श्री विष्णु पुराण कथा चौथा स्कंद अध्याय 3 का भाग दो
के अनुसार अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र से रोहित दसवां रोहिताश्व से हरित उत्पन्न हुई हरित से चाचू ,चाचू से विजय एवं वासुदेव उत्पन्न हुए । विजय से पूरक तथा रुद्र से वृक का जन्म हुआ । वृक रुरुक का पुत्र था और बाहु उससे पैदा हुए थे । भागवत पुराण से भूगोल में वंशावली इस प्रकार है - हरिश्चंद्र → रोहित → हरित → चंपा → सुदेवा → विजया → भरुका → वृक → बाहुक।
वृकके बाहु नामक पुत्र हुआ । वह अपने पिता के राज काज में सहयोग करता था। एक अन्य संदर्भ में। -- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए। धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था। युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए और मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ। सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित। ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए। राजा वृक और भरत II को एक ही राजा का बोध होता है। वायुपुराण में राजा धृतक का उल्लेख मिलता है।
वृक एक चक्रवर्ती सम्राट था।उसने अपने पुरोहितों की मदद से अश्वमेध यज्ञ कराया। अश्व की रक्षा की जिम्मेदारी युवराज बाहु निभा रहे थे। उस समय मगध में राक्षस राज शक्तिसेन का राज्य भी था।वह अयोध्या नरेश वृक की अधीनता स्वीकार नही करना चाहते थे। उनकी ही प्रेरणा या आदेश से राक्षस राज शक्तिसेन की बीरांगना पुत्री युवरानी सुशीला ने पकड़ लिया था। युवराज बाहु और शक्तिसेन के मध्य भीषण युद्ध हुआ जिसमे अयोध्या के युवराज विजई हुए। शक्तिसेन शरणागत हुआ।उसे अभय दान मिला।उसने अपनी पुत्री का विवाह युवराज बाहु से करके राजा वृक का अश्व लौटा दिया और यज्ञ पूर्ण हुआ।
युवराज बाहु की प्रथम पत्नी नंदनी निसंतान थी।उसने भी युवराज बाहु को युवरानी सुशीला से विवाह करने की अनुमति प्रदान किया था।
(ये कथानक रामानंद सागर के जय गंगा मैया के दृश्यों पर आधारित है।)
आचार्य डॉ राधे श्याम द्विवेदी
लेखक परिचय:-
(लेखक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, आगरा मंडल ,आगरा में सहायक पुस्तकालय एवं सूचनाधिकारी पद से सेवामुक्त हुए हैं। वर्तमान समय में उत्तर प्रदेश के बस्ती नगर में निवास करते हुए समसामयिक विषयों,साहित्य, इतिहास, पुरातत्व, संस्कृति और अध्यात्म पर अपना विचार व्यक्त करते रहते हैं।)
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