोका। 

        अपनी ही प्रतिज्ञा को स्मरण करके, और उसके उपदेशात्मक वचनों को सुनकर; उनके गुरु, सगर ने जाति और अन्य विशेषताओं के उनके पारंपरिक पालन को खत्म कर दिया, और उन्हें अपना भेष और परिधान बदलने के लिए मजबूर किया।

        उन्होंने शकों के आधे सिर मुंडवाकर उन्हें छुट्टी दे दी। उन्होंने यवनों और कम्बोजों के सिर पूरी तरह से मुंडवा दिये। पारदों को अपने बाल बिखरे हुए रखने के लिए मजबूर किया गया और पहलवों को अपनी मूंछें और दाढ़ी बढ़ाने के लिए मजबूर किया गया। राजा सगर ने कुलगुरु की आज्ञा से इनके भिन्न वेष कर दिये, यवनों के मुंडित शिर शकों को श्रद्ध मुण्डित पारदों को प्रलम्बमान - केश युक्त और पह्नवों को श्मश्रुधारी बना दिया। यह लोग म्लेच्छ हो गये। उन सभी को उस महान आत्मा वाले राजा द्वारा वेदों के अध्ययन और वशंकार मंत्रों के उच्चारण से वंचित कर दिया गया था।

सगर की दो पत्नियाँ :- 

सगर की दो पत्नियाँ थीं जिन्होंने अपनी तपस्या से उनके पापों को दूर कर दिया था। दोनों में से बड़ी विदर्भ राज्य की राजकुमारी थी । सगर ने विदर्भ पर भी आक्रमण किया, परन्तु विदर्भराज ने अपनी बेटी केशिनी उसे देकर सन्धि कर ली। बड़ी रानी सुमति रिषि कश्यप की कन्या थी । उनकी छोटी पत्नीद्र विड़ अर्थात असुर अरिष्टनेमि की केशिनी नामक कन्या थी । वह अत्यंत गुणी थी और सौंदर्य में सारे संसार में अद्वितीय थी। 

       चूँकि उन्हें लंबे समय तक कोई संतान नहीं हुई, इसलिए सगर अपनी दोनों पत्नियों के साथ हिमालय चले गए और भृगुप्रस्रवण पर्वत पर तपस्या करने लगे। प्रसन्न होकर भृगु मुनि ने उन्हें वरदान दिया कि एक रानी को वंश चलाने वाले एक पुत्र की प्राप्ति होगी और दूसरी के साठ हज़ार वीर उत्साही पुत्र होंगे। बड़ी रानी के एक पुत्र और छोटी ने साठ हज़ार पुत्रों की कामना की थी। सुमति के पुत्रों के चरित्र के बारे में भविष्यवाणी की गई है कि वे अधर्मी होंगे, जबकि केशिनी का पुत्र धर्मी होगा। राजा और उनकी रानियाँ अयोध्या लौट आईं और समय के साथ केशिनी ने असमंजस नामक एक पुत्र को जन्म दिया। 

       असमंजस बहुत दुष्ट प्रकृति का था। अयोध्या के बच्चों को सताकर प्रसन्न होता था। सगर ने उसे अपने देश से निकाल दिया। कालांतर में उसका पुत्र हुआ, जिसका नाम अंशुमान था। वह वीर, मधुरभाषी और पराक्रमी था। सुमति ने एक मांस के पिंड जैसा एक तूंबी को जन्म दिया। राजा उसे फेंक देना चाहते थे किंतु तभीआकाश वाणी हुई कि इस तूंबी में साठ हज़ार बीज हैं। घी से भरे एक-एक मटके में एक-एक बीज सुरक्षित रखने पर कालांतर में साठ हज़ार पुत्र प्राप्त होंगे। इसे महादेव का विधान मानकर सगर ने उन्हें वैसे ही सुरिक्षत रखा तथा उन्हें साठ हज़ार उद्धत पुत्रों की प्राप्ति हुई। वे क्रूरकर्मी बालक आकाश में भी विचर सकते थे तथा सब को बहुत तंग करते थे।

अश्वमेध यज्ञ के दौरान सगर पुत्रों की मृत्यु:- 

       राजा सगर ने विंध्य और हिमालय के मध्य यज्ञ किया। धार्मिक विजय के माध्यम से पूरी पृथ्वी पर विजय प्राप्त करने के बाद, राजा ने अश्व यज्ञ की दीक्षा ली और यज्ञ के घोड़े से विश्व की परिक्रमा करायी। सगर के पौत्र अंशुमान यज्ञ के घोड़े की रक्षा कर रहे थे। विष्णु पुराण के अनुसार , राजा सगर ने पृथ्वी पर अपना आधिपत्य स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ किया था।

        देवताओं के राजा इंद्र यज्ञ के परिणामों से भयभीत हो गए और इसलिए उन्होंने एक पहाड़ के पास बलि का घोड़ा चुराने का फैसला किया। वह राक्षस का रूप धारण कर घोड़ा चुरा लिया। उन्होंने घोड़े को पाताल में ऋषि कपिल के पास छोड़ दिया , जो गहन ध्यान में लीन थे। 

     इधर सगर ने अपने साठ हज़ार पुत्रों को आज्ञा दी कि वे पृथ्वी खोद-खोदकर घोड़े को ढूंढ़ लायें। जब तक वे नहीं लौटेंगे, सगर और अंशुमान दीक्षा लिये यज्ञशाला में ही रहेंगे। सगर-पुत्रों ने पृथ्वी को बुरी तरह खोद डाला तथा जंतुओं का भी नाश किया। देवतागण ब्रह्मा के पास पहुंचे और बताया कि पृथ्वी और जीव-जंतु दर्द के मारे कैसे चिल्ला रहे हैं। ब्रह्मा ने कहा कि पृथ्वी विष्णु भगवान की स्त्री हैं वे ही कपिल मुनि का रूप धारण कर पृथ्वी की रक्षा करेंगे।       

         सगर-पुत्र निराश होकर पिता के पास पहुंचे। पिता ने रुष्ट होकर उन्हें फिर से अश्व खोजने के लिए भेजा। हज़ार योजन खोदकर उन्होंने पृथ्वी धारण करने वाले विरूपाक्ष नामक दिग्गज को देखा। उसका सम्मान कर फिर वे आगे बढ़े। दक्षिण में महापद्म, उत्तर में श्वेतवर्ण भद्र दिग्गज तथा पश्चिम में सोमनस नामक दिग्गज को देखा। तदुपरांत उन्होंने कपिल मुनि को देखा तथा थोड़ी दूरी पर अश्व को चरते हुए पाया। उन्होंने कपिल मुनि का निरादर किया, फलस्वरूप मुनि के शाप से वे सब भस्म हो गये। 

       बहुत दिनों तक पुत्रों को लौटता न देख राजा सगर ने अंशुमान को अश्व ढूंढ़ने के लिए भेजा। वे ढूंढ़ने- ढूंढ़ते अश्व के पास पहुंचे जहां सब चाचाओं की भस्म का स्तूप पड़ा था। जलदान के लिए आसपास कोई जलाशय भी नहीं मिला। तभी पक्षीराज गरुड़ उड़ते हुए वहां पहुंचे और कहा, “ये सब कपिल मुनि के शाप से हुआ है, अत: साधारण जलदान से कुछ न होगा। गंगा का तर्पण करना होगा। इस समय तुम अश्व लेकर जाओ और पिता का यज्ञ पूर्ण करो।” उन्होंने ऐसा ही किया।

सगर द्वारा अश्व खोजने का आदेश :- 

राजा सगर के 60,000 पुत्रों और उनके पुत्र असमंजस , जिन्हें सामूहिक रूप से सगरपुत्र (सगर के पुत्र) के रूप में जाना जाता है, को घोड़े को खोजने का आदेश दिया गया था। जब 60,000 पुत्रों ने अष्टदिग्गजों की परिक्रमा की और घोड़े को ऋषि के पासचरते हुए पाया, तो उन्होंने बहुत शोर मचाया। 

      जैसे ही सगर पुत्रों ने अश्व घुमाया, दक्षिण- पूर्वी महासागर के तट के पास से घोड़ा चोरी हो गया और पृथ्वी के नीचे समा गया। राजा ने अपने पुत्रों से उस स्थान को पूरी तरह से खुदवा दिया। विशाल महासागर के तल को खोदते हुए, वे आदिम प्राणी, भगवान विष्णु से मिले। 

      कपिल के रूप में, भगवान हरि , कृष्ण , प्रजा के स्वामी, भगवान हंस , भगवान नारायण आदि के दर्शन हुए। उसके दर्शन के मार्ग में आकर और उसके तेज से पीड़ित होकर वे सब राजकुमार भगवान कपिल के क्रोध से उनके साठ हजार पुत्र भस्म हो गये। हमने सुना है कि पुण्यात्मा साठ हजार पुत्रों ने नारायण के तेजोमय तेज में प्रवेश किया।

        उन सब में केवल चार बेटे जीवित बचे। वे बर्हिकेतु ,सुकेतु ,धर्मरथ और वीर पंचजन थे । उन्होंने प्रभु की परंपरा को कायम रखा। हरि, नारायण ने उन्हें वरदान दिया जैसे - उनकी जाति के लिए चिरस्थायी दर्जा, सौ अश्व यज्ञ करने की क्षमता, पुत्र के रूप में सर्वव्यापी सागर और स्वर्ग में शाश्वत निवास होगा।

      घोड़े को अपने साथ ले जाकर नदियों के स्वामी समुद्र ने उसे प्रणाम किया। उनके इसी कार्य से उनका नाम सागर पड़ा । समुद्र से यज्ञ का घोड़ा वापस लाने के बाद, राजा ने बार-बार कुल मिलाकर एक सौ अश्व-यज्ञ किये।

भगीरथ द्वारा बाद में गंगावतरण:- 

सगर ने यह समाचार सुनकर अपने पोते अंशुमान को घोड़ा छुड़ाने के लिये भेजा। अंशुमान उसी राह से चलकर जो उसके चाचाओं ने बनाई थी, कपिल के पास गया। उसके स्तव से प्रसन्न होकर कपिल मुनि ने कहा कि “लो यह घोड़ा और अपने पितामह को दो;" और यह बर दिया कि "तुम्हारा पोता स्वर्ग से गंगा लायेगा। उस गंगा-जल के तुम्हारे चचा की हड्डियों में लगते ही सब तर जायेंगे ।" 

     घोड़ा पाकर सगर ने अपना यज्ञ पूरा किया और जो गड्ढा उसके बेटों ने खोदा था उसका नाम सागर रख दिया । हम इससे यह अनुमान करते हैं कि सगर के बेटे सब से पहले बंगाल की खाड़ी तक पहुंचे थे और समुद्र को देखा था।

      पुराणों के अनुसार कपिल मुनि के श्राप के कारण ही राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी।हर साल मकर संक्रान्ति के समय गंगा सागर स्नान के लिए देश भर से लाखों श्रद्धालु वहां पहुंचते हैं। तब गंगा सागर में विशाल मेला लगता है। यहीं गंगा सागर के तट पर कपिल मुनि का सुंदर मंदिर है। इस मंदिर का संबंध गंगाअवतरण की कथा से है।

    गंगा सागर आने वाले लोग महर्षि कपिल मुनि के मंदिर में पूजा-अर्चना जरूर करते हैं। मंदिर के अंदर मां गंगा की मूर्ति है। इसके अलावा देवी लक्ष्मी और घोड़े को पकड़े राजा इंद्र और कपिल मुनि की मूर्तियां हैं। पुराणों के अनुसार, कपिल मुनि के श्रप के कारण ही राजा सगर के 60 हजार पुत्रों की इसी स्थान पर तत्काल मृत्यु हो गई थी। 

     बाद में राजा सगर के वंशज भगीरथ अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए लंबी तपस्या के बाद गंगा को धरती पर लाने में सफल रहे। गंगाअवतरण के बाद राजा सगर के 60 हजार पुत्रों को मुक्ति मिली। गंगा सागर में कपिल मुनि का पुराना मंदिर हुआ करता था, पर यहां स्थित उस मंदिर को सागर सन 1973 में बहा ले गया था। इसके बाद पुराने मंदिर की मूर्तियों को कोलकाता में स्थापित किया गया। 

     साल 2013 में यहां अखिल भारतीय पंच रामानंदीय निर्वाणी अखाड़ा की ओर से स्थायी मंदिर का निर्माण कार्य आरंभ कराया गया। इस साल के गंगा सागर मेला से पूर्व यह मंदिर भव्य रूप में तैयार हो चुका है। कपिल मुनि मंदिर में पूजा के बाद श्रद्धालु तिल, चावल और तेल आदि का दान देते हैं। लोककथाओं के अनुसार यहां कपिल मुनि मंदिर 437 ईस्वी से स्थापित था। पर अब पुराने मंदिर का कोई अवशेष नहीं है। 1683 में यहां पर मंदिर का जिक्र जेम्स नामक लेखक ने किया है।

      कई पीढ़ियों बाद, सगर के वंशजों में से एक, भगीरथ ने पाताल से अपने पूर्वजों की आत्माओं को मुक्त करने का कार्य किया। उन्होंने देवी गंगा की तपस्या करके इस कार्य को आगे बढ़ाया और उन्हें स्वर्ग से गंगा नदी के रूप में धरती पर उतारने में सफल रहे और पाताल में 60,000 मृत पुत्रों का अंतिम संस्कार किया।

सगर द्वारा अयोध्या का त्याग:- 

अपने बेटों की मृत्यु के बाद, सगर ने अयोध्या की गद्दी त्याग दी और असमंजस के पुत्र अंशुमान को अपना उत्तराधिकारी बनाया। वह और्व के आश्रम में चले गए और अपने बेटे की राख पर गंगा को उतारने के लिए तपस्या करने  लगे।


           आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 



Tuesday, June 25, 2024

सात द्वीपों वाली भारत की आर्थिक राजधानी: मुबई डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


मुम्बई शब्द का उद्गम :- 
मुम्बई शब्द का उदगम मुम्बा देवी से हुआ है , कोली जनजाति की कुलदेवी का नाम मुम्बादेवी है और जिस बस्ती में वे लोग रहते है उस उस मुंबाई कहते थे जो समय के साथ मुम्बई और बम्बई हुआ । "मुम्बई" नाम दो शब्दों से मिलकर बना है, मुम्बा या महा- अम्बा( हिन्दू देवी दुर्गा का रूप), जिनका नाम मुंबा देवी है । और आई, "मां" को मराठी में कहते हैं। 
       पूर्व नाम बाँम्बे या बम्बई का उद्गम सोलहवीं शताब्दी से आया है, जब पुर्तगाली लोग यहां पहले-पहल आये, व इसे कई नामों से पुकारा, जिसने अन्ततः बॉम्बे का रूप लिखित में लिया। यह नाम अभी भी पुर्तगाली प्रयोग में है। सत्रहवीं शताब्दी में, ब्रिटिश लोगों ने यहां अधिकार करने के बाद, इसके पूर्व नाम का आंग्लीकरण किया, जो बॉम्बे बना। किन्तु मराठी लोग इसे मुम्बई या मम्बई व हिन्दी व भाषी लोग इसे बम्बई ही बुलाते रहे। इसका नाम आधिकारिक रूप से सन 1995 में मुम्बई बना।
पुर्तगाली नाम:- 
बॉम्बे नाम मूलतः पुर्तगाली नाम से निकला है, जिसका अर्थ है "अच्छी खाड़ी" (गुड बे)। यह इस तथ्य पर आधारित है, कि बॉम का पुर्तगाली में अर्थ है अच्छा, व अंग्रेज़ी शब्द बे का निकटवर्ती पुर्तगाली शब्द है बैआ। सामान्य पुर्तगाली में गुड बे (अच्छी खाड़ी) का रूप है: बोआ बहिया, जो कि गलत शब्द बोम बहिया का शुद्ध रूप है। यह भी सच है कि सोलहवीं शताब्दी की पुर्तगाली भाषा में छोटी खाड़ी के लिये बैम शब्द है।
सात द्वीपों वाली मुंबई :- 
क्या आप कभी मुम्बई गए हैं? अगर नही गए तो आपको एकबार जरुर जाना चाहिए. मुंबई, जो कभी थमती नहीं, कभी रुकती नहीं. कुछ ऐसा आकर्षण है इस शहर में कि जो एक बार यहां रह लेता है फिर वो यहीं का होकर रह जाता है. इसीलिए तो मुंबई को मायानगरी और भारत का न्यूयॉर्क भी कहा जाता है। इसका गठन लावा निर्मित सात छोटे- छोटे द्वीपों द्वारा हुआ है।मूल रूप से ये निम्न द्वीपों से मिलकर बना हुआ है -- माटूंगा- सायन, कुलाबा, माजागांव, परेल, ओल्ड वूमन द्वीप,वर्ली और माहिम आदि।
 ब्रिटिश क्राउन के हाथों में आने के बाद, ये द्वीप ईस्ट इंडिया कंपनी को हस्तांतरित कर दिए गए। यह इन द्वीपसमूह एवं पुल द्वारा प्रमुख भूखण्ड के साथ जुड़ा हुआ है। मुम्बई बन्दरगाह भारतवर्ष का सर्वश्रेष्ठ सामुद्रिक बन्दरगाह है। जिसका तट कटा-फटा है , जिस कारण इसका पोताश्रय प्राकृतिक एवं सुरक्षित है। यूरोप, अमेरिका, अफ़्रीका आदि पश्चिमी देशों से जलमार्ग या वायुमार्ग से आने वाले जहाज यात्री एवं पर्यटक सर्व प्रथम मुंबई ही आते हैं, इसलिए मुंबई को भारत का प्रवेशद्वार भी कहा जाता है।भारत की आर्थिक राजधानी :- 
मुम्बई विश्व के सर्वोच्च दस वाणिज्यिक केन्द्रों में से एक है। इसे भारत की आर्थिक राजधानी भी कहते हैं। नगर में भारत का हिन्दी चलचित्र एवं दूरदर्शन उद्योग भी है, जो बॉलीवुड नाम से प्रसिद्ध है। मुंबई की व्यावसायिक क्षमता व उच्च जीवन स्तर पूरे भारतवर्ष भर के लोगों को आकर्षित करता है, जिसके कारण यह नगर विभिन्न समाजों व संस्कृतियों का मिश्रण बन गया है। मुम्बई पत्तन भारत के लगभग आधे समुद्री माल की आवाजाही करता है।
मुम्बई का इतिहास :- 
1970 के दशक के अंत तक, यहां के निर्माण में एक सहसा वृद्धि हुई, जिसने यहां आवक प्रवासियों की संख्या को एक बड़े अंक तक पहुंचाया। इससे मुंबई ने कलकत्ता को जनसंख्या में पछाड़ दिया, व प्रथम स्थान लिया। इस अंतःप्रवाह ने स्थानीय मराठी लोगों के अंदर एक चिंता जगा दी, जो कि अपनी संस्कृति, व्यवसाय, भाषा के खोने से आशंकित थे। बाला साहेब ठाकरे द्वारा शिव सेना पार्टी बनायी गयी, जो मराठियों के हित की रक्षा करने हेतु बनी थी। नगर का धर्म-निरपेक्ष सूत्र1992- 93 के दंगों के कारण छिन्न-भिन्न हो गया, जिसमें बड़े पैमाने पर जान व माल का नुकसान हुआ। इसके कुछ ही महीनों बाद 12 मार्च,1993 को शृंखलाबद्ध बम विस्फोटों ने नगर को दहला दिया। इनमें पुरे मुंबई में सैंकडों लोग मारे गये। 1995 में नगर का पुनर्नामकरण मुंबई के रूप में हुआ। यह शिवसेना सरकार की ब्रिटिश कालीन नामों के ऐतिहासिक व स्थानीय आधार पर पुनर्नामकरण नीति के तहत हुआ। यहां हाल के वर्षों में भी इस्लामी उग्रवादियों द्वारा आतंकवादी हमले हुए। 2006 में यहां ट्रेन विस्फोट हुए, जिनमें दो सौ से अधिक लोग मारे गये, जब कई बम मुंबई की लोकल ट्रेनों में फटे।

         प्रमुख आकर्षण वा विशेषताएं :- 

1.संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान:- 
संजय गाँधी राष्ट्रीय उद्यान नगर के समीप ही स्थित है। यह कुल शहरी क्षेत्र के लगभग छठवें भाग में बना हुआ है। इस उद्यान में तेंदुए इत्यादि पशु अभी भी मिल जाते हैं, जबकि जातियों का विलुप्तीकरण तथा नगर में आवास की समस्या सर उठाये खड़ी है।
2.भाटसा बांध और छः झीलें 
भाटसा बांध के अलावा, 6 मुख्य झीलें नगर की जलापूर्ति करतीं हैं: विहार झील, वैतर्णा, अपर वैतर्णा, तुलसी, तंस व पोवई। तुलसी एवं विहार झील बोरिवली राष्ट्रीय उद्यान में शहर की नगरपालिका सीमा के भीतर स्थित हैं। पोवई झील से केवल औद्योगिक जलापुर्ति की जाती है। तीन छोटी नदियां दहिसर, पोइसर एवं ओहिवाड़ा (या ओशीवाड़ा) उद्यान के भीतर से निकलतीं हैं, जबकि मीठी नदी, तुलसी झील से निकलती है और विहार व पोवई झीलों का बढ़ा हुआ जल ले लेती है। नगर की तटरेखा बहुत अधिक निवेशिकाओं (संकरी खाड़ियों) से भरी है। सैलसेट द्वीप की पूर्वी ओर दलदली इलाका है, जो जैवभिन्नताओं से परिपूर्ण है। पश्चिमी छोर अधिकतर रेतीला या पथरीला है।
3.रेतीली बालू की अधिकता :- 
मुंबई की अरब सागर से समीपता के कारण शहरी क्षेत्र में मुख्यतः रेतीली बालू ही मिलती है। उपनगरीय क्षेत्रों में, मिट्टी अधिकतर अल्युवियल एवं ढेलेदार है। इस क्षेत्र के नीचे के पत्थर काले दक्खिन बेसाल्ट व उनके क्षारीय व अम्लीय परिवर्तन हैं। ये अंतिम क्रेटेशियस एवं आरंभिक इयोसीन काल के हैं। मुंबई सीज़्मिक एक्टिव (भूकम्प सक्रिय) ज़ोन है। जिसके कारण इस क्षेत्र में तीन सक्रिय फॉल्ट लाइनें हैं। इस क्षेत्र को तृतीय श्रेणी में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है, कि रिक्टर पैमाने पर 6.5 तीव्रता के भूकम्प आ सकते हैं।
4.मुम्बई की अर्थ व्यवस्था :- 
मुंबई भारत की सबसे बड़ी नगरी है। यह देश की एक महत्वपूर्ण आर्थिक केन्द्र भी है, जो सभी फैक्ट्री रोजगारों का 10%, सभी आयकर संग्रह का 40%, सभी सीमा शुल्क का 60%, केन्द्रीय राजस्व का 20% व भारत के विदेश व्यापार एवं ₹40 अरब (US$580 मिलियन) निगमित करों से योगदान देती है। मुंबई की प्रति-व्यक्ति आय ₹48,954 (US$710) है, जो राष्ट्रीय औसत आय की लगभग तीन गुणा है।भारत के कई बड़े उद्योग (भारतीय स्टेट बैंक, टाटा ग्रुप, गोदरेज एवं रिलायंस सहित) तथा चार फॉर्च्यून ग्लोबल 500 कंपनियां भी मुंबई में स्थित हैं। कई विदेशी बैंक तथा संस्थानों की भी शाखाएं यहां के विश्व व्यापार केंद्र क्षेत्र में स्थित हैं। सन 1980 तक, मुंबई अपने कपड़ा उद्योग व पत्तन के कारण संपन्नता अर्जित करता था, किन्तु स्थानीय अर्थ- व्यवस्था तब से अब तक कई गुणा सुधर गई है, जिसमें अब अभियांत्रिकी, रत्न व्यवसाय, हैल्थ-केयर एवं सूचना प्रौद्योगिकी भी सम्मिलित हैं। मुंबई में ही भाभा आण्विक अनुसंधान केंद्र भी स्थित है। यहीं भारत के अधिकांश विशिष्ट तकनीकी उद्योग स्थित हैं, जिनके पास आधुनिक औद्योगिक आधार संरचना के साथ ही अपार मात्रा में कुशल मानव संसाधन भी हैं। आर्थिक कंपनियों के उभरते सितारे, ऐयरोस्पेस, ऑप्टिकल इंजीनियरिंग, सभी प्रकार के कम्प्यूटर एवं इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, जलपोत उद्योग तथा पुनर्नवीनीकृत ऊर्जा स्रोत तथा शक्ति-उद्योग यहां अपना अलग स्थान रखते हैं।
5.रोजगार का प्रमुख केंद्र :- 
नगर के कार्यक्षेत्र का एक बड़ा भाग केन्द्र एवं राज्य सरकारी कर्मचारी बनाते हैं। मुंबई में एक बड़ी मात्रा में कुशल तथा अकुशल व अर्ध-कुशल श्रमिकों की शक्ति है, जो प्राथमिकता से अपना जीवन यापन टैक्सी-चालक, फेरीवाले, यांत्रिक व अन्य ब्लू कॉलर कार्यों से करते हैं। पत्तन व जहाजरानी उद्योग भी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ढ़ेरों कर्मचारियों को रोजगार देता है। नगर के धारावी क्षेत्र में, यहां का कूड़ा पुनर्चक्रण उद्योग स्थापित है। इस जिले में अनुमानित 15,000 एक-कमरा फैक्ट्रियां हैं।
6.मीडिया सिनेमा वा प्रकाशन केन्द्र:- 
मीडिया उद्योग भी यहां का एक बड़ा नियोक्ता है। भारत के प्रधान दूरदर्शन व उपग्रह तंत्रजाल (नेटवर्क), व मुख्य प्रकाशन गृह यहीं से चलते हैं। हिन्दी चलचित्र उद्योग का केन्द्र भी यहीं स्थित है, जिससे प्रति वर्ष विश्व की सर्वाधिक फिल्में रिलीज़ होती हैं। बॉलीवुड शब्द बाँम्बे व हॉलीवुड को मिलाकर निर्मित है। मराठी दूरदर्शन एवं मराठी फिल्म उद्योग भी मुंबई में ही स्थित है।
7.नगर प्रशासन:- 
मुंबई में दो पृथक क्षेत्र हैं: नगर एवं उपनगर, यही महाराष्ट्र के दो जिले भी बनाते हैं। शहरी क्षेत्र को प्रायः द्वीप नगर या आइलैण्ड सिटी कहा जाता है। नगर का प्रशासन बृहन्मुंबई नगर निगम (बी एम सी) (पूर्व बंबई नगर निगम) के अधीन है, जिसकी कार्यपालक अधिकार नगर निगम आयुक्त, राज्य सरकार द्वारा नियुक्त एक आई ए एस अधिकारी को दिये गए हैं। निगम में 227 पार्षद हैं, जो 24 नगर निगम वार्डों का प्रतिनिधित्व करते हैं, पाँच नामांकित पार्षद व एक महापौर हैं। निगम नागरिक सुविधाओं एवं शहर की अवसंरचना आवश्यकताओं के लिए प्रभारी है। एक सहायक निगम आयुक्त प्रत्येक वार्ड का प्रशासन देखता है। पार्षदों के चुनाव हेतु, लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां अपने प्रत्याशि खड़े करतीं हैं। मुंबई महानगरीय क्षेत्र में 7 नगर निगम व 13 नगर परिषद हैं। बी एम सी के अलावा, यहां ठाणे, कल्याण- डोंभीवली, नवी मुंबई, मीरा भयंदर, भिवंडी- निज़ामपुर एवं उल्हासनगर की नगर महापालिकाएं व नगर पालिकाएं हैं।
8. ग्रेटर मुंबई :
ग्रेटर मुंबई में महाराष्ट्र के दो जिले बनते हैं, प्रत्येक का एक जिलाध्यक्ष है। जिलाध्यक्ष जिले की सम्पत्ति लेख, केंद्र सरकार के राजस्व संग्रहण के लिए उत्तरदायी होता है। इसके साथ ही वह शहर में होने वाले चुनावों पर भी नज़र रखता है।
9.मुंबई पुलिस विभाग:- 
मुंबई पुलिस का अध्यक्ष पुलिस आयुक्त होता है, जो आई पी एस अधिकारी होता है। मुंबई पुलिस राज्य गृह मंत्रालय के अधीन आती है। नगर सात पुलिस ज़ोन व सत्रह यातायात पुलिस ज़ोन में बंटा हुआ है, जिनमें से प्रत्येक का एक पुलिस उपायुक्त है। यातायात पुलिस मुंबई पुलिस के अधीन एक स्वायत्त संस्था है। मुंबई अग्निशमन दल विभाग का अध्यक्ष एक मुख्य फायर अधिकारी होता है, जिसके अधीन चार उप मुख्य फायर अधिकारी व छः मंडलीय अधिकारी होते हैं।
10.उच्च न्यायालय :- 
बंबई उच्च न्यायालय का अधिकारक्षेत्र महाराष्ट्र, गोवा, दमन एवं दीव तथा दादरा एवं नागर हवेली के केंद्र शासित प्रदेश भी आते हैं। मुंबई में दो निम्न न्यायालय भी हैं, स्मॉल कॉज़ेज़ कोर्ट –नागरिक मामलों हेतु, व विशेष टाडा (टेररिस्ट एण्ड डिस्रप्टिव एक्टिविटीज़) न्यायालय –जहां आतंकवादियों व फैलाने वालों व विध्वंसक प्रवृत्ति व गतिविधियों में पहड़े गए लोगों पर मुकदमें चलाए जाते हैं।
11.छः लोक सभा और 34 विधान सभा की सीटें :- 
मुम्बई शहर में लोक सभा की छः व महाराष्ट्र विधान सभा की चौंतीस सीटें हैं। मुंबई की महापौर शुभा रावल हैं, नगर निगम आयुक्त हैं जयराज फाटाक एवं शेर्रिफ हैं इंदुसाहनी।
12.संस्कृति :- 
एलीफेंटा की गुफाएं विश्व धरोहर घोषित हैं।
मुंबई शहर की इमारतों में झलक्ता स्थापत्य, गोथिक स्थापत्य, इंडो रेनेनिक, आर्ट डेको और अन्य समकालीन स्थापत्य शैलियों का संगम है। ब्रिटिश काल की अधिकांश इमारतें, जैसे विक्टोरिया टर्मिनस और बंबई विश्वविद्यालय, गोथिक शैली में निर्मित हैं। इनके वास्तु घटकों में यूरोपीय प्रभाव साफ दिखाई देता है, जैसे जर्मन गेबल, डच शैली की छतें, स्विस शैली में काष्ठ कला, रोमन मेहराब साथ ही परंपरागत भारतीय घटक भी दिखते हैं। कुछ इंडो सेरेनिक शैली की इमारतें भी हैं, जैसे गेटवे ऑफ इंडिया। आर्ट डेको शैली के निर्माण मैरीन ड्राइव और ओवल मैदान के किनारे दिखाई देते हैं। मुंबई में मायामी के बाद विश्व में सबसे अधिक आर्ट डेको शैली की इमारतें मिलती हैं। नये उपनगरीय क्षेत्रों में आधुनिक इमारतें अधिक दिखती हैं। मुंबई में अब तक भारत में सबसे अधिक गगनचुम्बी इमारतें हैं। इनमें 956 बनी हुई हैं और 272 निर्माणाधीन हैं। (2009 के अनुसार) 1995 में स्थापित, मुंबई धरोहर संरक्षण समिति (एम. एच. सी.सी) शहर में स्थित धरोहर स्थलों के संरक्षण का ध्यान रखती है। मुंबई में दो यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल हैं – छत्रपति शिवाजी टर्मिनस और एलीफेंटा की गुफाएं शहर के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में नरीमन पाइंट, गिरगांव चौपाटी, जुहू बीच और मैरीन ड्राइव आते हैं। एसेल वर्ल्ड यहां का थीम पार्क है, जो गोरई बीच के निकट स्थित है। यहीं एशिया का सबसे बड़ा थीम वाटर पार्क, वॉटर किंगडम भी है।
13.पर्व और त्योहार:- 
मुंबई के निवासी भारतीय त्यौहार मनाने के साथ-साथ अन्य त्यौहार भी मनाते हैं। दिवाली, होली, ईद, क्रिसमस, नवरात्रि, दशहरा, दुर्गा पूजा, महाशिवरात्रि, मुहर्रम आदि प्रमुख त्यौहार हैं। इनके अलावा गणेश चतुर्थी और जन्माष्टमी कुछ अधिक धूम- धाम के संग मनाये जाते हैं।गणेश-उत्सव में शहर में जगह जगह बहुत विशाल एवं भव्य पंडाल लगाये जाते हैं, जिनमें भगवान गणपति की विशाल मूर्तियों की स्थापना की जाती है। ये मूर्तियां दस दिन बाद अनंत चौदस के दिन सागर में विसर्जित कर दी जाती हैं। जन्माष्टमी के दिन सभी मुहल्लों में समितियों द्वारा बहुत ऊंचा माखान का मटका बांधा जाता है। इसे मुहल्ले के बच्चे और लड़के मुलकर जुगत लगाकर फोड़ते हैं। काला घोड़ा कला उत्सव कला की एक प्रदर्शनी होती है, जिसमें विभिन्न कला-क्षेत्रों जैसे संगीत, नृत्य, रंगमंच और चलचित्र आदि के क्षेत्र से कार्यों का प्रदर्शन होता है। सप्ताह भर लंबा बांद्रा उत्सव स्थानीय लोगों द्वारा मनाया जाता है। बाणागंगा उत्सव दो-दिवसीय वार्षिक संगीत उत्सव होता है, जो जनवरी माह में आयोजित होता है। ये उत्सव महाराष्ट्र पर्यटन विकास निगम (एम.टी.डी.सी) द्वारा ऐतिहाशिक बाणगंगा सरोवर के निकट आयोजित किया जाटा है। एलीफेंटा उत्सव—प्रत्येक फरवरी माह में एलीफेंटा द्वीप पर आयोजित किया जाता है। यह भारतीय शास्त्रीय संगीत एवं शास्त्रीय नृत्य का कार्यक्रम ढेरों भारतीय और विदेशी पर्यटक आकर्षित करता है। शहर और प्रदेश का खास सार्वजनिक अवकाश 1 मई को महाराष्ट्र दिवस के रूप में महाराष्ट्र राज्य के गठन की 1 मई, 1960 की वर्षगांठ मनाने के लिए होता है।
14.पर्यटन उद्योग:- 
समुद्र के किनारे स्थित, मुंबई भारत का सबसे महानगरीय महानगर है। यह भारत का सबसे बड़ा शहर और देश का वित्तीय केंद्र भी है। अन्वेषण के अंतहीन अवसरों के साथ, शहर का सबसे उल्लेखनीय आकर्षण गेटवे ऑफ इंडिया है, जिसे 1911 में शाही यात्रा के रूप में बनाया गया था।मुंबई में भारत में नाइट लाइफ़ का एक अद्भुत नमूना है जिसे एक टीम के साथी के साथ अनुभव किया जा सकता है। 
           आचार्य डा. राधे श्याम द्विवेदी 


लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं । लेखक को अभी हाल ही में इस पावन स्थल को देखने का अवसर मिला था।) 

Monday, June 24, 2024

चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट लखनऊ आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

67 साल की जिन्दगी में चार बार इस चौधरी चरण सिंह अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट लखनऊ से आने जाने के अवसर मिला है।एक बार उत्तराखंड के देहरादून की यात्रा के अवसर पर बिगत नवबर 2023 में और दूसरी बार महाराष्ट्र की यात्रा मई 2024 के अन्तिम सप्ताह में सम्पन्न हुआ था।

       इंडिगो में अपनी जीवन संगनी 
                  के साथ लेखक

दोनो यात्राओं में लगभग 6 माह का अंतर था। पर एस हवाई अड्डे में काफी परिवर्तन देखा गया। प्रतीत होता है अदानी द्वारा इसका पोषण करने से इसमें काफी सुधार देखा गया है। पिछली यात्रा पर बस में बैठ कर यात्री विमान तक जाते थे पर अब विमान तक वातानुकीलित गलियारे से सीधे जुड़ गया है और भी अनेक परिवर्तन देखने को मिला है।

लखनऊ हवाई अड्डे के बारे में :- 

लखनऊ एयरपोर्ट को पहले अमौसी एयरपोर्ट के नाम से जाना जाता था, यह उत्तरी भारत का एक प्रमुख विमानन प्रवेश द्वार है। यह एक नागरिक हवाई अड्डा है। यहाँ कस्टम्स विभाग की आफिस भी है। इसकी हवाई पट्टी एस्फाल्ट से निर्मित है। इसकी प्रणाली यांत्रिक है। इसकी उड़ान पट्टी की लम्बाई 7200 फी. है। यह एयरपोर्ट लखनऊ शहर की सेवा करता है और इसे 2008 में भारत के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के नाम पर एक नया नाम दिया गया था। यह एक अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट है जिसके तीन परिचालन टर्मिनल (T1, T2 औरT3) से हो रहा हैं। चौथे टर्मिनल टी4 भी प्रतावित है।इससे इसका पर्याप्त विस्तार हो जाएगा। इसमें विभिन्न वस्तुओं के आयात और निर्यात के लिए एक कार्गो टर्मिनल भी है, जिसमें कीमती सामान, खराब होने वाली वस्तुएँ, ऑटोमोबाइल पार्ट्स और बहुत कुछ शामिल हैं।

लखनऊ एयरपोर्ट की स्थापना 1986 में :- 

लखनऊ एयरपोर्ट की स्थापना 1986 में सिर्फ़ एक टर्मिनल के साथ की गई थी। बाद में 1996 में AAI ने एयरपोर्ट पर बुनियादी ढांचे का विस्तार किया और आखिरकार 2012 में दूसरा टर्मिनल चालू हो गया। दूसरे टर्मिनल को 19 मई 2012 को अंतरराष्ट्रीय उड़ानों की मेजबानी के लिए हरी झंडी दी गई।इसके अलावा, राज्य सरकार ने बढ़ते यात्री यातायात को संभालने के लिए 2016 में हवाई अड्डे पर टर्मिनल 3 के निर्माण की घोषणा की। इस परियोजना को 2018 में भारत सरकार ने मंजूरी दी थी और इसे 13.83 बिलियन रुपये में पूरा किया जाएगा।लखनऊ हवाई अड्डे पर 2,744 मीटर लम्बा रनवे 27, आईएलएस कैट IIIB सुविधाओं से सुसज्जित है, जिससे कम दृश्यता वाले मौसम में भी विमानों की सुरक्षित लैंडिंग संभव हो पाती है।
     उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में स्थित चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट ने वैश्विक स्तर पर होने वाली रैंकिग में अपनी एक और उपलब्धी दर्ज कराई है. अमौसी स्थित चौधरी चरण सिंह इंटरनेशनल एयरपोर्ट ने 50 लाख से 1.5 करोड़ यात्री क्षमता की श्रेणी में बेहतर कस्टमर सर्विस के मामले में एशिया में पहला स्थान हासिल किया है!

पहले भी मिल चुका है एयरपोर्ट को पुरस्कार :- 

इसके पहले लखनऊ एयरपोर्ट को वर्ष 2018 में 25 से 50 लाख यात्रियों के वर्ग में एसीआई ने एयरपोर्ट सर्विस क्वालिटी पुरस्कार से सम्मानित किया था. उस वर्ष देश के 6 एयरपोर्ट ने एएसक्यू में जगह बनाई थी. इनमें मुम्बई, दिल्ली एयरपोर्ट शामिल थे। वर्ष 2016 में भी लखनऊ एयरपोर्ट यह पुरस्कार हासिल कर चुका है. यात्रियों ने हर बार एयरपोर्ट पर मिलने वाली सुविधाओं, कर्मचारियों, इमिग्रेशन और कस्टम के व्यवहार पर संतोष जताते हुए सर्वेक्षणों में भारतीय एयरपोर्टों को ज्यादा अंक दिए हैं.

9 मार्च 2024 को टी-3 टर्मिनल का उद्घाटन हुआ था:- 

एयरपोर्ट के नए टर्मिनल टी-3 का पीएम नरेंद्र मोदी रविवार को आजमगढ़ से रिमोट से शुभारंभ किया ।
 नए टर्मिनल का निर्माण कार्य कोविड के पहले शुरू हुआ था, पर कोरोनाकाल की वजह से सुस्त हो गया था। इसका निर्माण कार्य 1400 करोड़ से शुरू हुआ था, जिसकी लागत बढ़कर 3900 करोड़ रुपये पहुंच गई है। टर्मिनल का एक हिस्सा बनकर तैयार हो गया है। शेष कार्य पूरा होने में समय लगेगा। ऐसे में टर्मिनल के तैयार हो चुके हिस्से का शुभारंभ किया जाएगा।

8 जून 2024 से अंतरराष्ट्रीय उड़ाने शुरू हुआ:- 

चौधरी चरण सिंह अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के रूप में भी जाना जाने वाला, अडानी के स्वामित्व वाला लखनऊ हवाई अड्डा निवासियों की घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा आवश्यकताओं को पूरा करता है। इस एयरपोर्ट पर शनिवार यानी 8 जून 2024 से अंतरराष्ट्रीय उड़ाने शुरू हो जाएंगे. अभी तक अमौसी एयरपोर्ट के टर्मिनल 3 से सिर्फ घरेलू विमानों का संचालन ही हो रहा था. शनिवार की सुबह 6 बजे से यहां से फ्लाइट टेक ऑफ और लैंड करना शुरू हो जाएंगी. सबसे पहले फ्लाई दुबई, एयर इंडिया एक्सप्रेस और इंडिगो एयरलाइंस की पहले दिन इंटरनेशनल उड़ने टर्मिनल 3 से रवाना होंगी. अभी तक अंतरराष्ट्रीय उड़ानों का संचालन टर्मिनल 1 से हो रहा है. 
लखनऊ के एयरपोर्ट के टर्मिनल 3 पर अंतरराष्ट्रीय उड़ानों के लिए अलग-अलग कंपनियों ने अपने बोर्डिंग काउंटर बनाने शुरू कर दिए हैं. अभी तक जिन कंपनियों ने काउंटर बनाया है उसमें इंडिगो एयरलाइंस, एयर इंडिया एक्सप्रेस, सऊदी एयरलाइंस, ओमान एयर, थाई एयर एशिया, फ्लाईनास, सलाम एयर और फ्लाई दुबई जैसी कंपनियों शामिल हैं. इन कंपनियों ने अपने बोर्डिंग काउंटर के साथ ही इमीग्रेशन और कस्टम के ऑफिस भी शिफ्ट कर लिए हैं.

इन देशों की फ्लाइट चलती है:- 

लखनऊ से अभी तक जिन देशों में फ्लाइट जाती है वह देश हैं- अबू धाबी, दुबई, शारजाह, दम्मन, जेद्दा, मस्कट, रियाद, रस अल खैमाह और बैंकॉक. टर्मिनल 3 का उद्घाटन देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 10 मार्च 2024 को किया था. जानकारी के मुताबिक करीब 2400 करोड रुपए की लागत से टर्मिनल 3 का पहला चरण बन चुका है.
इसकी क्षमता प्रतिवर्ष 80 लाख यात्रियों की है, वहीं दूसरे चरण का काम जारी है और दूसरा चरण बनने के बाद यह क्षमता बढ़ाकर प्रतिवर्ष एक करोड़ 30 लाख यात्रियों की हो जाएगी. एक आंकड़े के मुताबिक टर्मिनल 3 से लगभग 13,000 से अधिक लोगों को रोजगार मिलेगा. लखनऊ एयरपोर्ट के प्रवक्ता ने कहा, "हम एयरलाइन्स के साथ मिलकर यह सुनिश्चित करने के लिए काम कर रहे हैं कि टर्मिनल 3 पर जाने का काम बिना किसी परेशानी के हो। इस बात पर जोर दिया जा रहा है कि घरेलू उड़ानों से आने वाले यात्रियों को टर्मिनल 3 पर जाने के बारे में समय पर पर्याप्त जानकारी दी जाए।"

10,400 करोड़ से बनेगा टी-4 टर्मिनल:- 

भविष्य की जरूरतों को देखते हुए अमौसी एयरपोर्ट प्रशासन एक और टर्मिनल की रूपरेखा तैयार कर चुका है। टी-3 के बन जाने के बाद चौथे टर्मिनल को बनाया जाएगा, जो और भी भव्य व सुविधाओं से लैस होगा। इस टर्मिनल को बनाने पर कुल 10,400 करोड़ रुपये की लागत आएगी। इसकी पर्यावरणीय अनुमति पहले ही ली जा चुकी है।

Tuesday, June 18, 2024

स्मृतिशेष श्री शोभाराम दूबे एक कुशल आडिट अधिकारी -- आचार्य डा.राधे श्याम द्विवेदी


संघर्षों को झेला हरदम कर्तव्यों से कभी मुख मोड़ा नहीं।
दुख कष्ट रहा चोली दामन का सुख का कोई परवाह नहीं।
अर्जुन सा लक्ष्य सटीक रहा भटकन का कोई राह नही।
युग युग में एसा कोई कोई होता लोगों को होता भान नहीं।।

तुम एक अकेले गांव क्षेत्र में अधिकारी का तमगा लिए थे। 
तुम एक अकेले अपने विभाग में सच्चे कर्म किए हुए थे।
तुम अपने हित को तिलांजलि देकर सिद्धांत के पक्के थे।
मदद तो करी कइयों की तुम दया पुंज और कठोर भी थे।।
96वा जन्म दिवस पर सादर स्मरण :- 

श्री शोभाराम दूबे जी का जन्म 15 जून 1929 ई. को उत्तर प्रदेश के बस्ती जिला के हर्रैया तहसील के कप्तानगंज विकास खण्ड के दुबौली दूबे नामक गांव मे एक कुलीन परिवार में हुआ था। उच्च शिक्षा के लिए उन्हें अपने पिता पंडित मोहन प्यारे जी के साथ लखनऊ में रहना पड़ा । उन्होने 1945 में लखनऊ के क्वींस ऐग्लो संस्कृत हाई स्कूल से हाई स्कूल की परीक्षा उस समय ‘प्रथम श्रेणी’ से तथा इन्टर मीडिएट परीक्षा 1947 में द्वितीय श्रेणी में कामर्स से उत्तीर्ण किया था।

पारिवारिक जीवन :-

दूबे जी अपने पैतृक जन्मभूमि दुबौली दूबे पर कम रहते थे। कप्तान गंज ब्लाक के मरवटिया पांडे में उनकी शादी हुई थी। इस नेवासा वाले जगह मरवातिया पाण्डेय की उचित देख रेख के लिए दूबे जी को ज्यादा समय वहीं देना पड़ता था।

सरकारी सेवा में:-

दूबेजी उत्तर प्रदेश के सहकारिता विभाग में सरकारी सेवा में लिपिक पद पर प्रारंभिक नियुक्ति पाये । बाद में वे विभागीय परीक्षा देकर लिपिक पद से आडीटर के पद पर अपनी नियुक्ति पा गये थे। अब उनका कार्य का दायरा बदल गया और अपने विभाग के नामी गिरामी अधिकारियों में उनका नाम शुमार हो गया था। वह अपने सिद्धान्त के बहुत ही पक्के थें उन्होने अनेक विभागीय अनियमितताओं को उजागर किया था । इसका कोप भाजन भी उन्हें बनना पड़ा था। उस समय उत्तराखण्ड उत्तरप्रदेश का ही भाग था। उनको टेहरी गढ़वाल और पौड़ी गढ़वाल भी जाना पड़ा था। वैसे वे अधिकांशतः पूर्वी उत्तर प्रदेश में ही अपनी सेवाये दियें हैं। बस्ती उनका गृह जनपद था जहां वे कभी रहे नहीं परन्तु गोण्डा, गोरखपुर, देवरिया, बलिया, आजमगढ, बहराइच, गाजीपुर, जौनपुर तथा फैजाबाद आदि स्थानों पर एक से ज्यादा बार अपना कार्यकाल बिताया है। वे का आडीटर के बाद सीनियर आडीटर के पद पर प्रोन्नति पा गये थे। सीनियर आडीटर के जिम्मे जिले की पूरी जिम्मेदारी होती थी। बाद में यह पद जिला लेखा परीक्षाधिकारी के रुप में राजपत्रित हो गया था। इण्टरमीडिएट पास दूबे जी अपने सेवा के दौरान ने अवध विश्वविद्यालय फैजाबाद से संबद्ध किसान डिग्री कालेज बहराइच से 1975 में बी. ए. की उपाधि प्राप्त की थी। 

उ.प्र. राज्य परिवहन में प्रतिनियुक्ति :-

सहकारिता विभाग में अच्छी छवि होने के कारण उनकी प्रतिनियुक्ति पर उ. प्र. राज्य परिवहन में भी कार्य करने का अवसर मिला था। वे क्षेत्रीय प्रबन्धक के कार्यालय में बैठते थे और उस मण्डल के आने वाले सभी जिला स्तरीय कार्यालयों के लेखा का सम्पे्रेक्षण करते थे। उनकी नियुक्ति कानपुर के केन्द्रीय कार्यशाला में 23.12.1982 को हुआ था। यहां से वे औराई तथा इटावा के कार्यालयों के मामले भी देखा करते थे। अपनी सेवा का शेष समय बाबूजी ने राज्य परिवहन में पूरा किया था। 1985 में वह कानपुर से गोरखपुर कार्यालय में सम्बद्ध हो गये थे। यहां से वे आजमगढ़ के कार्यालय के मामले भी देखा करते थे। उत्तर प्रदेश परिवहन विभाग में उन्होंने लगभग साढ़े चार वर्षों तक अपनी सेवाएं दी थी। अन्त में गोरखपुर कार्यालय से वे 30.06.1987 में सेवामुक्त हुए थे। 

स्टेटऑफ़ यूपी बनाम विश्वनाथ कपूर' केस के सूत्रधार:-

फैजाबाद में सहकारिता विभाग का एक बहुत बड़ा घोटाला जिसमें कांग्रेसी नेता विश्वनाथ कपूर संलिप्त थे, श्री दूबे जी के द्वारा ही उजागर हुआ था। अयोध्या का क्षेत्र फैजाबाद सदर विधानसभा क्षेत्र के तहत तब आता था।1967 के चुनाव में अयोध्या अलग विधान सभा सीट बना था। जहां 1969 में कांग्रेस के विश्वनाथ कपूर जीतने में कामयाब रहे। उनके द्वारा हुए घोटाले का स्थानीय और फिर उच्च न्यायालय में विचारण हुआ था। जिला सहकारी बैंक फैजाबाद, जिसमें श्री विश्वनाथ कपूर, अधिवक्ता प्रबंध निदेशक , श्री जोखन सिंह कैशियर, एलन खान कार्यवाहक प्रबंधक और महराज बक्स सिंह सामग्री सहायक लेखाकार थे। राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित यह एक निगम है । इसलिए उक्त आरोपी गण भारतीय दंड संहिता की धारा 21 खंड 12वीं के अर्थ में लोक सेवक थे।भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के अधीन हाई कोर्ट में ''स्टेट ऑफ़ यूपी बनाम विश्वनाथ कपूर'' और अन्य केस चला था। इसका निस्तारण 14 जनवरी 1980 को न्यायमूर्ति टी मिश्रा द्वारा हुआ था। इस संदर्भित प्रश्न का न्यायमूर्ति का उत्तर इस प्रकार रहा है - " यूपी सहकारी समिति अधिनियम के तहत पंजीकृत एक सहकारी समिति एक केंद्रीय, प्रांतीय या राज्य अधिनियम द्वारा या उसके तहत स्थापित निगम नहीं है ।" इस उत्तर के साथ कागजात माननीय एकल न्यायाधीश के समक्ष रखे जाने का आदेश पारित किया गया था। उक्त आरोपीगण भारतीय दंड संहिता की धारा 21 खंड 12वीं के अर्थ में लोक सेवक थे।जो इस घोटाले के जिम्मेदार बनाए गए।

सिस्टम ना सुधारने की नसीहत:-

इस प्रकार विभागीय घोटालों को प्रकाश में लाने पर मुख्य लेखा परीक्षा अधिकारी श्री अवधेश चंद्र दुबे ने बाबू जी को लखनऊ में बुलाकर सिस्टम को सुधारने को छोड़ अपना कार्यकाल सामान्य रूप में बिताने की नसीहत दी थी।

परम तत्व में समाहित :-

17 जनवरी 2011 को श्री शोभा राम दूबे ने अपना पंच भौतिक शरीर हमेशा हमेशा के लिए त्याग कर परम तत्व में बिलीन कर लिया। उनके कार्य शैली और कड़क मिजाज की चर्चा अब भी विभाग में होती रहती है।
         बाबू जी को परमधाम गए तेरह वर्ष व्यतीत हो गए। उनकी 96 वी जन्म तिथि पर श्रद्धा के प्रसून अर्पित करते हुए उनके शांतिमय पारलौकिक जीवन की परमपिता से प्रार्थना करता हूं।

डॉ. राधे श्याम द्विवेदी
नोवा हॉस्पिटल,
कैली रोड, बस्ती 272002 ( उत्तर प्रदेश)
 ई मेल: rsdwivediasi@gmail.com
मोबाइल नंबर 8630778321
वर्डसैप्प नंबर 9412300183


Saturday, June 15, 2024

राजा बाहु उपनामअसित ( राम के पूर्वज 23) आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी

                               और्व ऋषि 

हैहय राजा ने अयोध्या के इच्छाकु राजा बाहु को भगाया 
             तो ऋषि और्व ने राजा सगर को जन्माया 

श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंद अध्याय 3 का भाग दो
के अनुसार अयोध्या के राजा त्रिशंकु के पुत्र हरिश्चंद्र थे।
उनके पुत्र थे रोहिताश्व , उनके पुत्र हरित ; उनके पुत्र कुञ्कु थे, जिसके विजय और सुदेव नाम के दो पुत्र थे । विजय का पुत्र रुरुक था, और रुरुक का पुत्र वृक था , वृक का पुत्र सुबाहु बाहु या बाहुक था। 
           श्रीमद् भागवत पुराण से इस क्रम से वंशावली मिलती है -- "हरिश्चंद्र → रोहित → हरित → चंपा → सुदेवा → विजया → भरुका → वृक → बाहुक आदि आदि।"

हैहय वंश के राजाओ पर एक दृष्टि :- 

हैहय वंश में बुध, पुरूरवा, नहुष, ययाति, यदु, हैहय, कृतवीर्य, सहस्रार्जुन, कृष्ण और पाण्डव जैसे धर्मवीर, शक्तिशाली, प्रतापी और दानी राजा हुए हैं| हरिवंश पुराण के अनुसार हैहय, सहस्राजित का पौत्र तथा यदु का प्रपौत्र था। पुराणों में हैहय वंश का इतिहास चंद्रदेव की तेईसवी पीढ़ी में उत्पन्न वीतिहोत्र के समय तक पाया जाता है। श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा की बारहवी पीढ़ी में हैहय का जन्म हुआ। हरिवंश पुराण के अनुसार ग्यारहवी पीढ़ी में हैहय तीन भाई थे जिनमें हैहय सबसे छोटे भाई थे।पुराणों में इस वंश की पाँच शाखाएँ कही गई हैं —ताल- जंघ, वीतिहोत्र, आवंत्य, तुंडिकेर और जात । 
        हैहयों ने शकों के साथ साथ भारत के अनेक देशों के जीता था ।विक्रम संवत् ५५० और ७९० के बीच हैहयों का राज्य चेदि देश और गुजरात में रहा। इस वंश का कार्तवीर्य अर्जुन प्रसिद्ध राजा था , जिसने रावण को हराया था। इसकी राजधानी वर्तमान मध्य प्रदेश में नर्मदा नदी के तट पर महिष्मती थी। त्रिपुरी के कलचुरी वंश को हैहय वंश भी कहा जाता है। बाहु नामक सूर्यवंश के राजा और सगर के पिता को हैहयों और तालजंधों ने परास्त कर देश से निष्कासित कर दिया था। 
 (महाभारत, शान्तिपर्व, अध्याय 57.)

अयोध्या के राजा थे असित :- 

 राजा बाहु नाम से मिलती जुलती थोड़ा इतर असित की वंशावली भी मिलती है। असित सूर्यवंश के राजा थे, भरत के पुत्र और राम के पूर्वज थे। बाहु इक्ष्वाकु वंश के एक राजा वृक (भरत) से पैदा हुए थे। सुबाहु ( जैन नाम जीतशत्रु)नामक एक इक्ष्वाकु राजा और उसकी रानी यादवी ( जैन नाम विजया देवी) ने अयोध्या से भागकर और्वा के आश्रम में शरण ली , जब अयोध्या पर हैहय वंश ने कब्ज़ा कर लिया था।

पिता वृक (भरत) के समय से ही युवराज बाहु (असित) का दबदबा:- 

वृक एक चक्रवर्ती सम्राट थे । उसने अपने पुरोहितों की मदद से अश्वमेध यज्ञ कराया। अश्व की रक्षा की जिम्मेदारी युवराज बाहु निभा रहे थे। उस समय अयोध्या के पड़ोस में मगध में शक्तिसेन का राज्य भी था। वह अयोध्या नरेश वृक की अधीनता स्वीकार नही करना चाहता था। उनकी ही प्रेरणा या आदेश से शक्तिसेन की बीरांगना पुत्री युवरानी सुशीला ने यज्ञ का अश्व पकड़ लिया था। युवराज बाहु ने पहले अश्वसेन से अश्व लौटाने के लिए सन्देश वाहक के माध्यम से सन्देश भिजवाया । इसे शक्तिसेन अस्वीकार कर दिया। युवराज बाहु और शक्तिसेन के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमे अयोध्या के युवराज विजई हुए। शक्तिसेन शरणागत हुआ।उसे अभय दान मिला।उसने अपनी पुत्री का विवाह युवराज बाहु से करके राजा वृक का अश्व लौटा दिया और यज्ञ पूर्ण हुआ। बाहु की प्रथम पत्नी नंदनी निसंतान थी। उसने भी युवराज बाहु को युवरानी सुशीला से विवाह करने की अनुमति प्रदान किया था।
(ये कथानक रामानंद सागर के जय गंगा मैया के दृश्यों पर आधारित है।

धर्म परायण राजा बाहु :- 

 प्रारम्भ में राजा बाहु धर्म परायण था। वह प्रजा का हित और परोपकार के धर्म को निभाता भी था, परन्तु समय के साथ साथ उसमे भोग विलास की प्रवृत्ति बलवती होती गई। राजा अधर्म में लिप्त रहने लगा , इसलिए उसे हैहय , तालजंघ , शक , यवन , कंबोज , पारद और पहलवों ने गद्दी से उतार दिया था । उसी समय में भृगुवंशी ब्राह्मण ने भी क्षत्रिय राजाओं का नाश किया था ।

हैहय राजा ने अयोध्या के इच्छाकु राजा बाहु को भगाया :- 
 राजा बाहु के शत्रुओं ने उनका राज्य और उनकी सारी संपत्ति छीन ली। परेशान होकर वह अपनी पत्नियों के साथ घर छोड़कर हिमालय के जंगल में चला गया। नंदनी और सुशीला दोनों पत्नियां इस समय गर्भवती थीं।राजकीय और धार्मिक कार्यों में नंदनी को प्रथम पत्नी होने के कारण प्रमुखता दी जाती थी। इसे छोटी रानी सहन नही कर पाती थी। छोटी रानी कालिंदी(सुशीला) एक दासी के बहकावे में आकर पटरानी के गर्भ रोकने की इच्छा जब यादवी अपनी गर्भावस्था के सातवें महीने में थीं, तब उनकी सह-पत्नी ने उन्हें जहर दे दिया, जिसके कारण वह सात साल तक गर्भवती रहीं। जिसके प्रभाव से उसका गर्भ सात वर्ष तक गर्भाशय ही में रहा । इस दीर्घ अवधि में राजा बाहु और नंदनी बहुत ही परेशान रहने लगे थे। अन्त में, बाहु वृद्धवस्था के कारण और्व मुनि के आश्रम के समीप अपना शरीर त्याग स्वर्ग सिधार गए।
आत्मदाह ( सती ) की तैयारी को ऋषि और्व ने रोका :- 

बाहु की मृत्यु के बाद, उनकी पत्नी ने परंपरा के अनुसार उनकी चिता पर आत्मदाह करने का फैसला किया , लेकिन और्वा ने उन्हें यह बताकर रोक दिया कि वह गर्भवती हैं। कुछ महीनों के बाद, उनके एक बेटे का जन्म हुआ, जिसका नाम और्वा ने सगर रखा , जिसका शाब्दिक अर्थ है 'जहर वाला', इस तथ्य के कारण कि यादवी को गर्भावस्था के दौरान जहर दिया गया था। 
(www.wisdomlib.org (2019-01-28). "ऑर्वा की कहानी" . www.wisdomlib.org . 2022-11-02 को लिया गया .)
           तब उसकी पटरानी ने चिता बनाकर उस पर पति का शव स्थापित कर उसके साथ सती होने का निश्चय किया । ऋषि और्व, जो भूत, वर्तमान और भविष्य की सभी चीजों को जानते थे। वे अपने आश्रम से बाहर आए और उसे आत्महत्या करने से मना करते हुए कहा, अयि साध्वि ! रुको! रुको! तू ऐसे दुस्साहस का उद्योग न कर । इस व्यर्थ दुराग्रह को छोड़ ! यह अधर्म है।तेरे उदर में सम्पूर्ण भूमण्डल का स्वामी, अत्यन्त बली पराक्रमशील, अनेक यज्ञों का अनुष्ठान करने वाला और एक बहादुर राजकुमार, अपने शत्रुओं का नाश करने वाला,कई राज्यों और विश्व का चक्रवती राजा हैं। वह अनेक यज्ञों की हवन करने वाला ऐसा दुस्साहस पूर्ण कार्य करने की मत सोचो!” 
 

        च्वयन आश्रम पर अदभुत बालक का जन्म :-    

ऐसा कहे जाने पर वह अनुमरण ( सति होने ) के आग्रह से विरत हो गयी । उनके आदेशों का पालन करते हुए, उसने अपना इरादा त्याग दिया। अपना आशीर्वाद देते हुए भगवान् और्व रानी को अपने आश्रम पर ले आये । कुछ समय बाद वहाँ एक बहुत तेजस्वी बालक का जन्म हुआ। वह अपने शरीर में विष के साथ पैदा हुआ । ऋषि द्वारा भविष्यवाणी के अनुसार, सागर का जन्म उसके शरीर में जहर के साथ हुआ। उसके साथ ही उसकी माँ को दिया गया विष भी बाहर निकाल दिया गया; और और्व ने जन्म के समय आवश्यक समारोह करने के बाद, उसे इस कारण से सगर (सा, 'साथ' और गर , 'विष' से) नामकरण दिया गया। 
संस्कार और शिक्षा:- 

भगवान् और्व ने उसके जातकर्म आदि संस्कार कर उसका नाम ' सगर' रखा तथा उसका उपनयन संस्कार कराया।
 उस पवित्र ऋषि ने अपने वर्ग की रीति के साथ उसका अभिषेक मनाया। और्व ने ही उसे वेद, शस्त्रों का उपयोग सिखाया एवं उसे भार्गव नामक आग्नेय शस्त्रों विशेष रूप से अग्नि के जिन्हें भार्गव के नाम के पर रखा गया ।
     ऋषि और्व ने उसे तालजंघा , यवन , शक , हैहय और बर्बरों के जीवन लेने से रोका । लेकिन उसने उन्हें अपना बाह्य रूप बदलने पर मजबूर कर दिया। उसने और्व की सलाह के अनुसार अश्वमेध यज्ञ किया।
                   आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 

Friday, June 14, 2024

सूर्यवंशी राजा रुरक, भारूका या ब्रहुक(राम के पूर्वज 21) आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी

        श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंद अध्याय 3 का भाग दो
के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा हरिशचंद्र के पुत्र का नाम रोहित था। रोहित के पुत्र को हरित के नाम से जाना जाता था, और हरित का पुत्र चाचू या चम्पा था। चाचू या चम्पा से विजय एवं वासुदेव उत्पन्न हुए थे। विजय से रूरक और रुरुक से वृक का जन्म हुआ । 
       भागवत पुराण से भूगोल में वंशावली इस प्रकार है - 
हरिश्चंद्र → रोहित → हरित → चंपा → सुदेवा → विजया → भरुका → वृक → बाहुका।

        रुरुक को भारूका या ब्रहुक भी कहा गया है। रुरुक धर्म और धन ( अर्थ ) के बारे में विस्तार से जानने वाला राजा कहा गया है।

        इस राजा के बारे में बहुत ही कम संदर्भ मिलता है।जिस किसी सज्जन को और जानकारी हो वह इस ब्लॉग के लेखक को उपलब्ध कराने की कृपा करे जिससे आने वाले दिनों में लोगों को अधूरी से पूरी जानकारी उपलब्ध कराया जा सके।

                 आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 

राजा वृक धृतक या भरत II (राम के पूर्वज 22) आचार्य डॉ. राधे श्याम द्विवेदी


        श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंद अध्याय 3 का भाग दो
के अनुसार अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र से रोहित दसवां रोहिताश्व से हरित उत्पन्न हुई हरित से चाचू ,चाचू से विजय एवं वासुदेव उत्पन्न हुए । विजय से पूरक तथा रुद्र से वृक का जन्म हुआ । वृक रुरुक का पुत्र था और बाहु उससे पैदा हुए थे । भागवत पुराण से भूगोल में वंशावली इस प्रकार है - हरिश्चंद्र → रोहित → हरित → चंपा → सुदेवा → विजया → भरुका → वृक → बाहुक।
            वृकके बाहु नामक पुत्र हुआ । वह अपने पिता के राज काज में सहयोग करता था। एक अन्य संदर्भ में। -- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए। राजा वृक और भरत II को एक ही राजा का बोध होता है। वायुपुराण में राजा धृतक का उल्लेख मिलता है।
      वृक एक चक्रवर्ती सम्राट था।उसने अपने पुरोहितों की मदद से अश्वमेध यज्ञ कराया। अश्व की रक्षा की जिम्मेदारी युवराज बाहु निभा रहे थे। उस समय मगध में राक्षस राज शक्तिसेन का राज्य भी था।वह अयोध्या नरेश वृक की अधीनता स्वीकार नही करना चाहते थे। उनकी ही प्रेरणा या आदेश से राक्षस राज शक्तिसेन की बीरांगना पुत्री युवरानी सुशीला ने पकड़ लिया था। युवराज बाहु और शक्तिसेन के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमे अयोध्या के युवराज विजई हुए। शक्तिसेन शरणागत हुआ।उसे अभय दान मिला।उसने अपनी पुत्री का विवाह युवराज बाहु से करके राजा वृक का अश्व लौटा दिया और यज्ञ पूर्ण हुआ।
युवराज बाहु की प्रथम पत्नी नंदनी निसंतान थी।उसने भी युवराज बाहु को युवरानी सुशीला से विवाह करने की अनुमति प्रदान किया था।
(ये कथानक रामानंद सागर के जय गंगा मैया के दृश्यों पर आधारित है।)


                   आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 

Wednesday, June 12, 2024

रावण और अयोध्या के राजा अनरण्य का युद्ध स्थल रौनाही अयोध्या (राम के पूर्वज 20 )आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी


                      अयोध्या के राजा अनरणव 

      सनातन, जैन और इस्लाम धर्मों में पूज्य स्थल 
                    अयोध्या का रौनाही 
मैने "अयोध्या के राजा पुरुकुस्त से त्रिबंधन तक की कहानी"     ( राम के पूर्वज 12) नामक अपने पूर्व प्रकाशित ब्लाग में लिखा था जिसमे अयोध्या के राजा अनरण्य और रावण के बीच हुए युद्ध का वर्णन किया गया है। कुछ और नवीनतम जानकारी आ जाने से इसे पुनः संशोधन के साथ प्रकाशित किया जा रहा है।

अवस्थिति : अयोध्या के 84 कोसी परिक्रमा सीमा में:- 

रौनाही उपरहार उत्तर प्रदेश के फैजाबाद जिले की सोहावल तहसील में स्थित एक बड़ा गाँव है, जिसमें वर्तमान समय में कुल 1436 परिवार रहते हैं। यह जिला मुख्यालय फैजाबाद से पश्चिम की ओर 20 KM दूर , अयोध्या धाम से 24 किमी. दूर, सोहावल से 4 KM दूर और राज्य की राजधानी लखनऊ से 119 KM दूर स्थित है। यह सनातन धर्म के श्री राम के पूर्वज राजा अनरण्य , राजा रघु , राजा दशरथ मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम और जैन धर्म के 15वे तीरथंकर भगवान धर्मनाथ से किन्ही ना किन्ही रूपों में जुड़ा तीर्थ स्थल है जो वर्तमान समय में प्रचार प्रसार न होने के कारण आम जन मानस की नजरों में ओझल हो चुका है। इसे लोगों की जानकारी में लाने के लिए ये रिसर्च जानकारी साझा करने का प्रयास कर रहा हूं।

जैन धर्म के तीर्थंकर और कल्याणकों का रतनपुरी केंद्र:- 

सरयू नदी के तट पर बसा रौनाही गांव जैन धर्म के लोगों की आस्था का केंद्र है। श्वेतांबर व दिगंबर दोनों समुदायों के 15वें तीर्थंकर धर्मनाथ प्रभु स्वम और उनके चार कल्याणक च्यवन, जन्म, दीक्षा व केवल ज्ञान यहीं पर संपन्न हुए थे। गांव में विशालकाय श्वेतांबर जैन मंदिर में राजा संप्रति के काल की 25 सौ वर्ष पुरानी प्रतिमा मौजूद है। यहां श्री धर्मनाथ दिगम्बर जैन तीर्थक्षेत्र, रतनपुरी , पो0 रोनाही, जिला- फैजाबाद,उ.प्र.में आज भी देखा जा सकता है। यह पौराणिक रतनपुर रोनाही थाना से 3 किमी. अन्दर ग्राम रतनपुरी में स्थित है। यह क्षेत्र लखनऊ फैजाबाद रेल मार्ग सोहावल स्टेशन से 12 किमी0 की दूरी पर है। जैन मन्दिर के पुजारी चंद्रशेखर तिवारी ने बताते हैं कि सत्यनारायण कथा में वर्णित तीर्थ रतनपुरी यही है। सरयू नदी के निकट बसे इसी गांव का नाम कालांतर में रौनाही पड़ गया।
पन्द्रहवें तीर्थंकर : भगवान धर्मनाथ :- 

जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में एक रत्नपुर नाम का नगर था, जिसमें कुरुवंशीय( कही कही इन्हे इच्छाकु वंशीय कहा गया है) काश्यप गोत्रीय महाविभव संपन्न भानु महाराज राज्य करते थे, उनकी रानी का नाम सुप्रभात था। रानी सुप्रभा के गर्भ में वह अहमिन्द्र वैशाख शुक्ल त्रयोदशी के दिन अवतीर्ण हुए और माघ शुक्ल त्रयोदशी के दिन रानी ने भगवान को जन्म दिया। इन्द्र ने धर्मतीर्थ प्रवर्तक भगवान को 'धर्मनाथ' के रूप में सम्बोधित किया था।उनकी ऊंचाई 45 धनुष थी। लंबे जीवन काल के बाद, उन्होंने दीक्षा ली और निर्वाण प्राप्त किया। किन्नर यक्ष देव और कंदर्प यक्षिणी देवी क्रमशः उनके शासन देव और शासन देवी हैं।
         धर्मनाथ वर्तमान युग (अवसरपिणी) के पंद्रहवें जैन तीर्थंकर थे। जैन मान्यताओं के अनुसार, वे एक सिद्ध बन गए , एक मुक्त आत्मा जिसने अपने सभी कर्मों को नष्ट कर दिया है। राजा भानु, महारानी सुप्रभा और परिवार के अन्य राज सदस्य भगवान धर्मनाथ के जन्म के पूर्व धर्म-कर्म में लगे रहते थे। वहां नित्य हो रहे यज्ञ-हवन, व्रत-उपासना दान-पुण्य आदि के चलते पूरे राज्य में धार्मिक वातावरण निर्मित हो गया था। उसी के फलस्वरूप शिशु के जन्म के बाद उनका नाम धर्मनाथ पड़ गया।धार्मिक वातावरण और राजसी वैभव के बीच धर्मनाथ का लालन-पालन हुआ। युवावस्था में आने पर राजा भानु ने उनका विवाह कर राज्याभिषेक भी कर दिया।
    भगवान बनने से पूर्व धर्मनाथ के शासन काल में पूरे राज्य में अधर्म का नामोनिशान तक नहीं था। वे साक्षात धर्म के अवतार थे। लाखों वर्ष तक धर्मपूर्वक शासन करने के पश्चात एक दिन उन्हें उल्कापात देखकर बोध हो गया कि उनका जन्म केवल भोग-विलास के लिए नहीं, बल्कि जनकल्याण के लिए हुआ है। उसी क्षण उन्होंने राजपाठ त्यागने का निर्णय लिया।
      अत: अपने पुत्र सुधर्म का राज्याभिषेक करके स्वयं म‍ुनि-दीक्षा लेकर वन विहार कर लिया। एक वर्ष के घोर तप के पश्चात पौष माह की पूर्णिमा के दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान प्राप्त हुआ और वे त्रिकालदर्शी तीर्थंकर बन गए। भगवान धर्मनाथ के अनुयायियों की संख्या लगभग 8 लाख थी जिनमें गणधर, शिक्षक, कैवल्य ज्ञानी, मुनि, आर्यिकाएं, श्राविकाएं और श्रावक शामिल थे।
      जैन धर्मावलंबियों अनुसार आपका प्रतीक चिह्न- वज्र है। वज्र कठोरता का प्रतीक भी माना गया है, जो हमें यह शिक्षा देता है कि ‍जीवन में हमें कितना भी दुख क्यों ना मिले, फिर भी हमें वज्र के समान कठोर रहकर दुख को सहन करना चाहिए और घोर दुख में भी धर्म के पदचिह्नों पर चलना चाहिए।मनुष्य रूप में भगवान धर्मनाथ दस लाख वर्ष तक पृथ्वी पर रहें। फिर ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष क‍ी चतुर्थी के दिन सम्मेदशिखरजी पर निर्वाण प्राप्त करके सदा के लिए मुक्त हो गए। 

राम जी के पूर्वजो की लीला स्थली,

राजा अनरण्य का रावण को शाप:- 

सनातन धर्म में भगवान रामजी के पूर्वज की लीला स्थली 
के रूप में इस स्थल को जाना जाता है। राजा अनरण्य इक्ष्वाकु वंश में जन्मे महान राजा थे। अनेक राजा और महाराजाओं को पराजित करता हुआ दशग्रीव रावण इक्ष्वाकु वंश के राजा अनरण्य के पास पहुँचा जो अयोध्या पर राज्य करते थे। उसने उन्हें द्वन्द युद्ध करने अथवा पराजय स्वीकार करने के लिये ललकारा। दोनों में भीषण युद्ध हुआ किन्तु ब्रह्माजी के वरदान के कारण रावण उनसे पराजित न हो सका। जब अनरण्य का शरीर बुरी तरह से क्षत-विक्षत हो गया तो रावण इक्ष्वाकु वंश का अपमान और उपहास करने लगा। इससे कुपित होकर अनरण्य ने उसे शाप दिया कि "तूने अपने व्यंगपूर्ण शब्दों से इक्ष्वाकु वंश का अपमान किया है, इसलिये मैं तुझे शाप देता हूँ कि महाराज इक्ष्वाकु के इसी वंश में जब विष्णु स्वयं अवतार लेंगे तो वही तुम्हारा वध करेंगे।" यह कहते हुए राजा स्वर्ग सिधार गये।   

कई पीढ़ियों तक रावणअयोध्या से की शत्रुता,
रघु के तीर से रावण का अहंकार टूटा :- 

रावण को अयोध्या के महाराज अनरण्य ने श्राप दिया था कि उनका वंशधर ही तेरा वध करेगा। इस श्राप के फलस्वरूप रावण अयोध्या के राजाओं का शत्रुओं बन गया। इस श्राप से रावण परेशान था। जब महराज रघु अयोध्या का सिंहासन पर आसीन हुए तब रावण अयोध्या पहुंचा। संयोग ऐसा बना कि रावण जब अयोध्या पहुंचा, तो राजा रघु नगर का निरीक्षण करने गए हुए थे। राजमहल के द्वार पर पहुंचकर रावण ने द्वारपाल द्वारा संदेश भेजा, कि रघु से कहो कि राक्षसराज दशानन आया है और उनसे द्वन्द युद्ध करना चाहता है।
        दशानन का संदेश सुनकर महामंत्री द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कहा कि राजा रघु, नगर में नहीं हैं आप किसी और समय यहां आएं। पता नहीं क्यों आपको मरने की इतनी जल्दी है। थोड़ी प्रतिक्षा कर लीजिए।
     रावण, मंत्री की बात सुनकर चिढ़ गया। उसने कहा कि पृथ्वी पर एक ही चक्रवर्ती सम्राट है और वो मैं हूं। इतना कहकर रावण चला गया।
       जब महाराज रघु लौटे तो महामंत्री से रावण आगमन और चुनौती को बताया। राजा रघु ने अपने धनुष पर नारायण अस्त्र का अनुसंधान कर प्रत्यंचा चढ़ा ली और लंका की तरफ तीर छोड़ दिया। उस तीर में से कई लाख तीर और बिखर गए। लंका के कई भवन और वहां के लोग ध्वस्त होने लगे। लंका में त्राहि-त्राहि मच गई।
     रावण विद्वान था। उसने पहचान लिया कि किसी ने नारायण शास्त्र का प्रयोग किया है। उसने घोषणा कर दी कि कोई रथ पर न बैठे। कोई किसी प्रकार का अस्त्र-शस्त्र हाथ में न ले। सभी हाथ ऊपर उठाकर कहें कि "हम महाराज रघु की शरण में हैं।"
     लंका के सूरवीरों ने रावण की इस आज्ञा का पालन किया। स्वंय रावण ने भी ऐसा ही किया। सभी तीर वापस लौट गए पर लंका का आठवां भाग पूरी तरह नष्ट हो चुका था। इस घटना के बाद रावण, जब तक महाराज रघु जीवित रहे, तब तक उसने अयोध्या की ओर कूच करने का साहस नहीं किया।

राजा अज से रावण का युद्ध :- 

राजा अज से रावण का बड़ा युद्ध हुआ। उन्होंने पवन अस्त्र से सेना सहित रावण को लंका पहुंचा दिया। इनका तेज बल देखकर रावण चुपचाप बैठा था। फिर दशरथ का जन्म हुआ और रावण को ब्रह्मा के वरदान की बात याद आई और तप करने के लिए निकल पड़ा। तप के बाद जब ब्रह्मा ने कहा कि वर मांगें, तब रावण ने दशरथ के पुत्र उत्पन्न नहीं होने का वर मांगा, ब्रह्मा ने वर दे दिया, लेकिन रावण मन में बड़ा दुखी हुअा। तब उसने कौशल पुरी जाकर कौशल्या को चुरा लिया और पिटारी समुद्र में राघव मच्छ काे साैंपी। इसके बाद राजा दशरथ के मंत्री सुमंत को वह पिटारी मिली। उसने खोलकर देखा तो उसमें सुंदर कन्या मिली। इसके बाद उसने कन्या से पूरी जानकारी ली और उसे सुमंत उसे कौशलपुर ले आया। जहां राजा अपनी कन्या के खो जाने से दुखी था। सुमंत ने उन्हें बेटी वापिस लौटाई। जब राजा को सुमंत के बारे में दशरथ का मंत्री होना पता चला तो उन्होंने कन्या का विवाह राजा दशरथ से कर दिया।

दशरथ से भी मिला पराजय :- 

महाराज रघु के बाद आयोध्या के राजा अज और दशरथ से वह पराजित होता रहा । उस समय आर्य राजाओ और राक्षसो के बीच युद्ध होते थे । राजा दशरथ काशीराज दिवोदास के साथ मिलकर राक्षसराज रावण से युद्ध कर रहे थे । रावण आर्यावर्त/, भारत वर्ष देश पर अपना अधिकार कर वैदिक संस्कृति को समाप्त कर राक्षस संस्कृति को थोपना चाहता था । यही युद्ध का मुख्य कारण था दाशराज युद्ध। इस युद्ध को कुछ इतिहासकार, दसवां देवासुर संग्राम भी कहते हैं। यह युद्ध दशरथ तथा दिवोदास आदि दस राजाओं ने मिलकर असुरों के नेता शंभर के विरुद्ध लड़ा था। असुर शंभर, राक्षस राज रावण का साढ़ू तथा मय दानव की बड़ी बेटी मायावती का पति था। भयंकर योद्धा होने पर भी युद्ध में यद्यपि शंभर हार कर वीरगति को प्राप्त हुआ, पर दशरथ भी बुरी तरह घायल होकर मूर्छित हुए। उस युद्ध में, रानी कैकई भी उनके साथ थीं। उन्होंने, बड़ी वीरता से युद्ध करते हुए, घायल दशरथ को युद्ध क्षेत्र से बाहर निकाला और उनकी जान बचाई। इसी के पुरस्कार स्वरूप दशरथ ने कैकई को दो वरदान मांगने को बोला, जिनका परिणाम बाद में कुमार भरत को राजगद्दी और श्री रामजी को वनवास हुआ था।

राजा दशरथ के मुकुट बालि से रावण ले गया था :

अयोध्या के राजा दशरथ एक बार भ्रमण करते हुए वन की ओर निकले वहां उनका समाना बालि से हो गया. राजा दशरथ की किसी बात से नाराज हो बालि ने उन्हें युद्ध के लिए चुनोती दी. राजा दशरथ की तीनो रानियों में से कैकयी अश्त्र शस्त्र एवं रथ चालन में पारंगत थी। अक्सर राजा दशरथ जब कभी कही भ्रमण के लिए जाते तो कैकयी को भी अपने साथ ले जाते थे इसलिए कई बार वह युद्ध में राजा दशरथ के साथ होती थी. जब बालि एवं राजा दशरथ के मध्य भयंकर युद्ध चल रहा था उस समय संयोग वश रानी कैकयी भी उनके साथ थी।
       युद्ध में बालि राजा दशरथ पर भारी पड़ने लगा वह इसलिए क्योकि बालि को यह वरदान प्राप्त था की उसकी दृष्टि यदि किसी पर भी पद जाए तो उसकी आधी शक्ति बालि को प्राप्त हो जाती थी. अतः यह तो निश्चित था की उन दोनों के युद्ध में हार राजा दशरथ की ही होगी।
     राजा दशरथ के युद्ध हारने पर बालि ने उनके सामने एक शर्त रखी की या तो वे अपनी पत्नी कैकयी को वहां छोड़ जाए या रघुकुल की शान अपना मुकुट यहां पर छोड़ जाए। तब राजा दशरथ को अपना मुकुट वहां छोड़ रानी कैकेयी के साथ वापस अयोध्या लौटना पड़ा। कैकेयी ने रघुकुल की आन को वापस लाने के लिए श्री राम के वनवास का कलंक अपने ऊपर ले लिया और श्री राम को वन भिजवाया. उन्होंने श्री राम से कहा भी था कि बाली से मुकुट वापस लेकर आना है।
       श्री रामजी ने जब बालि को मारकर गिरा दिया. उसके बाद उनका बालि के साथ संवाद होने लगा. प्रभु ने अपना परिचय देकर बालि से अपने कुल के शान मुकुट के बारे में पूछा था। तब बालि ने बताया- "रावण को मैंने बंदी बनाया था. जब वह भागा तो साथ में छल से वह मुकुट भी लेकर भाग गया. प्रभु मेरे पुत्र को सेवा में ले लें. वह अपने प्राणों की बाजी लगाकर आपका मुकुट लेकर आएगा।"
      जब अंगद श्री रामजी के दूत बनकर रावण की सभा में गए. वहां उन्होंने सभा में अपने पैर जमा दिए और उपस्थित वीरों को अपना पैर हिलाकर दिखाने की चुनौती दे दी. रावण के महल के सभी योद्धा ने अपनी पूरी ताकत अंगद के पैर को हिलाने में लगाई परन्तु कोई भी योद्धा सफल नहीं हो पाया।
         जब रावण के सभा के सारे योद्धा अंगद के पैर को हिला न पाए तो स्वयं रावण अंगद के पास पहुचा और उसके पैर को हिलाने के लिए जैसे ही झुका उसके सर से वह मुकुट गिर गया। अंगद वह मुकुट को लेकर वापस श्री राम दल में भिजवाया था।

राम रावण युद्ध :- 

कालांतर में त्रेता युग में इसी महान इक्ष्वाकु वंश में स्वयं श्रीमन् नारायण अयोध्या नरेश दशरथ के घर प्रभु श्री राम के रूप में जन्मे और उन्होंने ही दशानन रावण, उसके सम्पूर्ण कुल और पूरी राक्षस जाति का वध किया। 
रामायण और राम चरित मानस में इस युद्ध से भारत का हर नागरिक परिचित है। 

इस्लामी शिक्षा का केंद्र भी रहा रौनही :- 

सनातन और जैन धर्म स्थली की महत्ता को देखते हुए परवर्ती काल में यहां इस्लामी धर्म और संस्कृति की प्रेरणा मिली प्रतीत होती है। देश में इस्लामी शिक्षा का सबसे बड़ा केंद्र "मदरसा अल जामिअतुल इस्लामिया" कस्बा रौनाही जिला फैजाबाद में है। यह फैजाबाद लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग पर कस्बा रौनाही में स्थित है। इसकी स्थापना 1964 में उन लोगों में धार्मिक, शैक्षिक और सामाजिक जागरूकता पैदा करने के लिए की गई थी, जो अब तक लगभग पिछड़े थे। डॉ सैयद महफूजुर रहमान, डॉ सैयद हबीबुर रहमान, हाजी सैयद मोहम्मद इलियास, श्री मुस्ताक अहमद, मुन्ने खान, इतलाफत अहमद खान, मोहम्मद रियाज खान और श्री चौधरी वसीम अहमद जैसे प्रमुख व्यक्तित्व आगे आए और इस संस्थान की स्थापना में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया। इस पवित्र कारण के लिए, उन्होंने सर्वसम्मति से इस सदी के सबसे महान इस्लामी विद्वानों में से एक, धार्मिक विचारक हजरत अल्लामा कुमरुज्जमा खान आज़मी की मूल्यवान सेवाएं लेने का फैसला किया। उनके आगमन ने लोगों के मनोबल और आशा को बढ़ावा दिया। छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई, जिसके कारण भूमि अधिग्रहण करना पड़ा, जिसका उपयोग प्राथमिक और उच्च शिक्षा के लिए किया जा सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए एक खाली पड़ी भूमि को छोड़ दिया गया। इस प्रकार एक कमरे की छत का निर्माण हुआ। यूरोप में इस्लामी विचारों और इसकी शिक्षाओं को स्थापित करना समय की मांग थी। इस उद्देश्य से हजरत अल्लामा कुरुज्जमा खान आज़मी 1974 में इंग्लैंड गए। परिणाम स्वरूप इस संस्था की सभी जिम्मेदारियां जनाब मौलाना कुरी जलालुद्दीन कादरी को सौंप दी गईं। उन्होंने इस संस्था और लोगों के सपने को सहर्ष स्वीकार किया और पूरा किया। इस संस्था की प्रगति और विकास के लिए उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी। अब यह संस्था अपने विशेष शिक्षा के क्षेत्र में उच्च योग्यता और अनुभव वाले शिक्षकों और अपने उत्पादों के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है, जो दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इस्लाम के दूत के रूप में काम कर रहे हैं। आज जामिया में निम्नलिखित शैक्षणिक विभाग सुचारू रूप से चल रहे हैं:-
1- प्राथमिक अनुभाग
2- हिफ़्ज़ विभाग (पवित्र क़ुरआन को याद करना)
3- तजवीद और क़िरात विभाग
4- आलिया विभाग (एमए तक)
5- पवित्र क़ुरआन की व्याख्या
6- उपदेश और प्रसार विभाग
7- इफ़्ता विभाग (धार्मिक फरमान)
8- प्रकाशन विभाग 
9- पत्रकारिता विभाग और
10- कंप्यूटर विभाग। 

धन्नीपुर की मोहम्मद बिन-अब्दुल्लाह मस्जिद :- 

इस्लामी शिक्षा का केंद्र होने के कारण और अयोध्या राम जन्म भूमि स्थित बाबरी ढांचा मिटने के कारण भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेशानुसार बाबरी मस्जिद समर्थकों को क्षतिपूर्ति हेतु उतर प्रदेश सरकार ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन दिया है राम मंदिर के ट्रस्ट की तर्ज पर बोर्ड ने भी ट्रस्ट बनाने का फैसला किया है, जिसके लिए 'इंडो इस्लामिक कल्चर ट्रस्ट' (आईआईसीटी) नाम भी तय कर लिया है। मस्जिद की पांच एकड़ जमीन का मालिकाना हक का कब्जा सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड को दे दिया है. ट्रस्ट इस जमीन पर मस्जिद के अलावा अस्पताल और रिसर्च सेंटर बनाएगा. हालांकि, इस बनने वाली मस्जिद का नाम बाबर के नाम पर नहीं रखा जाएगा.मस्जिद अब मुग़ल शासक बाबर के नाम से नहीं पहचानी जाएगी. इसे इस्लाम के पैग़बंर और उनके पिता के नाम पर मोहम्मद बिन-अब्दुल्लाह मस्जिद कहा जाएगा। अयोध्या के राम जन्म भूमि से क़रीब 25 किलोमीटर दूर मस्जिद बनने वाली जगह को IICF सभी समुदाय और वर्गों के लोगों के लिए 'दवा' और 'दुआ' की जगह बनाना चाहता है. 
       अदालत के फ़ैसले के बाद धन्नीपुर में मिली कुल 11 एकड़ की ज़मीन (सरकार से मिली 5 एकड़ की जगह और सुन्नी वक्फड़ बोर्ड से मिली 6 एकड़ जगह) में एक बड़ी मस्जिद के अलावा 500 बेड का कैंसर अस्पताल भी होगा. इसमें दो कॉलेज, एक वृद्धाश्रम और एक किचन होगी जिसमें केवल शाकाहारी खाना मिलेगा.अयोध्या में मस्जिद के निर्माण के लिए आईआईसीएफ़ ने हाल में हाजी अरफ़ात शेख़ को मस्जिद विकास समिति का नया प्रमुख नियुक्त किया था. महाराष्ट्र राज्य अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष रहे हाजी अरफ़ात शेख़ चाहते हैं कि मस्जिद ऐसी जगह बन सके जहां सभी धर्मों के लोग आएं और उन्हें सूकून महसूस हों.11 एकड़ की इस पूरी ज़मीन पर एक विशाल मस्जिद के साथ-साथ एक कैंसर अस्पताल, दो कॉलेज, बड़े बगीचे और फव्वारे होंगे. यहाँ एक विशाल क़ुरान भी रखी जाएगी, जिसकी जिल्द भगवा रंग की होगी।

                   आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।) 


 



Saturday, June 8, 2024

बस्ती के लोकसभा सांसद श्री राम प्रसाद चौधरी ✍️आचार्य डा. राधेश्याम द्विवेदी

                           श्री राम प्रसाद चौधरी

सामान्य परिचय :- 
बस्ती संसदीय तथा विधान सभाई क्षेत्रों में सबसे अधिक अनुभवी चौधरी श्री राम प्रसाद जी हैं। श्री राम प्रसाद चौधरी एक भारतीय राजनीतिज्ञ हैं । वह अनेक बार सांसद ,विधायक तथा मंत्री रह चुके हैं । उन्होने जनता पार्टी,भाजपा, सपा तथा बसपा में रहकर जनता का प्रतिनिधित्व किया है। लगभग 25 साल से वे राजनीतिक क्षितिज पर अपना स्थान बनाये हुए और भारत में उत्तर प्रदेश की 9 वीं लोकसभा , 12 वीं , 13 वीं , 14 वीं , 15 वीं और 16 वीं विधान सभा के सदस्य रहे हैं। वे उत्तर प्रदेश के खलीलाबाद लोक सभा तथा कप्तानगंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है ,जहां इस समय उनका बेटा श्री कविंद्र अतुल चौधरी सबसे कम उम्र का विधायक प्रतिनिधित्व कर रहा है। 

        61 बस्ती ससदीय सीट 2024 का चुनाव:- 

वह अभी हाल ही में सम्पन्न 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के बस्ती क्षेत्र से विजय हासिल की है।तीसरी बार लगातार ताल ठोंकने वाले पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी ने अपनी चौधराहट कायम कर ली। एक जुट हुए चौधरियों को यादव और मुस्लिम के गठजोड़ ने सभी विकास के दावे, राम मंदिर मुद्दा और मोदी मैजिक को बेअसर कर दिया। आरक्षण और संविधान बचाओ मुद्दे को लेकर ईडी गठबंधन ने जिस तरीके से दलित और पिछड़े मतदाताओं को सहेजने का कार्य किया, उसके बदले भाजपा प्रत्याशी और उनके कार्यकर्ता जमीनी स्तर पर उन मतदाताओं को समझाने में सफल नहीं हो पाए। और यही कारण रहा कि बसपा का एक बड़ा वोट बैंक सपा की तरफ शिफ्ट हो गया। नतीजा यह हुआ कि ईडी गठबंधन गठजोड़ और बसपा का शिफ्ट हुआ वोट भाजपा की नीतियों पर भारी पड़ा और पूर्वांचल की बड़ी सीट बस्ती में पहली बार लोक सभा चुनाव में साइकिल को जीत मिली।

बस्ती ससदीय सीट के चुनाव में मतों का विवरण:- 

कुल पड़े मत - 1083731
भाजपा- हरीश द्विवेदी - 426011
सपा- राम प्रसाद चौधरी- 527005
बसपा -लवकुश पटेल- 103301
लोग पार्टी- पंकज दुबे-4727
मौलिक अधिकार पार्टी-प्रेम कुमार-3611
भारत महा परिवार पार्टी-शैलेन्द्र कुमार-2364
आल इंडिया फारवर्ड ब्लाक-हाफिज अली-2989
निर्दल-प्रमोद कुमार-2556
निर्दल-राम करन गौतम-2645
कुल रिजेक्ट मत-861
नोटा-7761
सपा-100994 मतों के अन्तर से जीत दर्ज की है।

चौधरी राम प्रसाद का प्रारंभिक जीवन और शिक्षा :- 

चौधरी श्री राम प्रसाद जी का जन्म बस्ती जिले में हुआ था। उन्होंने सिविल और इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में इंटर मीडिएट और डिप्लोमा प्राप्त किया। इसी दौरान उनकी शादी कपूरा देवी के साथ हुई और उन्हें एक बेटा और दो बेटियां हुईं. श्री रामप्रसाद चौधरी के भतीजे अरविंद कुमार चौधरी बसपा में रहे हैं और साल 2009 से 2014 तक बसपा के ही टिकट पर बस्ती लोकसभा सीट से सांसद चुने गए थे।

रामप्रसाद चौधरी का चुनावी सफर :- 

श्री रामप्रसाद चौधरी अपने राजनीतिक करियर की शुरूआत 9वीं लोकसभा में संत कबीर नगर जिले के खलीलाबाद सीट से की।1989 से 1991 तक 9वीं लोक सभा वह इस सीट से जनता पार्टी के टिकट पर मैदान में उतरे और जीत कर संसद पहुंचे थे। इसके बाद वह उत्तर प्रदेश में बस्ती सदर विधानसभा सीट से लड़ने लगे। 1993 के बाद वह 2017 तक बस्ती जिले के कप्तानगंज (विधानसभा क्षेत्र) के लगातार पांच बार विधायक रहे। 1993 से 1995 तक , 12वीं विधान सभा सपा के सदस्य रहे। 1996 से 2002 तक वह 13वीं विधान सभा, बहुजन समाज पार्टी के सदस्य रहे।विधायक बनने के बाद 1997 में वह मायावती सरकार में राज्य मंत्री बने थे। उसी साल कल्याण सिंह की सरकार में वह कपड़ा और रेशम उद्योग मंत्री बने। 2002 से 2007 तक वह 14वीं विधान सभा में वह भाजपा के सदस्य रहे। 2007 से 2012 तक वह 15वीं विधान सभा में बहुजन समाज पार्टी से विधायक रहे। 2012 से 2017 तक वह 16वीं उत्तर प्रदेश विधान सभा में बहुजन समाज पार्टी के सदस्य रहे।
         वे कप्तानगंज विधान सभा से लगातार 5 बार विधायक रहे,खलीलाबाद लोक सभा क्षेत्र से एक बार सांसद भी चुने गये।मायावती सरकार में खाद्य रसद एवं पंचायती राज विभाग के मंत्री भी रह चुके हैं। वह समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता माने जाते हैं। वह उत्तर प्रदेश की सोलहवीं विधानसभा सभा में विधायक रहे। 2012 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में इन्होंने उत्तर प्रदेश की कप्तानगंज विधान सभा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता था। उत्तर प्रदेश 2017 की सत्रहवीं विधान सभा में वह भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार चंद्र प्रकाश शुक्ला से 6,827 मतों के अंतर से हार गए। इसके बाद साल 2019 के लोकसभा चुनावों में वह सपा और बसपा गठबंधन के उम्मीदवार थे, लेकिन उन्हें बीजेपी के हरीश द्विवेदी ने हरा दिया था। नवंबर 2019 में बसपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आरोप लगाते हुए बाहर का रास्ता दिखा दिया। इसके बाद वह सपा में शामिल हो गए थे।

चल और अचल संपत्ति:- 

 लोक सभा के बसपा उम्मीदवार और पूर्व मंत्री रामप्रसाद चौधरी करोड़पति हैं। उनकी चल-अचल संपत्ति करोडो़ से ऊपर है। उनके पास सबसे अधिक गाड़ियां भी हैं। अब तक जिन प्रत्याशियों ने नामांकन दाखिल किया है, उनमें गाड़ियों के मामले में रामप्रसाद चौधरी सबसे अमीर हैं। उनकी ओर से दाखिल शपथ पत्र के मुताबिक रामप्रसाद चौधरी के खुद के नाम से एक फोर्ड इंडीवर 17 लाख रुपये मूल्य की है। वहीं उनकी पत्नी के नाम से दो ट्रैक्टर, एक डंपर, पांच ट्रक और एक जेसीबी मशीन है। सपा प्रत्याशी बीजेपी और बसपा प्रत्याशी से ज्यादा अमीर हैं. नामांकन के दौरान दिए गए शपथ पत्र में उन्होंने बताया कि है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में 6 लाख 18 हजार 740 रुपए आय दर्शाया है. वहीं पत्नी कपुरा चौधरी की आय 4 लाख 23 सौ 30 रुपए घोषित की गई है.

फ्लोर मिल के मालिक हैं सपा सांसद:- 

राम प्रसाद चौधरी, चौधरी फ्लोर मिल के मालिक हैं, जिसकी कुल कीमत 39 लाख 30 हजार रुपए बताई गई है. इतना ही नहीं इनके पास दो सोने की अंगूठी और एक चेन है, जिसकी कीमत 2 लाख 80 हजार रुपए है. तो वहीं पत्नी कपुरा के पास 23 लाख 52 हजार रुपए के सोने के विभिन्न और 61 हजार 320 रुपए के चांदी के जेवर हैं. इनके पास एक रिवाल्वर है, जिसकी कीमत 25 हजार रुपए और रायफल जिसकी कीमत एक लाख 50 हजार रुपए दिखाई गई है. वहीं पत्नी के पास भी एक रिवाल्वर और एक राइफल है. 

शपथ पत्र में दिया संपत्ति का ब्योरा 

पूर्व मंत्री राम प्रसाद चौधरी का लखनऊ के इंदिरा नगर में 446.74 वर्ग मीटर में खुद का मकान है. तो वहीं संत कबीर नगर के जिगिना में कप्तानगंज जसईपुर नवाई और चिलमा में भी खुद का मकान है. इतना ही नहीं कई जगह इनकी जमीनें भी हैं. राम प्रसाद चौधरी की आय स्रोत पेंशन और ब्याज हैं. इसके अलावा वो खेती करते हैं और डेयरी फार्म भी संचालित करते हैं. इनके पत्नी के पास भी डेयरी है. शपथ पत्र के अनुसार राम प्रसाद चौधरी के ऊपर तीन आपराधिक मुकदमे भी दर्ज हैं. एक मामले में इन्हें दोषी भी ठहराया गया है.

आपराधिक मामलों का विवरण

1आपराधिक धमकी के लिए सजा से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-506)
2लोक सेवक द्वारा विधिवत प्रख्यापित आदेश की अवज्ञा से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-188)
2गैरकानूनी सभा का सदस्य होने के लिए दंड से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-143)
1दंगा फैलाने की सज़ा से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-147)
1दंगा-फसाद, घातक हथियार से लैस होने से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-148)
1गैरकानूनी सभा के प्रत्येक सदस्य द्वारा सामान्य उद्देश्य के अभियोजन में किए गए अपराध का दोषी होने से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-149)
1लोक सेवक को उसके कर्तव्य निर्वहन से रोकने के लिए हमला या आपराधिक बल का प्रयोग करने से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-353)
1शांति भंग करने के इरादे से जानबूझकर अपमान करने से संबंधित आरोप (आईपीसी धारा-504)
 
कुर्मी क्षत्रिय जाति के पूर्वांचल के कद्दावर नेता:- 

2020 से वर्तमान तक वह सपा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। इस बार 2024 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में जाति का बड़ा खेला हुआ। पीडीए का फॉर्मूला लाकर सपा जातीय समीकरण समझने और साधने में सफल रही। नतीजा यह रहा कि उसने यूपी में अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की। उत्तर प्रदेश कुर्मी समाज से 11 राजनेता और राजनेत्री संसद में पहुंच गई है! कुर्मी समाज से उत्तर प्रदेश से नवनिर्वाचित सांसद इस प्रकार हैं - 
1- श्रीमती अनुप्रिया पटेल - मिर्जापुर (अपना दल एस)
2- श्री नरेश उत्तम पटेल -फतेहपुर (सपा)
3- श्री शिवपाल सिंह पटेल -प्रतापगढ़ (सपा)
4- श्रीमती कृष्णा पटेल -बांदा (सपा)
5- श्री प्रवीण सिंह पटेल -फूलपुर (भाजपा)
6- श्री पंकज चौधरी -महाराजगंज (भाजपा)
7- श्री रामप्रसाद चौधरी -बस्ती (सपा)
8- श्री लालजी वर्मा -अम्बेडकरनगर (सपा)
9- श्री रामशिरोमणि वर्मा -श्रावस्ती (सपा)
10- श्री उत्कर्ष वर्मा -खीरी (सपा)
11- श्री क्षत्रपाल गंगवार -बरेली (भाजपा)
अन्तर राष्ट्रीय कुर्मी क्षत्रिय समाज बस्ती ने माननीय पूर्व मंत्री श्री राम प्रसाद चौधरी जी को बस्ती लोक सभा चुनाव में जीतने के लिए बधाई दी है। श्री राम प्रसाद चौधरी ने 61वी लोक सभा बस्ती की सीट समाजवादी पार्टी से पीडीए का फॉर्मूला लाकर धन बल और युक्ति से हासिल की है।

समर्थकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन :- 

सांसद बनने के दूसरे दिन बुधवार को राम प्रसाद चौधरी का आवास और हाता समर्थकों, कार्यकर्ताओं से गुलजार हो उठा। चुनाव के दौरान चोरी-छिपे मदद पहुंचाने वाले लोग भी खुशी का इजहार करने के लिए पर्दे से बाहर आ गए। जीत की बधाई देने का सिलसिला थमने का नाम नहीं लिया। समर्थकों का जोश देखते बन रहा था। मौका मिला तो लोग नेताजी कहकर चुनाव में अपनी भूमिका उकेरने से भी नहीं चूके। प्रसन्न मुद्रा में रामप्रसाद भी दिनभर सभी से अभिवादन लेने और देने में व्यस्त रहे। 
           सुबह हाेते ही गांधीनगर मार्ग स्थित चौधरी हाता में कार्यकर्ताओं और समर्थकों की हलचल शुरू हो गई। सुबह नौ बजते-बजते अपनों से उनका हाता भर गया। राम प्रसाद भी बिना देर किए आवास से बाहर आकर समर्थकों के साथ बैठ गए। फिर शुरू हुआ एक-दूसरे को बधाई देने का सिलसिला। अपने नए सांसद को लोग कभी माला पहना रहे थे तो कुछ मिठाई लेकर पहुंचे। उनके कार्यालय में माला-मिठाई की ढेर लगी रही। राम प्रसाद भी उनके करीब तक पहुंचने वाले एक-एक कार्यकर्ता से भरे उत्साह से मिल रहे थे। किसी का मुंह मीठा कराकर तो किसी को माला पहनाकर उन्होंने उत्साहवर्धन किया।
          हम माननीय चौधरी साहब के स्वस्थ जीवन और उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हैं और आशा करते हैं की केन्द्र सरकार और भारत सरकार की पूर्व प्रचलित योजनाओं और समाजवादी पार्टी के चुनाव घोषणा पत्र के बिंदुओं को बेहतर ढंग से क्रियान्वित करते हुए बस्ती जिले को उत्तरोत्तर विकास कराते रहेंगे।

                    आचार्य डा राधे श्याम द्विवेदी 

लेखक परिचय:-

(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)